बृहस्पति के समान प्रोटोप्लैनेट | 08 Apr 2022

हाल ही में हबल स्पेस टेलीस्कोप द्वारा बृहस्पति जैसे प्रोटोप्लैनेट की तस्वीर खींची गई है जिसे शोधकर्त्ताओं  ने एक प्रक्रिया के माध्यम से बनने वाला ‘तीव्र और हिंसक’ प्रोटोप्लैनेट बताया गया है।

प्रमुख बिंदु 

नवगठित ग्रह (प्रोटोप्लैनेट):

  • हबल द्वारा देखे गए नवगठित ग्रह को एबी ऑरिगे बी कहा (AB Aurigae b) कहा गया है जो एक प्रोटोप्लैनेटरी डिस्क से घिरा हुआ है तथा इसमें अलग-अलग प्रकार की सर्पिल संरचनाएंँ विद्यमान हैं जो लगभग 2 मिलियन वर्ष पुराने एक युवा तारे के चारों ओर चक्कर लगा रही हैं। 
    • वह भी लगभग उतना ही पुराना है जब हमारे सौरमंडल में ग्रह निर्माण की प्रक्रिया चल रही थी।
    • यह हमारे सूर्य से 531 प्रकाश वर्ष दूर है।
  • संभवतः देखा गया प्रोटोप्लैनेट बृहस्पति के आकार का लगभग नौ गुना है और 8.6 बिलियन मील की दूरी पर अपने मेज़बान तारे की परिक्रमा कर रहा है, जो सूर्य और प्लूटो के बीच की दूरी से दो गुना अधिक है।

प्रोटोप्लैनेट:

  • प्रोटोप्लैनेट छोटे खगोलीय पिंड हैं जो चंद्रमा के आकार या उससे थोड़े बड़े होते हैं। ये छोटे ग्रह हैं जो बौने ग्रह के छोटे संस्करण की तरह हैं।
    • खगोलविदों का मानना है कि ये पिंड सौरमंडल के निर्माण के दौरान बनते हैं।
  • सौरमंडल कैसे बनता है, इसके सबसे लोकप्रिय सिद्धांत के अनुसार, ये आणविक धूल के एक अविभाज्य क्लाउड के संक्रमण से बनते हैं, जिससे एक या एक से अधिक तारों का निर्माण होता है
  • इसके बाद नए तारे के चारों ओर गैस का एक बादल बनता है। गुरुत्वाकर्षण और अन्य बलों के परिणामस्वरूप इस बादल में धूल व अन्य कण आपस में टकराते हैं तथा एक बड़े द्रव्यमान का निर्माण करते हैं।
  • जबकि  इसके प्रभाव से इनमें से कुछ वस्तुएँ टूट जाती हैं तथा कई में लगातार वृद्धि होती रहती है।
  • एक बार जब वे एक किलोमीटर के आसपास एक निश्चित आकार तक पहुँच जाते हैं तो ये वस्तुएँ अपने गुरुत्वाकर्षण के साथ कणों और अन्य छोटी वस्तुओं को आकर्षित करने के लिये पर्याप्त होती हैं। जब तक वे प्रोटोप्लैनेट नहीं बनाते तब तक उनके आकार में वृद्धि होती रहती है।

नासा का ‘डिस्क अस्थिरता सिद्धांत’:

  • नासा के अनुसार, यह खोज ‘डिस्क अस्थिरता’ नामक एक सिद्धांत का समर्थन करती है, जो यह समझाने की कोशिश करता है कि बृहस्पति के समान ग्रह किस प्रकार बनते हैं।
    • यह मॉडल एक विशाल ग्रह निर्माण से संबंधित है, जहाँ एक प्रोटोप्लैनेटरी डिस्क घनी एवं ठंडी हो जाती है और गुरुत्वाकर्षण के कारण पतन हेतु अस्थिर हो जाती है, इसके परिणामस्वरूप गैसीय प्रोटोप्लैनेट का निर्माण होता है।
  • ‘डिस्क अस्थिरता सिद्धांत’ के अनुसार, इस डिस्क में पदार्थ धीरे-धीरे अंदर की ओर बढ़ता है, क्योंकि धूल के कण सेंटीमीटर के आकार तक बढ़ते हैं।
  • इसे किलोमीटर लंबे आकार के ग्रहों के निर्माण की दिशा में पहला कदम माना जाता है, जो अंततः ग्रहों का निर्माण करने के लिये एक साथ एकत्र होते हैं।
    • प्लैनेटिमल्स ठोस वस्तुएँ हैं, जो प्रोटोप्लैनेटरी डिस्क और मलबे डिस्क में मौजूद होती हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस