केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान | 27 May 2025
चर्चा में क्यों?
राजस्थान में केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान, जिसे 'पक्षियों का स्वर्ग' कहा जाता है, अब कछुओं के लिये एक महत्त्वपूर्ण अभयारण्य के रूप में उभर रहा है।
- यहाँ राज्य में पाई जाने वाली 10 में से 8 कछुआ प्रजातियाँ संरक्षित हैं, जिससे यह क्षेत्र कछुओं के लिये सबसे समृद्ध आवासों में से एक बन गया है।
मुख्य बिंदु
- केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान के बारे में:
- केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान राजस्थान के भरतपुर में स्थित एक आर्द्रभूमि और पक्षी अभयारण्य है। यह यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल और दुनिया के सबसे महत्त्वपूर्ण पक्षी विहारों में से एक है।
- चिल्का झील (ओडिशा) और केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान (राजस्थान) को वर्ष 1981 में भारत के पहले रामसर स्थलों के रूप में मान्यता दी गई थी।
- वर्तमान में केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान और लोकटक झील (मणिपुर), मॉन्ट्रेक्स रिकॉर्ड में दर्ज हैं।
- यह अपनी समृद्ध पक्षी विविधता और जल पक्षियों की बहुलता के लिये प्रसिद्ध है। यह उद्यान पक्षियों की 365 से अधिक प्रजातियों का घर है, जिसमें कई दुर्लभ और संकटग्रस्त प्रजातियाँ शामिल हैं, जैसे कि साइबेरियाई क्रेन।
- उत्तरी गोलार्द्ध के दूर-दराज़ के क्षेत्रों से विभिन्न प्रजातियाँ प्रजनन हेतु अभयारण्य में आती हैं। साइबेरियन क्रेन उन दुर्लभ प्रजातियों में से एक है जिसे यहाँ देखा जा सकता है।
- जीव-जंतु:
- इस क्षेत्र में सियार, सांभर, नीलगाय, जंगली बिल्लियाँ, लकड़बग्घे, जंगली सूअर, साही और नेवला जैसे जानवर देखे जा सकते हैं।
- वनस्पति वर्ग:
- प्रमुख वनस्पति प्रकार उष्णकटिबंधीय शुष्क पर्णपाती वन हैं जो शुष्क घास के मैदान के साथ मिश्रित बबूल निलोटिका प्रभुत्त्व वाले क्षेत्र हैं।
- नदियाँ:
- गंभीर और बाणगंगा दो नदियाँ हैं, जो इस राष्ट्रीय उद्यान से होकर बहती हैं।
- कछुओं के आवास के लिये आदर्श परिस्थितियाँ:
- उद्यान के भीतर जल निकायों, वन आवरण और भूमि का अनूठा मिश्रण कछुओं के लिये एक आदर्श पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करता है।
- गहरे तालाब, दलदली क्षेत्र और घनी वनस्पति कछुओं के अवास बनाने, भोजन की तलाश और प्रजनन के लिये अनुकूलतम परिस्थितियाँ प्रदान करते हैं।
- केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में पाई जाने वाली कछुआ प्रजातियाँ:
- यह उद्यान सैकड़ों कछुओं का घर है, जिनमें से कई कछुओं की आयु 200 वर्ष से भी अधिक मानी जाती है।
- ये प्राचीन सरीसृप उद्यान की पारिस्थितिक और सांस्कृतिक समृद्धि में वृद्धि करते हैं।
- विविध प्रजातियों में से भारतीय सॉफ्टशेल कछुआ विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण है।
- तालाबों और नदियों में पनपने वाला यह जलीय जंतुओं और पौधों का भक्षण करके जलीय स्वास्थ्य को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- यह प्राकृतिक सफाई जल निकायों को शुद्ध करने और पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने में मदद करती है।
- क्राउंड रिवर टर्टल, एक शाकाहारी प्रजाति है, जिसके चेहरे पर पीले-नारंगी धारियाँ होती हैं, यह उद्यान की जैवविविधता में वृद्धि करती है।
- अन्य दुर्लभ प्रजातियों में शामिल हैं:
- भारतीय फ्लैपशेल कछुआ
- भारतीय तंबू (Tent) कछुआ
- भारतीय सितारा (star) कछुआ
भारतीय सॉफ्टशेल कछुआ (गंगा सॉफ्टशेल कछुआ)
- परिचय:
- भारतीय सॉफ्टशेल कछुआ, जिसे गंगा सॉफ्टशेल कछुआ भी कहा जाता है, उत्तरी और पूर्वी भारत की नदियों में पाई जाने वाली एक ताज़े पानी की प्रजाति है।
- यह ट्रियोनीचिडे परिवार से संबंधित है, जो कठोर शल्कों के स्थान पर लचीले, चमड़े जैसे खोल वाले कछुओं के लिये जाना जाता है।
- प्राकृतिक आवास:
- यह प्रजाति मुख्यतः गंगा, सिंधु और महानदी जैसी प्रमुख नदियों में निवास करती है।
- यह झीलों, तालाबों, नहरों और अन्य ताज़े पानी के निकायों में भी पाया जाता है।
- विशेषताएँ:
- कछुए का कवच (ऊपरी खोल) चिकना, अंडाकार अथवा गोलाकार होता है।
- इसका कवच आमतौर पर जैतून या हरे रंग का दिखाई देता है, जिसके किनारे पर अक्सर पीला रंग होता है।
- संरक्षण की स्थिति:
- IUCN रेड लिस्ट: लुप्तप्राय
- वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (WPA), 1972: अनुसूची I
- CITES: परिशिष्ट I
- भारत में अन्य उल्लेखनीय सॉफ्टशेल कछुए:
- लीथ का सॉफ्टशेल कछुआ: प्रायद्वीपीय भारत का स्थानिक और गंभीर रूप से संकटग्रस्त के रूप में वर्गीकृत।
- मोर सॉफ्टशेल कछुआ: यह लुप्तप्राय प्रजातियों की सूची में शामिल है तथा पूर्वोत्तर भारत और बांग्लादेश के तालाबों और मंदिर जलाशयों में पाया जाता है।