ज़िला कलेक्टर की भूमिका के पुनर्निर्धारण की आवश्यकता | 09 Dec 2022

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय कानूनी प्रणाली, द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग की 15वीं रिपोर्ट , पंचायती राज, अखिल भारतीय सेवाएँ।

मेन्स के लिये:

ज़िला कलेक्टरों की भूमिका और ज़िम्मेदारी के पुनर्निर्धारण की आवश्यकता

चर्चा में क्यों?

हाल ही में विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी (दिल्ली स्थित स्वतंत्र थिंक-टैंक) ने अपनी पुस्तक "फ्रॉम रूल बाई लॉ टू द रूल ऑफ लॉ" में ज़िला कलेक्टर/ज़िला मजिस्ट्रेट की भूमिका में सुधार संबंधी सुझाव दिया।

ज़िला कलेक्टर/ज़िला मजिस्ट्रेट का क्षेत्राधिकार:

  • भूमि और राजस्व प्रशासन का प्रमुख।
  • ज़िला स्तर पर कार्यकारी प्रमुख के रूप में कानून और व्यवस्था, सुरक्षा और पुलिस संबंधी मामले लाइसेंसिंग और नियामक प्राधिकरण (जैसे शस्त्र अधिनियम), चुनाव के संचालन, आपदा प्रबंधन, सार्वजनिक सेवा वितरण का समग्र पर्यवेक्षण करने के साथ और मुख्य सूचना एवं शिकायत निवारण अधिकारी।
  • जिलाधिकारी आपातकाल के समय में ज़िले में सशस्त्र बलों को तैनात व मार्गदर्शन करते हैं।
  • इसके अंतर्गत ज़िले में शस्त्र, विस्फोटक, सिनेमैटोग्राफी अधिनियम आदि से संबंधित विभिन्न प्रकार के लाइसेंस जारी करता है।
  • कई राज्यों में, कलेक्टर ही ज़िले में जेलों और किशोर गृहों के उचित प्रबंधन के लिये ज़िम्मेदार समग्र पर्यवेक्षी प्राधिकरण है।
  • उन्हें विशेष सुरक्षा/अपराध विरोधी कानूनों के तहत हिरासत आदेश/हिरासत वारंट जारी करने का अधिकार भी है।

ज़िला कलेक्टर की भूमिका के पुनर्गठन की आवश्यकत:

  • आधुनिक संविधान होने के बावजूद भारतीय कानूनी प्रणाली में अभी भी औपनिवेशिक सत्ता के अवशेष हैं।
  • ज़िला कलेक्टर के पदों का नाम देश में अलग-अलग स्थानों पर भिन्न होता है जो इसकी भूमिका और ज़िम्मेदारियों से संबंधित भ्रम पैदा करता है।
    • ज़िला कलेक्टर का पद अखिल भारतीय सेवाओं के दायरे में आता है इसलिये नाम पूरे भारत में एक समान होना चाहिये।
  • विभिन्न नामकरण ब्रिटिश-प्रशासित भारत के विभिन्न क्षेत्रों में विविध प्रशासनिक विकास का प्रतिनिधित्व करते हैं।
  • स्थानीय शासी निकायों को शक्तियों और ज़िम्मेदारियों के हस्तांतरण की कमी शासन को अस्थिर करने में निहित हित का संकेत है।
  • संविधान के अनुच्छेद 50 में कहा गया है कि "राज्य की सार्वजनिक सेवाओं में न्यायपालिका को कार्यपालिका से अलग करने के लिये राज्य कदम उठाएगा।"

निष्कर्ष:

  • द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग (Second Administrative Reforms Commission- ARC) की 15वीं रिपोर्ट में ज़िला प्रशासन को शामिल किया गया था।
  • पंचायती राज संस्थाओं और नगर निकायों की संवैधानिक रूप से अनिवार्य स्थापना के बाद ज़िला प्रशासन के कार्य का पुनर्मूल्यांकन और पुन: परिभाषित करना अब महत्त्वपूर्ण हो गया है।
    • हालाँकि इस बात पर बल दिया गया है कि कई राज्यों में पंचायती राज संस्थानों (जिन्हें "पीआरआई" के रूप में भी जाना जाता है) की शुरुआत ने ज़िला कलेक्टरों की भूमिका को मार्गदर्शन और सहायता प्रदान करने तक सीमित कर दिया है।
    • स्थानीय स्तर पर निर्णय लेने के हस्तांतरण के रास्ते में आने वाली किसी भी बाधा को दूर करने के लिये 15वीं ARC रिपोर्ट द्वारा इस व्यवस्था पर ज़ोर दिया गया है। इन सबके लिये ज़िला स्तर पर प्रशासनिक तंत्र के संपूर्ण पुनर्गठन की आवश्यकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस