शांति विधेयक 2025 | 17 Dec 2025
प्रिलिम्स के लिये: लोकसभा, भारतीय परमाणु ऊर्जा निगम लिमिटेड, एटॉमिक एनर्जी रेगुलेटरी बोर्ड (AERB), परमाणु ऊर्जा
मेन्स के लिये: भारत में ऊर्जा सुरक्षा और परमाणु ऊर्जा, रणनीतिक क्षेत्रों में सार्वजनिक-निजी भागीदारी
चर्चा में क्यों?
केंद्र सरकार ने भारत की परमाणु ऊर्जा से संबंधित कानूनों में व्यापक सुधार करने और स्वतंत्रता के बाद पहली बार परमाणु विद्युत संयंत्रों के निर्माण व संचालन में निजी क्षेत्र की भागीदारी को सक्षम बनाने के उद्देश्य से सस्टेनेबल हार्नेसिंग एंड एडवांसमेंट ऑफ न्यूक्लियर एनर्जी फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया (SHANTI) विधेयक, 2025 को लोकसभा में पेश किया है।
सारांश
- SHANTI विधेयक, 2025 परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1962 और CLND अधिनियम, 2010 को प्रतिस्थापित करके भारत के परमाणु ऊर्जा ढाँचे में व्यापक बदलाव लाता है, जिससे रणनीतिक गतिविधियों पर राज्य का नियंत्रण बरकरार रखते हुए परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के निर्माण और संचालन में निजी और विदेशी भागीदारी की अनुमति प्राप्त होती है।
- यह ARB को वैधानिक दर्जा प्रदान करके, संयंत्र क्षमता के आधार पर संचालक की देयता को सीमित करके, आपूर्तिकर्त्ता की देयता को हटाकर और स्वच्छ ऊर्जा और नेट-ज़ीरो लक्ष्यों का समर्थन करने के लिये स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर जैसी उन्नत प्रौद्योगिकियों को सुविधाजनक बनाकर एक संशोधित देयता और नियामक व्यवस्था प्रदान करता है।
शांति विधेयक 2025 के प्रमुख प्रावधान क्या हैं?
- मौजूदा परमाणु कानूनों का प्रतिस्थापन: शांति विधेयक परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1962 और परमाणवीय नुकसान के लिये सिविल दायित्व अधिनियम, 2010 को निरस्त करता है, जिससे भारत के नागरिक परमाणु ऊर्जा क्षेत्र को नियंत्रित करने और नियामक एवं दायित्व प्रक्रियाओं को सरल बनाने के लिये एक एकल, समेकित कानूनी ढाँचा तैयार होता है।
- निजी और संयुक्त उद्यम भागीदारी को सक्षम बनाना: स्वतंत्रता के बाद पहली बार यह विधेयक भारतीय निजी कंपनियों, संयुक्त उद्यमों और विदेशी संस्थाओं को परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के निर्माण, स्वामित्व, संचालन और परिसमापन की अनुमति देता है, जिससे संयंत्र संचालन में न्यूक्लियर पावर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (NPCIL) के एकाधिकार का अंत होता है।
- रणनीतिक राज्य नियंत्रण का प्रतिधारण: निजी भागीदारी की अनुमति देते हुए, विधेयक परमाणु ईंधन उत्पादन, भारी जल निर्माण और रेडियोधर्मी अपशिष्ट प्रबंधन जैसे संवेदनशील क्षेत्रों पर सरकारी नियंत्रण को बरकरार रखता है, जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा और अप्रसार प्रतिबद्धताओं की रक्षा होती है।
- परमाणु नियामक को वैधानिक दर्जा: विधेयक परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड (ARB) को वैधानिक समर्थन प्रदान करता है तथा इसे संसद के प्रति जवाबदेह बनाता है, जिससे नियामक स्वतंत्रता, पारदर्शिता और सुरक्षा निरीक्षण को मज़बूती मिलती है।
- संशोधित परमाणु दायित्व ढाँचा: शांति विधेयक CLND अधिनियम, 2010 को निरस्त कर आपूर्तिकर्त्ता दायित्व को समाप्त करता है तथा यह स्पष्ट करता है कि परमाणु संयंत्र के संचालक ही मुआवज़े के लिये उत्तरदायी होंगे, जिससे भारत की परमाणु दायित्व व्यवस्था अंतर्राष्ट्रीय परमाणु दायित्व सम्मेलनों के अनुरूप बन जाती है।
