भारत-ASEAN साझेदारी: हिंद-प्रशांत क्षेत्र का सुदृढ़ीकरण | 01 Nov 2025

यह एडिटोरियल 29/11/2025 को द हिंदू में प्रकाशित “​Missed opportunity: On India and ASEAN summit in Malaysia लेख पर आधारित है। यह लेख साझा इतिहास और रणनीतिक सामंजस्य पर आधारित ASEAN के साथ भारत के गहन होते संबंधों पर प्रकाश डालता है, साथ ही वर्ष 2025 के शिखर सम्मेलन में 21वीं सदी की एक सुदृढ़ साझेदारी बनाने के लिये व्यापार, समुद्री सुरक्षा, प्रौद्योगिकी एवं जन-जन संपर्क पर ठोस कार्रवाई के आह्वान पर प्रकाश डालता है।

वर्ष 1995 में आसियान (ASEAN) का संवाद साझेदार बनने के बाद से भारत ने वार्षिक शिखर सम्मेलनों को ऐसे महत्त्वपूर्ण मंच के रूप में देखा है, जो ऐतिहासिक रूप से जुड़े और बढ़ती भू-राजनीतिक महत्ता वाले क्षेत्र के साथ सहभागिता का अवसर प्रदान करते हैं। वर्ष 2025 के ASEAN-भारत शिखर सम्मेलन में भारतीय प्रधानमंत्री के वर्चुअल संबोधन ने महत्त्वाकांक्षी सहयोग की दिशा में बल देते हुए यह घोषणा की कि “21वीं सदी भारत और ASEAN की सदी” होगी तथा वर्ष 2026 को ‘समुद्री साझेदारी का वर्ष’ घोषित किया। इस साझेदारी को और गहनता प्रदान करने के लिये भारत और ASEAN को अब घोषणाओं से आगे बढ़कर ठोस कार्यवाही करने की आवश्यकता है जिसमें ASEAN-भारत वस्तु व्यापार समझौते (AITIGA) की समीक्षा में तीव्रता लाना, समुद्री सुरक्षा सहयोग को सुदृढ़ करना, रक्षा और प्रौद्योगिकी साझेदारी का विस्तार करना तथा जन-जन संपर्क को बढ़ावा देना सम्मिलित हैं, ताकि ऐतिहासिक संबंधों को एक सशक्त 21वीं सदी की साझेदारी में रूपांतरित किया जा सके।

भारत और ASEAN के बीच सामंजस्य के प्रमुख क्षेत्र कौन-से हैं?

