भारत-पश्चिम एशिया सामरिक पुनर्व्यवस्था | 16 Dec 2025

यह एडिटोरियल 15/12/2025 को द हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित India’s new idiom for ties with West Asia शीर्षक वाले लेख पर आधारित है। यह लेख पश्चिम एशिया में भारत के उस परिवर्तन को स्पष्ट रूप से रेखांकित करता है, जिसमें वह सीमित आर्थिक संलग्नता से आगे बढ़कर निरंतर उच्च-स्तरीय कूटनीति के माध्यम से निर्मित एक समेकित बहु-स्तंभ रणनीतिक साझेदारी की ओर अग्रसर हुआ है।

प्रिलिम्स के लिये: भारत-GCC व्यापार, भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (IMEC), व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौता, चाबहार बंदरगाह, एक्सरसाइज़ डेज़र्ट फ्लैग-10, एक्सरसाइज़ साइक्लोन, I2U2 समूह, उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (INSTC) 

मेन्स के लिये: भारत-पश्चिम एशिया संबंधों में प्रमुख प्रगति, भारत और पश्चिम एशिया के बीच संघर्ष के प्रमुख क्षेत्र। 

भारतीय प्रधानमंत्री की पश्चिम एशिया कूटनीति ने अभूतपूर्व प्रगति से सुदृढ़ीकरण की ओर कदम बढ़ाया है, जिससे भारत की क्षेत्रीय भागीदारी तेल और प्रेषण से परे जाकर एक व्यापक रणनीतिक साझेदारी में परिणत हो गई है। निरंतर उच्च स्तरीय दौरों और पारस्परिक आदान-प्रदान के माध्यम से, भारत ने क्षेत्रीय उथल-पुथल के बीच एक स्थिरकारी शक्ति के रूप में अपनी स्थिति मज़बूत की है और किसी भी सहयोगी को विमुख किये बिना सभी प्रमुख शक्तियों के साथ संबंधों को संतुलित बनाए रखा है। यह दृष्टिकोण आर्थिक व्यावहारिकता का संयोजन है, जिसका प्रमाण भारत-खाड़ी सहयोग परिषद के 178.56 अरब डॉलर के व्यापार में मिलता है, साथ ही सभ्यतागत कूटनीति का भी, जो भारत की बहुलवादी पहचान और सांस्कृतिक सॉफ्ट पावर का लाभ उठाती है। ऊर्जा सुरक्षा, भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (IMEC) जैसी कनेक्टिविटी पहल, रक्षा सहयोग और प्रवासी भारतीयों का कल्याण अब इस बहुआयामी भागीदारी के स्तंभ हैं।

भारत-पश्चिम एशिया संबंधों में कौन-कौन सी प्रमुख उपलब्धियाँ हैं?

  • रणनीतिक अलगाव और उच्च जोखिम वाली कूटनीति: भारत ने ‘रणनीतिक डी-हाइफेनेशन’ में दक्षता अर्जित की है, जिसके तहत उसने अरब देशों (UAE, सऊदी अरब) के साथ गहन साझेदारी विकसित करते हुए इज़रायल तथा ईरान के साथ भी सुदृढ़ संबंध बनाए रखे हैं तथा इन्हें क्षेत्रीय संघर्षों से यथासंभव पृथक रखा है।
    • इस परिपक्वता की परीक्षा इज़रायल-हमास युद्ध के दौरान हुई, जहाँ भारत ने आतंकवाद विरोधी समर्थन और फिलिस्तीन को मानवीय सहायता के बीच संतुलन बनाए रखा और किसी का पक्ष लिये बिना अपने हितों की रक्षा की।
    • भारत-सऊदी रणनीतिक साझेदारी परिषद (SPC) की दूसरी बैठक (अप्रैल 2025) ने व्यापक क्षेत्रीय अशांति से स्वतंत्र रूप से सुरक्षा संबंधों को और गहरा किया।
  • संस्थागत आर्थिक एकीकरण: खरीदार-विक्रेता आधारित तेल संबंधों से आगे बढ़ते हुए, भारत व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौतों (CEPA) के माध्यम से दीर्घकालिक आर्थिक अंतरनिर्भरता को मज़बूत कर रहा है। 
    • UAE समझौते की सफलता ने इस क्षेत्र के लिये एक मिसाल कायम की है, जिससे ओमान एवं GCC के साथ गैर-तेल व्यापार और निवेश प्रवाह बढ़ाने हेतु वार्ताएँ तीव्र हुई हैं।
    • उदाहरण के लिये, वर्ष 2021 में भारत और संयुक्त अरब अमीरात के बीच द्विपक्षीय व्यापार 50 अरब डॉलर से बढ़कर वर्ष 2024 में लगभग 85 अरब डॉलर हो गया।
      • दिसंबर 2025 में कैबिनेट ने भारत-ओमान मुक्त व्यापार समझौते को मंजूरी दी, जो एक और बड़ी उपलब्धि है।
  • ऊर्जा सुरक्षा 2.0 - हाइड्रोकार्बन से ग्रीन हाइड्रोजन तक: भारत दीर्घकालिक गैस अनुबंध हासिल करके और साथ ही खाड़ी राजतंत्रों के साथ हरित ऊर्जा कार्यढाँचे का सह-विकास करके अपने ऊर्जा भंडार को भविष्य के लिये तैयार कर रहा है। 
    • यह दोहरी रणनीति तत्काल ईंधन स्थिरता सुनिश्चित करती है, साथ ही भारत के राष्ट्रीय ग्रीन हाइड्रोजन मिशन और नवीकरणीय ऊर्जा की ओर संक्रमण के लिये खाड़ी देशों की पूंजी का लाभ उठाती है।
    • उदाहरण के लिये, फरवरी 2024 में, भारत ने कतर के साथ 78 अरब डॉलर का एक समझौता किया, जिसके तहत वह 20 वर्षों तक (वर्ष 2048 तक) प्रति वर्ष 7.5 मिलियन टन LNG का आयात करेगा।
      • इसके अलावा, UAE और सऊदी अरब के साथ ग्रीन हाइड्रोजन एवं ग्रिड इंटरकनेक्शन पर हुए समझौतों का लक्ष्य शून्य-कार्बन आपूर्ति शृंखलाएँ हैं।
  • रणनीतिक कनेक्टिविटी आर्किटेक्चर: भारत पाकिस्तान को दरकिनार करने और चीन की BRI का मुकाबला करने के लिये सक्रिय रूप से वैकल्पिक व्यापार गलियारों का निर्माण कर रहा है, जिसका उदाहरण चाबहार बंदरगाह का परिचालन नियंत्रण एवं IMEC की परिकल्पना है। 
    • पश्चिम एशिया में अस्थिरता के बावजूद, भारत ने आपूर्ति शृंखला की मज़बूती और यूरेशियाई बाज़ारों तक अभिगम्यता सुनिश्चित करने के लिये अपने मध्य एशिया के प्रवेश द्वार को सुदृढ़ किया।
