‘स्टेट ऑफ फूड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रिशन इन द वर्ल्ड’ रिपोर्ट | 19 Jul 2021

प्रिलिम्स के लिये:

संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन, कृषि विकास हेतु अंतर्राष्ट्रीय कोष, संयुक्त राष्ट्र बाल कोष, विश्व खाद्य कार्यक्रम, विश्व स्वास्थ्य संगठन

मेन्स के लिये:

कोविड-19 महामारी से प्रेरित आय में हानि के प्रभाव का विश्लेष्णात्मक अध्ययन

चर्चा में क्यों?

'द स्टेट ऑफ फूड सिक्योरिटी न्यूट्रिशन इन द वर्ल्ड 2021 (SOFI)' शीर्षक वाली एक रिपोर्ट ने भोजन के सेवन और कुपोषण पर कोविड-19 महामारी से प्रेरित आय में हानि के प्रभाव का अध्ययन किया है।

प्रमुख बिंदु:

  • विकासशील और अविकसित दुनिया पर प्रभाव: खाद्य सुरक्षा पर कोविड-19 का प्रभाव लगभग सभी निम्न एवं मध्यम आय वाले देशों पर अधिक पड़ा है।
    • इसके अलावा वे देश जहाँ महामारी नियंत्रण उपाय के परिणामस्वरूप जलवायु संबंधी आपदाएँ या संघर्ष या आर्थिक मंदी के साथ-साथ दोनों थे, उन्हें सबसे अधिक नुकसान हुआ।
    • दुनिया के आधे से अधिक कुपोषित एशिया (418 मिलियन) में और एक-तिहाई से अधिक अफ्रीका (282 मिलियन) में पाए जाते हैं। 
    • वर्ष 2019 की तुलना में वर्ष 2020 में अफ्रीका में लगभग 46 मिलियन अधिक, एशिया में 57 मिलियन अधिक और लैटिन अमेरिका एवं कैरिबियन में लगभग 14 मिलियन अधिक लोग भूख से प्रभावित थे।
  • सतत् विकास लक्ष्यों से चूकने की संभावना: वैश्विक स्तर पर वर्ष 2030 तक सतत् विकास लक्ष्यों (गरीबी उन्मूलन- एसडीजी 1 और भूख- एसडीजी 2) को प्राप्त करने के लिये किसी भी पोषण संकेतक के संदर्भ में विश्व प्रतिबद्धताएँ संतोषजनक नहीं हैं।
    • यह इस निष्कर्ष में परिलक्षित होता है कि पाँच वर्षों तक अपरिवर्तित रहने के बाद अल्पपोषण की व्यापकता केवल एक वर्ष में 1.5 प्रतिशत अंक बढ़ गई।
    • कोविड-19 महामारी के दौरान आवश्यक पोषण हस्तक्षेपों में व्यवधान और आहार संबंधी व्यवहारों पर नकारात्मक प्रभावों के कारण कुपोषण को खत्म करने के प्रयासों को चुनौती मिली है।
  • स्वस्थ भोजन तक पहुंच में समस्याएँ: वर्ष 2019 की तुलना में वर्ष 2020 में लगभग 11.8 करोड़ अधिक लोगों को भूख का सामना करना पड़ा, जो कि तकरीबन 18% की वृद्धि है।
    • आय में कमी के कारण स्वस्थ भोजन के लिये लोगों के सामर्थ्य में उल्लेखनीय गिरावट आई है।
    • दुनिया में लगभग तीन में से एक व्यक्ति (लगभग 3 बिलियन) के पास वर्ष 2020 में पर्याप्त भोजन नहीं था।
    • खाद्य प्रणालियों को प्रभावित करने वाले बाह्य कारक (जैसे- संघर्ष या जलवायु प्रभाव) और आंतरिक कारक (जैसे कम उत्पादकता एवं अक्षम खाद्य आपूर्ति शृंखला) पौष्टिक खाद्य पदार्थों की लागत को बढ़ा रहे हैं, जो कि कम आय के साथ-साथ स्वस्थ भोजन तक पहुँच की समस्या और गंभीर कर रही है। 
  • लैंगिक असमानता: पुरुषों और महिलाओं के बीच भोजन की पहुँच में काफी अंतर दिखाई देता है।
    • वर्ष 2020 में खाद्य-सुरक्षा के मामले में प्रत्येक 10 पुरुषों की तुलना में 11 महिलाएँ असुरक्षित थीं, जबकि वर्ष 2019 में यह संख्या 10.6 से अधिक थी।
    • दुनिया में प्रजनन आयु की लगभग एक-तिहाई महिलाएँ एनीमिया से पीड़ित हैं।

भारतीय परिदृश्य

कुपोषण की स्थिति:

  • वर्ष 2018-20 के दौरान भारत में कुल आबादी के बीच कुपोषण का प्रसार 15.3% था, जो कि इसी अवधि के दौरान वैश्विक औसत (8.9%) की तुलना में काफी खराब प्रदर्शन है।
    • हालाँकि इसे वर्ष 2004-06 (21.6%) की तुलना में एक सुधार के रूप में देखा जा सकता है।
  • वर्ष 2020 में पाँच वर्ष से कम आयु के लगभग 17.3% बच्चे ऊँचाई की तुलना में कम वज़न के साथ ‘वेस्टेड ग्रोथ’ का सामना कर रहे थे, जो कि अन्य देशों की तुलना में सबसे अधिक है।
    • लगभग 31% बच्चों की उम्र की तुलना में लंबाई कम है (स्टंटेड), जो कि वर्ष 2012 में 41.7% की तुलना में बेहतर स्थिति है, किंतु यह अभी भी दुनिया के कई अन्य देशों की तुलना में काफी अधिक है।
  • भारत में वयस्क आबादी में मोटापे के मामले 2012 के 3% से बढ़कर 2016 में 3.9% हो गए हैं।
  • प्रजनन आयु की महिलाओं में एनीमिया का प्रसार वर्ष 2012 के 53.2% से वर्ष 2019 में 53% हो गया जिसमें मामूली सुधार हुआ है।

संबंधित पहलें: 

आगे की राह:

  • रिपोर्ट में निम्नलिखित छह तरीके बताए गए हैं जिनके माध्यम से खाद्य असुरक्षा और कुपोषण के प्रमुख कारकों से निपटने के लिये खाद्य प्रणालियों को बदला जा सकता है तथा स्थायी एवं समावेशी रूप से सस्ता व स्वस्थ आहार तक सभी की पहुँच सुनिश्चित की जा सकती है।
    • संघर्षरत क्षेत्रों में मानवतावादी, विकास और शांति निर्माण नीतियों को एकीकृत करने का प्रयास करना- उदाहरण के लिये परिवारों को भोजन के लिये संपत्ति बेचने से रोकने हेतु सामाजिक सुरक्षा उपाय अपनाना।
    •  छोटे किसानों को जलवायु जोखिम बीमा और पूर्वानुमान-आधारित वित्तपोषण तक व्यापक पहुँच प्रदान करके खाद्य प्रणालियों में जलवायु लचीलापन को बढ़ाना
    • महामारी या खाद्य मूल्य अस्थिरता के प्रभाव को कम करने के लिये इन-काइंड या कैश सपोर्ट प्रोग्राम के माध्यम से आर्थिक प्रतिकूलता के प्रति कमज़ोर वर्ग के लोगों को मज़बूती प्रदान करना
    • पौष्टिक खाद्य पदार्थों की लागत को कम करने के लिये आपूर्ति शृंखलाओं में हस्तक्षेप करना- बायोफोर्टिफाइड फसलों के रोपण को प्रोत्साहित कर फल और सब्जी उत्पादकों के लिये बाजारों तक पहुँच आसान बनाना।
    • गरीबी और संरचनात्मक असमानताओं से निपटना- उदाहरण के लिये प्रौद्योगिकी हस्तांतरण एवं प्रमाणन कार्यक्रमों के माध्यम से गरीब समुदायों में खाद्य मूल्य शृंखला को बढ़ावा देना।
    • खाद्य प्रणाली को मज़बूत करना और उपभोक्ता व्यवहार को बदलना- उदाहरण के लिये औद्योगिक ट्रांस वसा को समाप्त करना और खाद्य आपूर्ति में नमक तथा चीनी की मात्रा को कम करना या बच्चों को खाद्य विपणन के नकारात्मक प्रभाव से बचाना।

स्रोत: डाउन टू अर्थ