भारत का सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने का प्रयास | 26 Dec 2025
यह एडिटोरियल 16/12/2025 को द फाइनेंशियल एक्सप्रेस में प्रकाशित Create more space to let solar power flow शीर्षक वाले लेख पर आधारित है। यह लेख दर्शाता है कि भारत की सौर ऊर्जा क्षमता का तीव्र विस्तार किस प्रकार पारेषण (ट्रांसमिशन), भंडारण (स्टोरेज) तथा ग्रिड की तत्परता में बनी हुई संरचनात्मक बाधाओं के साथ एक तीव्र विरोधाभास प्रस्तुत करता है।
प्रिलिम्स के लिये: उत्पादन से संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजनाएँ, भारत में नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता का दोहन, ISA, GTAM, पीएम-सूर्य घर: मुफ्त बिजली योजना, BESS
मेन्स के लिये: सौर ऊर्जा की दिशा में भारत की प्रगति, सौर क्षेत्र में प्रमुख मुद्दे, बाधाओं को दूर करने के उपाय।
भारत 500 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा के लक्ष्य की ओर तेज़ी से बढ़ रहा है तथा इस परिवर्तन में सौर ऊर्जा एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। हालाँकि, उत्पादन की गति इसे पारेषित करने की क्षमता से कहीं अधिक है। जहाँ सौर परियोजनाएँ तीव्र गति से क्रियान्वित की जा रही हैं, वहीं अपर्याप्त पारेषण/ट्रांसमिशन अवसंरचना तथा भूमि की उपलब्धता से जुड़ी बाधाएँ गंभीर अवरोध उत्पन्न कर रही हैं।
वर्तमान चुनौती अब सौर ऊर्जा के उत्पादन की नहीं, बल्कि उसे देशभर में कुशलतापूर्वक संचारित करने की है। ग्रिड कनेक्टिविटी को सुदृढ़ करना तथा पारेषण/ट्रांसमिशन क्षेत्र में निजी निवेश को प्रोत्साहित करना ही यह निर्धारित करेगा कि भारत की सौर महत्त्वाकांक्षा वास्तव में सफल होती है या नहीं।
भारत सौर ऊर्जा विकास में किस प्रकार प्रगति कर रहा है?
- क्षमता विस्तार: भारत की सौर ऊर्जा क्षमता में पिछले दशक में उल्लेखनीय रूप से विस्तार हुआ है, जो वर्ष 2014 में मात्र 3 गीगावाट से बढ़कर वर्ष 2025 में लगभग 129 गीगावाट तक पहुँच गई है।
- इसमें ग्राउंड-माउंटेड प्रोजेक्ट, रूफटॉप सोलर, हाइब्रिड सिस्टम और ऑफ-ग्रिड इंस्टॉलेशन शामिल हैं। सौर ऊर्जा अब भारत के ऊर्जा मिश्रण का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा बन चुकी है तथा भारत को वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट गैर-जीवाश्म ईंधन क्षमता हासिल करने के लिये प्रेरित करती है।
- उच्च सौर विकिरण तथा भूमि की उपलब्धता के कारण पश्चिमी तथा उत्तरी राज्य सौर ऊर्जा के उपयोग में अग्रणी हैं।
- राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र तथा तमिलनाडु शीर्ष सौर उत्पादक राज्यों में शामिल हैं, जिनमें राजस्थान की सौर क्षमता अत्यधिक है तथा वहाँ निरंतर विस्तार के लिये महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किये गये हैं।
- पारेषण क्षमता और ग्रिड एकीकरण: ग्रिड-इंटरैक्टिव सौर ऊर्जा उत्पादन क्षमता के तीव्र विस्तार के साथ-साथ पारेषण अवसंरचना को भी ‘ग्रीन एनर्जी कॉरिडोर’ जैसी पहलों के माध्यम से सुदृढ़ किया जा रहा है ताकि नवीकरणीय ऊर्जा का कुशल उपयोग संभव हो सके।
- वर्तमान में भारत की समग्र पारेषण प्रणाली बड़े पैमाने पर नवीकरणीय क्षमता के एकीकरण का समर्थन करती है तथा अंतर-राज्यीय एवं अंतः-राज्यीय संपर्क को मज़बूत करने के लिये दीर्घकालिक योजनाएँ और परियोजनाएँ संचालित की जा रही हैं, जिससे ऊर्जा कटौती को कम किया जा सके।
- रूफटॉप सोलर का प्रसार भी ‘पीएम सूर्य घर योजना’ जैसी योजनाओं से प्रोत्साहित हो रहा है। इस योजना के अंतर्गत दिसंबर 2025 तक लगभग 24 लाख परिवारों ने रूफटॉप सोलर पैनल लगवाए हैं।
- साथ ही, PM-KUSUM योजना के अंतर्गत सौर पंपों को ग्रिड कनेक्शन के साथ एकीकृत किया जा रहा है।
- ऊर्जा व्यापार और बाज़ार तंत्र: सौर ऊर्जा तेज़ी से ऊर्जा बाज़ारों और ग्रीन टर्म अहेड मार्केट (GTAM) जैसे बिजली व्यापार प्लेटफॉर्मों में भाग ले रही है, जिससे बिजली कंपनियों एवं उद्योगों को स्वच्छ ऊर्जा प्राप्त करने में सहायता मिल रही है।
- बिजली एक्सचेंज द्विपक्षीय अनुबंधों, डे-अहेड बाज़ारों और नवीकरणीय खरीद दायित्वों (RPO) के माध्यम से सौर ऊर्जा की बिक्री को सुविधाजनक बनाते हैं तथा मांग सुनिश्चित करते हैं।
- बैटरी ऊर्जा भंडारण प्रणालियों (BESS) पर बढ़ा हुआ ध्यान: सौर ऊर्जा की अनिश्चितता (रात में सूर्य का न चमकना) से निपटने के लिये, सरकार ने साधारण सौर निविदाओं से हटकर चौबीसों घंटे (RTC) एवं हाइब्रिड निविदाओं की ओर रुख किया है।
- विद्युत मंत्रालय ने 30 गीगावॉट बैटरी ऊर्जा भंडारण प्रणालियों (BESS) को समर्थन देने के लिये व्यवहार्यता अंतर निधि (VGF) योजना को मंजूरी दे दी है। 5,400 करोड़ रुपये की इस योजना का उद्देश्य लगभग 33,000 करोड़ रुपये के निवेश को बढ़ावा देना है, ताकि वर्ष 2028 तक भारत की BESS आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके।
- सोलर मॉड्यूल का घरेलू उत्पादन: भारत ने सौर ऊर्जा आयातक देश से विनिर्माण केंद्र बनने की दिशा में महत्त्वपूर्ण प्रगति की है ताकि वैश्विक आपूर्ति शृंखला में आने वाले झटकों से स्वयं को बचा सके। भारत ने सोलर PV मॉड्यूल के लिये अनुमोदित मॉडल और निर्माताओं की सूची (ALMM) में सूचीबद्ध 100 गीगावाट सोलर PV मॉड्यूल विनिर्माण क्षमता की एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है।
- यह उपलब्धि आत्मनिर्भर भारत की राष्ट्रीय परिकल्पना के अनुरूप, एक मज़बूत एवं आत्मनिर्भर सौर विनिर्माण प्रणाली के निर्माण में देश की तीव्र प्रगति को दर्शाती है।
- फ्लोटिंग सोलर और एग्रीवोल्टिक्स: भूमि अधिग्रहण की बढ़ती चुनौती के बीच भारत जल निकायों तथा कृषि भूमि पर सौर पैनलों की स्थापना की दिशा में अग्रसर है।
- मध्य प्रदेश में स्थित ओंकारेश्वर फ्लोटिंग सोलर पार्क (600 मेगावाट) जैसी परियोजनाएँ इस दिशा में अग्रणी भूमिका निभा रही हैं। ये प्रणालियाँ जल वाष्पीकरण को कम करती हैं तथा जल के प्राकृतिक शीतलन प्रभाव के कारण पैनलों की दक्षता में वृद्धि करती हैं।
- इसके अलावा, द्वि-उपयोग भूमि नीति के तहत सौर पैनलों को इतनी ऊँचाई पर स्थापित किया जाता है कि उनके नीचे फसल उत्पादन संभव रहे। इससे किसानों को खाद्य उत्पादन से समझौता किये बिना विद्युत विक्रय के रूप में आय का एक अतिरिक्त स्रोत प्राप्त होता है।
भारत के सौर ऊर्जा क्षेत्र से जुड़ी प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?
- भूमि अधिग्रहण और उपलब्धता संबंधी चुनौतियाँ: बड़े पैमाने पर सौर परियोजनाओं के लिये विशाल, सतत भूमि भूखंडों की आवश्यकता होती है, जो प्रायः शुष्क या अर्द्ध-शुष्क क्षेत्रों में स्थित होते हैं। कृषि प्रधान या पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में, भूमि-रूपांतरण आजीविका पर प्रभाव और जैव-विविधता ह्रास जैसी चिंताएँ भी उत्पन्न करता है।
- अतिव्याप्त भूमि-उपयोग विनियम, वन-अनुमतियाँ और वन्यजीव संरक्षण मानदंडों के कारण परियोजनाओं में विलंब होता है, विशेषकर पारिस्थितिक रूप से सुभेद्य क्षेत्रों में।
- भारत में वर्ष 2023 में सौर ऊर्जा संयंत्रों की स्थापना में 44% की गिरावट देखी गई, जिसका मुख्य कारण भूमि अधिग्रहण से संबंधित चुनौतियाँ थीं।
- उदाहरण के लिये, राजस्थान में परियोजनाओं को ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के लिये संरक्षित क्षेत्रों के कारण समय-सीमा में विस्तार का सामना करना पड़ा है।
- अतिव्याप्त भूमि-उपयोग विनियम, वन-अनुमतियाँ और वन्यजीव संरक्षण मानदंडों के कारण परियोजनाओं में विलंब होता है, विशेषकर पारिस्थितिक रूप से सुभेद्य क्षेत्रों में।
- पारेषण और ग्रिड एकीकरण संबंधी बाधाएँ: सौर ऊर्जा उत्पादन क्षमता में तेज़ी से विस्तार हुआ है, लेकिन पारेषण अवसंरचना उसी गति से विकसित नहीं हो सकी है। अनेक सौर पार्क अपर्याप्त ट्रांसमिशन लाइनों और सब-स्टेशनों के कारण विद्युत पारेषण (Evacuation) में विलंब का सामना कर रहे हैं।
- राजस्थान और गुजरात जैसे उच्च उत्पादन वाले राज्यों में ग्रिड जाम की स्थिति उत्पन्न होती है, जिससे विद्युत कटौती (Curtailment) करनी पड़ती है तथा इससे संयंत्र दक्षता एवं निवेशकों का विश्वास प्रभावित होता है।
- उदाहरण के लिये, राजस्थान में लगभग 4,300 मेगावाट सौर ऊर्जा क्षमता अपर्याप्त पारेषण अधोसंरचना के कारण दिन के समय पूरी तरह से बाधित रहती है।
- राजस्थान और गुजरात जैसे उच्च उत्पादन वाले राज्यों में ग्रिड जाम की स्थिति उत्पन्न होती है, जिससे विद्युत कटौती (Curtailment) करनी पड़ती है तथा इससे संयंत्र दक्षता एवं निवेशकों का विश्वास प्रभावित होता है।
- अनियमितता और भंडारण संबंधी सीमाएँ: सौर ऊर्जा स्वभावतः अनियमित है और दिन के प्रकाश तथा मौसम पर निर्भर करती है। बैटरी या जल विद्युत जैसी किफायती ऊर्जा भंडारण प्रौद्योगिकियों की सीमित उपलब्धता, चौबीसों घंटे विश्वसनीय बिजली आपूर्ति करने की क्षमता को सीमित करती है, जिससे ग्रिड की स्थिरता के लिये चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं।
- वर्तमान में लिथियम-आयन बैटरियाँ सौर भंडारण बाज़ार में अग्रणी हैं, परंतु इनमें तापीय अस्थिरता, तापमान-संवेदनशीलता तथा लिथियम एवं कोबाल्ट जैसे सीमित और भू-राजनीतिक रूप से संवेदनशील खनिजों पर निर्भरता जैसी समस्याएँ हैं।
- प्रभावी और किफायती भंडारण के अभाव में सौर ऊर्जा 24/7 विश्वसनीय विद्युत आपूर्ति प्रदान नहीं कर सकती।
- वर्तमान में लिथियम-आयन बैटरियाँ सौर भंडारण बाज़ार में अग्रणी हैं, परंतु इनमें तापीय अस्थिरता, तापमान-संवेदनशीलता तथा लिथियम एवं कोबाल्ट जैसे सीमित और भू-राजनीतिक रूप से संवेदनशील खनिजों पर निर्भरता जैसी समस्याएँ हैं।
- वितरण कंपनियों (DISCOMs) की वित्तीय तनावग्रस्त स्थिति: सरकारी स्वामित्व वाली DISCOM कंपनियाँ वित्तीय रूप से तनावग्रस्त बनी हुई हैं, जिसका मुख्य कारण बकाया राशि का भुगतान करने और कार्यशील पूंजी की जरूरतों को पूरा करने के लिये लिया गया ऋण है।
- अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के अनुसार, मार्च 2025 तक भारत की वितरण कंपनियों पर 9 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक के बकाया थे। वर्ष 2023 में इन कंपनियों का संचयी घाटा लगभग 75 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया।
- इससे निवेशकों का विश्वास कमज़ोर होता है, सौर ऊर्जा डेवलपर्स को भुगतान में देरी होती है और दीर्घकालिक बिजली खरीद समझौतों (PPA) पर असर पड़ता है।
- आयातित उपकरणों पर निर्भरता: भारत सौर मॉड्यूल के आयात पर बहुत अधिक निर्भर है, विशेष रूप से चीन से आयातित मॉड्यूल पर, जिससे यह क्षेत्र आपूर्ति शृंखला में व्यवधान, मूल्य अस्थिरता एवं भू-राजनीतिक जोखिमों के प्रति सुभेद्य बना हुआ है। उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन योजनाओं (PLI) जैसी पहलों के बावजूद, घरेलू विनिर्माण क्षमता सीमित बनी हुई है।
- उदाहरण के लिये, चीन अभी भी पॉलीसिलिकॉन और वेफर्स की वैश्विक आपूर्ति के 90% से अधिक हिस्से पर नियंत्रण रखता है। वहीं, भारत में उच्च-ग्रेड वेफर्स या सिलिका सैंड का व्यावसायिक स्तर पर स्वदेशी उत्पादन लगभग न के बराबर है, जिसके परिणामस्वरूप भारतीय मॉड्यूल में स्थानीय मूल्य संवर्द्धन केवल 30–40% तक सीमित रहता है।
- नीतिगत और नियामक अनिश्चितता: शुल्क संरचनाओं में बार-बार होने वाले परिवर्तन, आयातित घटकों पर शुल्क और राज्य-स्तरीय नीतिगत भिन्नताएँ निवेशकों के लिये अनिश्चितता उत्पन्न करती हैं।
- बिजली खरीद समझौतों (PPA) पर हस्ताक्षर करने में विलंब तथा नवीकरणीय ऊर्जा खरीद दायित्वों (RPO) के असंगत कार्यान्वयन से योजना बनाना और भी जटिल हो जाता है।
- उदाहरण के लिये, वर्ष 2025 के अंत तक, अनुमानित 40-45 गीगावाट आवंटित सौर ऊर्जा क्षमता अटकी हुई है, क्योंकि बिजली बिक्री समझौतों (PSA) पर हस्ताक्षर नहीं किये गए हैं।
- वित्तपोषण और पूंजी की लागत: यद्यपि सौर टैरिफ में गिरावट आई है, फिर भी विशेषकर छोटे डेवलपर्स के लिये दीर्घकालिक और सस्ते वित्त तक अभिगम्यता चुनौती बनी हुई है। उच्च ब्याज दरें, विदेशी ऋणों से जुड़ा मुद्रा जोखिम और सीमित ग्रीन फाइनेंस विकल्प परियोजना लागत बढ़ाते हैं।
- भारत में ग्रिड-स्तरीय नवीकरणीय ऊर्जा के लिये पूंजी की लागत उभरते बाज़ारों और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के समकक्ष देशों की तुलना में सबसे कम है। हालाँकि, यह उन्नत अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में अभी भी 80% अधिक है।
- कौशल और कार्यबल की कमी: सौर क्षेत्र के तीव्र विस्तार के लिये स्थापना, संचालन और अनुरक्षण हेतु कुशल कार्यबल की आवश्यकता है, परंतु प्रशिक्षित तकनीशियनों एवं इंजीनियरों की कमी दक्षता व दीर्घकालिक स्थायित्व को सीमित करती है।
- प्रधानमंत्री सूर्य घर योजना के तीव्र विस्तार के कारण बिना मानकीकृत प्रमाणन वाले अस्थायी इंस्टॉलरों की संख्या बढ़ी है, जिसके परिणामस्वरूप निम्न गुणवत्ता वाले इंस्टॉलेशन होते हैं, अग्नि-जोखिम का खतरा उत्पन्न करते हैं और ऊर्जा उत्पादन को कम करते हैं।
- यह ‘कौशल–गुणवत्ता अंतर’ ज़मीनी स्तर पर रूफटॉप परियोजनाओं की दीर्घकालिक वित्तीय योग्यता को कमज़ोर करता है तथा खुदरा निवेशकों को हतोत्साहित करता है।
भारत की सौर ऊर्जा क्षमता को प्रभावी ढंग से उजागर करने के लिये किन सुधारों की आवश्यकता है?
- भूमि उपलब्धता को सुदृढ़ करना तथा सामाजिक–पर्यावरणीय टकराव को कम करना: भारत को जापान और जर्मनी के मॉडल से सीख लेते हुए, तदर्थ भूमि-अधिग्रहण से आगे बढ़कर लैंड-पूलिंग, लैंड-लीज़ मॉडल तथा एग्रीवोल्टाइक्स (कृषि-वोल्टिक) को प्रोत्साहित करना चाहिये, जहाँ सौर पैनल कृषि के साथ सह-अस्तित्व में हों।
- चीन के गोबी मरुस्थल में विकसित विशाल सौर पार्कों की तर्ज़ पर बंजर भूमि और मरुस्थलीय क्षेत्रों का बड़े पैमाने पर उपयोग विस्थापन को न्यूनतम कर सकता है।
- ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में सफलतापूर्वक लागू किये गए डिजिटल भूमि अभिलेख, GIS मैपिंग तथा प्रारंभिक सामुदायिक परामर्श से विवादों और परियोजना में विलंब को कम किया जा सकता है, साथ ही सामाजिक स्वीकृति में सुधार किया जा सकता है।
- पारेषण अवसंरचना का विस्तार और आधुनिकीकरण: तीव्र ऊर्जा उत्पादन वृद्धि के अनुरूप, भारत को हरित ऊर्जा गलियारा (GEC) परियोजनाओं में तीव्रता लानी चाहिये तथा सौर पार्कों के साथ-साथ पारेषण नेटवर्क की समानांतर योजना बनानी चाहिये।
- चीन जैसे देशों ने नवीकरणीय ऊर्जा क्लस्टरों से जुड़ी दीर्घकालिक पारेषण योजना अपनायी है, जिससे ऊर्जा कटौती न्यूनतम रहती है।
- भारत को व्यवहार्यता अंतर वित्तपोषण और प्रदर्शन-आधारित टैरिफ के माध्यम से पारेषण क्षेत्र में निजी भागीदारी को बढ़ावा देना चाहिये तथा वास्तविक समय में लोड संतुलन हेतु स्मार्ट ग्रिड की तैनाती भी करनी चाहिये।
- चीन जैसे देशों ने नवीकरणीय ऊर्जा क्लस्टरों से जुड़ी दीर्घकालिक पारेषण योजना अपनायी है, जिससे ऊर्जा कटौती न्यूनतम रहती है।
- भंडारण और हाइब्रिड समाधानों के माध्यम से विश्वसनीय बिजली आपूर्ति सुनिश्चित करना: बिजली की अनियमितता को दूर करने के लिये बैटरी ऊर्जा भंडारण प्रणालियों (BESS) और पम्प्ड हाइड्रो स्टोरेज का विस्तार आवश्यक है, जैसा कि ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका में देखा गया है, जहाँ भंडारण को सौर परियोजनाओं के साथ एकीकृत किया गया है।
