SRVA और रुपए का अंतर्राष्ट्रीयकरण | 18 Aug 2025
प्रिलिम्स के लिये: भारतीय रिज़र्व बैंक, विशेष रुपए वोस्ट्रो खाते, ट्रेजरी बिल, सरकारी प्रतिभूतियाँ, एकीकृत भुगतान इंटरफेस
मेन्स के लिये: भारतीय मुद्रा के अंतर्राष्ट्रीयकरण के लाभ और चुनौतियाँ, वृद्धि एवं विकास
चर्चा में क्यों?
भारतीय रिज़र्व बैंक ने विशेष रुपए वोस्ट्रो खाते (SRVA) रखने वाले अनिवासियों को अधिशेष शेष राशि को सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश करने की अनुमति दी है। साथ ही, बैंकों के लिये SRVA खोलने की पूर्व स्वीकृति की आवश्यकता भी हटा दी है। ये कदम रुपए में व्यापार को बढ़ावा देने और भारतीय रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण के उद्देश्य से उठाए गए हैं।
विशेष रुपए वोस्ट्रो खाते (SRVA) क्या हैं?
- परिचय: SRVA ऐसे खाते हैं जो विदेशी संस्थाओं द्वारा भारतीय बैंकों में खोले जाते हैं। ये भारतीय रुपए में अंतर्राष्ट्रीय व्यापारिक लेनदेन के निपटान को सुगम बनाते हैं।
- वर्ष 2022 में शुरू की गई SRVA व्यवस्था निर्यातकों और आयातकों को सीधे रुपए में व्यापार का बीजक जारी करने तथा उसका निपटान करने की सुविधा प्रदान करती है।
- SRVA के माध्यम से रुपए को बढ़ावा देने हेतु RBI के उपाय: अब SRVA रखने वाली अनिवासी संस्थाएँ अपनी रुपए की अधिशेष शेष राशि को केंद्र सरकार की प्रतिभूतियों (G-secs) और ट्रेजरी बिलों में निवेश कर सकती हैं।
- पहले अधिकृत डीलर (AD) बैंकों को विदेशी संवाददाता बैंकों के लिये SRVA खोलने से पूर्व RBI की अनुमति लेनी पड़ती थी। अब AD बैंक बिना RBI की अनुमति लिये स्वयं SRVA खोल सकते हैं।
- इसका उद्देश्य रुपए-आधारित व्यापार निपटान के परिचालन में तेज़ी लाना है।
- पहले अधिकृत डीलर (AD) बैंकों को विदेशी संवाददाता बैंकों के लिये SRVA खोलने से पूर्व RBI की अनुमति लेनी पड़ती थी। अब AD बैंक बिना RBI की अनुमति लिये स्वयं SRVA खोल सकते हैं।
- महत्त्व: भारतीय रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण को बढ़ावा देता है। द्विपक्षीय व्यापार में अमेरिकी डॉलर जैसी कठोर मुद्राओं पर निर्भरता कम करता है।
- अधिशेष रुपए को भारतीय सरकारी प्रतिभूतियों में सार्थक निवेश हेतु प्रेरित करता है।
- अधिशेष रुपए को भारतीय सरकारी प्रतिभूतियों में सार्थक निवेश हेतु प्रेरित करता है।
रुपए का अंतर्राष्ट्रीयकरण क्या है?
- परिचय: रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण का अर्थ है अमेरिकी डॉलर जैसी प्रमुख विदेशी मुद्रा में अनिवार्य रूपांतरण के बिना सीमा पार व्यापार, निवेश और वित्तीय लेनदेन में इसके उपयोग को बढ़ावा देना।
- लाभ:
- संवेदनशीलता में कमी: डॉलर जैसी विदेशी मुद्राओं पर कम निर्भरता अर्थव्यवस्था को वैश्विक संकटों और मुद्रा की कमी से बचाती है।
- भारतीय रुपए में व्यापार निपटाने से हेजिंग लागत कम होती है और व्यवसायों को मुद्रा अस्थिरता से सुरक्षा मिलती है, जिससे प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ती है।
- विदेशी मुद्रा भंडार का दबाव कम: बड़े पैमाने पर USD/EUR भंडार रखने की आवश्यकता घटती है, जिससे संसाधन अन्य प्राथमिकताओं के लिये उपलब्ध होते हैं।
- घाटे के वित्तपोषण में सहायता: रुपए की वैश्विक स्वीकृति सरकार को रुपए-आधारित बॉण्ड जारी कर विदेशों से पूंजी प्राप्त करने का अवसर प्रदान करती है।
- बाज़ारों को मज़बूती: भारतीय मुद्रा परिसंपत्तियों के लिये अधिक विदेशी मांग से भारतीय बॉण्ड और इक्विटी बाज़ार में वृद्धि हो रही है, जिससे दीर्घकालिक पूंजी आकर्षित हो रही है।
- संवेदनशीलता में कमी: डॉलर जैसी विदेशी मुद्राओं पर कम निर्भरता अर्थव्यवस्था को वैश्विक संकटों और मुद्रा की कमी से बचाती है।
- नकारात्मक प्रभाव: वैश्विक अस्थिरता के प्रति जोखिम बढ़ जाता है और मौद्रिक प्रबंधन जटिल हो जाता है।
- यदि उचित नियमन न हो, तो बड़े पैमाने पर विदेशी भागीदारी शेयर या ऋण बाज़ार को अस्थिर कर सकती है।
- यदि उचित नियमन न हो, तो बड़े पैमाने पर विदेशी भागीदारी शेयर या ऋण बाज़ार को अस्थिर कर सकती है।
रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण में क्या चुनौतियाँ हैं?
- सीमित वैश्विक स्वीकृति: पूँजी खाते पर INR पूरी तरह परिवर्तनीय नहीं है, जिसके कारण इसका उपयोग वैश्विक वित्तीय बाज़ारों में सीमित रहता है।
- कंटीन्यूअस लिंक्ड सेटलमेंट (CLS) जैसे प्रमुख प्लेटफॉर्म पर INR की अनुपस्थिति निपटान दक्षता को सीमित करती है।
- विदेश में INR तरलता की कमी: विदेशी वित्तीय प्रणालियों में आसानी से उपलब्ध INR तरलता का अभाव, रुपए में निपटान की सुविधा को बाधित करता है।
- नियामक और दस्तावेज़ी जटिलताएँ: सख्त KYC मानदंड, जो RBI और SEBI के बीच असंगत हैं, विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) के लिये बाधा का कार्य करते हैं।
- INR में अपर्याप्त व्यापार बीजक: भारत के बाह्य व्यापार का बड़ा हिस्सा अब भी USD या अन्य परिवर्तनीय मुद्राओं में बीजक और निपटान किया जाता है।
- वैश्विक स्तर पर INR-आधारित भुगतान अवसंरचना का अभाव: UPI, रीयल टाइम ग्रॉस सेटलमेंट सिस्टम (RTGS) और रुपे का विदेशी भुगतान प्रणालियों से सीमित एकीकरण, सीमा-पार लेनदेन को बाधित करता है।
- भूराजनैतिक और मुद्रा प्रभुत्व: वैश्विक आरक्षित और व्यापारिक मुद्रा के रूप में अमेरिकी डॉलर (USD) का प्रभुत्व एक संरचनात्मक बाधा उत्पन्न करता है।
- जब तक भारत एक प्रमुख व्यापारिक और वित्तीय केंद्र नहीं बनता, तब तक देश INR को अपनाने में संकोच कर सकते हैं।
रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण हेतु उठाए गए प्रमुख कदम
- SVRA: 22 देशों के साथ लागू किये गए ताकि रुपए में व्यापारिक निपटान को सुगम बनाया जा सके।
- केंद्रीय बैंकों के साथ समझौता ज्ञापन (MoU): UAE, इंडोनेशिया, मालदीव आदि के साथ स्थानीय मुद्राओं में द्विपक्षीय व्यापार निपटान हेतु हस्ताक्षर किये गए।
- UPI का वैश्विक विस्तार: जुलाई 2025 तक एकीकृत भुगतान इंटरफेस (UPI) सात देशों (UAE, सिंगापुर, भूटान, नेपाल, श्रीलंका, फ्राँस और मॉरीशस) में परिचालित है।
- रणनीतिक कार्ययोजना 2024–25 (RBI): इसमें भारत के बाहर निवास करने वाले व्यक्तियों (PROI) को विदेश में INR खाते खोलने की अनुमति देना, भारतीय बैंकों को PROI को रुपए में ऋण देने की अनुमति देना तथा विशेष अनिवासी रुपए खाते (SNRR) व SRVA के माध्यम से FDI तथा पोर्टफोलियो निवेश को सक्षम करना शामिल है।
- RBI ने विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम, 1999 (FEMA) को उदार बनाया ताकि सीमा-पार व्यापार निपटान के लिये रुपए का अंतर्राष्ट्रीयकरण बढ़ाया जा सके।
- मुद्रा स्वैप समझौते: 20 से अधिक देशों के साथ हस्ताक्षर किये गए, जो तरलता समर्थन और स्थानीय मुद्राओं में व्यापार निपटान को सुगम बनाते हैं।
- मसाला बॉण्ड: वैश्विक निवेशकों को आकर्षित करने के लिये रुपए-आधारित बॉण्ड जारी किये गए।
रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण से संबंधित RBI की सिफारिशें:
- सीमा पार निपटान तंत्र को सुदृढ़ करना: अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता कम करने के लिये पर्याप्त INR तरलता द्वारा समर्थित स्थानीय मुद्रा निपटान (LCS) ढाँचे को विकसित तथा मानकीकृत करना।
- वित्तीय बाज़ार अवसंरचना को सुदृढ़ बनाना: वैश्विक 24×5 INR विदेशी मुद्रा बाज़ार का निर्माण करना, विदेशी शाखाओं के माध्यम से अंतर-बैंक व्यापार को सक्षम बनाना तथा CCIL प्लेटफॉर्म घंटों को विस्तारित करना।
- स्थिर निष्क्रिय प्रवाह को आकर्षित करने के क्रम में जेपी मॉर्गन जैसे सूचकांकों में G‑sec को शामिल करने की सुविधा प्रदान करना।
- KYC और ऑनबोर्डिंग को सरल बनाना: RBI, SEBI और वैश्विक हितधारकों के बीच KYC संबंधी मानदंडों में सामंजस्य स्थापित करना। प्रोसेसिंग में देरी को कम करने के क्रम में सोसाइटी फॉर वर्ल्डवाइड इंटरबैंक फाइनेंशियल टेलीकम्युनिकेशन (SWIFT) पुष्टिकरण के साथ डिजिटल हस्ताक्षर एवं स्कैन किये गए दस्तावेज़ स्वीकार करना।
- IMF की SDR बास्केट में भारतीय रुपए को शामिल करना: अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के विशेष आहरण अधिकार बास्केट में शामिल करने का लक्ष्य रखकर भारतीय रुपए को वैश्विक आरक्षित मुद्रा के रूप में स्थापित करना।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: Q. रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण से डॉलर पर निर्भरता कम होती है, लेकिन बाहरी जोखिमों का खतरा भी बना रहता है। महत्त्वाकांक्षा एवं धारणीयता के बीच भारत किस प्रकार संतुलन बना सकता है? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष प्रश्न (PYQ)
प्रिलिम्स
प्रश्न: रुपए की परिवर्तनीयता से क्या तात्पर्य है? (2015)
(a) रुपए के नोटों के बदले सोना प्राप्त करना
(b) रुपए के मूल्य को बाज़ार की शक्तियों द्वारा निर्धारित होने देना
(c) रुपए को अन्य मुद्राओं में और अन्य मुद्राओं को रुपए में परिवर्तित करने की स्वतंत्र रूप से अनुज्ञा प्रदान करना
(d) भारत में मुद्राओं के लिये अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार विकसित करना
उत्तर: (c)