  • भू-राजनीतिक और समुद्री सुरक्षा सहयोग: भारत और ASEAN दोनों ही नियम-आधारित, स्वतंत्र, खुले और समावेशी हिंद-प्रशांत क्षेत्र को बनाए रखने के लिये एक समान रणनीतिक दृष्टिकोण रखते हैं तथा आर्थिक समृद्धि एवं सुरक्षा के लिये समुद्री स्थिरता को सर्वोपरि मानते हैं। 
    • यह सामंजस्य क्षेत्रीय अखंडता और नौवहन की स्वतंत्रता (विशेष रूप से दक्षिण चीन सागर में) पर साझा चिंताओं से उत्प्रेरित है, जो ASEAN-नेतृत्व वाले तंत्रों की केंद्रीयता को सुदृढ़ करता है।
    • भारत की हिंद-प्रशांत महासागर पहल (IPOI), हिंद-प्रशांत पर ASEAN दृष्टिकोण (AOIP) के साथ घनिष्ठ रूप से जुड़ी हुई है, जो समुद्री क्षेत्र जागरूकता में व्यावहारिक सहयोग को बढ़ावा देती है।
      • वर्ष 2026 को ‘ASEAN-भारत समुद्री सहयोग वर्ष’ के रूप में घोषित करने से यह सामंजस्य संस्थागत हो जाएगा, जो पहले ASEAN-भारत समुद्री अभ्यास (AIME-2023) पर आधारित है।
  • आर्थिक एकीकरण और आपूर्ति शृंखला लचीलापन: दोनों पक्ष आर्थिक संपर्क बढ़ाने और संतुलित एवं समावेशी विकास प्राप्त करने के लिये अपने व्यापार समझौते की समीक्षा करने के लिये प्रतिबद्ध हैं, जिससे वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में विविधता आएगी तथा ये एकल-देशीय निर्भरता से मुक्त होंगी।
    • महामारी ने समुत्थानशील आपूर्ति शृंखलाओं की आवश्यकता को उजागर किया, जिसके परिणामस्वरूप विविधीकरण एक साझा रणनीतिक प्राथमिकता बन गया।
    • ASEAN-भारत वस्तु व्यापार समझौते (AITIGA) की चल रही समीक्षा, जिसके वर्ष 2025 तक पूरा होने की उम्मीद है, का उद्देश्य द्विपक्षीय व्यापार की पूरी क्षमता का दोहन करना है, जो सत्र 2023-24 में 121 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया। 
    • इस आर्थिक स्तंभ में फिज़िकल और डिजिटल संपर्क परियोजनाओं के लिये भारत की 1 बिलियन अमेरिकी डॉलर की ऋण सहायता की प्रतिबद्धता भी शामिल है।
  • डिजिटल परिवर्तन और वित्तीय प्रौद्योगिकी:  डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर (DPI), वित्तीय प्रौद्योगिकी तथा साइबर सुरक्षा का एकीकृत उपयोग क्षेत्र में समावेशी आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करने तथा शासन-व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने में मज़बूती से योगदान दे रहा है।
    • भारत का डिजिटल गवर्नेंस और वित्तीय समावेशन का सिद्ध मॉडल ASEAN क्षेत्र की तेज़ी से डिजिटल होती अर्थव्यवस्थाओं के लिये तत्काल, विस्तार योग्य समाधान प्रदान करता है।
    • वर्ष 2024 के शिखर सम्मेलन के बाद, भारत के एकीकृत भुगतान इंटरफेस (UPI) और सिंगापुर के PayNow लिंकेज पर सहयोग एक ऐतिहासिक उदाहरण है तथा संयुक्त डिजिटल परियोजनाओं का समर्थन करने के लिये वर्ष 2024 में ASEAN-भारत डिजिटल भविष्य निधि की शुरुआत की गई। इस पहल का उद्देश्य सीमा पार भुगतान एवं डिजिटल सेवा वितरण को बढ़ावा देना है।
  • भौतिक और डिजिटल संपर्क: संपर्क, एक्ट ईस्ट नीति का प्राथमिक प्रवर्तक है, जो निर्बाध भौतिक, डिजिटल और लोगों से लोगों के बीच संपर्क स्थापित करने पर केंद्रित है, जो पूर्वोत्तर भारत को ASEAN क्षेत्र के साथ एकीकृत करते हैं।
