भारत की विकासशील मुक्त व्यापार रणनीति | 25 Dec 2025
यह एडिटोरियल 24/12/2025 को द हिंदू में प्रकाशित “A good template: On India’s FTA with New Zealand” शीर्षक वाले लेख पर आधारित है। यह लेख मुक्त व्यापार समझौतों के प्रति भारत के विकसित होते और अधिक संतुलित दृष्टिकोण पर प्रकाश डालता है, जिसमें रणनीतिक समावेश एवं संवेदनशील घरेलू क्षेत्रों के संरक्षण के बीच संतुलन बनाए रखा गया है। इसमें इस बात पर बल दिया गया है कि वास्तविक परीक्षा मुक्त व्यापार समझौतों पर हस्ताक्षर करने में नहीं, बल्कि उनके प्रभावी कार्यान्वयन— गैर-टैरिफ बाधाओं को दूर करना, गतिशीलता प्रावधानों का लाभ उठाना और यह सुनिश्चित करना कि ऐसे समझौते व्यापक आर्थिक लाभ में तब्दील हों, में निहित है।
प्रीलिम्स के लिये: मुक्त व्यापार समझौता (FTA), प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI), भारत-ब्रिटेन मुक्त व्यापार समझौता (FTA), इंडिया-EFTA, ASEAN, इंडिया-UAE CEPA, इंडिया ऑस्ट्रेलिया ECTA
मेन्स के लिये: मुक्त व्यापार समझौतों पर भारत की विकसित होती रणनीति, मुक्त व्यापार समझौतों में प्रमुख मुद्दे और मुक्त व्यापार समझौतों का प्रभावी ढंग से उपयोग करने के उपाय।
वैश्विक व्यापार के विखंडन और संरक्षणवाद के पुनरुदय के बीच, मुक्त व्यापार समझौतों के प्रति भारत का बदलता दृष्टिकोण प्रचारोन्मुख समझौतों से हटकर संतुलित एवं हित-आधारित साझेदारियों की ओर अग्रसर है। न्यूज़ीलैंड जैसे देशों के साथ हाल ही में हुए मुक्त व्यापार समझौते (FTA) एक ऐसी रणनीति का संकेत देते हैं जो चुनिंदा बाज़ारों को खोलने के साथ-साथ संवेदनशील क्षेत्रों के संरक्षण को भी समाहित करती है। सेवाओं, गतिशीलता, निवेश और आपूर्ति शृंखला की सुदृढ़ता पर ध्यान केंद्रित करके, भारत अपनी व्यापार नीति को अपने तुलनात्मक लाभों के अनुरूप ढाल रहा है। यदि इसे प्रभावी ढंग से लागू किया जाए, तो यह व्यावहारिक मुक्त व्यापार समझौता भारत के वैश्विक एकीकरण को सुदृढ़ कर सकता है और साथ ही समावेशी एवं सतत विकास को भी बढ़ावा दे सकता है।
मुक्त व्यापार समझौते क्या हैं?