- ऑपरेटरों की देयता सीमित है और यह क्षति की सीमा के बजाय परमाणु संयंत्रों की स्थापित क्षमता से जुड़ी है, जिसमें वित्तीय अनिश्चितता को कम करने और निवेश को प्रोत्साहित करने के लिये श्रेणीबद्ध सीमाएँ हैं।
- परमाणु विवादों के लिये एक समर्पित न्यायाधिकरण का निर्माण: नियामक निश्चितता और निवेशकों के विश्वास को बेहतर बनाने के लिये एक समर्पित परमाणु विवाद न्यायाधिकरण का प्रस्ताव करता है।
- उन्नत परमाणु प्रौद्योगिकियों को सुगम बनाना: निजी क्षेत्र की भागीदारी और नियामक स्पष्टता सुनिश्चित करके यह विधेयक स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टरों तथा स्वदेशी रिएक्टर डिज़ाइनों की तैनाती को प्रोत्साहित करता है, जिससे भारत के स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण और दीर्घकालिक ऊर्जा सुरक्षा को मज़बूती मिलती है।
SHANTI विधेयक 2025 संबंधी प्रमुख चिंता
- आपूर्तिकर्त्ता दायित्व को समाप्त करने तथा संचालक दंड की सीमा निर्धारित करने के कारण, इस विधेयक की आलोचना की जा रही है कि यह परमाणु दुर्घटना की स्थिति में जवाबदेही को कमज़ोर करता है।
- आलोचकों का तर्क है कि वास्तविक क्षति के बजाय संयंत्र के आकार के आधार पर दायित्व सीमित करने से ‘प्रदूषक भुगतान’ सिद्धांत को कमज़ोर किया जा सकता है और सार्वजनिक सुरक्षा से समझौता हो सकता है।
- साथ ही निजी कंपनियों को व्यावसायिक लाभ मिल सकता है जबकि दुर्घटना की लागत और दीर्घकालिक जोखिम अंततः राज्य और नागरिकों द्वारा वहन किये जाते हैं।
- भोपाल गैस त्रासदी (1984) जैसी औद्योगिक आपदाओं के भारत के ऐतिहासिक अनुभव को देखते हुए, आलोचक इस बात पर बल देते हैं कि दायित्व प्रावधानों को कमज़ोर करने से परमाणु शासन में जनता के विश्वास को हानि पहुँच सकती है।
- आलोचकों का तर्क है कि वास्तविक क्षति के बजाय संयंत्र के आकार के आधार पर दायित्व सीमित करने से ‘प्रदूषक भुगतान’ सिद्धांत को कमज़ोर किया जा सकता है और सार्वजनिक सुरक्षा से समझौता हो सकता है।
भारत की वर्तमान परमाणु ऊर्जा परिदृश्य
- वर्ष 2025 तक भारत की वर्तमान परमाणु ऊर्जा क्षमता 8.18 गीगावाट है, जिसका वर्ष 2047 तक 100 गीगावाट का महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित है।
- वर्तमान में, भारत 20 से अधिक परमाणु रिएक्टर संचालित करता है, जिनका सभी का प्रबंधन न्यूक्लियर पावर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (NPCIL) द्वारा किया जाता है तथा एक दर्जन से अधिक नई परियोजनाओं की योजना बनाई गई है।
- परमाणु ऊर्जा मिशन की शुरुआत केंद्रीय बजट 2025-26 में की गई थी, जो स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर (SMR) के अनुसंधान और विकास (R&D) पर केंद्रित है।
- भारत का लक्ष्य वर्ष 2033 तक कम-से-कम पाँच स्वदेशी रूप से डिज़ाइन एवं परिचालनात्मक स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर (SMR) का विकास करना है।
- प्रमुख नवीन प्रौद्योगिकी विकासों में भारत स्मॉल रिएक्टर (BSR), स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर (SMR), मोल्टन साल्ट रिएक्टर तथा हाई टेंपरेचर गैस-कूल्ड रिएक्टर शामिल हैं।
भारत में परमाणु शासन में सुधार की आवश्यकता क्यों है?
- महत्त्वाकांक्षी क्षमता लक्ष्य: भारत का लक्ष्य परमाणु ऊर्जा क्षमता को 8.8 गीगावाट से बढ़ाकर वर्ष 2032 तक 22 गीगावाट और वर्ष 2047 तक 100 गीगावाट करना है, लेकिन NPCIL के पास इन लक्ष्यों को पूरा करने के लिये आवश्यक पूंजी, मानव संसाधन तथा निष्पादन क्षमता पर्याप्त नहीं है।
- बड़ा वित्तीय अंतर: 100 गीगावाट क्षमता प्राप्त करने के लिये लगभग 15 लाख करोड़ रुपये की आवश्यकता है, जबकि बजट 2025–26 में केवल 20,000 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। ऐसे में दीर्घकालिक पूंजी जुटाने के लिये निजी निवेश अनिवार्य हो जाता है।
- परियोजना में देरी: कुडांकुलम यूनिट 3–6 जैसी NPCIL परियोजनाएँ लंबे समय से देरी का सामना कर रही हैं। निजी क्षेत्र की भागीदारी से परियोजना प्रबंधन और इंजीनियरिंग, प्रोक्योरमेंट एवं कंस्ट्रक्शन (EPC) दक्षता में सुधार हो सकता है।
- प्रौद्योगिकी और नवाचार की आवश्यकता: निजी भागीदारी से स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर (SMRs), उन्नत रिएक्टर तकनीकों और वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं को तेज़ी से अपनाया जा सकता है, जिससे सुरक्षा तथा विस्तार-क्षमता बेहतर होगी।
- कमज़ोर यूरेनियम आपूर्ति शृंखला: सीमित घरेलू उत्पादन और सरकार-से-सरकार (G2G) आयात पर निर्भरता के कारण, ईंधन सुरक्षा हेतु यूरेनियम खनन, प्रसंस्करण तथा आयात में निजी भागीदारी आवश्यक है।
- ऊर्जा सुरक्षा और जलवायु लक्ष्य: परमाणु ऊर्जा पर बढ़ा हुआ फोकस ग्रिड स्थिरता को सुदृढ़ करता है और नेट-ज़ीरो 2070 के लक्ष्य को समर्थन देता है, क्योंकि यह नवीकरणीय ऊर्जा के साथ कम-कार्बन बेसलोड ऊर्जा प्रदान करती है।
भारत में परमाणु शासन को सुदृढ़ करने हेतु आवश्यक उपाय क्या हैं?
- नियामक स्वतंत्रता: AERB की परिचालन स्वतंत्रता को पारदर्शी नियुक्तियों, वित्तीय स्वायत्तता और कार्यपालिका के हस्तक्षेप से संरक्षण के माध्यम से मज़बूत किया जाना चाहिये।
- सुरक्षा और निवेश प्रोत्साहनों का संतुलन: दायित्व सीमा (Liability Caps) की समय-समय पर समीक्षा की जानी चाहिये तथा उन्हें मुद्रास्फीति एवं जोखिम से जोड़ा जाना चाहिये, ताकि निवेशकों का विश्वास बना रहे और साथ ही सार्वजनिक सुरक्षा तथा ‘प्रदूषक ही भुगतान करें’ (Polluter Pays) से समझौता न हो।
- पारदर्शिता के माध्यम से जनविश्वास का निर्माण: सुरक्षा ऑडिट, दुर्घटना रिपोर्टिंग प्रोटोकॉल और आपातकालीन तैयारी योजनाओं का अनिवार्य प्रकटीकरण आवश्यक है, ताकि अतीत की औद्योगिक आपदाओं से जुड़ी जन-आशंकाओं को दूर किया जा सके।
- आपातकालीन प्रतिक्रिया में केंद्र–राज्य समन्वय: परमाणु आपात स्थितियों के दौरान केंद्र, राज्यों और स्थानीय प्राधिकरणों के बीच समन्वय के लिये स्पष्ट प्रोटोकॉल की आवश्यकता है, विशेषकर तब जब निजी संचालक इस क्षेत्र में प्रवेश करें।
- अपशिष्ट प्रबंधन और संयंत्र निष्क्रियकरण (Decommissioning) ढाँचा: बड़े पैमाने पर निजी विस्तार से पहले दीर्घकालिक परमाणु अपशिष्ट निपटान और संयंत्रों के निष्क्रियकरण के लिये स्पष्ट, बाध्यकारी एवं प्रवर्तनीय मानदंड निर्धारित किये जाने चाहिये।
निष्कर्ष
परमाणु शासन में सुधार सार्वजनिक क्षेत्र की अकेली क्षमता से आगे बढ़कर पूंजी, प्रौद्योगिकी और परियोजना-निष्पादन क्षमता को खोलने के लिये आवश्यक हैं। मज़बूत सुरक्षा निगरानी के साथ सावधानीपूर्वक विनियमित निजी भागीदारी भारत के दीर्घकालिक परमाणु ऊर्जा तथा जलवायु लक्ष्यों को हासिल करने के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
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दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. परमाणु ऊर्जा में निजी क्षेत्र की भागीदारी भारत के स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण को गति दे सकती है, लेकिन इससे शासन से जुड़ी चिंताएँ भी उत्पन्न होती हैं। विवेचना कीजिये। |
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
1. शांति विधेयक, 2025 क्या है?