    • उदाहरण के लिये, मई 2024 में, भारत ने ईरान के चाबहार बंदरगाह पर शाहिद बेहेश्टी टर्मिनल के संचालन के लिये एक ऐतिहासिक 10 वर्षीय अनुबंध पर हस्ताक्षर किये।
      • भारत ने टर्मिनल की क्षमता को उन्नत करने के लिये उपकरण निवेश में 120 मिलियन डॉलर और 250 मिलियन डॉलर की क्रेडिट लाइन देने की प्रतिबद्धता जताई है।
  • रक्षा मिनिलैटरलिज़्म और सुरक्षा संजाल प्रदाता: भारत खाड़ी क्षेत्र में एक ‘प्रथम प्रत्युत्तरदाता’ और सुरक्षा साझेदार के रूप में उभरा है, जहाँ वह निष्क्रिय दर्शक से आगे बढ़कर नौसैनिक सुरक्षा तथा रक्षा विनिर्माण में सक्रिय भूमिका निभा रहा है।
    • नियमित रूप से आयोजित होने वाले उच्च-जटिलता वाले सैन्य अभ्यास अरब सागर में निगरानी रखने और संचार के महत्त्वपूर्ण समुद्री मार्गों की रक्षा करने के साझा उद्देश्य का संकेत देते हैं।
    • उदाहरण के लिये, भारत ने अंतर-संचालनीयता को बढ़ाने के लिये UAE में आयोजित एक्सरसाइज़ डेज़र्ट फ्लैग-10 (अप्रैल 2025) और मिस्र के साथ एक्सरसाइज़ साइक्लोन में भाग लिया।
      • क्षेत्रीय साझेदारों के साथ ब्रह्मोस मिसाइलों और पिनाक रॉकेटों की बिक्री को लेकर चल रही वार्ता भारत के एक निवल सुरक्षा निर्यातक के रूप में उभरने का संकेत है।
  • फिनटेक कूटनीति और सॉफ्ट पावर प्रदर्शन: भारत अपने विशाल प्रवासी समुदाय को लाभ पहुँचाने और निर्बाध सीमा पार लेन-देन को सुविधाजनक बनाने के लिये अपने डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (DPI) को पश्चिम एशियाई वित्तीय प्रणालियों के साथ सहजता से एकीकृत कर रहा है। 
    • यह फिनटेक कूटनीति प्रेषण लागत को कम करती है और सांस्कृतिक उपलब्धियों के साथ-साथ भारतीय रुपये की वैश्विक उपस्थिति को मज़बूत करती है।
    • उदाहरण के लिये, UPI (यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस) अब UAE और कतर में शुरू हो चुका है, जिससे भारतीय यात्रियों एवं प्रवासी भारतीयों के लिये तत्काल भुगतान संभव हो गया है।
    • इसके अलावा, अबू धाबी में BAPS हिंदू मंदिर का उद्घाटन सांस्कृतिक स्वीकृति और सॉफ्ट पावर का एक महत्त्वपूर्ण प्रतीक है।
  • I2U2 और खाद्य सुरक्षा गलियारा: I2U2 समूह (भारत, इज़रायल, UAE, USA) ने खाड़ी देशों की पूंजी और इज़रायली कृषि प्रौद्योगिकी का लाभ उठाते हुए, भारत के कृषि उत्पादन को पश्चिम एशिया के लिये एक विश्वसनीय आपूर्ति आधार में बदलने के लिये एक खाद्य सुरक्षा गलियारे को सफलतापूर्वक संचालित किया है। 
    • यह रणनीतिक परस्पर-निर्भरता वैश्विक आपूर्ति शृंखला झटकों से क्षेत्र को अग्रिम रूप से सुरक्षित करती है और ‘ऊर्जा के बदले खाद्य’ संतुलन का एक विशिष्ट मॉडल प्रस्तुत करती है।
    • उदाहरण के लिये, संयुक्त अरब अमीरात ने दक्षिण एशिया और मध्य पूर्व में खाद्य असुरक्षा से निपटने के लिये  भारत में कई फूड पार्क विकसित करने में सहायता के लिये 2 अरब डॉलर देने का वादा किया है।

