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वर्ष 2021 में भारत की विदेश नीति | 13 Jan 2021 | अंतर्राष्ट्रीय संबंध

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में भारत की विदेश नीति के उद्देश्यों को पूरा करने में वर्तमान की चुनौतियों और अवसरों के साथ इससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ: 

किसी भी अन्य देश की तरह ही भारत की विदेश नीति अपने प्रभाव क्षेत्र को व्यापक बनाने, सभी राष्ट्रों में अपनी भूमिका बढ़ाने और एक उभरती हुई शक्ति के रूप में अपने को स्थापित करने की परिकल्पना करती है। वर्ष 2021 विदेश नीति के उद्देश्यों को पूरा करने के लिये कई चुनौतियाँ और अवसर प्रस्तुत करता है। जैसे कि दक्षिण एशिया में एक बड़ी शक्ति के रूप में चीन का उदय और भारत के पड़ोसी देशों पर इसका बढ़ता प्रभाव भारत के लिये एक बड़ी चिंता का कारण है। इसके अतिरिक्त हाल ही में चीन तथा यूरोपीय संघ के बीच निवेश समझौते पर हुई चर्चाओं ने COVID-19 महामारी के बाद चीन के अलग-थलग पड़ने से जुड़े मिथक को भी समाप्त किया है, साथ ही इसने चीन की स्थिति को और अधिक मज़बूत किया है। 

इसके अलावा अमेरिका के साथ बढ़ते समन्वय की तरह ही भारतीय विदेश नीति के कई निर्णयों ने रूस और ईरान जैसे पारंपरिक सहयोगियों के साथ इसके संबंधों को कमज़ोर किया है।  ऐसे में क्षेत्र में शक्ति संतुलन के लिये भारत को विदेश नीति की चुनौतियों से निपटने के साथ उपलब्ध अवसरों का सावधानी पूर्वक लाभ उठाने की आवश्यकता है।

भारत के समक्ष चुनौतियाँ:  

आगे की राह:     

निष्कर्ष:  

वर्तमान समय में अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य की बदलती वास्तविकताओं के बीच यदि भारत मात्र एक आकांक्षी भागीदार के बजाय एक अंतर्राष्ट्रीय शक्ति के रूप में स्वयं को स्थापित करना चाहता है तो उसे अपनी विदेश नीति  के साथ सावधानी पूर्वक आगे बढ़ना होगा।

अभ्यास प्रश्न:  वर्तमान समय में बदलती वैश्विक व्यवस्था के बीच एक मज़बूत अंतर्राष्ट्रीय शक्ति के रूप में स्वयं को स्थापित करने के लिये भारत को अपनी विदेश नीति के साथ सावधानी पूर्वक आगे बढ़ना होगा। टिप्पणी कीजिये।