राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) | 23 Apr 2024

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग 

मेन्स के लिये:

उभरती मानवाधिकार चुनौतियाँ, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) की भूमिका और कार्य

स्रोत: द प्रिंट 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में NHRC ने सीमांत वर्गों के अधिकारों की रक्षा पर चर्चा करने के लिये सभी सात राष्ट्रीय आयोगों की एक बैठक बुलाई, जिसका लक्ष्य सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करना और कार्यान्वयन रणनीतियों पर सहयोग करना था।

 मानवाधिकार आयोगों की संयुक्त बैठक के क्या परिणाम हैं?

  • प्रभावी कार्यान्वयन हेतु संयुक्त रणनीतियाँ:
    • NHRC ने मानवाधिकारों की रक्षा के लिये मौजूदा कानूनों और योजनाओं को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिये संयुक्त रणनीतियाँ (Joint Strategies) तैयार करने के लिये सभी सात राष्ट्रीय आयोगों के बीच सहयोग की आवश्यकता पर ज़ोर दिया है।
    • NHRC ने SC-ST समुदायों, महिलाओं और समाज के हाशिये पर रहने वाले वर्गों के लिये समता और सम्मान सुनिश्चित करने हेतु एक-दूसरे के अनुभवों से सीखने के महत्त्व पर प्रकाश डाला है।
  • सेप्टिक टैंकों की यंत्रों द्वारा सफाई (Mechanical Cleaning):
    • NHRC ने सेप्टिक टैंकों की यंत्रों द्वारा सफाई के महत्त्व पर भी ज़ोर दिया है। राज्यों तथा स्थानीय निकायों से इस मामले पर NHRC की सलाह का पालन करने का आग्रह किया गया।
  • अनुसंधान हेतु सहयोग:
    • प्रयासों के दोहराव से बचने के लिये अनुसंधान हेतु सभी आयोगों के बीच सहयोग की भावना होनी चाहिये।
    • NHRC और राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) के बीच अनुसंधान के सामान्य विषयों पर प्रकाश डाला गया और महिलाओं के लिये संपत्ति के अधिकारों में एकरूपता सुनिश्चित करने के लिये राज्य वैधानिक प्रावधानों की अनुकूलता की आवश्यकता पर ज़ोर दिया गया।
  • शिक्षा एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में चुनौतियाँ:
    • राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC) के अध्यक्ष ने नई शिक्षा नीति और उभरती प्रौद्योगिकी का समान लाभ लोगों तक सुनिश्चित करने की चुनौती पर चर्चा की।
    • उन्होंने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि मानसिकता में बदलाव सिर्फ कानून से नहीं लाया जा सकता बल्कि इसके लिये भावना और संवेदनशीलता की भी आवश्यकता होती है।
    • SC और ST अधिनियम के तहत मुआवज़े में विलंब पर प्रकाश डाला गया, साथ ही सभी राज्यों में पीड़ित मुआवज़ा योजनाओं की समीक्षा करने की आवश्यकता पर भी प्रकाश डाला गया।
  • बच्चों के अधिकार:
    • राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) के अध्यक्ष ने बच्चों के अधिकारों को सुनिश्चित करने में आयोग के सक्रिय कार्यों पर प्रकाश डाला।
      • आयोग आठ पोर्टलों की निगरानी कर रहा है और एक लाख से अधिक अनाथ बच्चों का पुनर्वास सुनिश्चित किया है।
      • इसने बाल अधिकारों की सुरक्षा के लिये दिशा-निर्देश और SOP भी जारी किये हैं।
    • राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण (NALSA) के तहत बढ़े हुए मुआवज़े और निजी स्कूलों में बाल अधिकारों के उल्लंघन में हस्तक्षेप करने के राज्य के दायित्व पर भी ज़ोर दिया गया।
  • विकलांग व्यक्तियों के सामने आने वाली चुनौतियाँ:
    • विकलांग व्यक्तियों के लिये मुख्य आयुक्त ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में 'दिव्यांगजनों' के बीच अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ने के साथ-साथ संबंधित चुनौतियाँ भी बढ़ी हैं।
      • उदाहरण: दृष्टिबाधितों को ऑनलाइन सेवाओं तक पहुँचने के दौरान कैप्चा कोड की समस्या का सामना करना पड़ रहा है।
  • सहयोग का दायरा और संरचित दृष्टिकोण:
    • इस बात पर सहमति व्यक्त की गई कि आयोगों के बीच सहयोग बढ़ाने और सामाजिक अधिकारों की सुरक्षा के लिये एक संरचित दृष्टिकोण की वकालत करने, संस्थागत बातचीत के मूल्य, सहयोगात्मक सलाह पर ज़ोर देने और तालमेल तथा दक्षता के लिये 'HRCNet पोर्टल' का उपयोग करने की आवश्यकता है।
      • HRCNet एक वेब आधारित ऑनलाइन पोर्टल है, जो पीड़ित नागरिकों से प्राप्त शिकायतों के समाधान के लिये एक केंद्रीकृत दृष्टिकोण प्रदान करता है।

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) क्या है? 

  • परिचय:
    • यह देश में मानवाधिकारों का प्रहरी है, यानी इसमें भारतीय संविधान द्वारा गारंटीकृत या अंतर्राष्ट्रीय अनुबंध तथा भारत में न्यायालयों द्वारा लागू कानून के तहत व्यक्ति के जीवन, स्वतंत्रता, समानता एवं गरिमा से संबंधित अधिकार शामिल हैं।
  • स्थापना:
    • इसकी स्थापना मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम (Protection of Human Rights Act- PHRA), 1993 के प्रावधानों के तहत 12 अक्तूबर, 1993 को की गई। 
    • PHRA अधिनियम को मानवाधिकार संरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2006 और मानवाधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2019 द्वारा संशोधित किया गया था।
    • इसे पेरिस सिद्धांतों के अनुरूप स्थापित किया गया था, जिसे मानवाधिकारों के प्रचार और संरक्षण के लिये अपनाया गया था।
  • संरचना:
    • आयोग में एक अध्यक्ष, पाँच पूर्णकालिक सदस्य तथा सात मानद सदस्य (Deemed Members) होते हैं। 
    • अध्यक्ष भारत का पूर्व मुख्य न्यायाधीश या सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश होता है।
  • नियुक्ति एवं कार्यकाल:
    • अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा छह सदस्यीय समिति की सिफारिशों के आधार पर की जाती है।
    • समिति में प्रधानमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष, राज्यसभा का उपसभापति, संसद के दोनों सदनों में विपक्ष के नेता तथा केंद्रीय गृह मंत्री शामिल होते हैं।
    • अध्यक्ष और सदस्य तीन वर्ष की अवधि के लिये या 70 वर्ष की आयु तक (जो भी पहले हो) पद पर बने रहते हैं।
  • भूमिका एवं कार्य:
    • इस आयोग के पास न्यायिक कार्यवाही करने के साथ ही सिविल न्यायालय की शक्तियाँ हैं।
    • मानवाधिकार उल्लंघनों की जाँच के लिये केंद्र अथवा राज्य सरकार के अधिकारियों या जाँच एजेंसियों की सेवाओं का प्रयोग करने का अधिकार।
    • मामला घटित होने के एक वर्ष के भीतर मामलों की जाँच करने का अधिकार।
    • इसके कार्य की प्रकृति मुख्यतः अनुशंसात्मक होती है।

NHRC की कार्यप्रणाली में क्या कमियाँ हैं?

  • सिफारिशों की गैर-बाध्यकारी प्रकृति: 
    • हालाँकि NHRC मानवाधिकारों के उल्लंघन की जाँच करता है और सिफारिशें प्रदान करता है, किंतु यह अधिकारियों को विशिष्ट कार्रवाई करने के लिये बाध्य नहीं कर सकता है। इसका प्रभाव विधिक के बजाय काफी हद तक नैतिक होता है।
    • उल्लंघनकर्त्ताओं को दंडित करने में असमर्थता:
    • NHRC के पास उल्लंघनकर्त्ताओं को दंडित करने का अधिकार नहीं है। मानवाधिकारों के हनन के अपराधियों की पहचान किये जाने के बावजूद NHRC अभियुक्त पर सीधे ज़ुर्माना नहीं लगा सकता या फिर पीड़ितों को राहत नहीं प्रदान कर सकता है। यह सीमा इस आयोग की प्रभावशीलता को कम कर देती है।
  • सशस्त्र बल संबंधी मामलों में सीमित भूमिका:
    • सशस्त्र बलों द्वारा मानवाधिकारों के उल्लंघन के मामले में NHRC का हस्तक्षेप प्रतिबंधित है। सैन्य कर्मियों से जुड़े मामले अक्सर इस आयोग के दायरे से बाहर होते हैं।
  • मानवाधिकार उल्लंघन संबंधी पुराने मामले में समय सीमाएँ:
    • NHRC एक वर्ष के बाद रिपोर्ट किये गए मानवाधिकार उल्लंघनों के मामलों पर विचार नहीं कर सकता। यह सीमा NHRC को पुरानी अथवा विलंबित मानवाधिकार शिकायतों का प्रभावी निपटान करने से रोकती है।
  • संसाधनों की कमी:
    • संसाधनों की कमी NHRC के समक्ष एक अन्य समस्या है। मामलों की अत्यधिक संख्या और संसाधनों की सीमितता के कारण आयोग को जाँच, पूछताछ और जन जागरूकता अभियानों को कुशलतापूर्वक संभालने के लिये संघर्ष करना पड़ता है।
    • कई राज्य मानवाधिकार आयोग में अध्यक्ष के पद रिक्त हैं, वे इनके बिना ही कार्य कर रहे हैं और NHRC के ही सामान राज्य मानवाधिकार आयोग में भी कर्मचारियों की कमी की समस्या बनी हुई है।
  • स्वायतत्ता का अभाव:
    • NHRC की संरचना सरकारी नियुक्तियों पर निर्भर करती है। राजनीतिक प्रभाव से पूर्ण स्वतंत्रता सुनिश्चित करना एक चुनौती बनी हुई है, यह इस आयोग की विश्वसनीयता को प्रभावित करती है।
  • सक्रिय हस्तक्षेप की आवश्यकता:
    • NHRC अक्सर शिकायतों पर सक्रियता से प्रतिक्रिया देता है। निवारक उपायों और शीघ्र हस्तक्षेप सहित अधिक सक्रिय दृष्टिकोण इसकी प्रभावशीलता में वृद्धि कर सकते हैं।

