जाली नोटों में गिरावट | 09 Aug 2022

हाल ही में वित्त मंत्रालय ने लोकसभा को सूचित किया कि बैंकिंग प्रणाली में जाली मुद्रा का मूल्य वर्ष 2016-17 के 43.47 करोड़ रुपए से घटकर वर्ष 2021-22 में लगभग 8.26 करोड़ रुपए हो गया।

जाली मुद्रा:

  • जालसाज़ द्वारा अपने लाभ के लिये अवैध रूप से जाली मुद्रा का निर्माण करना एक प्रकार की जालसाज़ी है, जालसाज़ी के तहत किसी वस्तु की प्रतिकृति तैयार की जाती है ताकि जालसाज़ी की घटना को अंजाम दिया जा सके।
  • मुद्रा की नकल करने के लिये आवश्यक उच्च स्तर के तकनीकी कौशल के कारण, जालसाज़ी कोे अन्य कृत्यों से अलग किया जाता है और इसे भारतीय दंड संहिता की धारा 489 ए के तहत अलग अपराध के रूप में माना जाता है।
  • जालसाज़ी सबसे पुराने तरीकों में से एक है जिसका उपयोग जालसाज़ों द्वारा लंबे समय से लोंगों को धोखा देने के लिये किया जाता रहा हैं।

जालसाज़ी से खतरा:

  • आर्थिक आतंकवाद:
    • FICN (नकली भारतीय करेंसी नोट) भारत की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुँचाने के लिये बाहरी स्रोतों द्वारा प्रचालित "आर्थिक आतंकवाद" के रूप में देखा जा सकता है।
    • आर्थिक आतंकवाद राज्य या गैर-राज्य अभिकर्त्ताओं द्वारा किसी देश की अर्थव्यवस्था में पर्दे के पीछे होने वाले हेरफेर को संदर्भित करता है।
    • FICN का प्रचलन भारत की अर्थव्यवस्था के लिये खतरा उत्पन्न करता है, जबकि इससे होने वाले लाभ का उपयोग भारत को लक्षित गुप्त आपराधिक गतिविधियों को निधि देने के लिये किया जाता है।
  • मुद्रास्फीति:
    • बड़ी मात्रा में जाली मुद्रा के प्रचलन से बाज़ार में मुद्रा की मात्रा बढ़ जाती है, जिससे वस्तुओं और सेवाओं की मांग भी बढ़ती है।
    • मांग में वृद्धि होने से वस्तुओं एवं सेवाओं की कमी हो जाती है, फलस्वरूप मुद्रास्फीति बढ़ जाती है।
    • इससे मुद्रा का अवमूल्यन/मूल्यह्रास होता है।
  • क्षति की गैर-प्रतिपूर्ति:
    • बैंकों की गैर-प्रतिपूर्ति नीति समस्या तब उत्पन्न करती है, जब बैंक जाली नोटों को अस्वीकार कर देते हैं और नुकसान की प्रतिपूर्ति नहीं करते हैं।
    • दैनिक नकद लेन-देन में शामिल फर्मों को अर्थव्यवस्था में FICN की घुसपैठ के कारण लंबे समय में भारी नुकसान का सामना करना पड़ता है।
  • जन विश्वास में कमी:
    • जाली मुद्रा के अन्य प्रभावों में जनता के विश्वास में कमी, उत्पादों की कालाबाज़ारी, उत्पादों का अवैध स्टॉकिंग आदि शामिल हैं।

जाली मुद्रा को नियंत्रित करने के उपाय:

  • विमुद्रीकरण:
    • 8 नवंबर, 2016 को अवैध लेन-देन के लिये उच्च मूल्य के नोटों के उपयोग को हतोत्साहित करने और जालसाज़ी पर अंकुश लगाने हेतु मुद्रा प्रणाली से 500 एवं 1,000 रुपए के नोट परिचालन से वापस ले लिये गए थे।
    • विमुद्रीकरण से तात्पर्य लीगल टेंडर के रूप में जारी मुद्रा इकाई को वापस लेने की प्रक्रिया है।
  • द्वि-लुमिनसेंट सुरक्षा स्याही:
    • वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR)-राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला ने एक द्वि-लुमिनसेंट सुरक्षा स्याही विकसित की है जो नोटों में दो अलग-अलग स्रोतों द्वारा प्रकाशित होने पर लाल एवं हरे रंगों को प्रदर्शित करती है।
  • टेरर फंडिंग एंड फेक करेंसी (TFFC) सेल:
    • आतंकी वित्तपोषण और जाली मुद्रा के मामलों की जाँच के लिये राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA) के तहत एक टेरर फंडिंग एंड फेक करेंसी (TFFC) सेल का गठन किया गया है।
  • FICN समन्वय समूह:
    • जाली नोटों के प्रचलन की समस्या का मुकाबला करने के लिये केंद्र /राज्यों की सुरक्षा एजेंसियों के बीच खुफिया/सूचना साझा करने हेतु गृह मंत्रालय द्वारा FICN समन्वय समूह (FCORD) का गठन किया गया है।
  • जाली नोटों की समस्या से निपटने को भारत-बांग्लादेश के बीच समझौता ज्ञापन:
    • नकली नोटों की तस्करी और प्रचलन को रोकने तथा उनका मुकाबला करने के लिये भारत तथा बांग्लादेश के बीच समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किये गए हैं।
    • साथ ही नई निगरानी तकनीक का उपयोग करके अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं पर सुरक्षा को मज़बूत किया गया है।

स्रोत: द हिंदू