राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस एवं भारत में उपभोक्ता आयोग | 24 Dec 2025
प्रिलिम्स के लिये: उपभोक्ता आयोग, ई-दाखिल पोर्टल, अर्द्ध-न्यायिक निकाय, केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण
मेन्स के लिये: भारत में अर्द्ध-न्यायिक निकायों की प्रभावशीलता, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019, समावेशी शासन के घटक के रूप में उपभोक्ता अधिकार
चर्चा में क्यों?
24 दिसंबर को मनाया जाने वाला राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस भारत में उपभोक्ता अधिकारों एवं संरक्षण के महत्त्व को रेखांकित करता है। साथ ही यह उपभोक्ता आयोगों में बढ़ते विलंब की ओर भी ध्यान आकर्षित करता है, जहाँ मामलों की बढ़ती लंबितता और संरचनात्मक कमियाँ समयबद्ध न्याय वितरण को कमज़ोर कर रही हैं।
सारांश
- उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के अंतर्गत मज़बूत विधिक आधार के बावजूद, उपभोक्ता आयोग मामलों की बढ़ती लंबितता, मानव संसाधन की कमी, बार-बार स्थगन तथा अप्रभावी अवसंरचना के कारण गंभीर विलंब का सामना कर रहे हैं, जिससे राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस पर रेखांकित त्वरित उपभोक्ता न्याय का उद्देश्य प्रभावित हो रहा है।
- उपभोक्ता आयोगों को सुदृढ़ करने के लिये त्वरित नियुक्तियाँ, कठोर केस-फ्लो प्रबंधन, ई-जागृति के माध्यम से पूर्ण डिजिटल एकीकरण, अनिवार्य मध्यस्थता तथा प्रदर्शन-आधारित निगरानी तंत्र को अपनाना आवश्यक है, ताकि प्रौद्योगिकी-सक्षम, दक्ष और समयबद्ध उपभोक्ता शिकायत निवारण सुनिश्चित किया जा सके।
नोट: राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 को राष्ट्रपति की स्वीकृति की स्मृति में मनाया जाता है, जिसके अंतर्गत सूचित किये जाने का अधिकार, संरक्षण का अधिकार, सुने जाने का अधिकार तथा निवारण प्राप्त करने का अधिकार जैसे प्रमुख उपभोक्ता अधिकार निर्धारित किये गए।
- इस दिवस का उद्देश्य उपभोक्ता जागरूकता और उत्तरदायी प्रथाओं को बढ़ावा देना है।
- वर्ष 2025 की थीम, “Efficient and Speedy Disposal through Digital Justice अर्थात डिजिटल न्याय के माध्यम से कुशल एवं त्वरित निस्तारण”, प्रौद्योगिकी-संचालित और समयबद्ध उपभोक्ता शिकायत निवारण पर विशेष ज़ोर को रेखांकित करती है।
उपभोक्ता आयोग क्या होते हैं?
- परिचय: उपभोक्ता आयोग अर्द्ध-न्यायिक निकाय हैं जिनकी स्थापना उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 (अब उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम (CPA), 2019) के तहत उपभोक्ताओं और विक्रेताओं या सेवा प्रदाताओं के बीच विवादों को हल करने के लिये की गई है।
- इनका उद्देश्य त्वरित और प्रभावी न्याय प्रदान करना और उपभोक्ताओं को अनुचित व्यापार प्रथाओं, दोषपूर्ण वस्तुओं और सेवाओं से संरक्षित करना है।
- भारत में उपभोक्ता आयोगों के प्रकार: उपभोक्ता अधिनियम, 2019 उपभोक्ता विवादों के निवारण के लिये तीन स्तरीय अर्द्ध-न्यायिक तंत्र को प्रतिपादित करता है, अर्थात् ज़िला आयोग, राज्य आयोग और राष्ट्रीय आयोग, जिनमें से प्रत्येक को परिभाषित मौद्रिक क्षेत्राधिकार प्राप्त है।
- ज़िला और राज्य उपभोक्ता आयोगों की स्थापना राज्य सरकारों द्वारा केंद्र सरकार की मंजूरी से की जाती है, जबकि राष्ट्रीय आयोग की स्थापना केंद्र सरकार द्वारा की जाती है।
- ये निकाय विवाद समाधान के लिये एक वैकल्पिक तंत्र प्रदान करते हैं और दीवानी अदालतों का स्थान नहीं लेते हैं।