    • भू-रणनीतिक निकटता को आर्थिक लाभ में बदलने, व्यापार और पर्यटन को बढ़ावा देने के लिये त्वरित बुनियादी अवसंरचना विकास आवश्यक है।
    • भारत-म्याँमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग और कलादान मल्टी-मॉडल ट्रांज़िट ट्रांसपोर्ट परियोजना जैसी परियोजनाएँ केंद्रीय हैं, जिनमें भारत ASEAN में संपर्क एवं समुद्री बुनियादी अवसंरचना परियोजनाओं के लिये 1 बिलियन डॉलर की ऋण सीमा आवंटित कर रहा है।
    • वर्ष 2025 के ASEAN-भारत शिखर सम्मेलन में इनके शीघ्र पूरा होने की आवश्यकता पर बल दिया गया।
  • रक्षा सहयोग और आतंकवाद-निरोध: अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद, समुद्री डकैती और कट्टरपंथ से उत्पन्न खतरे की साझा धारणा ने रक्षा एवं सुरक्षा संवाद, क्षमता निर्माण और संयुक्त अभ्यासों में एक मज़बूत सामंजस्य को सुदृढ़ किया है।
    • यह सहयोग क्षेत्रीय स्थिरता बनाए रखने और गैर-पारंपरिक सुरक्षा चुनौतियों के समन्वित प्रत्युत्तरों के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
    • भारत 2024-2027 चक्र के लिये ASEAN रक्षा मंत्रियों की बैठक-प्लस (ADMM-प्लस) के अंतर्गत मलेशिया के साथ आतंकवाद-निरोध पर विशेषज्ञ कार्य समूह की सह-अध्यक्षता कर रहा है, जो गहन संस्थागत एकीकरण को दर्शाता है। फिलीपींस को BrahMos मिसाइल की बिक्री जैसे भारत के बढ़ते रक्षा निर्यात इस रणनीतिक संरेखण का और उदाहरण हैं।
  • सतत् विकास और हरित ऊर्जा परिवर्तन: दोनों संस्थाएँ जलवायु परिवर्तन की गंभीर चुनौती को पहचानती हैं और नवीकरणीय ऊर्जा, चक्रीय अर्थव्यवस्था एवं पर्यावरण के अनुकूल पर्यटन को बढ़ावा देकर सतत् विकास लक्ष्यों पर एकमत हैं।
    • यह क्षेत्र ऊर्जा सुरक्षा और पर्यावरणीय क्षरण से संबंधित साझा कमज़ोरियों का समाधान करता है।
    • सतत् पर्यटन पर वर्ष 2025 के संयुक्त नेताओं के वक्तव्य में पारिस्थितिक पर्यटन और हरित निवेश को बढ़ावा देने के लिये एक सहयोगात्मक दृष्टिकोण की रूपरेखा प्रस्तुत की गई है, जो ASEAN पावर ग्रिड के लिये भारत के समर्थन एवं अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) के तहत सहयोग को और सुदृढ़ करता है।
      • यह निम्न-कार्बन अवसंरचना और प्रौद्योगिकी साझाकरण पर केंद्रित है।
  • सामाजिक-सांस्कृतिक और लोगों के बीच संबंध: साझा विरासत (जैसे: रामायण परंपराएँ) में स्पष्ट गहरे ऐतिहासिक और सभ्यतागत संबंध, एक आधारभूत सॉफ्ट पावर के रूप में कार्य करते हैं जो आपसी समझ को सुदृढ़ करते हैं तथा स्थायी विश्वास को बढ़ावा देते हैं।
    • लोगों के बीच संपर्क को बढ़ाना दीर्घकालिक रूप से व्यापक रणनीतिक साझेदारी को बनाए रखने की कुंजी है।
    • भारत छात्रवृत्ति और प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रदान करता है और युवा आदान-प्रदान पर ध्यान केंद्रित करता है, जिसने हाल ही में वर्ष 2025 में नालंदा विश्वविद्यालय में दक्षिण पूर्व एशियाई अध्ययन केंद्र स्थापित करने का प्रस्ताव रखा है।
      • क्षमता निर्माण के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को समर्पित ASEAN-भारत विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विकास कोष द्वारा समर्थित किया जाता है।

भारत और ASEAN के बीच मतभेद के प्रमुख क्षेत्र कौन-से हैं? 

  • बढ़ता व्यापार असंतुलन और मुक्त व्यापार समझौते (FTA) में मतभेद: ASEAN-भारत वस्तु व्यापार समझौते (AITIGA) के परिणामस्वरूप भारत के व्यापार घाटे में असमान रूप से वृद्धि हुई है, जिससे पारस्परिक बाज़ार अभिगम्यता और समझौते की प्रभावशीलता पर चिंताएँ बढ़ गई हैं। 
    • भारतीय उद्योगों का तर्क है कि ये रियायतें विषम हैं, जिससे ASEAN से सस्ते आयात की अनुमति मिलती है जबकि उनके निर्यात को गैर-टैरिफ बाधाओं का सामना करना पड़ता है, जिससे वर्तमान AITIGA समीक्षा विवादास्पद हो जाती है।
    • ASEAN के साथ भारत का व्यापार घाटा वर्ष 2011 में 7.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वर्ष 2023 में लगभग 44 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया, जो भारत की निर्यात वृद्धि की तुलना में आयात वृद्धि में तेज़ी को दर्शाता है।
      • इस संरचनात्मक असमानता के साथ भारत का वर्ष 2019 में RCEP से हटना, व्यापारिक सतर्कता की ऐसी धारणा उत्पन्न करता है जो AITIGA की पुनर्समीक्षा प्रक्रिया को धीमा कर देता है।
  • प्रमुख संपर्क परियोजनाओं में धीमी प्रगति: भारत की प्रमुख भौतिक संपर्क पहल, जो पूर्वोत्तर क्षेत्र को दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ एकीकृत करने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं, राजनीतिक अस्थिरता, सुरक्षा चिंताओं एवं प्रशासनिक बाधाओं के कारण काफी विलंब का सामना कर रही हैं। बुनियादी अवसंरचना की समय-सीमा को पूरा करने में यह विफलता भारत की विश्वसनीयता को कम करती है और उसकी एक्ट ईस्ट नीति के ठोस प्रभाव को कमज़ोर करती है।
    • भारत-म्याँमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग और कलादान मल्टी-मॉडल ट्रांज़िट ट्रांसपोर्ट परियोजना, दोनों में वर्षों से विलंब हो रहा है, जिसका मुख्य कारण वर्ष 2021 के सैन्य तख्तापलट के बाद म्याँमार में संघर्ष और सुरक्षा संबंधी मुद्दे हैं।
    • कलादान परियोजना का सड़क निर्माण घटक अधूरा है, जिससे क्षेत्रीय लॉजिस्टिक्स कार्य ठप पड़ा है।
  • चीन पर ASEAN की आर्थिक निर्भरता: दक्षिण-पूर्व एशिया में चीन का गहन आर्थिक प्रभाव एक बड़ी रणनीतिक बाधा है, जो इस बात को सीमित करती है कि ASEAN देश बीज़िंग को नाराज़ करने वाले मुद्दों पर भारत के साथ किस हद तक तालमेल बिठाने को तैयार हैं।
    • ASEAN को चीन पर अपनी आर्थिक निर्भरता और भारत जैसे वैकल्पिक साझेदारों की अपनी रणनीतिक आवश्यकता के बीच संतुलन बनाना होगा।
    • चीन और ASEAN ने अमेरिकी टैरिफ के बीच बाज़ार अभिगम्यता बढ़ाने के लिये एक उन्नत मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं, जिससे विभिन्न क्षेत्रों में व्यापार को बढ़ावा मिलेगा।
      • इस असंतुलन के कारण अधिकांश ASEAN देश भारत के साथ (विशेष रूप से दक्षिण चीन सागर के संबंध में) गहन रणनीतिक गठबंधन की तुलना में आर्थिक तटस्थता को प्राथमिकता देते हैं।
  • रणनीतिक अस्पष्टता और QUAD कारक: कई ASEAN सदस्य QUAD (अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ) व अन्य उभरते सुरक्षा समूहों में भारत की भागीदारी को लेकर सतर्क हैं, क्योंकि उन्हें डर है कि इस तरह के कार्यढाँचे क्षेत्रीय संरचना में ASEAN की केंद्रीयता को कमज़ोर कर सकते हैं। 
    • यह ASEAN की गुटनिरपेक्षता के प्रति पारंपरिक प्राथमिकता और महाशक्तियों की प्रतिद्वंद्विता में शामिल होने की उसकी अनिच्छा को दर्शाता है।
    • हालाँकि भारत ASEAN के हिंद-प्रशांत क्षेत्र के दृष्टिकोण (AOIP) का समर्थन करता है, लेकिन ASEAN देश नियम-आधारित व्यवस्था के प्रति अपनी प्रतिबद्धता में भिन्न हैं और दक्षिण चीन सागर पर भारत के रुख का कोई सामूहिक समर्थन नहीं है।
      • केवल कुछ अग्रणी देश, जैसे: वियतनाम और फिलीपींस, सक्रिय रूप से एक मज़बूत भारतीय रणनीतिक भूमिका चाहते हैं।
  • म्याँमार संकट पर भिन्न दृष्टिकोण: म्याँमार की सत्तारूढ़ सैन्य सरकार के साथ व्यावहारिक संबंध बनाए रखने की भारत की नीति, ASEAN द्वारा पाँच-सूत्री सहमति (5PC) के माध्यम से शासन पर दबाव बनाने के सामूहिक प्रयासों के विपरीत है, जिससे कूटनीतिक संघर्ष उत्पन्न होता है और क्षेत्रीय सामंजस्य कमज़ोर होता है।
    • भारत एक मज़बूत लोकतंत्र समर्थक रुख़ की तुलना में सीमा सुरक्षा और संपर्क को प्राथमिकता देता है।
      • यह विचलन साझा सीमा को स्थिर करने के लिये एक एकीकृत क्षेत्रीय प्रतिक्रिया को जटिल बनाता है।
  • डिजिटल गवर्नेंस और डेटा संप्रभुता मतभेद: डिजिटल व्यापार नियमों, डेटा शासन मानदंडों और साइबर सुरक्षा नीतियों में अंतर उच्च-विकासशील डिजिटल अर्थव्यवस्था में गहन सहयोग में बाधा डालते हैं, जहाँ भारत के पास मज़बूत तुलनात्मक लाभ हैं।
    • डेटा सॉवरेनिटी पर भारत का ज़ोर कई ASEAN सदस्यों द्वारा पसंद किये जाने वाले अधिक खुले डिजिटल व्यापार दृष्टिकोण के विपरीत है।
    • डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम (DPDP), 2023 के माध्यम से डेटा स्थानीयकरण पर भारत का ज़ोर, सिंगापुर जैसी ASEAN अर्थव्यवस्थाओं के साथ संघर्ष उत्पन्न करता है, जो मुक्त सीमा-पार डेटा फ्लो का समर्थन करती हैं।
      • यह नियामकीय असंतुलन एक निर्बाध, क्षेत्र-व्यापी फिनटेक और ई-कॉमर्स पारिस्थितिकी तंत्र की दिशा में प्रगति को धीमा कर देता है।
  • राजनयिक और सांस्कृतिक दृश्यता में कमी: उन्नत व्यापक रणनीतिक साझेदारी के बावजूद, ASEAN के साथ भारत के राजनयिक और सांस्कृतिक जुड़ाव को प्रायः अन्य संवाद साझेदारों की तुलना में असंगत माना जाता है।
    • यह असमान संपर्क धारणा के अंतर को बढ़ाता है और लोगों के बीच विश्वास की गहनता को सीमित करता है।
    • मेज़बान देशों के नेताओं ने कुआलालंपुर में वर्ष 2025 के ASEAN-भारत शिखर सम्मेलन में भारतीय प्रधानमंत्री की लगभग अनुपस्थिति पर ध्यान दिया, जबकि अन्य प्रमुख विश्व नेताओं की उपस्थिति इसके विपरीत थी।
    • इसके अतिरिक्त, इस क्षेत्र में भारत की रणनीतिक महत्त्वाकांक्षाओं के पैमाने के सापेक्ष प्रमुख सांस्कृतिक और शैक्षिक पहलों के लिये वित्तपोषण मामूली बना हुआ है।