- भारत सौर–पवन–भंडारण हाइब्रिड परियोजनाओं तथा टाइम-ऑफ-डे टैरिफ को प्रोत्साहित कर चौबीसों घंटे स्वच्छ ऊर्जा उपलब्ध करा सकता है।
- PLI के अंतर्गत घरेलू बैटरी निर्माण को समर्थन देना तथा सोडियम-आयन जैसी वैकल्पिक प्रौद्योगिकियों को प्रोत्साहित करना दीर्घकालिक लचीलापन सुदृढ़ करेगा।
- बिजली वितरण कंपनियों की वित्तीय स्थिति का पुनर्संस्थापन: वैश्विक अनुभव से पता चलता है कि नवीकरणीय ऊर्जा की सफलता वित्तीय रूप से सक्षम कंपनियों पर निर्भर करती है। भारत को संशोधित वितरण क्षेत्र योजना (RDSS) के तहत सुधारोंके अंतर्गत सुधारों में गति लानी चाहिये, समय पर टैरिफ संशोधन सुनिश्चित करना चाहिये तथा बिजली वितरण एवं नियंत्रण (AT&C) घाटे को कम करना चाहिये।
- ब्राज़ील और चिली जैसे देशों ने स्मार्ट मीटरिंग, प्रीपेड बिलिंग तथा स्वतंत्र विनियमन के माध्यम से वितरण कंपनियों के प्रदर्शन में सुधार किया है; इन मॉडलों को भारत अपनी परिस्थितियों के अनुरूप अपना सकता है ताकि निवेशकों का विश्वास पुनर्स्थापित हो सके।
- आयात पर निर्भरता कम करना और घरेलू विनिर्माण को सशक्त बनाना: वैश्विक आपूर्ति संबंधी झटकों के प्रति संवेदनशीलता को कम करने के लिये, भारत को चीन के एकीकृत विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र के समान, सौर मूल्य-शृंखला के प्रत्येक चरण— पॉलीसिलिकॉन से लेकर मॉड्यूल तक, में घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देना चाहिये।
- PLI योजना के साथ अनुसंधान एवं विकास समर्थन, प्रौद्योगिकी अंतरण साझेदारियाँ तथा दीर्घकालिक खरीद प्रतिबद्धताएँ जोड़ना आवश्यक है ताकि पैमाना और प्रतिस्पर्धात्मकता विकसित हो सके।
- नीतिगत स्थिरता और विनियामक पूर्वानुमान सुनिश्चित करना: दीर्घकालिक निवेश के लिये स्थिर और पूर्वानुमान योग्य नीतियाँ महत्त्वपूर्ण हैं।
- जर्मनी और डेनमार्क जैसे देशों ने यह प्रदर्शित किया है कि नवीकरणीय ऊर्जा के लिये सुसंगत नीतियाँ निरंतर निवेश को आकर्षित करती हैं।
- भारत को प्रतिगामी टैरिफ परिवर्तनों से बचना चाहिये, विद्युत क्रय समझौतों (PPA) पर समयबद्ध हस्ताक्षर सुनिश्चित करने चाहिये तथा पारदर्शी विनियामक प्रक्रियाएँ बनाए रखनी चाहिये।
- किफायती-व्यवस्था का सृजन और निवेश जोखिम का शमन: उच्च पूँजी लागत एक प्रमुख बाधा बनी हुई है। ग्रीन बॉण्ड, मिश्रित वित्त मॉडल तथा बहुपक्षीय वित्तपोषण का विस्तार (जैसा कि चिली और दक्षिण अफ्रीका की नवीकरणीय नीलामियों में देखा गया है) वित्तीय लागत को कम कर सकता है।
- ऋण संवर्द्धन तंत्र और सॉवरेन गारंटी विशेष रूप से बड़े पैमाने की सौर और भंडारण परियोजनाओं के लिये निजी पूँजी को आकर्षित कर सकती हैं।