भारत और पश्चिम एशिया के बीच अंतर्विरोध के प्रमुख क्षेत्र कौन-से हैं?

  • रणनीतिक तटस्थता की परीक्षा (इज़रायल-हमास का परिणाम): भारत की ‘डी-हाइफ़ेनेटेड’ नीति पर दीर्घकालिक गाज़ा संघर्ष के कारण गंभीर दबाव उत्पन्न हुआ है। हालाँकि सत्ताधारी अरब राजतंत्र व्यावहारिक बने हुए हैं, परंतु यह संघर्ष ‘अरब स्ट्रीट’ को भारत से विमुख कर रहा है।
    • भारत द्वारा इज़रायली कार्रवाइयों को स्पष्ट रूप से ‘नरसंहार’ के रूप में निंदा करने से इनकार करना, ग्लोबल साउथ और पश्चिम एशिया की जन-भावना के साथ एक मूल्यों का अंतर (Values-gap) उत्पन्न करता है, जिससे इस्लामी दुनिया में भारत की सॉफ्ट पावर प्रक्षेपण क्षमता जटिल हो जाती है।
    • उदाहरण के लिये, अप्रैल 2024 में भारत ने मानवाधिकार परिषद में एक प्रस्ताव पर मतदान से परहेज किया, जिसमें इज़रायल से गाजा में तत्काल युद्धविराम का आह्वान किया गया था और राज्यों से हथियार प्रतिबंध लागू करने का आह्वान किया गया था, जिसे 47 सदस्यीय मानवाधिकार परिषद ने अपनाया था।
      • हालाँकि हाल ही में, भारत उन 142 देशों में शामिल था जिन्होंने 'फिलिस्तीन के प्रश्न के शांतिपूर्ण समाधान और दो-राज्य समाधान के कार्यान्वयन पर न्यूयॉर्क घोषणा का समर्थन' शीर्षक वाले प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया था।
  • प्रतिबंधों की अनिश्चितता और चाबहार की दुविधा: ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंधों का लगातार खतरा भारत की चाबहार बंदरगाह को पूरी तरह से चालू करने की क्षमता को पंगु बना देता है, जिससे एक रणनीतिक संपत्ति एक राजनयिक बोझ में बदल जाती है। 
    • अमेरिका की अस्थिर छूट नीति भारत को संवेदनशील स्थिति में डाल देती है, जिससे अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे (INSTC) में विलंब होता है तथा चीन को ईरानी बुनियादी अवसंरचना में अपनी उपस्थिति मज़बूत करने का मौका मिलता है।
    • सितंबर 2025 में, अमेरिका ने चाबहार छूट को थोड़े समय के लिये रद्द कर दिया, लेकिन अक्तूबर 2025 में 6 महीने की छूट को फिर से लागू कर दिया, जिससे निवेश ठप्प हो गया।
  • OIC का कश्मीर विवाद बनाम द्विपक्षीय सौहार्द: एक संरचनात्मक विसंगति मौजूद है, जहाँ खाड़ी के कुछ देश (UAE, सऊदी अरब) भारत का स्वागत करते हैं, लेकिन इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) एक शत्रुतापूर्ण बहुपक्षीय गुट के रूप में कार्य करता है। 
    • पाकिस्तान का OIC के भीतर प्रभाव कश्मीर और भारत में अल्पसंख्यकों से जुड़े कठोर प्रस्तावों को नियमित रूप से पारित करवाता है। उदाहरण के लिये, OIC के जम्मू एवं कश्मीर संपर्क समूह ने क्षेत्र में ‘जनांकिकीय परिवर्तनों’ की निंदा करते हुए एक बयान जारी किया, जिससे भारत को इन वक्तव्यों को ‘प्रबंधित’ करने में निरंतर कूटनीतिक पूँजी व्यय करनी पड़ती है।
  • मुक्त व्यापार समझौतों (FTA) के बावजूद, व्यापार घाटा और ऊर्जा विषमता में वृद्धि हो रही है, जिसका कारण हाइड्रोकार्बन के लिये भारत की अल्प-लोचदार (Inelastic) मांग है। 