ASEAN के साथ संबंध बढ़ाने के लिये भारत क्या उपाय अपना सकता है?

  • एक परियोजना कार्यान्वयन इकाई की स्थापना: भारत को ASEAN क्षेत्र में प्रमुख संपर्क और विकास परियोजनाओं की देख-रेख के लिये विदेश मंत्रालय के अंतर्गत एक समर्पित, उच्च-स्तरीय परियोजना कार्यान्वयन इकाई (PIU) की स्थापना करनी चाहिये, जिसे वित्तीय और परिचालन संबंधी शक्तियाँ सौंपी जाएँ।
    • यह ‘Act Fast (तेज़ी से कार्य करें)’ तंत्र अंतर-मंत्रालयी विलंब और प्रशासन-संबंधी बाधाओं को दूर करेगा, जिनसे त्रिपक्षीय राजमार्ग जैसी परियोजनाओं में बाधा उत्पन्न हुई है।
    • PIU के अधिदेश में वास्तविक काल में जोखिम मूल्यांकन और मेज़बान देशों के साथ सुरक्षा समन्वय शामिल होना चाहिये ताकि निरंतर ज़मीनी प्रगति सुनिश्चित हो सके, जिससे भारत एक विश्वसनीय और तीव्र विकास भागीदार बन सके।
  • डिजिटल गवर्नेंस टेम्पलेट की शुरुआत: भारत को अपने सफल डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर (DPI) स्टैक पर आधारित एक डिजिटल गवर्नेंस टेम्पलेट सक्रिय रूप से पेश करना चाहिये, लेकिन इसे ASEAN के विविध नियामक परिदृश्य के अनुकूल बनाया जाना चाहिये।
    • इसमें सिंगापुर से परे अंतर-संचालनीय सीमा-पार भुगतान प्रणालियाँ, कौशल उन्नयन के लिये एक एकीकृत ASEAN-भारत डिजिटल कौशल कार्यढाँचा तथा राष्ट्रीय सुरक्षा को डिजिटल व्यापार उदारीकरण के साथ संतुलित करने वाला एक मानकीकृत डेटा सॉवरेनिटी और साइबर सिक्योरिटी फ्रेमवर्क शामिल होना चाहिये।
    • ऐसे प्रयास भारत को ग्लोबल साउथ के लिये स्मार्ट-टेक कूटनीति में अग्रणी के रूप में स्थापित करेंगे।
  • महत्त्वपूर्ण खनिजों और आपूर्ति शृंखला समझौतों को औपचारिक रूप देना: आर्थिक सुरक्षा को मज़बूत करने तथा आपूर्ति शृंखला की कमज़ोरियों का मुकाबला करने के लिये, भारत को इंडोनेशिया एवं वियतनाम जैसे संसाधन-समृद्ध ASEAN सदस्यों के साथ एक रणनीतिक खनिज और प्रौद्योगिकी आपूर्ति शृंखला समुत्थानशीलता संधि का प्रस्ताव करना चाहिये।
    • यह संधि ASEAN में डाउनस्ट्रीम प्रसंस्करण सुविधाओं में भारतीय निवेश द्वारा समर्थित, दुर्लभ मृदा तत्त्वों और अर्द्धचालकों की विश्वसनीय सोर्सिंग सुनिश्चित करेगी।
    • संयुक्त मूल्य-शृंखला निर्माण को बढ़ावा देकर, यह मौजूदा निर्भरताओं के लिये एक ठोस विकल्प प्रदान करेगा और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में एक मज़बूत आर्थिक सुरक्षा कार्यढाँचे को सुदृढ़ करेगा।
  • ब्लू इकॉनमी और नौसेना लॉजिस्टिक्स सहायता को संस्थागत बनाना: भारत को मेरीटाइम कोऑपरेशन- 2026 को अपने पूर्वी बंदरगाहों और चुनिंदा ASEAN सुविधाओं पर निरंतर नौसेना लॉजिस्टिक्स और MRO (रख-रखाव, मरम्मत और ओवरहाल) सहायता प्रदान करते हुए एक स्थायी संस्थागत कार्यढाँचे में विस्तारित करना चाहिये।
    • एक समर्पित ब्लू इकॉनमी और समुद्री प्रौद्योगिकी अनुसंधान कोष गहन समुद्र में खनन, संधारणीय मत्स्यन एवं गैर-पारंपरिक समुद्री सुरक्षा में सहयोग का समर्थन कर सकता है।
    • यह हिंद महासागर और बंगाल की खाड़ी में एक निवल सुरक्षा प्रदाता के रूप में भारत की भूमिका को सुदृढ़ करेगा।
  • AITIGA समीक्षा अधिदेश का उन्नयन: चल रही AITIGA समीक्षा को टैरिफ चर्चाओं से आगे बढ़कर गहन संरचनात्मक सुधारों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये। इसमें IT, स्वास्थ्य सेवा और इंजीनियरिंग पेशेवरों के लिये पारस्परिक मान्यता समझौते (MRA) शामिल होने चाहिये तथा व्यापार विचलन को रोकने के लिये मूल नियमों (RoO) के सत्यापन को सुव्यवस्थित करना चाहिये।
    • भारत को संतुलित व्यापार सुगमता के प्रति प्रतिबद्धता प्रदर्शित करते हुए तथा भारतीय निर्यातकों के सामने आने वाली गैर-टैरिफ बाधाओं को दूर करते हुए, ASEAN को पारस्परिक एकल-खिड़की सीमा शुल्क निकासी की भी पेशकश करनी चाहिये।
  • समर्पित ASEAN-भारत नीति निधि की स्थापना: भारत को एक स्थायी ASEAN-भारत नीति निधि बनानी चाहिये, जो मौजूदा सरकारी निधियों से अलग हो और जिसका प्रबंधन राजनयिकों, शिक्षाविदों एवं व्यावसायिक नेताओं के एक संयुक्त बोर्ड द्वारा किया जाए।
    • यह निधि ट्रैक 1.5 और ट्रैक 2 संवादों को वित्तपोषित करेगी, भारतीय विश्वविद्यालयों में ASEAN भाषा प्रशिक्षण को बढ़ावा देगी तथा शहरी संधारणीयता एवं जलवायु-परिवर्तन कार्रवाई जैसी साझा प्राथमिकताओं पर एक युवा नवाचार चुनौती को प्रायोजित करेगी, जिससे दीर्घकालिक सामाजिक-सांस्कृतिक संधारणीयता सुनिश्चित होगी।
  • हरित ग्रिड एकीकरण पहल का नेतृत्व: भारत को ग्रिड आधुनिकीकरण में तकनीकी सहायता, हरित ऊर्जा गलियारों के निर्माण और बैटरी भंडारण एवं EV अवसंरचना मानकों पर सहयोग के माध्यम से ASEAN पावर ग्रिड को तीव्रता से आगे बढ़ाने में सहायता करने के लिये नवीकरणीय ऊर्जा एकीकरण में अपनी विशेषज्ञता का लाभ उठाना चाहिये।
    • हरित कूटनीति का यह रूप साझा जलवायु लक्ष्यों को आगे बढ़ाएगा तथा भारत को ASEAN के एक स्थायी एवं ऊर्जा-सुरक्षित भविष्य की ओर संक्रमण में एक महत्त्वपूर्ण भागीदार के रूप में स्थापित करेगा।

