राष्ट्रीय वन नीति, 1988 की समीक्षा | 11 Sep 2020

प्रिलिम्स के लिये

राष्ट्रीय वन नीति-1988, भारत वन स्थिति रिपोर्ट, भारतीय वन सर्वेक्षण

मेन्स के लिये

वर्तमान समय में राष्ट्रीय वन नीति, 1988 की प्रासंगिकता

चर्चा में क्यों?

हाल ही में वन महानिदेशक ने राष्ट्रीय वन नीति, 1988 (National Forest Policy, 1988) में संशोधन की सिफारिश की है।

प्रमुख बिंदु:  

  • ये सिफारिशें वर्ष 2016 में प्रकाशित ‘नेचुरल रिसोर्स फोरम’ (Natural Resources Forum) के एक शोध पत्र पर आधारित हैं।
    • ‘नेचुरल रिसोर्स फोरम’ एक संयुक्त राष्ट्र सतत् विकास जर्नल (United Nations Sustainable Development Journal) है जो प्रमाणन के आधार पर सतत् वन प्रबंधन एवं पुनर्स्थापना, संरक्षण व उत्पादन की विशेषता वाली नीति का समर्थन करता है।
  • आँकड़ों की अनुपलब्धता: लकड़ी के बढ़ते स्टॉक, खपत एवं उत्पादन से संबंधित विश्वसनीय आँकड़ों की कमी है जो लकड़ी की आपूर्ति एवं मांग के अनुमानों को बाधित करता है।
  • वनों से बाहर के पेड़ों (Trees Outside Forests- TOFs) पर ध्यान देना:  वनों से बाहर के पेड़ों (TOFs) से लकड़ी उत्पादन की संभावना यानी पेड़ों को सरकारी रिकॉर्डेड फॉरेस्ट एरिया (Recorded Forest Areas- RFAs) के बाहर उगाया जाना चाहिये और उनका दोहन किया जाना चाहिये।
    • ‘रिकॉर्डेड फॉरेस्ट एरिया’ (RFA) सरकारी अभिलेख में वन के रूप में दर्ज सभी भौगोलिक क्षेत्रों को संदर्भित करता है। इसमें आरक्षित वन (Reserved Forests) और संरक्षित वन (Protected Forests) शामिल हैं जिन्हें भारतीय वन अधिनियम, 1927 के प्रावधानों के तहत गठित किया गया है।
    • वर्ष 2011 की ‘भारत वन स्थिति रिपोर्ट’ के अनुसार, सरकारी वनों से लकड़ी का उत्पादन 3.17 मिलियन घन मीटर और TOFs से संभावित लकड़ी उत्पादन 42.77 मिलियन घन मीटर है। 
  • गोडावर्मन केस, 1996 (Godavarman Case, 1996) में उच्चतम न्यायालय ने वन क्षेत्रों में पेड़ों की कटाई पर रोक लगा दी जिससे लकड़ी के घरेलू उत्पादन में कमी आई है।
  • उत्पादन वानिकी द्वारा TOF एवं RFAs से वन उत्पादकता में सतत वृद्धि पर ध्यान दिया जाना चाहिये।
  • RFA वाले राज्यों के माध्यम से लकड़ी उत्पादन को बढ़ावा देने के लिये कार्य योजनाओं को तैयार किया जाना चाहिये और वृक्षारोपण के लिये वनों के 10% क्षेत्र का सीमांकन करना चाहिये।
  • TOF के लिये एक संतुलित राष्ट्रव्यापी नीति विकसित की जानी चाहिये।

लाभ:

  • लकड़ी के उत्पादन में वृद्धि से कार्बन अधिग्रहण को भी समर्थन मिलेगा साथ ही जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने में मदद मिलेगी।
  • TOF से इमारती लकड़ी का उत्पादन ग्रामीण अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित कर सकता है।

आयात-निर्यात नीति की समीक्षा: चूँकि घरेलू लकड़ी के उत्पादन में गिरावट आई है और आयात कई गुना बढ़ गया है इसलिये निर्यात-आयात नीति की समीक्षा करने की आवश्यकता है।

  • बढ़ती आबादी एवं प्रति व्यक्ति जीडीपी के कारण लकड़ी की घरेलू मांग बढ़ी है। आयात पर निर्भरता व्यवहार्य नहीं है क्योंकि दुनिया भर के निर्यातक एक संरक्षण-आधारित दृष्टिकोण का अनुसरण कर रहे हैं।
  • निर्यात-आयात नीति की समीक्षा बाज़ार में मूल्य निर्धारण को सुधारने के लिये की जानी चाहिये ताकि यह खेती हेतु वृक्षों को उगाने के लिये आर्थिक रूप से व्यवहार्य हो।
    • निर्यात-आयात नीति या एक्जिम पॉलिसी (Exim Policy) के रूप में बेहतर माल एवं वस्तुओं के आयात एवं निर्यात से संबंधित दिशा-निर्देशों का एक सेट है। भारत सरकार ने विदेशी व्यापार (विकास एवं विनियमन) अधिनियम, 1992 के तहत पाँच वर्षों के लिये एक्जिम नीति को अधिसूचित किया है।

भारतीय वन नीति में संशोधन: 

  • इन सिफारिशों में कागज ने घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने के लिये भारतीय वन नीति को संशोधित करने पर ज़ोर दिया गया है। 
  • संरक्षण नीतियों द्वारा पारिस्थितिकी संतुलन बनाए रखने पर तथा संरक्षित क्षेत्र प्रबंधन के माध्यम से जैव विविधता में सुधार पर ध्यान देना चाहिये।
  • पुनर्निमाणकारी नीतियों में पुनर्वितरण, पुनर्वास एवं निम्नीकृत परिदृश्य एवं बंजर भूमि के उत्थान को लक्षित किया जाना चाहिये।

पृष्ठभूमि:

  • वर्तमान में भारत में राष्ट्रीय वन नीति, 1988 लागू है। जिसके केंद्र में पर्यावरण संतुलन एवं आजीविका है।

इस नीति की मुख्य विशेषताएँ एवं लक्ष्य: 

  • पारिस्थितिकी संतुलन के संरक्षण एवं पुनर्निमाण के माध्यम से पर्यावरण स्थिरता का रखरखाव करना।
  • मौजूदा प्राकृतिक विरासत का संरक्षण करना।
  • नदियों, झीलों एवं जलाशयों के जलग्रहण क्षेत्रों में मिट्टी के अपरदन एवं अनाच्छादन की जाँच करना।
  • राजस्थान के रेगिस्तानी इलाकों एवं तटीय इलाकों में रेत के टीलों के विस्तार की जाँच करना।
  • वनों की कटाई एवं सामाजिक वानिकी के माध्यम से वन/ वृक्ष क्षेत्र को लगातार बढ़ाना।
  • ईंधन, लकड़ी, चारा, लघु वन उत्पाद, मिट्टी एवं ग्रामीण व आदिवासी आबादी की लकड़ी की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये कदम उठाना।
  • राष्ट्रीय आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये वनों की उत्पादकता बढ़ाना।
  • वन उपज के कुशल उपयोग और लकड़ी के इष्टतम उपयोग को प्रोत्साहित करना।
  • रोज़गार के अवसर पैदा करना और महिलाओं की भागीदारी बढ़ाना।

आलोचना: 

  • इस वन नीति को लंबे समय से अपडेट नहीं किया गया है जबकि वनों एवं जलवायु की स्थिति में काफी बदलाव आया है।
  • वनों एवं वन प्रबंधन के संबंध में प्रमुख नीतियाँ या तो है ही नहीं या विलंबित हैं या उनको पुराने तरीके पर ही छोड़ दिया गया हैं। उदाहरण के लिये वर्तमान में ‘वन’ की कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं है जिसे राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार किया गया हो जबकि राज्यों को वनों की अपनी परिभाषा निर्धारित करने के लिये अधिकार दिया गया है।

गौरतलब है कि एक मसौदा राष्ट्रीय वन नीति 2018 में जारी की गई थी। इस मसौदे का मुख्य ज़ोर आदिवासियों एवं वन-आश्रित लोगों के हितों की सुरक्षा के साथ-साथ वनों का संरक्षण, सुरक्षा एवं प्रबंधन पर है।

भारतीय वनों से संबंधित अन्य विधान:

स्रोत: द हिंदू