    • ‘तेल-के- बदले वस्तुएँ’ (Oil-for-Goods) का समीकरण पर्याप्त तेज़ी से परिवर्तित नहीं हो सका है, जिससे भारत के गैर-तेल निर्यात भारी आयात बिल की भरपाई करने में संघर्ष कर रहे हैं तथा जिसके परिणामस्वरूप बार-बार भुगतान संतुलन पर दबाव उत्पन्न होता है।
    • भारत के आयात में अब भी तेल/गैस का हिस्सा लगभग 60% है। इसके अलावा, भारत के कच्चे तेल के आयात का 18% से अधिक हिस्सा सऊदी अरब से आता है (IBEF)। 
  • श्रम अधिकार और कफाला प्रणाली की विरासत: भारत के ब्लू-कॉलर वाले कार्यबल का संरचनात्मक शोषण एक संवेदनशील मानवीय विवाद का मुद्दा बना हुआ है, जो कभी-कभार होने वाली त्रासदियों से और भी बढ़ जाता है। 
    • हालाँकि ‘मोबिलिटी पैक्ट’ केवल काग़ज़ों पर मौजूद हैं, परंतु कफाला (प्रायोजन) प्रणाली के अंतर्गत सुरक्षा मानकों एवं वेतन संरक्षण का व्यावहारिक क्रियान्वयन धीमा है, जिससे निम्न-कुशल श्रमिक शोषण के प्रति असुरक्षित बने रहते हैं।
    • उदाहरण के लिये, कुवैत के मंगाफ में लगी आग (जून 2024) में 40 से अधिक भारतीयों की मौत हो गई, जिससे GCC देशों में श्रम आवास संबंधी नियमों के निम्न स्तर का खुलासा हुआ।
  • लाल सागर सुरक्षा और हूती विषमता: हूती मिलिशिया द्वारा वाणिज्यिक नौवहन पर हमलों ने क्षेत्र में ‘नेट सुरक्षा प्रदाता’ के रूप में भारत की भूमिका की सीमाओं को उजागर किया है।
    • भारत एक दुविधा का सामना कर रहा है— उसे अपने व्यापारी बेड़े की रक्षा हेतु विध्वंसक पोत तैनात करने पड़ते हैं, किंतु वह अमेरिका-नेतृत्व वाले ‘ऑपरेशन प्रॉस्पेरिटी गार्जियन’ गठबंधन में शामिल नहीं हो सकता, ताकि पश्चिमी सैन्य सहयोगी के रूप में उसकी छवि न बने। इससे संचालनात्मक समन्वय में खामियाँ उत्पन्न होती हैं।
    • उदाहरण के लिये, भारत ने अरब सागर और अदन की खाड़ी में समुद्री कमांडो के साथ 10 से अधिक युद्धपोत तैनात किये हैं, जो समुद्री डकैती और ड्रोन हमलों को रोकने के लिये अपनी नौसैनिक उपस्थिति प्रदर्शित करते हैं, लेकिन उसने अमेरिकी नेतृत्व वाले गठबंधन में शामिल होने से इनकार कर दिया है, जिससे समन्वय में अंतराल उत्पन्न हो गया है।
  • चीन का प्रभाव और मध्यस्थता का एकाधिकार: चीन ने पश्चिम एशिया में स्वयं को प्राथमिक राजनीतिक मध्यस्थ के रूप में सफलतापूर्वक स्थापित कर लिया है (उदाहरण के लिये, सऊदी-ईरान समझौता), जबकि भारत को बड़े पैमाने पर एक आर्थिक भागीदार के रूप में देखा जाता है। 
    • यह राजनयिक घाटा भारत की रणनीतिक गतिशीलता को सीमित करता है, जबकि सुरक्षा समझौतों की गारंटी देने की बीजिंग की क्षमता (जो भारत नहीं कर सकता) इसे दीर्घकालिक रणनीतिक गठबंधनों के लिये पसंदीदा भागीदार बनाती है।
    • वर्ष 2020 में, चीन ने यूरोपीय संघ (EU) को पीछे छोड़ते हुए GCC का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बन गया। 
      • हाल ही में, GCC के महासचिव ने चीन के साथ मज़बूत संबंधों के महत्त्व पर प्रकाश डाला। दोनों देशों के बीच व्यापार वर्ष 2024 में 288 अरब डॉलर से अधिक हो गया, जो भारत–GCC व्यापार की तुलना में कहीं अधिक है।

पश्चिम एशिया के साथ संबंधों को मज़बूत करने के लिये भारत कौन-से उपाय अपना सकता है?

  • 2+2 संवादों के माध्यम से रणनीतिक जुड़ाव को संस्थागत रूप देना: भारत को सऊदी अरब और UAE जैसे प्रमुख स्तंभों के साथ 2+2 मंत्रिस्तरीय संवाद (विदेश + रक्षा) स्थापित करके अभिकर्त्ता-केंद्रित शिखर सम्मेलनों से हटकर संस्थागत, प्रशासनिक स्थिरता की ओर अपने राजनयिक संलग्नता को आगे बढ़ाना चाहिये। 
    • यह संरचनात्मक तंत्र क्षेत्रीय अस्थिरता से द्विपक्षीय संबंधों को सुरक्षित रखेगा, निरंतर उच्च स्तरीय रणनीतिक संचार सुनिश्चित करेगा और आतंकवाद-रोधी एवं समुद्री सुरक्षा पर वास्तविक समय समन्वय को सुविधाजनक बनाएगा, जो अमेरिका व जापान के साथ भारत के मज़बूत कार्यढाँचे के अनुरूप होगा।
  • IMEC का ध्यान पूर्वी गलियारे पर केंद्रित करना: लेवांत/भूमध्य सागर में भू-राजनीतिक अस्थिरता के कारण पूरे भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे (IMEC) पर पड़ रहे प्रभाव को देखते हुए, भारत को सबसे पहले पूर्वी चरण (भारत से अरब प्रायद्वीप तक) को सक्रिय रूप से चालू करना चाहिये। 
    • UAE और सऊदी अरब के साथ डिजिटल एवं ऊर्जा ग्रिड कनेक्टिविटी को तत्काल प्राथमिकता देकर, भारत आपूर्ति शृंखला एकीकरण को सुनिश्चित कर सकता है तथा अपने निर्यात के लिये लॉजिस्टिक्स लागत को कम कर सकता है, जिससे यह सुनिश्चित होगा कि उत्तरी पारगमन मार्गों के स्थिर होने के बावजूद परियोजना व्यवहार्य तथा रणनीतिक रूप से शक्तिशाली बनी रहे।
  • हरित ऊर्जा अंतरनिर्भरता कार्यढाँचे की ओर अग्रसर: भारत को तेल के खरीदार-विक्रेता संबंध से सह-उत्पादन साझेदारी की ओर संक्रमण करने के लिये खाड़ी देशों की विज़न- 2030 विविधीकरण रणनीतियों के साथ अपने राष्ट्रीय ग्रीन हाइड्रोजन मिशन को सक्रिय रूप से संरेखित करने की आवश्यकता है। 
    • ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन के लिये संयुक्त उद्यम स्थापित करना और “वन सन, वन वर्ल्ड, वन ग्रिड” अंतर्संबंधों की खोज करना, तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव से अप्रभावित गहन, संरचनात्मक आर्थिक निर्भरताएँ उत्पन्न करेगा तथा भारत को क्षेत्र के कार्बन-मुक्त भविष्य में एक महत्त्वपूर्ण भागीदार के रूप में स्थापित करेगा।
  • मानव संसाधन से मानव पूंजी के सामंजस्य की ओर संक्रमण: श्रम बाज़ार के राष्ट्रीयकरण (Nitaqat) की नीतियों का मुकाबला करने के लिये, भारत को व्यापक कौशल सामंजस्य कार्यक्रम लागू करने होंगे, जो भारतीय प्रमाणन मानकों को सीधे GCC उद्योग की आवश्यकताओं से जोड़ते हैं। 
    • पश्चिम एशिया की उच्च तकनीक, नर्सिंग और इंजीनियरिंग की मांगों के अनुरूप भारत में कौशल विकास प्रशिक्षण स्कूल स्थापित करके, भारत मूल्य शृंखला में ऊपर जा सकता है, यह सुनिश्चित करते हुए कि उसके प्रवासी अपरिहार्य बने रहें, साथ ही व्हाइट-कॉलर प्रवासन के माध्यम से उच्चतर प्रेषण प्रवाह को सुरक्षित कर सके।
  • आर्थिक एकीकरण के लिये फिनटेक कूटनीति का लाभ उठाना: भारत को निर्बाध सीमा पार प्रेषण गलियारा बनाने के लिये अपने एकीकृत भुगतान इंटरफेस (UPI) को स्थानीय प्लेटफॉर्मों (जैसे सऊदी अरब के SADAD) के साथ एकीकृत करने के लिये सक्रिय रूप से प्रयास करना चाहिये।
    • विशाल भारतीय प्रवासी समुदाय के लिये लेन-देन लागत को कम करना और स्थानीय मुद्रा (रुपये-दिरहम/रियाल) में व्यापार निपटान को सक्षम बनाना अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता को कम करेगा, द्विपक्षीय व्यापार को पश्चिमी मुद्रा के उतार-चढ़ाव से बचाएगा तथा क्षेत्र में भारत की वित्तीय सॉफ्ट पावर को मज़बूत करेगा।
  • सुरक्षा गारंटी के बजाय रक्षा समाधान पेश करना: यह मानते हुए कि भारत सुरक्षा गारंटर के रूप में अमेरिका की जगह नहीं ले सकता, उसे ब्रह्मोस मिसाइलों और आकाश वायु रक्षा प्रणालियों जैसे लागत प्रभावी, युद्ध में सिद्ध प्लेटफॉर्मों के निर्यात में तेज़ी लाकर स्वयं को एक विश्वसनीय रक्षा समाधान प्रदाता के रूप में स्थापित करना चाहिये। 
    • संयुक्त विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र को सुदृढ़ करना और नौसैनिक जहाज़ों के लिये रख-रखाव, मरम्मत और जीर्णोद्धार (MRO) सुविधाएँ प्रदान करना एक स्थायी सुरक्षा साझेदारी का निर्माण कर सकता है, जो सैन्य विश्वास को गहन करते हुए रणनीतिक स्वायत्तता सुनिश्चित करता है।
  • भारत को एक अंतरिक्ष और साइबर कूटनीति गलियारा स्थापित करना चाहिये। सऊदी अरब और UAE की बढ़ती अंतरिक्ष महत्त्वाकांक्षाओं का समर्थन करने के लिये ISRO की लागत-प्रतिस्पर्द्धी वाणिज्यिक प्रक्षेपण सेवाओं एवं उपग्रह निर्माण विशेषज्ञता की पेशकश करके अपने नए अंतरिक्ष पारिस्थितिकी तंत्र का सक्रिय रूप से विपणन करना चाहिये। 
    • साइबर-सुरक्षा प्रशिक्षण और अंतर-ग्रहीय अभियानों के लिये विशिष्ट ‘जॉइंट वर्किंग ग्रुप्स’ की स्थापना क्षेत्र के भविष्यपरक ‘विज़न’ दस्तावेज़ों के साथ भारत के हितों का सामंजस्य स्थापित करेगी। इससे पारंपरिक हाइड्रोकार्बन निर्भरता के स्थान पर वैज्ञानिक प्रतिष्ठा पर आधारित एक सुदृढ़ साझेदारी को बढ़ावा मिलेगा।

निष्कर्ष: 

भारत का पश्चिम एशिया के साथ लेन-देन आधारित संलग्नता से आगे बढ़कर रणनीतिक ‘डी-हाइफ़नेशन’ की ओर विकसित होना यथार्थवादी कूटनीति का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जिसने क्षेत्रीय अशांति के बावजूद महत्त्वपूर्ण आर्थिक गलियारों को प्रभावी रूप से सुरक्षित रखा है। हाइड्रोकार्बन-निर्भरता से हटकर ‘अस्तित्वगत पारस्परिक निर्भरता’ की ओर संक्रमण, जो खाद्य सुरक्षा, फिनटेक एवं रक्षा सहयोग पर आधारित है, के माध्यम से भारत ने अपने हितों को भू-राजनीतिक आघातों के विरुद्ध दीर्घकालिक रूप से सुदृढ़ किया है।

वैश्विक व्यवस्था के विखंडन के इस दौर में यह सुदृढ़ साझेदारी न केवल भारत की 5 ट्रिलियन डॉलर वाली अर्थव्यवस्था की महत्त्वाकांक्षा को गति देगी, बल्कि व्यापक ‘ग्लोबल साउथ’ के लिये स्थिरता के एक निर्णायक स्तंभ के रूप में भी स्थापित होगी।

दृष्टि मेन्स प्रश्न: 

पश्चिम एशिया के साथ भारत के संबंध ऊर्जा से जुड़े लेन-देन आधारित संबंधों से विकसित होकर एक व्यापक रणनीतिक साझेदारी में परिणत हो गए हैं। इस परिवर्तन के कारणों का गहन विश्लेषण कीजिये तथा भारत की विदेश नीति, आर्थिक सुरक्षा एवं क्षेत्रीय स्थिरता पर इसके प्रभावों का आकलन कीजिये।

प्रायः पूछे जाने वाले प्रश्न

प्रश्न 1. भारत की पश्चिम एशिया के साथ समकालीन सहभागिता को ‘लेन-देन आधारित’ से ‘रणनीतिक’ परिवर्तन के रूप में क्यों वर्णित किया जाता है?
भारत की पश्चिम एशिया नीति अब केवल तेल, प्रवासी प्रेषण तथा छिट-पुट कूटनीति तक सीमित नहीं रही है, बल्कि ऊर्जा सुरक्षा, संपर्क गलियारे (IMEC, चाबहार), रक्षा सहयोग, डिजिटल एकीकरण तथा खाद्य सुरक्षा को समाहित करने वाली बहु-स्तंभ वाली रणनीतिक साझेदारी में रूपांतरित हो चुकी है। निरंतर उच्च-स्तरीय संवाद तथा संस्थागत तंत्रों के माध्यम से भारत इस क्षेत्र में एक निष्क्रिय आर्थिक भागीदार के स्थान पर एक स्थिरता-प्रदायक शक्ति के रूप में उभरा है।

प्रश्न 2. संघर्ष-प्रवण पश्चिम एशिया में भारत ने रणनीतिक ‘डी-हाइफनेशन’ का किस प्रकार सफलतापूर्वक प्रबंधन किया है?
भारत ने अरब खाड़ी देशों, इज़रायल तथा ईरान के साथ एक साथ गहन संबंध विकसित करते हुए द्विपक्षीय रिश्तों को क्षेत्रीय संघर्षों से पृथक रखने में सफलता प्राप्त की है। यह दृष्टिकोण इज़रायल–हमास युद्ध के दौरान स्पष्ट दिखाई दिया, जहाँ भारत ने आतंकवाद-रोधी चिंताओं को मानवीय सहायता के साथ संतुलित किया तथा किसी औपचारिक गुटबंदी के बिना विभिन्न पक्षों में अपनी विश्वसनीयता बनाए रखी।

प्रश्न 3. भारत–पश्चिम एशिया संबंधों के उभरते आर्थिक एवं ऊर्जा स्तंभ कौन-से हैं?
भारत व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौतों (CEPAs), दीर्घकालिक LNG अनुबंधों तथा ग्रीन हाइड्रोजन एवं नवीकरणीय ऊर्जा सहयोग के माध्यम से आर्थिक पारस्परिक निर्भरता को संस्थागत रूप दे रहा है। यह द्वि-आयामी रणनीति अल्पकाल में ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करती है, साथ ही खाड़ी देशों की पूंजी को भारत के स्वच्छ-ऊर्जा संक्रमण से जोड़ती है, जिससे हाइड्रोकार्बन-आधारित निर्भरता भविष्य-उन्मुख ऊर्जा साझेदारियों में परिवर्तित हो रही है।

प्रश्न 4. भारत–पश्चिम एशिया संबंधों को सीमित करने वाली प्रमुख कमियाँ कौन-सी हैं?
मुख्य चुनौतियों में गाज़ा संघर्ष के दौरान भारत की रणनीतिक तटस्थता पर दबाव, चाबहार और INSTC को प्रभावित करने वाली अमेरिकी प्रतिबंधों से जुड़ी अनिश्चितता, कश्मीर पर OIC का विरोधात्मक रुख, हाइड्रोकार्बन आयात-प्रेरित सतत व्यापार घाटा, कफाला प्रणाली के अंतर्गत श्रम अधिकारों से जुड़ी चिंताएँ तथा क्षेत्र में राजनीतिक मध्यस्थ के रूप में चीन की बढ़ती भूमिका शामिल हैं।

प्रश्न 5. पश्चिम एशिया में अपनी उपस्थिति को और सुदृढ़ करने के लिये भारत को किन रणनीतिक पुनर्संतुलनों की आवश्यकता है?
भारत के लिये 2+2 संवादों का संस्थानीकरण करना, IMEC के पूर्वी चरण को प्राथमिकता देना, हरित-ऊर्जा सह-उत्पादन की ओर संक्रमण करना, अपने प्रवासी समुदाय को केवल ‘मैनपावर’ से ‘ह्यूमन कैपिटल’ में उन्नत करना, फिनटेक व डिजिटल भुगतान एकीकरण का विस्तार करना, रक्षा समाधानों के प्रदाता के रूप में स्वयं को स्थापित करना तथा अंतरिक्ष और साइबर कूटनीति का उपयोग कर दीर्घकालिक रणनीतिक प्रासंगिकता को सुदृढ़ करना आवश्यक है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ) 

प्रिलिम्स 

प्रश्न 1. दक्षिण-पश्चिमी एशिया का निम्नलिखित में से कौन-सा एक देश भूमध्यसागर तक फैला नहीं है? (2015)

(a) सीरिया

(b) जॉर्डन

(c) लेबनान

(d) इज़रायल

उत्तर: (b) 


प्रश्न 2. कभी-कभी समाचारों में उल्लिखित पद ‘टू-स्टेट सॉल्यूशन’ किसकी गतिविधियों के संदर्भ में आता है ?  (2018)

(a) चीन

(b) इज़रायल

(c) इराक 

(d) यमन

उत्तर: (b) 


मेन्स 

प्रश्न 1. “भारत के इज़रायल के साथ संबंधों ने हाल में एक ऐसी गहराई एवं विविधता प्राप्त कर ली है, जिसकी पुनर्वापसी नहीं की जा सकती है।” विवेचना कीजिये।  (2018)