पर्सपेक्टिव: महिला नेतृत्व में विकास | 12 Jan 2024

प्रिलिम्स के लिये:

जी-20, समावेशी विकास, सतत् विकास, मौद्रिक नीति, राजकोषीय नीति, महिला आरक्षण अधिनियम, स्टैंड-अप इंडिया, PM मुद्रा योजना, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, PM जन धन योजना, राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन, PM आवास योजना, प्रसूति अवकाश।

मेन्स के लिये:

महिला नेतृत्व में विकास के बारे में, लैंगिकता का भारत की प्राथमिकताओं में शीर्ष पर होना, भारत में महिला नेतृत्व में विकास के मार्ग  में चुनौतियाँ, महिला नेतृत्व में विकास का भारतीय दृष्टिकोण।

संदर्भ क्या है?

हाल ही में भारत ने अपनी जी-20 अध्यक्षता के दौरान समावेशी विकास, सतत् विकास लक्ष्यों की प्राप्ति में प्रगति, पर्यावरण के अनुकूल विकास, तकनीकी नवाचार और बहुपक्षीय संस्थानों के पुनर्गठन के साथ-साथ "महिला नेतृत्व में विकास" को छह केंद्रीय बिंदुओं के रूप में नामित किया, यह भारत के भीतर एक प्रमुख नीतिगत मुद्दे के रूप में लैंगिक समानता को संबोधित करने के स्थायी महत्त्व की मान्यता का प्रतीक बना।

महिला नेतृत्व में विकास क्या है?

  • "महिलाओं के नेतृत्व में विकास" एक विकास दृष्टिकोण को संदर्भित करता है, जिसमें महिलाएँ अग्रणी भूमिका निभाती हैं और किसी समाज या समुदाय की आर्थिक, सामाजिक तथा राजनीतिक प्रगति में सक्रिय भूमिका निभाती  हैं।
  • महिला-नेतृत्व में विकास के तहत महिलाएँ केवल विकास की लाभार्थी नहीं हैं, बल्कि वे नेतृत्वकर्त्ता के रूप में विकास का एजेंडा तय करने और विकास योजना के निर्माण तथा निर्णयन  में भागीदारी करती हैं।
  • इसमें सामाजिक-आर्थिक विकास और SDG की उपलब्धियों को बढ़ावा देने के लिये महिलाओं को आगे भी अग्रणी पदों में नियोजित करने  पर ध्यान केंद्रित करना है।
  • इस दृष्टिकोण का उद्देश्य लैंगिक समानता के महत्त्व को पहचानने के साथ  उन बाधाओं को दूर करना है जिन्होंने ऐतिहासिक रूप से विकास के विभिन्न पहलुओं में महिलाओं की भागीदारी और योगदान को सीमित कर दिया है।

लैंगिकता भारत की प्राथमिकताओं में शीर्ष पर क्यों है?

  • व्यापक लैंगिक अंतर: ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट, 2023 में भारत को 146 देशों में से 127वाँ स्थान दिया गया था और कार्यबल से "महिलाओं के अनुपस्थित होने की" (Missing Women) सार्वकालिक समस्या का सामना करता है, जो एक बड़ी समस्या है।
  • समावेशी निर्णय-निर्माण: महिलाओं के नेतृत्व में विकास समावेशी निर्णय-निर्माण संरचनाओं को बढ़ावा देता है जिसमें सामुदायिक योजना, संसाधन आवंटन और नीति निर्माण में महिलाओं को शामिल किया जाता है। यह समावेशिता समुदाय के भीतर विविध आवश्यकताओं और दृष्टिकोणों को संबोधित करने में सहायता करती है।
  • सामुदायिक विकास: जब महिलाओं की संसाधनों तक पहुँच होती है, तो वे पुरुषों की तुलना में परिवार और समुदायों की शिक्षा एवं स्वास्थ्य में अधिक निवेश करती हैं। पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं ने विभिन्न सामुदायिक विकास परियोजनाओं को शुरू करने के साथ  उन्हें कार्यान्वित किया है। इसमें जल प्रबंधन, स्वच्छता, ग्रामीण बुनियादी ढाँचे और गरीबी उन्मूलन से संबंधित पहल शामिल हैं।
  • सतत् विकास: महिलाओं के नेतृत्व में विकास को सतत् विकास लक्ष्यों के साथ जोड़ा जाता है। पर्यावरण के अनुकूल और सामाजिक रूप से ज़िम्मेदार प्रथाओं को बढ़ावा देकर ये पहल समुदाय के दीर्घकालिक कल्याण में योगदान करती हैं।
  • गुणक प्रभाव: भारतीय अर्थव्यवस्था पर महिला नेतृत्व में विकास का गुणक प्रभाव पड़ता है। मैकिन्से की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत अपने सकल घरेलू उत्पाद में 18% तक का इज़ाफा कर सकता है, बशर्ते कि वह देश में महिला कार्यबल की भागीदारी में सुधार कर लैंगिक समानता के अंतर को खत्म करे।

महिला नेतृत्व में विकास को लेकर प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?

  • गहरी जड़ें जमा चुकी पितृसत्ता: भारत में पितृसत्तात्मक मानदंड और सामाजिक संरचनाएँ गहरी जड़ें जमा चुकी हैं जो महिला सशक्तीकरण और नेतृत्व में बाधा बनती हैं। इन सांस्कृतिक दृष्टिकोणों और व्यवहारों को बदलना एक बड़ी चुनौती है।
  • लिंग आधारित हिंसा: भारत में महिलाओं के खिलाफ हिंसा की दर दुनिया में सबसे अधिक है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के अनुसार, वर्ष 2021 में भारत में महिलाओं के खिलाफ अपराध के कुल 4,05,861 मामले सामने आए, जिनमें से 32,033 मामले बलात्कार के थे।
  • संसाधन आवंटन: महिलाओं के नेतृत्व में विकास पहलों के लिये संसाधनों का आवंटन और यह सुनिश्चित करना कि वे इच्छित लाभार्थियों तक पहुँचें, प्रशासनिक अक्षमताओं और भ्रष्टाचार के कारण चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
    • कृषि जनगणना से पता चलता है कि वर्ष 2015-16 में महिला भूमि मालिकों की संख्या केवल 13.9% थी।
  • राजनीतिक अल्प-प्रतिनिधित्व (Political Underrepresentation): स्थानीय स्तर सहित राजनीतिक भूमिकाओं में महिलाओं को कम प्रतिनिधित्व दिया जाता है। महिलाओं की अधिक राजनीतिक भागीदारी को प्रोत्साहित करना एक चुनौती है।
    • भारत की संसद में केवल 82 महिला- लोकसभा में (15.2%) और राज्यसभा में (13%) सदस्य हैं।
  • डेटा संग्रह और विश्लेषण: महिलाओं की स्थिति और नीतियों के प्रभाव पर विश्वसनीय डेटा एकत्र करना और विश्लेषण करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है, जिससे प्रगति को मापना मुश्किल हो जाता है।
  • कानूनी प्रवर्तन: हालाँकि भारत ने महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिये विभिन्न कानून बनाए हैं, लेकिन इन कानूनों का कार्यान्वयन असंगत हो सकता है, जो न्याय और जवाबदेही के लिये चुनौती बन सकता है।

महिला नेतृत्व में विकास को बढ़ावा देने वाली सरकारी पहलें क्या हैं?

आगे की राह क्या होनी चाहिये?

  • नेतृत्व और निर्णय लेना: भारत को ज़मीनी स्तर पर महिलाओं पर विशेष ध्यान देने के साथ राजनीतिक प्रणालियों और शासन में महिलाओं के नेतृत्व एवं  सक्रिय भागीदारी को बढ़ावा देना चाहिये।
  • शिक्षा और कौशल: भारत को विशेष रूप से STEM क्षेत्रों में महिलाओं के लिये शिक्षा में निवेश और पहुँच बढ़ाने पर ज़ोर देना चाहिये।
  • महिला उद्यमियों को सशक्त बनाना: महिला उद्यमियों को बढ़ावा देने और महिलाओं के स्वामित्व वाले तथा महिलाओं के नेतृत्व वाले सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) का समर्थन करने पर लगातार ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये।
  • अदृश्य काम को पहचानना: घरेलू कार्यों की पहचान एवं उन्हें मान्यता देकर अर्थव्यवस्था और सामाजिक सुरक्षा में निवेश करने तथा सकल घरेलू उत्पाद को फिर से परिभाषित करने की आवश्यकता है।
  • जलवायु और खाद्य सुरक्षा में महिलाओं की भूमिका: भारत को जलवायु संबंधी लचीलेपन के साथ पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण में महिलाओं की भागीदारी के महत्त्व पर प्रकाश डालना चाहिये। जलवायु परिवर्तन, खाद्य सुरक्षा और पोषण से निपटने में महिलाओं की भूमिका को पहचानना और बढ़ावा देना ।
  • बदलती मानसिकता: भारत में महिलाओं के नेतृत्व में विकास सुनिश्चित  करने के लिये समाज की  मानसिकता को बदलना आवश्यक है। महिलाओं के नेतृत्व को महत्त्व देने और उन्हें सशक्त बनाने के लिये जागरूकता का प्रसार करना और शिक्षा को बढ़ावा देना आवश्यक है।

निष्कर्ष:

भारत को  एक प्रगतिशील और लैंगिकसमानता वाला समाज सुनिश्चित करने  के लिये राजनीतिक प्रतिबद्धताओं से कहीं अधिक ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है; महिलाओं के नेतृत्व में विकास को साकार करने के लिये समान अवसरों और बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करना आवश्यक है। देश में समावेशी एवं सतत् विकास  के लिये सभी स्तरों पर महिला नेतृत्व को बढ़ावा देना महत्त्वपूर्ण है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा विश्व के देशों के लिये 'सार्वभौमिक लैंगिक अंतराल सूचकांक' का श्रेणीकरण प्रदान करता है? (2017)

(a) विश्व आर्थिक मंच
(b) संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद
(c) संयुक्त राष्ट्र महिला
(d) विश्व स्वास्थ्य संगठन

उत्तर:  A


मेन्स:

प्रश्न. पितृसत्तात्मक दृष्टिकोण भारत में मध्यम वर्ग की कामकाजी महिलाओं की स्थिति को किस प्रकार प्रभावित करता है? (2014)