- कुशल और भविष्य-सन्नद्ध मानव संसाधन का विकास: सौर ऊर्जा के विस्तार हेतु स्थापना, संचालन और अनुरक्षण में प्रशिक्षित कार्यबल की आवश्यकता होती है।
- जर्मनी और दक्षिण कोरिया जैसे देशों ने नवीकरणीय विस्तार के साथ व्यावसायिक प्रशिक्षण को एकीकृत किया है।
- भारत स्किल इंडिया के अंतर्गत कौशल कार्यक्रमों का विस्तार करके तथा उद्योग, ITI और विश्वविद्यालयों के बीच साझेदारी के माध्यम से इस मॉडल को अपनाकर क्षेत्र की दीर्घकालिक संवहनीयता सुनिश्चित कर सकता है।
भारत में सौर ऊर्जा क्षेत्र में हुई प्रगति से संबंधित प्रमुख केस स्टडी
- कडप्पा (आंध्र प्रदेश) तथा भाडला सौर पार्क (राजस्थान): ये बड़े पैमाने पर सौर ऊर्जा परिनियोजन के सफल मॉडल हैं, जहाँ भूमि अधिग्रहण, समेकित योजना तथा समर्पित पारेषण कॉरिडोर के माध्यम से प्रभावी क्रियान्वयन किया गया।
- मोढेरा, गुजरात — भारत का प्रथम 24×7 सौर-ऊर्जा संचालित ग्राम: मोढेरा विरासत और उच्च प्रौद्योगिकी के सफल समन्वय का उदाहरण प्रस्तुत करता है। यह परियोजना सूर्य मंदिर जैसे ऐतिहासिक स्थल की सौंदर्यात्मक पहचान को संरक्षित रखते हुए पूरे समुदाय को ऊर्जा-स्वावलंबी बनाती है।
- कोचीन अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा (CIAL), केरल — विश्व का प्रथम पूर्णतः सौर-ऊर्जा संचालित हवाई अड्डा: इसने 2015 में सौर ऊर्जा से पूरी तरह से संचालित होने वाले विश्व के पहले हवाई अड्डे के रूप में इतिहास रचा, जिसने बड़े सौर संयंत्रों के माध्यम से पूर्ण विद्युत-तटस्थता (Power Neutrality) प्राप्त की।
- धुंडी, गुजरात — सौर पंप सहकारी समिति: वर्ष 2016 में गुजरात के खेड़ा ज़िले के धुंडी ग्राम के छह किसानों ने विश्व की पहली सौर सिंचाई सहकारी संस्था ‘धुंडी सौर ऊर्जा उत्पादक सहकारी मंडली (DSUUSM)’ का गठन किया।
- द बेटर इंडिया के अनुसार, यह सहकारी संस्था सिंचाई के लिये सौर पंपों का उपयोग करती है तथा अतिरिक्त विद्युत को मध्य गुजरात विज कंपनी लिमिटेड (MGVCL) को बेचती है। इससे किसान ‘सौर उद्यमी’ बने और ग्राम में सिंचाई हेतु जल की लागत लगभग आधी हो गई।
- सांची, मध्य प्रदेश — भारत का प्रथम सौर नगर: मध्य प्रदेश का ऐतिहासिक बौद्ध स्थल सांची को वर्ष 2023 में भारत का पहला ‘सौर नगर’ घोषित किया गया। इसका उद्देश्य नगर को पूर्णतः सौर ऊर्जा पर संचालित करना है।
निष्कर्ष:
भारत का सौर क्षेत्र उसकी स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण प्रक्रिया के केंद्र में स्थित है तथा ‘पंचामृत’ प्रतिबद्धताओं— गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित 500 गीगावॉट क्षमता, नवीकरणीय स्रोतों से 50% ऊर्जा तथा वर्ष 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन लक्ष्य को प्राप्त करने में निर्णायक भूमिका निभा रहा है। ग्रिड अवसंरचना को सुदृढ़ करना, घरेलू विनिर्माण को सक्षम बनाना तथा नीतिगत समन्वय में सुधार करना इस क्षेत्र की पूर्ण क्षमता को साकार करने के लिये अत्यंत आवश्यक होगा। सतत विकास लक्ष्यों— SDG7 (सस्ती और प्रदूषण मुक्त ऊर्जा) एवं SDG13 (जलवायु परिवर्तन कार्रवाई) के अनुरूप, एक सशक्त, समुत्थानशील व समावेशी सौर पारितंत्र भारत की हरित प्रगति को गति दे सकता है तथा ऊर्जा सुरक्षा और जलवायु प्रतिबद्धताओं को भी सुदृढ़ कर सकता है।