निष्कर्ष:

ASEAN-भारत साझेदारी इस समय एक निर्णायक मोड़ पर खड़ी है, जहाँ साझा इतिहास को अब साझा भविष्य में रूपांतरित करने की आवश्यकता है। नीतिगत संकल्पों को ठोस क्रियान्वयन में बदलकर दोनों पक्ष विश्वास, प्रौद्योगिकी तथा पारदर्शिता पर आधारित एक समुत्थानशील हिंद-प्रशांत क्षेत्र का निर्माण कर सकते हैं। आगे की राह समानान्तर प्रयासों में नहीं, बल्कि समन्वित प्रगति में निहित है।
वास्तविक साझेदारियाँ भौगोलिक निकटता पर नहीं, बल्कि उद्देश्य की समानता पर आधारित होती हैं।”

दृष्टि मेन्स प्रश्न: 

प्रश्न. ASEAN के साथ भारत की साझेदारी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंधों से हिंद-प्रशांत क्षेत्र में एक रणनीतिक सामंजस्य में विकसित हुई है, फिर भी उद्देश्य और क्रियान्वयन के बीच अंतराल बने हुए हैं। भारत व ASEAN के बीच सामंजस्य एवं मतभेद के प्रमुख क्षेत्रों पर चर्चा कीजिये तथा साझेदारी को अधिक परिणाम-उन्मुख और समुत्थानशील कार्यढाँचे में परिणत करने के उपाय प्रस्तावित कीजिये।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ) 

प्रिलिम्स 

प्रश्न 1. भारत की ‘लुक ईस्ट नीति’ के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:  (2011)

  1. भारत का उद्देश्य पूर्वी एशियाई मामलों में स्वयं को एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्रीय अभिकर्त्ता के रूप में स्थापित करना है।
  2. भारत शीत युद्ध की समाप्ति से उत्पन्न शून्य को भरना चाहता है।
  3. भारत दक्षिण-पूर्व और पूर्वी एशिया में अपने पड़ोसियों के साथ ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंधों को पुनर्स्थापित करना चाहता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1

(b) केवल 1 और 3

(c) केवल 3

(d) 1, 2 और 3   

उत्तर: (d)


मेन्स

प्रश्न 1. भारत-प्रशांत महासागर क्षेत्र में चीन की महत्त्वाकांक्षाओं का मुकाबला करना नई त्रि-राष्ट्र साझेदारी AUKUS का उद्देश्य है। क्या यह इस क्षेत्र में मौजूदा साझेदारी का स्थान लेने जा रहा है? वर्तमान परिदृश्य में, AUKUS की शक्ति और प्रभाव की विवेचना कीजिये। (2021)