NHRC के कामकाज को सुदृढ़ करने हेतु क्या कदम उठाए जाने की आवश्यकता है?

  • व्यापकता और प्रभावशीलता में सुधार:
    • उभरती मानवाधिकार चुनौतियों को प्रभावी ढंग से संबोधित करने के लिये NHRC के अधिदेश का विस्तार करना। उदाहरणतः कृत्रिम बुद्धिमत्ता, डीप फेक, क्लाइमेट चेंज आदि।
  • प्रवर्तन शक्तियाँ प्रदान करना:
    • अपनी सिफारिशों को लागू करने के लिये NHRC को दंडात्मक शक्तियों से सशक्त बनाना। इससे जवाबदेही और अनुपालन में वृद्धि होगी।
  • संरचना में सुधार:
    • वर्तमान संरचना में विविधता का अभाव है। समग्र परिप्रेक्ष्य सुनिश्चित करने के लिये नागरिक समाज, कार्यकर्त्ताओं और विशेषज्ञों से सदस्यों की नियुक्ति करना।
  • एक स्वतंत्र कैडर का विकास करना:
    • NHRC को संसाधन संबंधी बाधाओं का सामना करना पड़ता है। NHRC को मानवाधिकारों में प्रासंगिक विशेषज्ञता और अनुभव वाले कर्मचारियों का एक स्वतंत्र कैडर स्थापित करने की आवश्यकता है।
  • राज्य मानवाधिकार आयोग का सशक्तीकरण:
    • राज्य मानवाधिकार आयोगों के बीच सहयोग, क्षमता निर्माण और ज्ञान साझा करने की सुविधा प्रदान की जानी चाहिये।
  • प्रोत्साहन और जन जागरूकता:
    • प्रतिक्रियाशील प्रक्रियाओं का प्रभाव सीमित हो सकता है, अतएव नागरिकों को उनके अधिकारों को लेकर सशक्त बनाने के लिये सक्रिय रूप से जागरूकता अभियान और शिक्षा को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
  • अंतरराष्ट्रीय सहयोग:
    • भारत अंतर्राष्ट्रीय अनुभवों से सीख सकता है। अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार निकायों के साथ सहयोग कर सकता है, उनकी प्रथाओं से सीखते हुए प्रासंगिक रणनीतियाँ तैयार कर सकता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. भारत में मानवाधिकारों की प्रभावी सुरक्षा में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) के समक्ष आने वाली चुनौतियों और सीमाओं का विश्लेषण कीजिये। इसकी प्रभावशीलता व स्वायत्तता को बढ़ाने के लिये आप कौन से सुधार सुझाएंगे?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. मूल अधिकारों के अतिरिक्त भारत के संविधान का निम्नलिखित में से कौन-सा/से भाग मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा 1948 (Universal Declaration of Human Rights 1948) के सिद्धांतों एवं प्रावधानों को प्रतिबिंबित करता/करते है/हैं? (2020)

  1. उद्देशिका
  2. राज्य की नीति के निदेशक तत्त्व
  3. मूल कर्त्तव्य

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)


प्रश्न. निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2011)

  1. शिक्षा का अधिकार
  2. सार्वजनिक सेवा तक समान पहुँच का अधिकार
  3. भोजन का अधिकार.

उपर्युक्त में से कौन-सा/से "मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा" के अंतर्गत मानवाधिकार है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 1 और 2
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)


मेन्स:

प्रश्न. यद्यपि मानवाधिकार आयोगों ने भारत में मानव अधिकारों के संरक्षण में काफी हद तक योगदान दिया है, फिर भी वे ताकतवर और प्रभावशालियों के विरुद्ध अधिकार जताने में असफल रहे हैं। इनकी संरचनात्मक और व्यावहारिक सीमाओं का विश्लेषण करते हुए सुधारात्मक उपायों के सुझाव दीजिये। (2021)