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उपभोक्ता आयोग |
मौद्रिक क्षेत्राधिकार |
संघटन |
अपीलीय प्राधिकरण |
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ज़िला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग |
50 लाख रुपये तक। |
अध्यक्ष (ज़िला न्यायाधीश या समकक्ष) और सदस्यगण। |
अपील राज्य आयोग के समक्ष की जा सकती है। |
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राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग |
50 लाख रुपये से अधिक और 2 करोड़ रुपये तक। |
अध्यक्ष (उच्च न्यायालय के वर्तमान न्यायाधीश या सेवानिवृत्त न्यायाधीश) और सदस्यगण। |
अपील राष्ट्रीय आयोग के समक्ष की जा सकती है। |
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राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (NCDRC) |
2 करोड़ रुपये से अधिक। |
अध्यक्ष (सर्वोच्च न्यायालय के वर्तमान या सेवानिवृत्त न्यायाधीश या उच्च न्यायालय के वर्तमान या सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश) और सदस्यगण। |
अपील सर्वोच्च न्यायालय में की जा सकती है। |
- न्यायिक निर्णय:
- इंडियन मेडिकल एसोसिएशन बनाम वी.पी. शांता (1995): सर्वोच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि चिकित्सक द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाएँ उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के दायरे में आती हैं।
- अंबरीश कुमार शुक्ला बनाम फेरस इंफ्रास्ट्रक्चर (2016): इस मामले में पैसों से संबंधित न्यायक्षेत्र (Pecuniary Jurisdiction) को स्पष्ट किया गया, जहाँ कुल दावा मूल्य (उत्पाद की लागत और मुआवज़ा) को ध्यान में रखते हुए उचित न्यायालय का निर्धारण किया गया।
- गणेशकुमार राजेश्वरराव सेलुकर और अन्य बनाम महेंद्र भास्कर लिमये और अन्य: सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार से उपभोक्ता विवादों के लिये स्थायी निर्णयात्मक निकायों की स्थापना करने का आग्रह किया। न्यायालय ने यह भी रेखांकित किया कि उपभोक्ता अधिकार संवैधानिक रूप से संरक्षित हैं और CPA, 1986 के कार्यान्वयन में अंतराल को देखते हुए एक स्थिर ढाँचे की आवश्यकता है।
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019
- CPA, 2019, जो 2020 में लागू हुआ, ने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की जगह ली और आधुनिक बाज़ार में उपभोक्ता अधिकारों और शिकायत निवारण को सुदृढ़ किया।
- यह अधिनियम न्यायसंगत व्यापार प्रथाओं, सूचित उपभोक्ता चयन और त्वरित विवाद निवारण को प्रोत्साहित करता है।
- यह कानून कई प्रमुख अधिकारों की गारंटी देता है, जिसमें शामिल है उत्पादों या सेवाओं की गुणवत्ता, मात्रा, क्षमता, शुद्धता और मानकों के संबंध में जानकारी प्राप्त करने का अधिकार, जिससे उपभोक्ताओं को असमान्य या अनुचित व्यापार प्रथाओं से सुरक्षा मिलती है।
- केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA), जिसे 2020 में CPA, 2019 के अंतर्गत स्थापित किया गया, सामूहिक स्तर पर उपभोक्ताओं के हितों की सुरक्षा करता है।
- CCPA उपभोक्ता अधिकारों को लागू करता है, असमान्य व्यापार प्रथाओं को रोकता है, भ्रामक विज्ञापनों को नियंत्रित करता है और निर्माताओं, समर्थन करने वालों तथा प्रकाशकों के विरुद्ध कार्रवाई करता है।
भारत में उपभोक्ता आयोगों में विलंब के क्या कारण हैं?
