उत्तराखंड में बेली ब्रिज | 10 Jun 2025
चर्चा में क्यों?
उत्तराखंड के मिलम गाँव के निवासियों को हिमस्खलन के कारण गौखा नदी पर बने बेली ब्रिज के क्षतिग्रस्त होने के कारण महत्त्वपूर्ण पहुँच संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।
- सीमा सड़क संगठन (BRO) को क्षति की मरम्मत करने और पुल को जल्द से जल्द पुनः स्थापित करने के निर्देश दिये गए हैं।
मुख्य बिंदु
- पुल की अवस्थिति:
- मिलम गाँव से लगभग 8 किमी. दूर स्थित बेली ब्रिज गाँव और चीन सीमा पर स्थित कई सुरक्षा चौकियों के बीच एक महत्त्वपूर्ण संपर्क प्रदान करता है।
- लगभग 400 निवासियों की आबादी वाला मिलम गाँव, भारत-चीन सीमा के पास स्थित जोहार घाटी में अंतिम बसा हुआ क्षेत्र है।
- 65 किमी. लंबा मुनस्यारी-मिलम मार्ग इन मौसमी आवागमन के दौरान निवासियों के लिये एकमात्र संपर्क मार्ग है।
- मिलम गाँव से लगभग 8 किमी. दूर स्थित बेली ब्रिज गाँव और चीन सीमा पर स्थित कई सुरक्षा चौकियों के बीच एक महत्त्वपूर्ण संपर्क प्रदान करता है।
- बेली ब्रिज के बारे में:
- बेली ब्रिज एक प्रकार का मॉड्यूलर पुल (modular bridge) है, जिसके सभी हिस्से पहले से बने होते हैं, इसलिये आवश्यकतानुसार उन्हें जल्दी से जोड़ा जा सकता है।
- इसका आविष्कार द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश सिविल इंजीनियर डोनाल्ड कोलमैन बेली (Donald Coleman Bailey) द्वारा किया गया था।
- इस पुल की प्रमुख विशेषताओं में शामिल हैं: मॉड्यूलर डिज़ाइन, परिवहन में आसानी, उच्च भार वहन क्षमता और विभिन्न भौगोलिक परिस्थितियों में अनुकूलन क्षमता।
- बेली ब्रिजों को विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण वातावरण में त्वरित संयोजन के लिये डिज़ाइन किया गया है, जिसके लिये न तो भारी मशीनरी की आवश्यकता होती है और न ही उन्नत निर्माण तकनीक की।
- भारतीय सशस्त्र बलों को बेली ब्रिज का डिज़ाइन अंग्रेजों से विरासत में मिला था। इसे वर्ष 1971 के भारत-पाक युद्ध में और वर्ष 2021 की उत्तराखंड बाढ़ जैसी आपदाओं में राहत कार्यों के दौरान प्रयोग में लाया गया था।
हिमस्खलन
- परिचय:
- हिमस्खलन अथवा हिमधाव (Avalanche) पर्वतीय ढलानों पर बर्फ, बर्फीले टुकड़ों तथा मलबे का तीव्र गति से नीचे की ओर बहना होता है। इसमें प्रायः मिट्टी, चट्टानें तथा मलबा भी शामिल होता है, जिससे भारी विनाश होता है।
- दिसंबर से अप्रैल के बीच हिमस्खलन का खतरा अधिक रहता है, क्योंकि इस अवधि में शीत ऋतु में भारी हिमपात (बर्फ का संचय) और वसंत ऋतु में हिम-स्तरों के कमज़ोर होने (हिम परतों का विगलन होना) की घटनाएँ होती हैं।
- प्रकार:
- अदृढ़ हिम अवधाव (Loose Snow Avalanche): यह एक एकल बिंदु से शुरू होता है, जहाँ हिम का आबंध सुदृढ़ नहीं होता, हिम के कणों के गिरने के साथ इसमें प्रतिलोमित V आकार में विस्तार होता है तथा अपेक्षाकृत कम मात्रा और गति के कारण यह कम संकटपूर्ण होता है।
- स्लैब हिमस्खलन (Slab Avalanche): किसी संसक्त हिम पट्ट का अंतर्निहित परतों से टूटकर अलग होना स्लैब हिमस्खलन कहलाता है, जिसकी गति प्रायः 50 से 100 किमी/घंटा तक होती है और यह भीषण विनाश का कारण बनता है।
- ग्लाइडिंग हिमस्खलन (Gliding Avalanche): इसमें हिम पुंज का घास अथवा चट्टान जैसी समान सतह से नीचे की ओर फिसलन होता है, जिससे इसमें विभंजन होता है और यह स्थिर हिम खंड से अलग हो जाता है।
- आर्द्र-हिम अवधाव (Wet-Snow Avalanche): आर्द्र-हिम हिमस्खलन स्वाभाविक रूप से तापमान या वर्षा में बढ़ोतरी के कारण होता है, क्योंकि विगलित हिम के जल से हिम परत का आबंध कमज़ोर हो जाता है।
सीमा सड़क संगठन (BRO)
- देश के उत्तरी और पूर्वोत्तर सीमावर्ती क्षेत्रों में सड़कों के नेटवर्क के तीव्र विकास के समन्वय के लिये वर्ष 1960 में सीमा सड़क संगठन (BRO) की स्थापना की गई थी।
- यह संगठन रक्षा मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में कार्य करता है।
- BRO ने अब अपना कार्यक्षेत्र हवाई पट्टियों, भवन परियोजनाओं, रक्षा संबंधी निर्माण तथा सुरंग निर्माण तक विस्तारित कर लिया है।
- केंद्र सरकार ने सीमा सड़क विकास बोर्ड (BRDB) की स्थापना की, जिसके अध्यक्ष प्रधानमंत्री तथा उपाध्यक्ष रक्षा मंत्री होते हैं।