सौर ऊर्जा हेतु पर्याप्त निवेश सब्सिडी | 31 Aug 2021

प्रिलिम्स के लिये:

पीएम कुसुम योजना, स्पार्क कार्यक्रम, शून्य-कार्बन फुटप्रिंट 

मेन्स के लिये:

पर्याप्त निवेश सब्सिडी (SIP) से मिलने वाले लाभ एवं इसकी आवश्यकता 

चर्चा में क्यों?   

हाल के वर्षों में भारत सरकार द्वारा पीएम कुसुम योजना, सूर्यमित्र कौशल विकास कार्यक्रम, स्पार्क कार्यक्रम (SPaRC Program) आदि जैसी कई सौर सिंचाई योजनाएंँ शुरू की गई हैं। 

  • ये योजनाएंँ पर्याप्त निवेश सब्सिडी (Substantial Investment Subsidies- SIP) प्रदान करती हैं तथा किसानों को भूजल और ऊर्जा के संरक्षण, उनकी आय बढ़ाने एवं अधिक कुशल तरीके से सिंचाई करने हेतु प्रोत्साहित करती हैं।
  • SIPs कम कार्बन फुटप्रिंट, लगातार ऊर्जा की उपलब्धता, शून्य ईंधन लागत और कम परिचालन लागत आधारित है। हालाँकि इन योजनाओं से जुड़े कुछ मुद्दे भी हैं।

प्रमुख बिंदु 

  • पर्याप्त निवेश सब्सिडी के बारे में:
    • भारत सरकार पीएम कुसुम योजना के माध्यम से पर्याप्त निवेश सब्सिडी की पेशकश कर सौर सिंचाई पंपों को बढ़ावा दे रही है।
    • SIP का उद्देश्य किसानों को सोलर पंप और बिजली संयंत्रों की खरीद और उन्हें स्थापित करने हेतु सब्सिडी प्रदान करना है।
    • किसान सिंचाई की ज़रूरतों को पूरा करने के लिये नए तरीकों से सौर ऊर्जा का उपयोग करने में सक्षम होंगे तथा अतिरिक्त सौर ऊर्जा को विद्युत वितरण कंपनियों (DISCOMs) को पूर्व-निर्धारित टैरिफ पर बेचा जाएगा।
  • आवश्यकता: 
    • भारतीय कृषि क्षेत्र में भारी विद्युत सब्सिडी ने सिंचाई-ऊर्जा गठजोड़ (Irrigation-Energy Nexus) को विकसित किया है।
      • कृषि क्षेत्र में बिजली की आपूर्ति सब्सिडी दरों पर की जाती है।
    • सिंचाई-ऊर्जा के मध्य यह साझेदारी मुख्य रूप से घटते भूजल और बिजली वितरण कंपनियों के बढ़ते कर्ज़ के बोझ के कारण उत्पन्न हुआ है। 
      • SIP सिंचाई-ऊर्जा एवं ऊर्जा के मध्य उत्पन्न इस गठजोड़ को समाप्त करने और अन्य लाभ प्रदान करने में मदद कर सकता है।
  • पर्याप्त निवेश सब्सिडी (SIP) में मिलने वाले लाभ: 
    • पर्यावरण अनुकूल दृष्टिकोण: SIPs जीवाश्म ईंधन आधारित बिजली उत्पादन पर निर्भरता को कम करके भूजल अर्थव्यवस्था में शून्य-कार्बन फुटप्रिंट  (Zero-Carbon Footprint) की ओर बढ़ने में मदद करेगा। 
    • जल और विद्युत सुरक्षा प्रदान करना: पंजाब से तमिलनाडु तक फैले पश्चिम-दक्षिण गलियारे में गंगा-ब्रह्मपुत्र बेल्ट की तुलना में भूजल की उपलब्धता कम है। 
      • इस कॉरिडोर में किसानों को भी लगातार बिजली कटौती, कम वोल्टेज संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ता है और रात में ही स्थिर बिजली मिलती है।
      • पश्चिम-दक्षिण गलियारे को SIPs शुरू करने से काफी लाभ होगा क्योंकि इस क्षेत्र में कई सौर हॉटस्पॉट हैं और सूर्य प्रकाश भी अत्यधिक मात्रा में उपलब्ध है।
    • DiSCOMs के बोझ को कम करना: यह DISCOM के सब्सिडी बोझ को 30,000-35,000 रुपए प्रतिवर्ष प्रति SIP से राहत देने में भी मदद करेगा। 
    • सौर ऊर्जा विकास हेतु अनुकूल स्थिति: सौर फोटोवोल्टिक [PV] सेल की गिरती कीमत के कारण अब SIP अधिक किफायती है।
      • डीज़ल की कीमतों में हालिया वृद्धि ने स्वाभाविक रूप से सिंचाई की लागत में वृद्धि की है।
      • इसलिये SIP शुरू करने से ग्रामीण विद्युत नेटवर्क बिछाने की आवश्यकता पर अंकुश लगाते हुए कृषि विकास को बढ़ावा मिल सकता है।
  • संबंधित चुनौतियाँ:
    • भूजल का अत्यधिक दोहन: SIP का एकमात्र संभावित दोष भूजल के अत्यधिक दोहन का जोखिम हो सकता है क्योंकि कॉरिडोर में SIP की शुरुआत के बाद मांग आधारित सस्ती बिजली हमेशा उपलब्ध रहेगी।
    • मध्यम और बड़े स्तर के किसानों के पक्ष में: सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिये शुरू की गई योजनाओं में उन किसानों को प्राथमिकता दी जाती है जो पहले से ही पानी की बचत करने वाली सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली का उपयोग कर रहे हैं।
    • उच्च प्रारंभिक लागत: सब्सिडी के बावजूद प्रारंभिक पूंजी निवेश अधिक रहता है, जिससे SIP की व्यवहार्यता पर सवाल उठते हैं। 
      • इसके अलावा सौर पीवी सिस्टम के संचालन और रखरखाव के लिये प्रशिक्षित पेशेवरों और मशीनी घटकों की आवश्यकता होती है, जिनका ग्रामीण क्षेत्रों में मिलना मुश्किल हो सकता है।
    • महंँगा ग्रिड कनेक्शन: ग्रिड कनेक्शन से जुड़ी वित्तीय लागत बहुत अधिक हो सकती है।
      • ‘सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरनमेंट’ के अनुसार, बिजली ग्रिड में 100 किलोवाट का सौर ऊर्जा से चलने वाला सिस्टम स्थापित करने में लगभग 85 लाख रुपए का खर्च आता है।
      • इसके कारण सिंचाई-ऊर्जा संयोजन को हल करने के लिये SIP अच्छा विकल्प नहीं हो सकता है।

आगे की राह:

  • कुशल जल प्रबंधन प्रथाओं और SIP के लाभों के बारे में जागरूकता कार्यक्रम किसानों के मौजूदा नेटवर्क के माध्यम से शुरू किये जाने चाहिये।
  • छोटे और सीमांत किसानों के बीच संयुक्त देयता समूहों (JLG) को बढ़ावा देने के अलावा मौजूदा सौर सिंचाई योजनाओं में उनकी समावेशिता भी सुनिश्चित की जानी चाहिये।

स्रोत-डाउन टू अर्थ