ग्रे स्लेंडर लोरिस | 06 May 2022

हाल ही में कोयंबटूर में सलीम अली सेंटर फॉर ऑर्निथोलॉजी एंड नेचुरल हिस्ट्री (SACON) के वैज्ञानिकों ने तमिलनाडु के डिंडीगुल वन प्रभाग में ग्रे स्लेंडर लोरिस की एक आबादी का सर्वेक्षण किया।

ग्रे स्लेंडर लोरिस:

  • परिचय:
    • ग्रे स्लेंडर लोरिस, लोरिडे (Loridae) परिवार से संबंधित प्राइमेट की एक प्रजाति है।
    • लंबे और पतले अंगों, बड़े कान, नुकीले थूथन व आँखों वाले काले या गहरे भूरे रंग के एक दुबले-पतले रूप में दिखाई देता है।
      • इसके बाल नरम और ऊनी होते है। यह गहरे भूरे से लेकर धूसर जैसे विभिन्न रंगों में पाया जाता है।
    • स्लेंडर लोरिस एक रात्रिचर जानवर हैं जो अपना अधिकांश जीवन वृक्षों पर व्यतीत करता है। ये धीमी और सटीक गति के साथ शाखाओं के शीर्ष पर घूमते रहते हैं। यह धीमी गति से चलने वाला जानवर भी है। यह भोजन करने के लिये झाड़ियों में उतरता है और ज़मीन के खुले हिस्सों को पार करके एक पेड़ से दूसरे पेड़ तक जाता है।
    • हालांँकि यह कीटभक्षी के साथ जामुन का भी शौकीन है।
  • आवास:
    • ये उष्णकटिबंधीय वर्षावनों, झाड़ीदार जंगलों, अर्द्ध-पर्णपाती वनों और दलदली भूमि पर पाए जाते हैं।
    • ग्रे स्लेंडर लोरिस तमिलनाडु के डिंडीगुल ज़िले के सूखे और सूखाग्रस्त क्षेत्रों में रहते हैं।
      • यह बबूल और इमली के झाड़ीदार जंगलों में पाया जाता है।
    • यह प्रज़ाति दक्षिणी और पूर्वी भारत (आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल व तमिलनाडु) तथा श्रीलंका में पाई जाती है।

प्रकार:

  • स्लेंडर लोरिस की दो प्रजातियाँ हैं, जो 'लोरिस' जीनस (वर्ग) के सदस्य हैं:
    • रेड स्लेंडर लोरिस (लोरिस टार्डिग्रैडस)
    • ग्रे स्लेंडर लोरिस (लोरिस लिडेकेरियानस)
  • संकट:
    • मुख्य रूप से निवास स्थान के नष्ट होने के कारण लोरिय के लिये संकट की स्थिति उत्पन्न हो गई है।
    • बबूल के पेड़ (Acacia Tree) का विलुप्त होना जो कि लोरिस के एक पसंदीदा पेड़ की प्रजाति है, पालतू व्यापार और उनके मांस के लिये शिकार, सड़क दुर्घटना, अंधविश्वासी प्रथाओं के कारण इनकी हत्या, पारंपरिक चिकित्सा व आवास का विनाश इस प्राइमेट के लिये गंभीर खतरा पैदा करते हैं।
  • संरक्षण स्थिति:
    • IUCN: निकट संकटग्रस्त
    • CITES: परिशिष्ट- II
    • भारत का वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972: अनुसूची- I

सलीम अली सेंटर फॉर ऑर्निथोलॉजी एंड नेचुरल हिस्ट्री (SACON):

  • SACON वर्ष 1990 में अनाइकट्टी, कोयंबटूर (तमिलनाडु) में स्थापित, भारत में पक्षीविज्ञान और प्राकृतिक इतिहास में सूचना, शिक्षा और अनुसंधान के लिये एक राष्ट्रीय केंद्र है।
  • भारत में पक्षियों की प्रजातियों और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण हेतु उनकी आजीवन सेवाओं की सराहना में डॉ. सलीम अली के नाम पर इसका नाम रखा गया था।
  • यह जैव विविधता और प्राकृतिक इतिहास के सभी पहलुओं को शामिल करते हुए पक्षीविज्ञान में अनुसंधान को डिज़ाइन और संचालित करता है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