भारत में डुगोंग आबादी के लिये खतरा | 21 Nov 2025

स्रोत: IE

चर्चा में क्यों?

अबू धाबी में इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंज़र्वेशन ऑफ नेचर (IUCN) कंज़र्वेशन कांग्रेस में हाल ही में जारी एक रिपोर्ट में भारत में डुगोंग की आबादी पर बढ़ते खतरे पर प्रकाश डाला गया है।

डुगोंग क्या हैं?

  • डुगोंग: डुगोंग समुद्री स्तनधारी हैं, जो मैनेटी से संबंधित हैं। इनका आकार मोटा होता है तथा इनकी पूँछ डॉल्फिन जैसी होती है। इनकी लंबाई 10 फीट तक होती है और इनका वज़न लगभग 420 किलोग्राम होता है।
    • मैनेटी सिरेनिया समूह के बड़े, शाकाहारी जलीय स्तनधारी जीव हैं, जो दक्षिण अमेरिका, पश्चिम अफ्रीका और कैरिबियन के तटीय क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
  • आहार: डुगोंग शाकाहारी समुद्री स्तनधारी हैं, जो मुख्य रूप से साइमोडोसिया, हेलोफिला, थैलासिया और हेलोड्यूल जैसे समुद्री घास ( के मैदानों पर भोजन करते हैं, जिसके कारण उन्हें ‘समुद्री गाय (sea cows)’ और ‘समुद्र के किसान (farmers of the sea)’ उपनाम दिया गया है।
  • आहार: डुगोंग शाकाहारी समुद्री स्तनधारी हैं, जो मुख्य रूप से समुद्री घास जैसे साइमोडोसिया, हेलोफिला, थैलासिया और हेलोड्यूल पर निर्भर रहते हैं। इसी कारण उन्हें "समुद्री गाय" और "समुद्र के किसान" कहा जाता है।
    • इन्हें जीवनयापन के लिये प्रतिदिन 30-40 किलोग्राम समुद्री घास (सीग्रस) की आवश्यकता होती है और ये उथले, गर्म तटीय जल जैसे खाड़ियों, लैगूनों और मुहाना में रहते हैं, जो आमतौर पर 10 मीटर से कम गहरे होते हैं।
  • वितरण: ये मुख्य रूप से कच्छ की खाड़ी, मन्नार की खाड़ी - पाक खाड़ी क्षेत्र (भारत और श्रीलंका के बीच) तथा अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में पाए जाते हैं।
    • ‘ए ग्लोबल असेसमेंट ऑफ डुगोंग स्टेटस एंड कंज़रवेशन नीड्स’' शीर्षक वाली रिपोर्ट में बताया गया है कि कच्छ की खाड़ी तथा अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में डुगोंग का अस्तित्व अनिश्चित एवं अत्यधिक चुनौतीपूर्ण है, जबकि मन्नार-पाक खाड़ी में उनकी आबादी में काफी कमी आई है।
  • व्यवहार: डुगोंग एक लंबी उम्र वाली प्रजाति है, जो लगभग 70 वर्ष तक जीवित रह सकती है। यह आमतौर पर अकेला रहता है या माता और उसके बच्चे को एक साथ देखा जाता है तथा ऑस्ट्रेलियाई जल में पाए जाने वाले बड़े समूह भारत में दुर्लभ हैं।
  • प्रजनन: डुगोंग 9–10 वर्ष की आयु में प्रजनन क्षमता प्राप्त करते हैं और हर 3–5 वर्ष में एक संतति को जन्म देते हैं। जिसके परिणामस्वरूप उनका प्रजनन चक्र धीमा हो जाता है, जो उनकी जनसंख्या वृद्धि दर को लगभग 5% प्रति वर्ष तक सीमित कर देता है।
  • सुरक्षा: 
  • महत्त्व: 
    • पारिस्थितिकी तंत्र और जलवायु लाभ: डुगोंग की भूमिका इतनी महत्त्वपूर्ण है कि उन्हें पारिस्थितिकी तंत्र के इंजीनियर कहा जाता है, क्योंकि वे समुद्री घास के मैदानों को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं।
      • ये समुद्री घास के मैदान जैवविविधता को बढ़ावा देते हैं, कार्बन अवशोषण को सुदृढ़ करते हैं और पोषक तत्त्वों का उत्सर्जन करके मछली, शंखजीवी और कृमि सहित समुद्री जीवन का समर्थन करते हैं।
    • आर्थिक प्रभाव: डुगोंग वाले समुद्री घास के मैदान प्रति वर्ष कम-से-कम 2 करोड़ रुपये अतिरिक्त मत्स्य उत्पादन में योगदान देते हैं, जो उनकी महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिक और आर्थिक मूल्य को दर्शाता है।

डुगोंग आबादी के लिये चुनौतियाँ और संरक्षण उपाय क्या हैं?

चुनौतियाँ

  • आबादी में गिरावट: भारतीय जल क्षेत्रों में कभी प्रचुर मात्रा में पाए जाने वाले डुगोंग की संख्या वर्षों में तेज़ी से घटी है। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की वर्ष 2012 की एक रिपोर्ट के अनुसार, इनकी अनुमानित संख्या लगभग 200 व्यक्तियों के आसपास थी।
    • कुछ पर्यावरणविद्, वर्तमान में डुगोंग की आबादी 400 से 450 के बीच मानते हैं, जबकि अन्य विशेषज्ञों का मानना है कि इनकी संख्या अब भी 250 से कम है, जो दर्शाता है कि आबादी में कोई बड़ी या ठोस वृद्धि नहीं हुई है।
    • भारत में डुगोंग की सही संख्या का निर्धारण अभी भी चुनौतीपूर्ण बना हुआ है, क्योंकि वे अस्पष्ट तटीय जल में रहने वाली मायावी प्रजाति हैं, जहाँ पारंपरिक सर्वेक्षण विधियाँ प्राय: विश्वसनीय आँकड़े प्रदान करने में असमर्थ रहती हैं।
  • प्रदूषण: मरीन पॉल्यूशन बुलेटिन में प्रकाशित एक अध्ययन में यह पाया गया कि किनारे पर मृत अवस्था में मिले डुगोंग के ऊतकों में आर्सेनिक, कैडमियम, क्रोमियम, पारा और सीसा जैसे विषैले धातु मौजूद थे। इसका मुख्य कारण औद्योगिक अपशिष्ट, कृषि बहाव और उपचार रहित छोड़ा गया दूषित जल है।
  • धीमी प्रजनन दर: डुगोंग का प्रजनन चक्र बहुत धीमा होता है, जिसमें मादा कई वर्षों में केवल एक बार बच्चे को जन्म देती है, जिससे उनका विलुप्ति के प्रति जोखिम और बढ़ जाता है।
  • आवास हानि: यह एक गंभीर चिंता का विषय है, क्योंकि सीग्रास की घासभूमियाँ बंदरगाह निर्माण, ड्रेजिंग, भूमि पुनर्निर्माण एवं कृषि बहाव, सीवेज तथा औद्योगिक अपशिष्ट से होने वाले प्रदूषण के कारण नष्ट हो रही हैं।
  • जलवायु परिवर्तन: इसने डुगोंग की संवेदनशीलता और बढ़ा दी है। बढ़ते समुद्री तापमान, महासागरीय अम्लीकरण और चरम मौसम की घटनाएँ इनके भोजन की उपलब्धता तथा प्रजनन दोनों को प्रभावित कर रही हैं।

संरक्षण उपाय

  • प्रवासी प्रजातियों पर अभिसमय (CMS): भारत वर्ष 1983 से प्रवासी प्रजातियों पर अभिसमय (CMS) का हस्ताक्षरकर्त्ता है और वर्ष 2008 से CMS डुगोंग समझौता ज्ञापन (MoU) का भी भागीदार है।
    • वर्ष 2010 में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) ने डुगोंग के संरक्षण के लिये एक टास्क फोर्स का गठन किया।
  • डुगोंग संरक्षण रिज़र्व: तमिलनाडु सरकार द्वारा वर्ष 2022 में पाक खाड़ी में 448 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में डुगोंग संरक्षण रिज़र्व स्थापित किया गया, जिसका उद्देश्य सीग्रास की घासभूमियों और डुगोंग की रक्षा करना है।
  • डुगोंग पुनर्प्राप्ति कार्यक्रम: यह एक राष्ट्रीय कार्यक्रम है, जिसे तमिलनाडु, गुजरात और अंडमान-निकोबार द्वीपसमूह की राज्य सरकारों के सहयोग से प्रारंभ किया गया है।
  • सीग्रास हैबिटेट प्रोटेक्शन: डुगोंग संरक्षण के लिये सीग्रास की घासभूमियों की रक्षा और पुनर्स्थापना अत्यंत आवश्यक है। इसके लिये इन आवासों का मानचित्रण, निगरानी, हानिकारक गतिविधियों पर नियंत्रण तथा स्थानीय समुदायों विशेषकर मछुआरों की सक्रिय भागीदारी आवश्यक है।
  • हानिकारक मत्स्यन प्रथाओं का नियमन: डुगोंग आवासों में गिल नेट और ट्रॉलिंग जैसी विनाशकारी मत्स्यन प्रथाओं को सीमित करने के लिये नियमों का कार्यान्वयन आवश्यक है, ताकि आकस्मिक हानि कम की जा सके और प्रजाति की सुरक्षा हो सके।
  • अनुसंधान और प्रौद्योगिकी में वृद्धि: दीर्घकालिक डुगोंग अध्ययनों के लिये अतिरिक्त वित्तीय सहायता की आवश्यकता है। इसमें नागरिक विज्ञान और पारंपरिक ज्ञान पर ध्यान दिया जाना चाहिये, जबकि टैगिंग एवं ड्रोन जैसी तकनीकें महत्त्वपूर्ण आवासों का पता लगाने तथा निगरानी में सहायता कर सकती हैं।