- केस बैकलॉग में वृद्धि: जनवरी 2024 तक, ज़िला, राज्य और राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोगों में 5.43 लाख मामले लंबित थे।
- वर्ष 2024 में 1.73 लाख नए मामले दायर किये गए, जबकि केवल 1.58 लाख मामलों का निपटान हुआ, जिससे बैकलॉग में लगभग 14,900 मामले और जुड़ गए।
- कठोर मानव संसाधन की कमी: राज्य और ज़िला उपभोक्ता आयोगों में अध्यक्ष और सदस्यों के कई पद रिक्त हैं, जिससे कार्यकारी बेंच की क्षमता में उल्लेखनीय कमी आई है और मामलों के निपटान की गति धीमी हो गई है।
- लगातार स्थगन: उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम (CPA), 2019 मामलों का निपटान 3–5 माह के भीतर करने का प्रावधान करता है और केवल पर्याप्त कारण प्रस्तुत किये जाने तथा लिखित रूप में कारण दर्ज होने पर ही स्थगन की अनुमति देता है।
- हालाँकि, समय की कमी, पक्षकारों की अनुपस्थिति और अधूरे रिकॉर्ड के कारण मामले बार-बार स्थगित किये जाते हैं, जिससे स्पष्ट कानूनी प्रावधानों के बावजूद नियमित देरी होती है।
- आदेशों का कमज़ोर प्रवर्तन: अंतिम आदेशों के खराब प्रवर्तन से प्रायः उपभोक्ताओं को निष्पादन कार्यवाही में जाने के लिये मज़बूर होना पड़ता है , जबकि कंपनियों द्वारा गैर-अनुपालन से पुन: मुकदमेबाज़ी होती है , जिससे मामलों की लंबितता बढ़ जाती है।
- CAG एवं उपभोक्ता मामलों के विभाग की रिपोर्टों में मुआवज़े की वसूली की कम दर को एक प्रमुख चिंता के रूप में उजागर किया गया है ।
- अपर्याप्त अवसंरचना और रसद: सीमित न्यायालय कक्ष, अपर्याप्त सहायक कर्मचारी और ई-दाखिल पोर्टल के माध्यम से कमज़ोर डिजिटल केस प्रबंधन के कारण सुनवाई के साथ-साथ मामलों की निगरानी शिथिल हो जाती है।
- विशेषज्ञ ज्ञान का अभाव: बीमा दावों, चिकित्सकीय लापरवाही या वित्तीय उत्पादों से जुड़े मामलों में विशेषज्ञ राय और तकनीकी रिपोर्टों की आवश्यकता होती है, जिससे समय-सीमा बढ़ जाती है।
- सदस्यों के पास प्रायः विषय-विशेष के प्रशिक्षण का अभाव होता है, जिससे बार-बार स्पष्टीकरण की आवश्यकता होती है और वे बाह्य विशेषज्ञों पर निर्भर हो जाते हैं।
- प्रतिपक्षों द्वारा रणनीतिक विलंब: संसाधन-संपन्न कंपनियाँ कभी-कभी व्यक्तिगत उपभोक्ताओं को आर्थिक एवं मानसिक रूप से थकाने के लिये बार-बार स्थगन का अनुरोध करती हैं।
भारत की उपभोक्ता संरक्षण पहल
- उपभोक्ता कल्याण कोष: यह उपभोक्ता संरक्षण एवं जागरूकता पहलों का समर्थन करता है। यह राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को एक उपभोक्ता कल्याण संचय कोष सृजित करने के लिये वित्तीय सहायता प्रदान करता है, जो 75:25 के अनुपात (विशेष श्रेणी के राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के लिये 90:10) में वित्तपोषित होता है।
- कार्यक्रम गतिविधियों को इस संचय से प्राप्त ब्याज के माध्यम से वित्तपोषित किया जाता है और वर्ष 2024-25 में 38.68 करोड़ रुपए जारी किये गए।
- ई-जागृति: इसे वर्ष 2025 में लॉन्च किया गया, यह उपभोक्ता शिकायत निवारण के लिये एक एकीकृत डिजिटल मंच है जो ई-दाखिल, NCDRC CMS और कॉन्फोनेट को एक ही प्रणाली में समेकित करता है।
- यह ऑनलाइन शिकायत दर्ज करने, शुल्क भुगतान, आभासी सुनवाई और मामला ट्रैकिंग को सक्षम बनाता है।
