‘राइट-टू-रिपेयर’ आंदोलन | 13 Jul 2021

प्रिलिम्स के लिये 

राइट-टू-रिपेयर’ आंदोलन, ई-कचरा, चक्रीय अर्थव्यवस्था 

मेन्स के लिये 

राइट-टू-रिपेयर’ आंदोलन का संक्षिप्त परिचय एवं इसके लाभ,  राइट-टू-रिपेयर’ आंदोलन के उदभव एवं विरोध का कारण, ई-कचरा प्रबंधन 

चर्चा में क्यों?

हालिया वर्षों में विश्व के कई देशों में एक प्रभावी ‘राइट-टू-रिपेयर’ कानून को पारित करने का प्रयास किया जा रहा है।

  • इस आंदोलन की जड़ें 1950 के दशक में कंप्यूटर युग की शुरुआत से जुड़ी हुई हैं।
  • इस आंदोलन का लक्ष्य, कंपनियों द्वारा इलेक्ट्रॉनिक्स तथा अन्य उत्पादों के स्पेयर पार्ट्स, उपकरण तथा इनको ठीक करने हेतु उपभोक्ताओं और मरम्मत करने वाली दुकानों को आवश्यक जानकारी उपलब्ध करवाना है, जिससे इन उत्पादों का जीवन-काल बढ़ सके और इन्हें कचरे में जाने से बचाया जा सके। 

प्रमुख बिंदु 

‘राइट-टू-रिपेयर’ (Right to Repair) :

  • ‘राइट-टू-रिपेयर’ एक ऐसे अधिकार अथवा कानून को संदर्भित करता है, जिसका उद्देश्य उपभोक्ताओं को अपने स्वयं के उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की मरम्मत करना और उन्हें संशोधित करने की अनुमति देना है, जहाँ अन्यथा ऐसे उपकरणों के निर्माता उपभोक्ताओं को केवल उनके द्वारा प्रस्तुत सेवाओं के उपयोग करने की अनुमति देते हैं।
  • ‘राइट-टू-रिपेयर’ का विचार मूल रूप से अमेरिका से उत्पन्न हुआ था, जहाँ ‘मोटर व्हीकल ओनर्स राइट टू रिपेयर एक्ट, 2012’ किसी भी व्यक्ति को वाहनों की मरम्मत करने में सक्षम बनाने के लिये वाहन निर्माताओं को सभी आवश्यक दस्तावेज़ और जानकारी प्रदान करना अनिवार्य बनाता है।

लाभ :

  • रिपेयर/मरम्मत करने वाली छोटी दुकानें स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं का एक महत्त्वपूर्ण भाग होती हैं, इस अधिकार को दिये जाने से इन दुकानों के कारोबार में वृद्धि होगी ।
  • यह ई-कचरे की विशाल मात्रा को कम करने में मदद करेगा, जो कि महाद्वीप पर प्रत्येक वर्ष बढ़ता जा रहा है।
  • यह उपभोक्ताओं को पैसा बचाने में मदद करेगा।
  • यह उपकरणों के जीवनकाल, रखरखाव, पुन: उपयोग, उन्नयन, पुनर्चक्रण और अपशिष्ट प्रबंधन में सुधार कर चक्रीय अर्थव्यवस्था के उद्देश्यों में योगदान देगा।

आंदोलन को बढ़ावा देने वाले कारण :

  • इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादों के निर्माताओं द्वारा ‘एक नियोजित अप्रचलन’ (Planned Obsolescence) की संस्कृति को प्रोत्साहित किया जा रहा है।
    •  'नियोजित अप्रचलन' का अर्थ है कि उपकरणों को विशेष रूप से सीमित समय तक काम करने और इसके बाद इन्हें बदले जाने के लिये डिज़ाइन किया जाता है।
  • इससे पर्यावरण पर अत्यधिक दबाव पड़ता है और प्राकृतिक संसाधनों का अपव्यय होता है।
    • इलेक्ट्रॉनिक उपकरण का निर्माण एक अत्यधिक प्रदूषणकारी प्रक्रिया है। यह ऊर्जा के प्रदूषणकारी स्रोतों, जैसे कि जीवाश्म ईंधन का उपयोग करता है, जिसका पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। 

विरोध का कारण:

  • एप्पल, माइक्रोसॉफ्ट, अमेज़न और टेस्ला (Tesla) समेत बड़ी तकनीकी कंपनियों ने तर्क दिया है कि अपनी बौद्धिक संपदा को तीसरे पक्ष की मरम्मत सेवाओं या शौकिया मरम्मत करने वालों के लिये खोलने से शोषण हो सकता है और उनके उपकरणों की सुरक्षा प्रभावित हो सकती है।

विश्व भर में ‘राइट-टू-रिपेयर’ आंदोलन:

  • संयुक्त राज्य अमेरिका का राष्ट्रपति ने निर्माताओं द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों को रोकने के लिये संघीय व्यापार आयोग के एक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर किये हैं जो उपभोक्ताओं की अपनी शर्तों पर अपने गैजेट की मरम्मत करने की क्षमता को सीमित करते हैं।
  • UK ने भी मरम्मत के अधिकार के नियम पेश किये जिससे TV और वाशिंग मशीन जैसे दैनिक उपयोग के गैजेट्स को खरीदना तथा उनकी मरम्मत करना बहुत आसान हो गया है।

भारत में ई-कचरा

आधिकारिक डेटा:

भारतीय पहल:

  • ई-कचरा प्रबंधन नियम, 2016:
    • इसका उद्देश्य ई-कचरे से उपयोगी सामग्री को अलग करना और/या उसे पुन: उपयोग के लिये सक्षम बनाना है, ताकि निपटान के लिये खतरनाक किस्म के कचरे को कम किया जा सके और बिजली तथा इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का उचित प्रबंधन सुनिश्चित किया जा सके।
  • ई-कचरा क्लिनिक:
    • यह ई-कचरे के पृथक्करण, प्रसंस्करण और निपटान से संबंधित है।

आगे की राह

  • ‘राइट-टू-रिपेयर’ कानून भारत जैसे देश में विशेष रूप से मूल्यवान हो सकता है, जहाँ सेवा नेटवर्क अक्सर असमान (Spotty) होते हैं और अधिकृत कार्यशालाएँ कम होने के साथ ही दूर के इलाकों में होती हैं।
  • भारत का अनौपचारिक मरम्मत क्षेत्र जुगाड़ के साथ अच्छा काम करता है लेकिन अगर इस तरह के कानून को अपनाया जाता है तो मरम्मत और रखरखाव सेवाओं की गुणवत्ता में काफी सुधार हो सकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस