प्रीलिम्स फैक्ट्स: 29 अप्रैल, 2020 | 29 Apr 2020

राजा रवि वर्मा

Raja Ravi Varma

प्रसिद्ध भारतीय चित्रकार राजा रवि वर्मा (1848-1906) की जयंती 29 अप्रैल को मनाई जाती है जिन्हें भारतीय चित्रकला में प्रकृतिवाद की पश्चिमी संकल्पना तथा हिंदू देवी-देवताओं के शास्त्रीय प्रतिनिधित्व के लिये याद किया जाता है।

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मुख्य बिंदु: 

  • त्रावणकोर राजघराने से संबंधित राजा रवि वर्मा का जन्म वर्ष 1848 में किलिमन्नूर गाँव (केरल) में हुआ था।

शाही संरक्षण:

  • 14 वर्ष की उम्र में राजा रवि वर्मा को त्रावणकोर के तत्कालीन शासक अयिल्यम थिरुनल (Ayilyam Thirunal) का संरक्षण मिला और शाही चित्रकार रामास्वामी नायडू से जलरंगों का  तथा बाद में ब्रिटिश चित्रकार थियोडोर जेन्सेन (Theodore Jensen) से ऑयल पेंटिंग का प्रशिक्षण प्राप्त किया।
  • त्रावणकोर के अलावा राजा रवि वर्मा ने अन्य धनी संरक्षक जैसे- बड़ौदा के गायकवाड़ के लिये भी काम किया।

कलाकृतियाँ:

  • इन्होने प्रतिकृति या पोट्रेट (Portrait) एवं मानवीय आकृतियों वाले चित्र या लैंडस्केप दोनों चित्रों पर काम किया और इन्हें ऑयल पेंट का उपयोग करने वाले पहले भारतीय कलाकारों में से एक माना जाता है।
  • हिंदू पौराणिक आकृतियों को चित्रित करने के अलावा राजा रवि वर्मा ने कई भारतीयों के साथ-साथ यूरोपीय लोगों को भी चित्रित किया।
  • राजा रवि वर्मा को लिथोग्राफिक प्रेस (Lithographic Press) पर अपने काम के पुनरुत्पादन में महारत हासिल करने के लिये भी जाना जाता है जिसके माध्यम से उनके चित्रों को विश्व प्रसिद्धि मिली।
  • उन्हें भारत में चित्रकला के यूरोपियनकृत स्कूल (Europeanised School of Painting) का सबसे महत्त्वपूर्ण प्रतिनिधि माना जाता है।
  • उनके प्रसिद्ध चित्रों में चाँदनी रात में नारी, सुकेशी, श्री कृष्ण, बलराम, रावण और सीता, शांतनु एवं मत्स्यगंधा, शकुंतला का पत्र लेखन, इंद्रजीत की विजय, हरिश्चंद्र, फल बेचने वाली, दमयंती आदि शामिल हैं।

पुरस्कार/सम्मान:

  • इनके द्वारा वर्ष 1873 में बनाई गई पेंटिंग ‘अपने बालों को सजाती हुई नायर स्त्री’ (Nair Lady Adorning Her Hair) ने मद्रास प्रेसीडेंसी एवं वियना कला सम्मेलन में प्रस्तुत किये जाने पर प्रथम पुरस्कार जीता।
  • वर्ष 1904 में ब्रिटिश सरकार की ओर से वायसराय लॉर्ड कर्जन ने राजा रवि वर्मा को कैसर-ए-हिंद गोल्ड मेडल (Kaiser-i-Hind Gold Medal) से सम्मानित किया।
  • राजा रवि वर्मा के सम्मान में वर्ष 2013 में बुध ग्रह पर एक क्रेटर(गड्ढा) उनके नाम से नामित किया गया था।

दक्षिण एशिया मौसमी जलवायु आउटलुक फोरम

South Asian Seasonal Climate Outlook Forum

23 अप्रैल, 2020 को दक्षिण एशियाई मौसमी जलवायु आउटलुक फोरम (South Asian Seasonal Climate Outlook Forum- SASCOF) ने दक्षिण एशिया में आगामी दक्षिण-पश्चिम मानसून के दौरान सामान्य बारिश होने की उम्मीद जताई है।

मुख्य बिंदु: 

  • SASCOF अफगानिस्तान, पाकिस्तान, भारत, नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका, भूटान और म्यांमार सहित दक्षिण एशियाई देशों के मौसम विज्ञानियों एवं हाइड्रोलॉजिकल विशेषज्ञों का एक संघ है।
    • इसे विश्व मौसम विज्ञान संगठन (World Meteorological Organization- WMO) के समर्थन से वर्ष 2010 में स्थापित किया गया था।
    • इसमें शामिल देश क्षेत्रीय पूर्वानुमान जारी करने के लिये सामूहिक रूप से काम करते हैं और प्रत्येक वर्ष दक्षिण-पश्चिम एवं उत्तर-पूर्व मानसून से संबंधित पूर्वानुमान जारी करते हैं।
    • अफगानिस्तान जो उत्तर-पश्चिम में स्थित है, को छोड़कर ये सभी दक्षिण एशियाई देश दक्षिण-पश्चिम मानसून की तरह सामान्य मौसम एवं जलवायवीय संबंधी विशेषताओं का सामना करते हैं।
  • SASCOF को एक ऐसे मंच के रूप में स्थापित किया गया था जहाँ म्यांमार के साथ दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (South Asian Association of Regional Cooperation- SAARC) के सदस्य देशों के मौसम विज्ञानी सामान्य मौसम एवं जलवायु से संबंधित मुद्दों पर चर्चा कर सकते हैं।

SASCOF के कार्य:

  • यह क्षेत्रीय पैमाने पर आम सहमति वाली एक मौसमी जलवायु संबंधी सूचना तैयार करता है जो राष्ट्रीय स्तर के आर्थिक दृष्टिकोण तैयार करने के लिये आधार प्रदान करते हैं।

प्रकृति

PRACRITI

हाल ही में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, दिल्ली के शोधकर्त्ताओं ने भारत में COVID-19 के प्रसार की भविष्यवाणी करने के लिये एक वेब-आधारित डैशबोर्ड ‘प्रकृति’ (PRACRITI) विकसित किया है।

  • प्रकृति (PRACRITI) का पूर्ण रूप ‘PRediction and Assessment of CoRona Infections and Transmission in India’ है।

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मुख्य बिंदु: 

  • यह वेब-आधारित डैशबोर्ड भारत में तीन सप्ताह की अवधि तक COVID-19 मामलों की राज्य एवं ज़िलेवार विस्तृत भविष्यवाणियाँ प्रदान करता है।
    • प्रशासनिक हस्तक्षेप, वायरस संक्रमण का संकट, मौसम के पैटर्न में बदलाव के कारण विभिन्न प्रभावों को समायोजित करने के लिये डेटा को साप्ताहिक आधार पर अपडेट किया जाता है।
  • यह विभिन्न लॉकडाउन परिदृश्यों जैसे- ज़िले की सीमाओं को बंद करने और एक ज़िले के भीतर लॉकडाउन के विभिन्न स्तरों को लागू करने के प्रभावों का भी उल्लेख करता है।
  • इसमें COVID-19 के मद्देनज़र ज़िला/राज्य की सीमाओं में लोगों की आवाजाही का प्रभाव भी शामिल किया गया है।
  • प्रकृति (PRACRITI), केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (Union Ministry of Health and Family Welfare), राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (National Disaster Management Authority- NDMA) और विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization- WHO) से उपलब्ध आँकड़ों के आधार पर प्रत्येक ज़िले एवं राज्य के R0 परिणामों (R0 Values) को प्रदान करता है।
    • पुनुरुत्पादक संख्या (Reproduction number- R0) जिसका उच्चारण ‘आर नाॅट’ (R naught) के रूप में किया जाता है, उन लोगों की संख्या को बताता है जिनमें संक्रमण से संबंधित बीमारी किसी एक संक्रमित व्यक्ति से फैलती है। उदाहरण के लिये यदि एक COVID-19 रोगी दो व्यक्तियों को संक्रमित करता है तो R0 मान दो होता है।

चकमा एवं हाजोंग

Chakma and Hajong

हाल ही में ‘अधिकार एवं जोखिम विश्लेषण समूह’ (Rights and Risks Analysis Group) ने अरुणाचल प्रदेश में चकमा (Chakma) एवं हजोंग (Hajong) समुदायों हेतु भोजन सुनिश्चित कराने के लिये भारतीय प्रधानमंत्री के हस्तक्षेप की मांग की है।

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मुख्य बिंदु: 

  • चकमा एवं हाजोंग समुदायों को कथित तौर पर COVID-19 महामारी के मद्देनज़र केंद्र सरकार द्वारा घोषित COVID-19 आर्थिक राहत पैकेज में शामिल नहीं किया गया है।
  • चूँकि दोनों समुदायों के सदस्य कानूनी रूप से भारत के नागरिक बन गए हैं इसलिए भोजन से वंचित करना संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है।

चकमा (Chakma) एवं हजोंग (Hajong):

  • ये नृजातीय लोग हैं जो चटगाँव पहाड़ी इलाकों में रहते थे जिसका अधिकांश भाग बांग्लादेश में स्थित है।
    • चकमा मुख्य रूप से बौद्ध हैं जबकि हाजोंग लोगों का संबंध हिंदू धर्म से है। ये मुख्य रूप से पूर्वोत्तर भारत, पश्चिम बंगाल, बांग्लादेश एवं म्यांमार में निवास करते हैं।
  • चकमा एवं हाजोंग शरणार्थी मूलतः पूर्वी पाकिस्तान के चटगाँव हिल ट्रैक्ट्स (Chittagong Hill Tracts) के निवासी थे किंतु बांग्लादेश में कर्नाफुली (Karnaphuli) नदी पर बनाए गए कपटाई बाँध (Kaptai dam) के कारण जब वर्ष 1960 में उनका क्षेत्र जलमग्न हो गया तथा बांग्लादेश में धार्मिक उत्पीड़न का सामना करने के कारण इन दोनों समुदायों ने असम की लुशाई पहाड़ी (जिसे अब मिज़ोरम कहा जाता है) के माध्यम से भारत में प्रवेश किया।
    • इसके पश्चात् भारत सरकार द्वारा अधिकांश शरणार्थियों को उत्तर-पूर्व सीमांत एजेंसी (जिसे अब अरुणाचल प्रदेश कहा जाता है) में बनाए गए राहत शिविरों में भेज दिया गया। 
  • वर्ष 2015 में सर्वोच्च न्यायालय ने भारत सरकार को अरुणाचल प्रदेश में रह रहे अधिकांश चकमा और हाजोंग शरणार्थियों को नागरिकता प्रदान करने का आदेश दिया था।
  • उल्लेखनीय है कि ये दोनों समुदाय नागरिकता संशोधन अधिनियम (Citizenship Amendment Act- CAA), 2019 के दायरे में नहीं आते हैं क्योंकि अरुणाचल प्रदेश, CAA से छूट प्राप्त राज्यों में से एक है।
    • वर्तमान में चकमा एवं हाजोंग नागरिकता अधिनियम की धारा 3(1) के अनुसार जन्म से नागरिक हैं और इनके पास भारत के नागरिक के रूप में वोट देने का अधिकार है। इन्हें वर्ष 2004 में मतदान का अधिकार दिया गया था।