- बहुभाषी समर्थन, चैटबॉट, वॉयस-टू-टेक्स्ट सुविधाओं और भारत कोष तथा PayGov जैसे सुरक्षित भुगतान गेटवे के साथ, यह प्लेटफॉर्म सुलभता, समावेशिता, तीव्र मामला निस्तारण और NRI, वरिष्ठ नागरिकों तथा दिव्यांग व्यक्तियों सहित सभी के लिये सुरक्षित लेनदेन सुनिश्चित करता है।
- राष्ट्रीय उपभोक्ता हेल्पलाइन 2.0: यह एक AI-सक्षम, बहुभाषी शिकायत निवारण मंच है जो उपभोक्ताओं को शिकायत दर्ज करने, मुकदमेबाज़ी-पूर्व उपचार प्राप्त करने और उपभोक्ता अधिकारों की जानकारी प्राप्त करने की सुविधा प्रदान करता है।
- NCH अब प्रतिवर्ष 12 लाख से अधिक शिकायतों का समाधान करता है, जिनमें से अनेक 21 दिनों के भीतर हल हो जाती हैं। यह बढ़ते उपभोक्ता विश्वास और तीव्र डिजिटल निवारण को दर्शाता है।
- उपभोक्ता जागरूकता: उपभोक्ता मामलों के विभाग ने डार्क पैटर्न जैसी भ्रामक ऑनलाइन प्रथाओं का पता लगाने के लिये ऐरावत सुपरकंप्यूटर पर AI-आधारित डिजिटल उपकरण तैनात किए हैं।
- जागो ग्राहक जागो ऐप उपयोगकर्त्ताओं को असुरक्षित ई-कॉमर्स प्लेटफार्मों के बारे में चेतावनी देता है, जबकि जागृति ऐप और डैशबोर्ड CCPA को संदिग्ध वेबसाइटों की वास्तविक समय रिपोर्टिंग और निगरानी करने में सक्षम बनाते हैं।
- हेराफेरी को रोकने के लिये, CCPA ने ड्रिप प्राइसिंग, प्रच्छन्न विज्ञापन और झूठी तात्कालिकता जैसे डार्क पैटर्न के विरुद्ध दिशा-निर्देश जारी किये हैं, जो डिजिटल बाज़ारों में पारदर्शिता और उपभोक्ता संरक्षण को मज़बूत करते हैं।
- भारतीय मानक ब्यूरो (BIS): BIS अधिनियम, 2016 के तहत भारत का राष्ट्रीय मानक निकाय , मानकों का निर्माण करता है, उत्पादों को प्रमाणित करता है और साथ ही बाज़ार में गुणवत्ता एवं सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
- भारत में 22,300 से अधिक भारतीय मानक लागू हैं, जिनमें से 94% ISO और IEC मानदंडों के अनुरूप हैं।
- BIS गुणवत्ता नियंत्रण आदेश उपभोक्ता सुरक्षा, निर्यात प्रतिस्पर्द्धात्मकता और आयात प्रतिस्थापन का समर्थन करते हैं।
- BIS केयर ऐप उपभोक्ताओं को आभूषणों की हॉलमार्किंग को सत्यापित करने और शिकायत दर्ज़ करने में सक्षम बनाता है, जिससे पारदर्शिता और निष्पक्ष व्यापार को बढ़ावा मिलता है।
- राष्ट्रीय परीक्षण शाला (NTH): उपभोक्ता मामलों के विभाग के अंतर्गत वर्ष 1912 में स्थापित, यह इंजीनियरिंग सामग्री और उत्पादों के लिये परीक्षण, अंशांकन और गुणवत्ता प्रमाणन प्रदान करता है।
- वर्ष 2024-25 में, नमूना परीक्षण में 60% से अधिक की वृद्धि हुई, जो गुणवत्ता आश्वासन में इसकी बढ़ती भूमिका को उजागर करती है।
- विधिक मापविज्ञान (पैकेज्ड कमोडिटीज) संशोधन नियम, 2025: ये नियम, विधिक मापविज्ञान (सरकारी अनुमोदित परीक्षण केंद्र) संशोधन नियम, 2025 के साथ मिलकर लेबलिंग नियमों को सरल बनाते हैं, अनुमोदित परीक्षण केंद्रों का विस्तार करते हैं और आयातित ई-कॉमर्स वस्तुओं के लिये मूल देश के फिल्टर जैसे प्रकटीकरण मानदंडों को मज़बूत करते हैं।
- कुल मिलाकर, वे मूल्य निर्धारण में पारदर्शिता, नियामक स्पष्टता और उपभोक्ता संरक्षण में सुधार करते हैं, जबकि व्यवसायों पर अनुपालन का बोझ कम करते हैं।
- कुल मिलाकर, वे मूल्य निर्धारण में पारदर्शिता, नियामक स्पष्टता और उपभोक्ता संरक्षण में सुधार करते हैं, जबकि व्यवसायों पर अनुपालन का बोझ कम करते हैं।
भारत में उपभोक्ता आयोगों के प्रभावी कामकाज़ को मज़बूत करने के लिये कौन-से उपाय किये जा सकते हैं?
