जगुआर विमान | राजस्थान | 11 Jul 2025
चर्चा में क्यों?
नियमित प्रशिक्षण मिशन के दौरान, भारतीय वायु सेना (IAF) का एक जगुआर प्रशिक्षक विमान राजस्थान के चुरू ज़िले में दुर्घटनाग्रस्त हो गया।
प्रमुख बिंदु
जगुआर विमान:
- पृष्ठभूमि:
- जगुआर एक ब्रिटिश-फ्राँसीसी लड़ाकू विमान है जो मूलतः ब्रिटिश रॉयल एयर फोर्स और फ्राँसीसी एयर फोर्स में तैनात था।
- जगुआर जेट विमानों को वर्ष 1979 में भारतीय वायु सेना (IFA) में शामिल किया गया था।
- हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) ने वर्ष 1981 में लाइसेंस प्राप्त संस्करणों का उत्पादन शुरू किया और वर्ष 2008 तक जारी रखा।
- भारत ने विभिन्न कॉन्फिगरेशन में 160 से अधिक जगुआर विमानों को शामिल किया है:
- जगुआर IS (एकल-सीट स्ट्राइक फाइटर)
- जगुआर IB (दो-सीट प्रशिक्षण विमान)
- जगुआर IM (नौसेना संस्करण)
- युद्ध इतिहास और वैश्विक संचालक:
- जैगुआर विमान का मौरितानिया, चाड, इराक, बोस्निया, पाकिस्तान, और हाल ही में भारत के ऑपरेशन सिंदूर जैसे अभियानों में सक्रिय उपयोग हुआ है।
- यह विमान यूके, फ्राँस और भारत के लिये परमाणु हथियार डिलीवरी प्लेटफॉर्म के रूप में भी कार्य कर चुका है।
- वर्षों से फ्राँस, ब्रिटेन, ओमान, इक्वाडोर, नाइजीरिया और भारत जैसे देशों ने इस विमान का संचालन किया है।
- इसी तरह की भारतीय वायुसेना दुर्घटनाएँ:
- नवंबर 2024 से अप्रैल 2025 के बीच, वायुसेना ने उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा और गुजरात में प्रशिक्षण मिशनों के दौरान चार विमान दुर्घटनाओं की रिपोर्ट दी।
- इन दुर्घटनाओं में MiG-29, मिराज 2000 और जगुआर जैसे विमानों की तकनीकी खराबी प्रमुख कारण रही।
- विमान सुरक्षा पर बढ़ती चिंताएँ:
- भारतीय वायुसेना के विमानों के हाल ही में हुए दुर्घटनाओं की शृंखला परिचालन विमानों में बार-बार होने वाली तकनीकी समस्याओं का संकेत देती है।
- अधिकांश दुर्घटनाएँ मिग-29 और जगुआर जैसे पुराने प्लेटफार्मों से संबंधित थीं, जिससे बेड़े के आधुनिकीकरण और रखरखाव प्रोटोकॉल पर चिंताएँ बढ़ गईं।
- भारतीय वायुसेना ने प्रत्येक मामले में जाँच शुरू कर दी है, लेकिन ऐसी घटनाओं की आवृत्ति गहन प्रणालीगत मूल्यांकन की आवश्यकता की ओर इशारा करती है।
सरिस्का बाघ अभयारण्य (STR) | राजस्थान | 11 Jul 2025
चर्चा में क्यों?
राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड (NBWL) की स्थायी समिति (SC-NBWL), जिसकी अध्यक्षता केंद्रीय पर्यावरण मंत्री कर रहे हैं, ने सरिस्का टाइगर रिज़र्व (STR) के क्रिटिकल टाइगर हैबिटैट (Critical Tiger Habitat - CTH) की सीमाओं को पुनः निर्धारित करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है।
- हालाँकि, इस पर अंतिम निर्णय सर्वोच्च न्यायालय की मंजूरी के बाद लिया जाएगा।
प्रमुख बिंदु
- प्रस्ताव के बारे में:
- सर्वोच्च न्यायालय स्वतः संज्ञान लेकर सरिस्का टाइगर रिज़र्व (STR) से संबंधित कई मुद्दों की जाँच कर रही है, जिसमें सीमाओं का पुनर्गठन (rationalisation) भी शामिल है। इस संबंध में केंद्रीय सशक्त समिति (CEC) ने सुझाव दिया है कि गाँवों के पुनर्वास और पशु चराई जैसी मानव गतिविधियों से होने वाले व्यवधानों को दूर करने के लिये सीमाओं में बदलाव किया जाए।
- प्रस्तावित बदलाव: इस पुनर्गठन के तहत CTH का क्षेत्र 881.11 वर्ग किमी से बढ़कर 924.49 वर्ग किमी हो जाएगा, जबकि बफर ज़ोन 245.72 वर्ग किमी से घटकर 203.2 वर्ग किमी रह जाएगा। इस परिवर्तन का उद्देश्य संरक्षण की आवश्यकताओं और विकासात्मक दबावों के बीच संतुलन स्थापित करना है।
- पारिस्थितिक और कानूनी संदर्भ: सीटीएच को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत संरक्षित किया गया है और इसे मानवीय हस्तक्षेप से मुक्त रखा जाना चाहिए।
- इस पुनः सीमांकन से टाइगर हैबिटेट के पास बंद पड़ी लगभग 50 खनन गतिविधियों को लाभ मिल सकता है।
सरिस्का टाइगर रिज़र्व:
- सरिस्का टाइगर रिज़र्व राजस्थान के अलवर ज़िले में अरावली पहाड़ियों के बीच स्थित है।
- इसे 1955 में वन्यजीव अभयारण्य घोषित किया गया था तथा वर्ष 1978 में 'प्रोजेक्ट टाइगर' के तहत टाइगर रिज़र्व घोषित किया गया।
- यह क्षेत्र अपने ऐतिहासिक महत्त्व के लिये भी प्रसिद्ध है —
- यहाँ कंकरवाड़ी किला स्थित है, जहाँ औरंगज़ेब ने दारा शिकोह को बंदी बनाया था।
- पांडुपोल हनुमान मंदिर, पांडवों की कथा से जुड़ा एक धार्मिक स्थल है।
- भौगोलिक विशेषताएँ: सरिस्का का परिदृश्य पथरीली भूमि, घास के मैदान, कांटेदार झाड़ियाँ और अर्द्ध-पर्णपाती वन से युक्त है। यहाँ की वनस्पति में ढोक, सालर, कड़ाया, बेर, गुग्गल और बांस शामिल हैं।
- वन्यजीव: यह अभयारण्य रॉयल बंगाल टाइगर, तेंदुआ, सांभर, नीलगाय, जंगली सूअर और लकड़बग्घा जैसे विविध प्राणियों का आवास है।
- जल स्रोत: सरिस्का टाइगर रिज़र्व के आसपास जय समंद झील और सिलिसेढ़ झील जैसे महत्वपूर्ण जल स्रोत भी स्थित हैं।

NBWL क्या है?
- NBWL: NBWL वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 (WPA, 1972) के तहत गठित वन्यजीव संरक्षण और विकास पर एक सर्वोच्च वैधानिक निकाय है।
- संरचना: NBWL एक 47 सदस्यीय समिति है, जिसके अध्यक्ष प्रधानमंत्री हैं, जो इसके पदेन अध्यक्ष होते हैं, जबकि पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री इसके उपाध्यक्ष हैं।
- इसके सदस्यों में शामिल हैं:
- वन्यजीव संरक्षण में शामिल अधिकारी
- थल सेनाध्यक्ष, रक्षा सचिव और व्यय सचिव।
- केंद्र सरकार द्वारा नामित दस प्रख्यात संरक्षणवादी, पारिस्थितिकीविद् और पर्यावरणविद्।
- कार्य: इसका उद्देश्य वन्यजीव और वन के संरक्षण और विकास को बढ़ावा देना है।
- बाघ अभयारण्यों में कार्य: राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) के मार्गदर्शन से किसी भी बाघ अभयारण्य को बिना अनुमति के असंवहनीय उपयोग के लिये हस्तांतरित नहीं किया जाएगा।