बिहार में 32% उम्मीदवारों पर आपराधिक आरोप | 29 Oct 2025

चर्चा में क्यों?

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) एवं बिहार इलेक्शन वॉच (BEW) की रिपोर्ट के अनुसार बिहार विधानसभा चुनाव के प्रथम चरण में आपराधिक एवं वित्तीय प्रभाव वाले उम्मीदवारों की संख्या बहुत अधिक है।

  • यह रिपोर्ट राजनीति के अपराधिकरण की निरंतर समस्या तथा भारतीय चुनावों में धन-बल की बढ़ती भूमिका को रेखांकित करती है।

मुख्य बिंदु

  • मुद्दे के बारे में: 
    • ADR और BEW द्वारा किया गया विश्लेषण 6 नवंबर 2025 को प्रस्तावित बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण की 121 सीटों पर चुनाव लड़ रहे 1,314 में से 1,303 उम्मीदवारों द्वारा दिये गइ स्व-घोषित पत्रों पर आधारित है।
    • रिपोर्ट में उम्मीदवारों के आपराधिक मामलों और वित्तीय पृष्ठभूमि दोनों पर प्रकाश डाला गया है।
  • आपराधिक पृष्ठभूमि:
    • 423 उम्मीदवारों (32%) ने अपने विरुद्ध आपराधिक मामले घोषित किये हैं।
    • 354 उम्मीदवार (27%) पर गंभीर आपराधिक आरोप हैं, जिनमें हत्या और महिलाओं के विरुद्ध अपराध शामिल हैं।
    • 33 उम्मीदवारों पर हत्या के आरोप हैं, जबकि 86 उम्मीदवारों पर हत्या के प्रयास के मामले दर्ज हैं।
    • 42 उम्मीदवारों पर महिलाओं के विरुद्ध अपराध के मामले दर्ज हैं, जिनमें 2 बलात्कार के मामले शामिल हैं।
  • वित्तीय पृष्ठभूमि:
    • 519 उम्मीदवार (40%) करोड़पति हैं (जिन्होंने 1 करोड़ रुपए या उससे अधिक की संपत्ति घोषित की है)।

आपराधिक उम्मीदवारों के अयोग्यता के कानूनी पहलू

  • परिचय: 
    • हालाँकि, कानून उन व्यक्तियों को चुनाव लड़ने से नहीं रोकता जिनके विरुद्ध आपराधिक मामले लंबित हैं, अतः आपराधिक मामलों वाले उम्मीदवारों की अयोग्यता इन मामलों में उनकी दोषसिद्धि पर निर्भर करती है।
    • भारतीय संविधान में यह स्पष्ट रूप से निर्दिष्ट नहीं किया गया है कि कौन-सी बात किसी व्यक्ति को संसद, विधानसभा या किसी अन्य विधानमंडल के लिये चुनाव लड़ने से अयोग्य बनाती है।
    • जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में किसी व्यक्ति को विधानमंडल का चुनाव लड़ने से अयोग्य ठहराने के मानदंडों का उल्लेख है।
    • अधिनियम की धारा 8 में कुछ अपराधों के लिये दोषसिद्धि पर अयोग्यता का प्रावधान है, जिसके अनुसार दो वर्ष से अधिक की जेल की सज़ा पाने वाला व्यक्ति, जेल की अवधि समाप्त होने के बाद छह वर्ष तक चुनाव नहीं लड़ सकता
  • अनुशंसाएँ:
    • वर्ष 1983 में राजनीति के अपराधीकरण पर वोहरा समिति का गठन किया गया था, जिसका उद्देश्य राजनीतिक-आपराधिक गठजोड़ की सीमा की पहचान करना तथा राजनीति के अपराधीकरण से प्रभावी रूप से निपटने के उपाय सुझाना था।
    • विधि आयोग ने वर्ष 2014 में अपनी 244वीं रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें लोकतंत्र एवं धर्मनिरपेक्षता के लिये गंभीर परिणाम उत्पन्न करने वाले आपराधिक राजनेताओं की विधायिका में बढ़ती प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया गया।