- परिचय: मुक्त व्यापार समझौते (FTA) दो या दो से अधिक देशों के बीच औपचारिक संधियाँ हैं जिनका उद्देश्य शुल्क कम करके, गैर-शुल्क बाधाओं को कम करके वस्तुओं, सेवाओं, निवेश, बौद्धिक संपदा एवं विवाद निपटान में व्यापार के लिये सामान्य नियम स्थापित करके व्यापार और आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देना है।
- मुक्त व्यापार समझौतों का उद्देश्य पूर्वानुमानित बाज़ार अभिगम्यता सुनिश्चित करना, प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ावा देना और अर्थव्यवस्थाओं को वैश्विक मूल्य शृंखलाओं में एकीकृत करना है। साथ ही, ये समझौते देशों को वार्ता के माध्यम से संवेदनशील घरेलू क्षेत्रों की सुरक्षा करने में भी सक्षम बनाते हैं।
- उदाहरण के लिये, भारत-ब्रिटेन मुक्त व्यापार समझौता (FTA) भारत से ब्रिटेन को निर्यात होने वाले 99% उत्पादों पर शून्य शुल्क की सुविधा प्रदान करता है।
- भारत के हालिया मुक्त व्यापार समझौते: भारत वैश्विक टैरिफ युद्धों और आपूर्ति शृंखला में आने वाले झटकों से स्वयं को बचाने के लिये कुछ प्रमुख साझेदारों से हटकर एक वैश्विक नेटवर्क की ओर बढ़ रहा है।
- हाल ही में भारत ने अपने व्यापार नेटवर्क का सक्रिय रूप से विस्तार किया है और ब्रिटेन (CETA), ओमान (CEPA) एवं हाल ही में न्यूज़ीलैंड (FTA) के साथ ऐतिहासिक समझौते किये हैं।
व्यापार समझौतों के प्रमुख प्रकार
- मुक्त व्यापार समझौता (FTA): सदस्य देश आपस में वस्तुओं (और कभी-कभी सेवाओं) पर शुल्क एवं व्यापार बाधाओं को समाप्त या कम करते हैं, जबकि गैर-सदस्यों के साथ स्वतंत्र व्यापार नीतियाँ बनाए रखते हैं (उदाहरण के लिये, भारत-ASEAN FTA)।
- व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौता (CEPA): मुक्त व्यापार समझौते का एक गहन रूप जो न केवल वस्तुओं बल्कि सेवाओं, निवेश, बौद्धिक संपदा, गतिशीलता और नियामक सहयोग को भी शामिल करता है (उदाहरण के लिये, भारत-UAE CEPA)।
- व्यापक आर्थिक सहयोग समझौता (CECA): CEPA के समान है लेकिन अपेक्षाकृत कम व्यापक है तथा प्रतिबद्धताओं वाला है, जिसे प्रायः गहन एकीकरण की दिशा में एक कदम के रूप में देखा जाता है (उदाहरण के लिये, भारत-सिंगापुर CECA)।
- वरीयतापूर्ण व्यापार समझौता (PTA): इसमें देश पूर्ण शुल्क उन्मूलन के बजाय चुनिंदा वस्तुओं पर कम शुल्क की पेशकश करते हैं, जिससे यह एक सीमित और आंशिक व्यापार व्यवस्था बन जाती है (उदाहरण के लिये, भारत-दक्षिण एशिया SAFTA)।
- सीमा शुल्क संघ: सदस्य देश आंतरिक शुल्क समाप्त कर देते हैं और गैर-सदस्य देशों के लिये एक समान बाह्य शुल्क अपनाते हैं, जिसके लिये गहन समन्वय की आवश्यकता होती है। (उदाहरण के लिये, MERCOUSER)
- आर्थिक संघ: यह सबसे एकीकृत रूप है, जिसमें वस्तुओं, सेवाओं, पूंजी और श्रम की मुक्त आवाजाही के साथ-साथ समन्वित आर्थिक नीतियाँ शामिल होती हैं (उदाहरण के लिये, यूरेशियन आर्थिक संघ)।
भारत मुक्त व्यापार समझौतों (FTA) को आगे क्यों बढ़ा रहा है?
- बाज़ार अभिगम्यता का विस्तार: मुक्त व्यापार समझौते (FTA) भारतीय निर्यातकों को टैरिफ और गैर-टैरिफ बाधाओं को कम करके बड़े तथा तेज़ी से बढ़ते बाज़ारों तक तरजीही पहुँच हासिल करने में सहायता करते हैं, विशेषकर फार्मास्यूटिकल्स, वस्त्र, इंजीनियरिंग सामान एवं सेवाओं जैसे क्षेत्रों के लिये।
- उदाहरण के लिये, वित्त वर्ष 2024-25 में EFTA को इंजीनियरिंग वस्तुओं का निर्यात 18% बढ़कर 315 मिलियन डॉलर हो गया, जिसका श्रेय भारत-यूरोपीय मुक्त व्यापार संघ (EFTA) व्यापार एवं आर्थिक साझेदारी समझौते (TEPA) को जाता है।
- निर्यात को बढ़ावा देना और व्यापार असंतुलन को दूर करना: उच्च विकास को बनाए रखने के लिये निर्यात महत्त्वपूर्ण है, इसलिये वैश्विक मांग में मंदी के बीच निर्यात स्थलों में विविधता लाने तथा भारत की व्यापार प्रतिस्पर्द्धात्मकता में सुधार करने के लिये मुक्त व्यापार समझौतों (FTA) को एक उपागम के रूप में देखा जाता है।
- भारत-UAE CEPA पर हस्ताक्षर होने के बाद से, द्विपक्षीय व्यापार वित्त वर्ष 2020-21 में 43.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर सत्र 2023-24 में 83.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया है, जो लगभग दोगुना है।
- सेवाओं और श्रम-गतिशीलता में भारत की क्षमता का लाभ उठाना: नई पीढ़ी के मुक्त व्यापार समझौतों में सेवाओं के व्यापार, पेशेवर गतिशीलता और योग्यताओं की पारस्परिक मान्यता के प्रावधान तेज़ी से शामिल किये जा रहे हैं, जो IT, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा एवं कुशल मानव संसाधन में भारत के तुलनात्मक लाभ के अनुरूप हैं।
- उदाहरण के लिये, भारत-EFTA TEPA, EFTA देशों में 100 से अधिक उप-क्षेत्रों में बेहतर अभिगम्यता सुनिश्चित करता है तथा इसमें नर्सों, लेखाकारों एवं आर्किटेक्ट जैसे पेशेवरों के लिये पारस्परिक मान्यता समझौते (MRA) शामिल हैं।
- वैश्विक मूल्य शृंखलाओं (GVC) में एकीकरण: मुक्त व्यापार समझौते (FTA) ‘रूल्स ऑफ ऑरिजिन’ मानकों और निवेश प्रवाह को आसान बनाकर क्षेत्रीय एवं वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में भारत की भागीदारी को सुगम बनाते हैं तथा मेक इन इंडिया जैसी पहलों का समर्थन करते हैं।
- उदाहरण के लिये, भारत-ऑस्ट्रेलिया ECTA समझौता लिथियम, कोबाल्ट और निकेल जैसे महत्त्वपूर्ण खनिजों की स्थिर आपूर्ति सुनिश्चित करता है, जो भारत के बैटरी एवं सौर ऊर्जा विनिर्माण क्षेत्रों के लिये आवश्यक हैं।
- विदेशी निवेश को आकर्षित करना: मुक्त व्यापार समझौतों के तहत पूर्वानुमानित व्यापार नियम और निवेश संरक्षण निवेशकों के विश्वास को बढ़ाते हैं तथा विनिर्माण एवं अधोसंरचना में दीर्घकालिक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) को प्रोत्साहित करते हैं।
- उदाहरण के लिये, भारत-EFTA TEPA समझौता EFTA देशों को अगले 15 वर्षों में भारत में 100 अरब डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) करने, साथ ही दस लाख प्रत्यक्ष नौकरियाँ सृजित करने के लिये प्रतिबद्ध करता है।
- रणनीतिक और भू-राजनीतिक विचार: मुक्त व्यापार समझौते भारत को प्रमुख क्षेत्रों के साथ आर्थिक कूटनीति को मज़बूत करने, कुछ बाज़ारों पर अत्यधिक निर्भरता को कम करने एवं खंडित वैश्विक व्यापार व्यवस्था में स्वयं को एक विश्वसनीय विकल्प के रूप में स्थापित करने में सहायता करते हैं।
- भारत मुक्त व्यापार समझौतों (FTA) का उपयोग करके स्वयं को चीन के वैश्विक विकल्प के रूप में स्थापित कर रहा है। विकसित बाज़ारों के साथ समझौते करके, भारत यह सुनिश्चित करता है कि इलेक्ट्रॉनिक्स, सेमीकंडक्टर और फार्मास्यूटिकल्स के लिये वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं को भारत में ‘शुल्क-मुक्त’ आधार मिल सके।
- उदाहरण के लिये, भारत-UK CETA कंपनियों को भारत में उत्पादन करने तथा बिना किसी शुल्क के अपने घरेलू बाज़ारों में निर्यात करने की अनुमति देता है, जिससे वे सीधे चीनी विनिर्माण केंद्रों के साथ प्रतिस्पर्द्धा कर सकती हैं।
- भारत मुक्त व्यापार समझौतों (FTA) का उपयोग करके स्वयं को चीन के वैश्विक विकल्प के रूप में स्थापित कर रहा है। विकसित बाज़ारों के साथ समझौते करके, भारत यह सुनिश्चित करता है कि इलेक्ट्रॉनिक्स, सेमीकंडक्टर और फार्मास्यूटिकल्स के लिये वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं को भारत में ‘शुल्क-मुक्त’ आधार मिल सके।
- अतीत की हिचक से सीख: RCEP जैसे बड़े व्यापार समझौतों से बाहर रहने के बाद, भारत अब चयनात्मक और संतुलित FTA की नीति अपना रहा है, जिसमें कृषि एवं MSME जैसे संवेदनशील क्षेत्रों के लिये सुरक्षा उपाय सुनिश्चित किये जा रहे हैं।
- भारत-न्यूज़ीलैंड वार्ताओं में दुग्ध उत्पाद तथा कुछ पशु और वनस्पति उत्पादों जैसे संवेदनशील क्षेत्रों को समझौते से बाहर रखा गया है, जबकि न्यूज़ीलैंड के कुल निर्यात में दुग्ध उत्पादों की हिस्सेदारी लगभग एक-तिहाई है।
भारत के मुक्त व्यापार समझौतों से जुड़े प्रमुख मुद्दे क्या हैं?
- मुक्त व्यापार समझौते (FTA) साझेदारों के साथ बढ़ता व्यापार घाटा: भारत ने ASEAN, जापान और दक्षिण कोरिया जैसे प्रमुख मुक्त व्यापार समझौते (FTA) साझेदारों के साथ लगातार और कुछ मामलों में बढ़ते व्यापार घाटे का सामना किया है।
- आयात में निर्यात की तुलना में अधिक तेज़ी से वृद्धि हुई है, जो असमान प्रतिस्पर्द्धा और सीमित निर्यात विविधीकरण को दर्शाती है।
- उदाहरण के लिये, वित्त वर्ष 2009 और वित्त वर्ष 2023 के दौरान, भारत का ASEAN से आयात 234.4% बढ़ गया, जबकि इस समूह को इसका निर्यात केवल 130.4% बढ़ा।
- निर्यातकों द्वारा FTA लाभों का कम उपयोग: कई भारतीय निर्यातक, विशेष रूप से लघु एवं मध्यम उद्यम (MSME), अपर्याप्त जागरूकता, जटिल दस्तावेज़ीकरण को समझने में क्षमता की कमी और मूल नियमों की सीमित समझ के कारण FTA प्रावधानों का पूरी तरह से उपयोग नहीं करते हैं, जिससे अपेक्षित निर्यात लाभ कम हो जाते हैं।
- एशियाई विकास बैंक के अनुसार, भारत की मुक्त व्यापार समझौते (FTA) उपयोग दर 25% से कम रही है, जो एशिया में सबसे कम दरों में से एक है।
- गैर-टैरिफ बाधाओं (NTB) की निरंतरता: टैरिफ रियायतों के बावजूद, भारतीय निर्यात को प्रायः साझेदार बाज़ारों में प्रतिबंधात्मक मानकों, स्वच्छता और पादप स्वच्छता उपायों, तकनीकी नियमों व प्रमाणन आवश्यकताओं का सामना करना पड़ता है, विशेष रूप से कृषि, खाद्य उत्पादों और फार्मास्यूटिकल्स के क्षेत्र में।
- उदाहरण के लिये, भारत से आयातित बासमती चावल, दुग्ध उत्पाद और रसायनों को यूरोपीय बाज़ारों में लगातार गैर-प्रतिरोधी बाधाओं (NTB) का सामना करना पड़ता है, विशेष रूप से चावल के लिये कीटनाशक अवशेष सीमा (MRL) (जैसे ट्राइसाइक्लाज़ोल), संदूषण जोखिम (फफूंद, सूक्ष्मजीव) और दस्तावेज़ीकरण की कमियों (पता लगाने की क्षमता, प्रमाण पत्र) के संबंध में।
- कमज़ोर विनिर्माण प्रतिस्पर्द्धात्मकता: उच्च रसद लागत, खंडित आपूर्ति शृंखलाएँ और कम उत्पादकता जैसे संरचनात्मक मुद्दे भारतीय विनिर्माण की FTA साझेदारों से आयात के साथ प्रतिस्पर्द्धा करने की क्षमता को कम करते हैं, जिससे इलेक्ट्रॉनिक्स, मशीनरी एवं रसायनों के आयात में वृद्धि होती है।
- उदाहरण के लिये, भारतीय लघु एवं मध्यम उद्यमों (SME) को ASEAN कंपनियों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है, क्योंकि ASEAN कंपनियों के उत्पादन नेटवर्क अधिक एकीकृत हैं, लॉजिस्टिक्स की लागत कम है तथा सीमा शुल्क निकासी की सुविधा तीव्र है।
- सत्र 2024-25 की हालिया सरकारी रिपोर्टों से पता चलता है कि भारत ने लॉजिस्टिक्स लागत को सकल घरेलू उत्पाद के 7.97% तक कम कर दिया है। यह सुधार दर्शाता है, हालाँकि, वियतनाम और थाईलैंड जैसे प्रतिस्पर्द्धी देश अत्यधिक कुशल, बंदरगाह-आधारित औद्योगिक समूहों के साथ काम करते हैं, जिससे वैश्विक बाज़ारों के लिये उनकी प्रति इकाई प्रभावी लागत कम रहती है।
- जटिल एवं प्रतिबंधात्मक ‘रूल्स ऑफ ओरिजिन’: जटिल ‘रूल्स ऑफ ओरिजिन’ अनुपालन लागत को बढ़ाते हैं और कंपनियों को तरजीही टैरिफ का दावा करने से हतोत्साहित करते हैं, साथ ही मुक्त व्यापार समझौते (FTA) के माध्यम से तृतीय देशों द्वारा माल की डंपिंग के बारे में चिंताएँ भी बढ़ाते हैं।
- इससे ‘स्पैगेटी बाउल इफेक्ट’ की स्थिति उत्पन्न होती है, क्योंकि प्रत्येक मुक्त व्यापार समझौते (भारत-ASEAN, भारत-UAE, भारत-ऑस्ट्रेलिया) के नियम थोड़े अलग होते हैं, इसलिये तीन अलग-अलग क्षेत्रों में निर्यात करने वाली कंपनी को एक ही उत्पाद के लिये अनुपालन संबंधी दस्तावेजों के तीन अलग-अलग सेट बनाए रखने पड़ते हैं।
- सेवा व्यापार में सीमित लाभ: हालाँकि सेवाएँ भारत का तुलनात्मक लाभ हैं, लेकिन कई मुक्त व्यापार समझौते प्रतिबंधात्मक वीज़ा व्यवस्थाओं, पेशेवर गतिशीलता पर सीमाओं और योग्यताओं की पारस्परिक मान्यता पर धीमी प्रगति के कारण सीमित बाज़ार अभिगम्यता प्रदान करते हैं।
- उदाहरण के लिये, भारत-जापान CEPA में, उच्च-कुशल प्रवासियों के लिये जापानी भाषा की सख्त आवश्यकताएँ और इंजीनियरिंग एवं स्वास्थ्य सेवा में व्यावसायिक योग्यताओं के लिये मानकीकृत पारस्परिक मान्यता का अभाव, समझौते के प्रभावी उपयोग को सीमित करता है।
- सुभेद्य क्षेत्रों के लिये अपर्याप्त सुरक्षा प्रावधान: कृषि, डेयरी और लघु एवं मध्यम उद्यम आयात प्रतिस्पर्द्धा के प्रति सुभेद्य बने रहते हैं, जहाँ सुरक्षा उपाय कमज़ोर होते हैं, ठीक से लागू नहीं होते हैं या घरेलू वास्तविकताओं के अनुरूप अपर्याप्त रूप से तैयार किये जाते हैं।
- उदाहरण के लिये, ASEAN-भारत मुक्त व्यापार समझौते (AIFTA) ने मलेशिया और इंडोनेशिया से आने वाले ताड़ के तेल जैसे उत्पादों पर शुल्क में काफी कमी कर दी, जिससे सस्ते आयात में भारी वृद्धि हुई। इससे भारतीय किसानों, विशेष रूप से खाद्य तेल उत्पादकों पर दबाव बढ़ा, जिससे कड़ी प्रतिस्पर्द्धा उत्पन्न हुई तथा घरेलू उत्पादकों पर भी असर पड़ा।
- कार्यान्वयन और निगरानी में कमियाँ: मुक्त व्यापार समझौते (FTA) के परिणामों की निगरानी करने, शिकायतों का समाधान करने और समस्याग्रस्त प्रावधानों पर पुनर्विचार करने के लिये कमज़ोर संस्थागत तंत्र समय पर नीतिगत सुधार एवं अधिगम को सीमित करते हैं।
- भारत-दक्षिण कोरिया CEPA समझौते के तहत, इस्पात और इलेक्ट्रॉनिक सामानों के आयात में तीव्र वृद्धि हुई जबकि भारतीय निर्यात सुस्त रहा, फिर भी समय पर क्षेत्र-विशिष्ट समीक्षाएँ एवं सुधारात्मक पुनर्विचार सीमित रहे।
- उद्योग जगत के संगठनों ने बार-बार उत्पत्ति के नियमों के दुरुपयोग एवं बाज़ार अभिगम्यता में बाधाओं को उजागर किया, लेकिन कमज़ोर निगरानी तंत्र के कारण नीतिगत प्रतिक्रिया में विलंब हुआ।
भारत अपने मुक्त व्यापार समझौतों के उपयोग को किस प्रकार बेहतर बना सकता है?
- निर्यातकों की जागरूकता और हैंडहोल्डिंग को सुदृढ़ करना: कई भारतीय निर्यातक, विशेष रूप से लघु एवं मध्यम उद्यम (MSME), FTA के लाभों से अनभिज्ञ रहते हैं या अनुपालन में कठिनाई का सामना करते हैं।
- DGFT, निर्यात संवर्द्धन परिषदों और उद्योग निकायों के माध्यम से क्षेत्र व ज़िला स्तर पर संपर्क स्थापित करने के साथ-साथ समर्पित FTA सुविधा प्रकोष्ठों की स्थापना से टैरिफ अनुसूचियों, दस्तावेज़ीकरण एवं भागीदार देशों के नियमों की समझ में सुधार हो सकता है।
- उत्पत्ति के नियमों और व्यापार प्रक्रियाओं का सरलीकरण: जटिल और प्रतिबंधात्मक उत्पत्ति के नियम अनुपालन लागत को बढ़ाते हैं तथा उनके उपयोग को हतोत्साहित करते हैं।
- उत्पाद-विशिष्ट नियमों को युक्तिसंगत बनाना, मज़बूत ऑडिट के साथ स्व-प्रमाणीकरण को बढ़ावा देना और मूल प्रमाण पत्रों का पूरी तरह से डिजिटलीकरण करना, दुरुपयोग को रोकते हुए वरीयता के उपयोग को बढ़ा सकता है।
- गैर-टैरिफ बाधाओं (NTB) का सक्रिय रूप से समाधान: टैरिफ में कटौती के बावजूद भारतीय निर्यात को प्रायः SPS, TBT और मानक-संबंधी बाधाओं का सामना करना पड़ता है।
- देश और क्षेत्र-विशिष्ट गैर-टैरिफ-B निगरानी डेस्क बनाने से निर्यातकों की शिकायतों को दर्ज करने तथा FTA संयुक्त समितियों एवं विवाद समाधान तंत्रों के माध्यम से उनके समाधान को आगे बढ़ाने में सहायता मिल सकती है।
- घरेलू प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ाना: मुक्त व्यापार समझौते तभी लाभ देते हैं जब घरेलू कंपनियाँ प्रतिस्पर्द्धी हों।
- रसद लागत को और कम करना, अधोसंरचना व बंदरगाह की दक्षता में सुधार करना, प्रौद्योगिकी उन्नयन का समर्थन करना तथा PM गति शक्ति, मेक इन इंडिया एवं PLI योजनाओं जैसी पहलों के साथ FTA को संरेखित करना महत्त्वपूर्ण है।
- सेवा व्यापार और गतिशीलता प्रावधानों का लाभ उठाना: सेवाएँ भारत की तुलनात्मक बढ़त हैं, फिर भी कई FTA प्रतिबंधात्मक वीज़ा नियमों और योग्यताओं की पारस्परिक मान्यता के अभाव में अपेक्षित परिणाम नहीं दे पाते।
- IT स्वास्थ्य शिक्षा तथा इंजीनियरिंग में गतिशीलता धाराओं और पेशेवर अभिगम्यता को क्रियान्वित करने हेतु सक्रिय अनुवर्ती कार्रवाई आवश्यक है।
- प्रभावी सुरक्षा उपायों के माध्यम से संवेदनशील क्षेत्रों की सुरक्षा: कृषि, डेयरी और लघु एवं मध्यम उद्यमों को आयात में अचानक वृद्धि को प्रबंधित करने के लिये त्वरित एवं बेहतर ढंग से समन्वित सुरक्षा तंत्र की आवश्यकता है।
- टैरिफ रियायतों की नियमित समीक्षा और व्यापार-उपचार उपकरणों का समय पर उपयोग खुलेपन एवं आजीविका संरक्षण के बीच संतुलन स्थापित कर सकता है।
- निवेश और आपूर्ति-शृंखला रणनीति के साथ मुक्त व्यापार समझौतों को जोड़ना: मुक्त व्यापार समझौतों (FTA) को निवेश प्रोत्साहन औद्योगिक क्लस्टरों तथा आपूर्ति-शृंखला साझेदारियों के साथ एकीकृत किया जाना चाहिये ताकि बाज़ार-पहुँच घरेलू उत्पादन रोज़गार एवं निर्यात-वृद्धि में रूपांतरित हो सके।
निष्कर्ष:
भारत के मुक्त व्यापार समझौते (FTA) अब व्यापक उदारीकरण के बजाय व्यावहारिकता, रणनीतिक सतर्कता तथा घरेलू प्राथमिकताओं के अनुरूप ढलने पर अधिक ज़ोर दे रहे हैं। यद्यपि हालिया FTA सेवाओं, श्रम-गतिशीलता तथा निवेश के क्षेत्रों में प्रगति को प्रतिबिंबित करते हैं, फिर भी संरचनात्मक प्रतिस्पर्द्धात्मकता की कमियों तथा क्रियान्वयन से जुड़ी चुनौतियों के कारण इनके लाभ असमान बने हुए हैं। गैर-शुल्क अवरोधों को दूर करना, संस्थागत निगरानी को सुदृढ़ बनाना तथा निर्यातकों की तैयारी में सुधार करना आवश्यक है, ताकि समझौतों के माध्यम से प्राप्त औपचारिक अभिगम्यता को वास्तविक आर्थिक लाभ में बदला जा सके।
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दृष्टि मेन्स प्रश्न भारत के हालिया मुक्त व्यापार समझौते शीर्षक-आधारित उदारीकरण से हटकर संतुलित एवं हित-आधारित व्यापार नीति की ओर संक्रमण को दर्शाते हैं। इस परिवर्तन की विवेचना कीजिये तथा भारत की आर्थिक संवृद्धि पर इसके प्रभावों का आकलन कीजिये। |
प्रायः पूछे जाने वाले प्रश्न
प्रश्न 1. मुक्त व्यापार समझौते (FTA) क्या हैं?
ये औपचारिक व्यापार संधियाँ हैं, जिनका उद्देश्य शुल्क (टैरिफ) और अन्य व्यापारिक बाधाओं को कम करके व्यापार एवं आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देना होता है।
प्रश्न 2. भारत चयनात्मक मुक्त व्यापार समझौतों पर ही क्यों ज़ोर दे रहा है?
संवेदनशील घरेलू क्षेत्रों तथा रणनीतिक हितों की सुरक्षा के साथ बाज़ार अभिगम्यता के बीच संतुलन स्थापित करने के लिये भारत चयनात्मक मुक्त व्यापार समझौतों को प्राथमिकता दे रहा है।
प्रश्न 3. भारत के मुक्त व्यापार समझौतों (FTA) से जुड़ी प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?
व्यापार घाटा, निर्यातकों द्वारा कम उपयोग, गैर-शुल्कीय बाधाएँ तथा कमज़ोर कार्यान्वयन प्रमुख चुनौतियाँ हैं।
प्रश्न 4. हाल के मुक्त व्यापार समझौते पुराने मुक्त व्यापार समझौतों से किस प्रकार भिन्न हैं?
नवीन मुक्त व्यापार समझौते केवल शुल्क-उन्मूलन तक सीमित न होकर सेवाओं, श्रम-गतिशीलता, निवेश तथा आपूर्ति-शृंखला की प्रत्यास्थता पर अधिक ध्यान देते हैं।
प्रश्न 5. प्रभावी FTA उपयोग के लिये आगे की राह क्या है?
निर्यातकों में जागरूकता बढ़ाना, घरेलू प्रतिस्पर्द्धात्मकता सुदृढ़ करना, उपयुक्त संरक्षात्मक उपाय अपनाना तथा सशक्त संस्थागत निगरानी तंत्र विकसित करना आवश्यक है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)
प्रिलिम्स
प्रश्न 1. निम्नलिखित देशों पर विचार कीजिये: (2018)
- ऑस्ट्रेलिया
- कनाडा
- चीन
- भारत
- जापान
- संयुक्त राज्य अमेरिका
उपर्युक्त में से कौन-कौन आसियान (ए.एस.इ.ए.एन) के 'मुक्त व्यापार भागीदारों' में से हैं?
(a) केवल 1, 2, 4 और 5
(b) केवल 3, 4, 5 और 6
(c) केवल 1, 3, 4 और 5
(d) केवल 2, 3, 4 और 6
उत्तर: (c)
प्रश्न 2. 'रीजनल कॉम्प्रिहेन्सिव इकॉनॉमिक (Regional Comprehensive Partnership)' पद प्रायः समाचारों में देशों के एक समूह के मामलों के संदर्भ में आता है। देशों के उस समूह को क्या कहा जाता है? (2016)
(a) G20
(b) ASEAN
(c) SCO
(d) SAARC
उत्तर: (b)
मेन्स
प्रश्न 1. विश्व व्यापार में संरक्षणवाद और मुद्रा चालबाज़ियों की हाल की परिघटनाएँ भारत की समष्टि आर्थिक स्थिरता को किस प्रकार से प्रभावित करेंगी? (2018)
प्रश्न 2. शीतयुद्धोत्तर अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य के संदर्भ में, भारत की पूर्वोन्मुखी नीति के आर्थिक और सामरिक आयामों का मूल्याकंन कीजिये। (2016)