यह एक व्यापक विधेयक है, जो परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1962 और नागरिक परमाणु दायित्व अधिनियम, 2010 (CLND Act) का स्थान लेता है तथा एकीकृत कानूनी ढाँचे के तहत परमाणु विद्युत उत्पादन में निजी भागीदारी की अनुमति देता है।
2. शांति विधेयक परमाणु दायित्व प्रावधानों में क्या बदलाव करता है?
यह विधेयक आपूर्तिकर्त्ता दायित्व को समाप्त करता है और संयंत्र क्षमता के आधार पर संचालक दायित्व की सीमा तय करता है, जिससे भारत का ढाँचा अंतर्राष्ट्रीय परमाणु दायित्व सम्मेलनों के अनुरूप हो जाता है।
3. परमाणु शासन में सुधार क्यों आवश्यक हैं?
भारत के वर्ष 2032 तक 22 GW और वर्ष 2047 तक 100 GW के महत्त्वाकांक्षी लक्ष्यों को पूरा करने के लिये निजी पूंजी, उन्नत प्रौद्योगिकी और तीव्र परियोजना क्रियान्वयन की आवश्यकता है, जो केवल NPCIL की क्षमता से परे है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)
प्रिलिम्स
प्रश्न. भारत में, क्यों कुछ परमाणु रिएक्टर ‘‘आई.ए.ई.ए. सुरक्षा उपायों’’ के अधीन रखे जाते हैं, जबकि अन्य इस सुरक्षा के अधीन नहीं रखे जाते? (2020)
(a) कुछ यूरेनियम का प्रयोग करते हैं और अन्य थोरियम का
(b) कुछ आयातित यूरेनियम का प्रयोग करते हैं और अन्य घरेलू आपूर्ति का
(c) कुछ विदेशी उद्यमों द्वारा संचालित होते हैं और अन्य घरेलू उद्यमों द्वारा
(d) कुछ सरकारी स्वामित्व वाले होते हैं और अन्य निजी स्वामित्व वाले
उत्तर: (b)
प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)
- परमाणु सुरक्षा शिखर-सम्मेलन, संयुक्त राष्ट्र के तत्त्वावधान में आवधिक रूप से किये जाते हैं।
- विखंडनीय सामग्रियों पर अंतर्राष्ट्रीय पैनल अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा अभिकरण का एक अंग है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1और न ही 2
उत्तर: (d)
मेन्स
प्रश्न. ऊर्जा की बढ़ती हुई ज़रूरतों के परिप्रेक्ष्य में क्या भारत को अपने नाभिकीय ऊर्जा कार्यक्रम का विस्तार करना जारी रखना चाहिये ? नाभिकीय ऊर्जा से संबंधित तथ्यों एवं भयों की विवेचना कीजिये। (2018)
प्रश्न. भारत में नाभिकीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी की संवृद्धि और विकास का विवरण प्रस्तुत कीजिये। भारत में तीव्र प्रजनक रिएक्टर कार्यक्रम का क्या लाभ है? (2017)