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दृष्टि मेन्स प्रश्न तेज़ी से क्षमता-विस्तार के बावजूद भारत का सौर क्षेत्र अब भी परिचालनात्मक तथा अवसंरचनात्मक बाधाओं का सामना कर रहा है। देश में सौर ऊर्जा की सतत संवृद्धि सुनिश्चित करने हेतु प्रमुख समस्याओं का विश्लेषण कीजिये तथा उपयुक्त उपाय प्रस्तावित कीजिये। |
प्रायः पूछे जाने वाले प्रश्न:
प्रश्न 1. भारत के भविष्य के लिये सौर ऊर्जा क्यों महत्त्वपूर्ण है?
सौर ऊर्जा भारत को स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्यों की प्राप्ति में सहायता करती है, ऊर्जा आयात पर निर्भरता को कम करती है तथा ‘पंचामृत’ लक्ष्यों के अंतर्गत जलवायु प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में सहायक है।
प्रश्न 2. भारत की वर्तमान सौर ऊर्जा क्षमता की स्थिति क्या है?
भारत 130 गीगावाट से अधिक स्थापित सौर क्षमता को पार कर चुका है, जिससे यह विश्व के अग्रणी सौर ऊर्जा उत्पादक देशों में सम्मिलित हो गया है।
प्रश्न 3. सौर क्षेत्र के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?
प्रमुख चुनौतियों में भूमि अधिग्रहण से जुड़ी समस्याएँ, पारेषण (ट्रांसमिशन) अवरोध, ऊर्जा भंडारण की सीमाएँ तथा वितरण कंपनियों (DISCOM) की वित्तीय तनाव की स्थिति सम्मिलित हैं।
प्रश्न 4. सौर ऊर्जा भारत की जलवायु प्रतिबद्धताओं को किस प्रकार समर्थन देती है?
सौर ऊर्जा उत्सर्जन में कमी लाकर तथा स्वच्छ ऊर्जा तक अभिगम्यता का विस्तार करके पेरिस समझौते तथा सतत विकास लक्ष्यों (SDG) के अंतर्गत भारत के लक्ष्यों को प्रत्यक्ष रूप से समर्थन देती है।
प्रश्न 5. भारत के सौर ऊर्जा के भविष्य को सुदृढ़ करने के लिये क्या आवश्यक है?
मज़बूत ग्रिड अवसंरचना, किफायती ऊर्जा भंडारण समाधान, स्थिर नीतिगत कार्यढाँचा तथा घरेलू विनिर्माण क्षमताओं का विकास सतत वृद्धि के लिये अनिवार्य है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)
प्रिलिम्स
प्रश्न 1. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2016)
- अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (International Solar Alliance) को 2015 के संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में प्रारंभ किया गया था।
- इस गठबंधन में संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देश सम्मिलित हैं।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2
उत्तर: (a)
मेन्स
प्रश्न 1. भारत में सौर ऊर्जा की प्रचुर संभावनाएँ हैं, हालाँकि इसके विकास में क्षेत्रीय भिन्नताएँ हैं। विस्तृत वर्णन कीजिय। (2020)