- त्वरित नियुक्तियाँ: समयबद्ध चयन प्रक्रियाओं के माध्यम से रिक्तियों को भरना और निरंतरता एवं विशेषज्ञता सुनिश्चित करने के लिये एक समर्पित उपभोक्ता न्यायिक दल बनाने पर विचार करना।
- अनिवार्य केस-फ्लो प्रबंधन: उच्च न्यायालय के केस-फ्लो नियमों के समान, लंबे समय से लंबित मामलों की अनिवार्य प्राथमिकता सूची के साथ केस-आयु मानदंड (6 महीने, 1 वर्ष, 2 वर्ष) लागू करना।
- पूर्ण एकीकृत डिजिटल न्यायनिर्णय: ई-जागृति को फाइलिंग से आगे बढ़ाकर स्वचालित सूचीकरण, दस्तावेज़ जाँच और अनुपालन ट्रैकिंग को शामिल करना, ताकि रजिस्ट्री स्तर पर होने वाली देरी और बार-बार होने वाले स्थगन में कमी आए।
- मध्यस्थता हेतु अनिवार्य संदर्भ: निम्न मूल्य और सेवा-संबंधी विवादों के लिये ज़िला स्तर पर उपभोक्ता मध्यस्थता प्रकोष्ठों को सुदृढ़ करना तथा मामलों के बोझ को घटाने के उद्देश्य से प्रवेश चरण में ही मध्यस्थता के लिये अनिवार्य संदर्भ की व्यवस्था करना।
- परिणाम-आधारित प्रदर्शन निगरानी: पारदर्शिता और प्रशासनिक जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिये प्रत्येक आयोग के लिये त्रैमासिक निपटान और लंबित मामलों की रिपोर्ट प्रकाशित करना।
निष्कर्ष:
उपभोक्ता आयोग उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करने और बाज़ार में जवाबदेही सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हालाँकि, त्वरित और प्रभावी न्याय प्रदान करने के अपने वादे को पूरा करने के लिये देरी, कर्मचारियों की कमी और प्रवर्तन संबंधी चुनौतियों का समाधान करना आवश्यक है।
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दृष्टि मेन्स का प्रश्न: प्रश्न: उपभोक्ता आयोगों की परिकल्पना सामाजिक न्याय के साधन के रूप में की गई थी। आज वे इस उद्देश्य को पूरा कर रहे हैं या नहीं, इसका आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये। |
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
1. भारत में राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस क्यों. मनाया जाता है?
यह उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के लागू होने का प्रतीक है और इसका उद्देश्य उपभोक्ता अधिकारों, जागरूकता और निष्पक्ष बाज़ार प्रथाओं को बढ़ावा देना है।
2. भारत में उपभोक्ता आयोगों का उद्देश्य क्या है?
उपभोक्ता आयोग उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के तहत अनुचित व्यापार प्रथाओं, दोषपूर्ण वस्तुओं और दोषपूर्ण सेवाओं के खिलाफ त्वरित और किफायती निवारण प्रदान करते हैं।
3. उपभोक्ता आयोगों की वर्तमान संरचना क्या है?
भारत में मौद्रिक क्षेत्राधिकार पर आधारित ज़िला, राज्य और राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोगों से युक्त त्रिस्तरीय प्रणाली का पालन किया जाता है।
4. वैधानिक समय-सीमा के बावजूद उपभोक्ता आयोगों को देरी का सामना क्यों करना पड़ रहा है?
लंबित मामलों की बढ़ती संख्या, आयोगों में रिक्तियाँ, बार-बार स्थगन और प्रक्रियात्मक अक्षमताएँ 3-5 महीने के निपटान के लक्ष्य को कमज़ोर कर रही हैं।
5. ई-दाखिल पोर्टल की क्या भूमिका है?
ई-दाखिल ऑनलाइन फाइलिंग, ई-नोटिस, दस्तावेज़ तक पहुँच और वर्चुअल सुनवाई की सुविधा प्रदान करता है, जिससे शारीरिक यात्रा और प्रक्रियात्मक देरी कम होती है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न
प्रिलिम्स
प्रश्न.1 भारतीय विधान के प्रावधानी के अंतर्गत उपभोक्ताओं के अधिकारों/विशेषाधिकार्ते के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं? (2012)
- उपभोक्ताओं को खाद्य की जाँच करने के लिये नमूने लेने का अधिकार है।
- उपभोक्ता यदि उपभीक्ता मंच में अपनी शिकायत दर्ज करता है तो उसे इसके लिए कोई फींस नहीं देनी होती।
- उपभोक्ता की मृत्यु हो जाने पर उसका वैधानिक उत्तराधिकारी उसकी ओर से उपभोक्ता मंच में शिकायत दर्ज कर सकता है।
निम्नलिखित कूटों के आधार पर सही उत्तर चुनिये:
(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: c
मेन्स
प्रश्न. अर्द्ध-न्यायिक (न्यायिकवत) निकाय से क्या तात्पर्य है? ठोस उदाहरणों की सहायता से स्पष्ट कीजिये। (2016)
प्रश्न. आप इस मत से कहाँ तक सहमत हैं कि अधिकरण सामान्य न्यायालयों की अधिकारिता को कम करते हैं? उपर्युक्त को दृष्टिगत रखते हुए भारत में अधिकरणों की संवैधानिक वैधता तथा सक्षमता की विवेचना कीजिये। (2018)