सीग्रास

  • सीग्रास जल के नीचे उगने वाला एक फूलदार पौधा है, जो समुद्री शैवाल (Seaweed) से भिन्न होता है और जिसे आर्द्रभूमि पारिस्थितिकी तंत्र का हिस्सा माना जाता है।
    • सीग्रास की घासभूमियाँ समुद्र-तल को स्थिर रखने, मछलियों की संख्या बनाए रखने में सहायता करने, कार्बन अवशोषित करने और समुद्री जीवों को आश्रय प्रदान करने में सहायता करती हैं।
  • भारत में सबसे विस्तृत सीग्रास की घासभूमियाँ तमिलनाडु तट के पास मन्नार की खाड़ी और पाक जलडमरूमध्य में पाई जाती हैं, जहाँ 13 से अधिक समुद्री घास प्रजातियाँ पाई जाती हैं जो पूरे हिंद महासागर में सबसे अधिक विविधता है।
    • लक्षद्वीप और कच्छ में सीग्रास का वितरण असंगत है तथा बंदरगाह गतिविधियों व प्रदूषण के कारण खतरे में है। आंध्र प्रदेश और ओडिशा में सीग्रास के छोटे, सीमित आवास हैं, जो डुगोंग के लिये उपयुक्त नहीं हैं।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

1: डुगोंग क्या हैं और भारत में कहाँ पाए जाते हैं?
डुगोंग समुद्री स्तनधारी हैं, जो कच्छ की खाड़ी, मन्नार की खाड़ी–पाक जलडमरूमध्य और अंडमान व निकोबार द्वीपसमूह में पाए जाते हैं।

2: भारत में डुगोंग की आबादी के लिये मुख्य खतरे क्या हैं?
मुख्य खतरे आबादी में गिरावट, प्रदूषण, धीमी प्रजनन दर, आवास का नुकसान और जलवायु परिवर्तन हैं।

3: डुगोंग पारिस्थितिकी तंत्र और अर्थव्यवस्था में कैसे योगदान करते हैं?
डुगोंग समुद्री घास (सीग्रास) की घासभूमियों को बनाए रखते हैं, जो समुद्री जीवन का समर्थन करती हैं, कार्बन अवशोषण में सहायता करती हैं और मछली उत्पादन में लगभग 2 करोड़ रुपये वार्षिक योगदान देती हैं।

4: भारत में डुगोंग की सुरक्षा के लिये कौन-से संरक्षण उपाय लागू किये जा रहे हैं?
संरक्षण उपायों में समुद्री घास की रक्षा, मत्स्यनियमन, समुदाय की भागीदारी और अनुसंधान बढ़ाना शामिल है।

5: डुगोंग संरक्षण के लिये समुद्री घास (सीग्रास) का क्या महत्त्व है?
समुद्री घास डुगोंग के लिये भोजन और आवास प्रदान करती है, समुद्र-तल को स्थिर रखती है और समुद्री जैव-विविधता को बढ़ावा देती है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)

प्रिलिम्स

प्रश्न. भारत में पाए जाने वाले स्तनधारी 'ड्यूगोंग' के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2015)

  1. यह एक शाकाहारी समुद्री जानवर है।
  2. यह भारत के पूरे समुद्र तट के साथ-साथ पाया जाता है।
  3. इसे वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची I के अधीन विधिक संरक्षण दिया गया है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये। 

(A) केवल 1 और 2
(B) केवल 2 और 3 
(C) केवल 1 और 3
(D) 1, 2 और 3

उत्तर: C