भारत में 'मैनुअल स्कैवेंजिंग' | 08 Jun 2023

प्रिलिम्स के लिये:

मैनुअल स्कैवेंजिंग, भारतीय संविधान, हाथ से मैला उठाने वाले कर्मियों के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013, NAMASTE योजना, सफाई मित्र सुरक्षा चैलेंज, स्वछता अभियान एप 

मेन्स के लिये:

भारत में हाथ से मैला उठाने की प्रथा का निरंतर प्रसार, इसके उन्मूलन हेतु सरकार द्वारा शुरू की गई पहलें

चर्चा में क्यों?  

केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा हाल ही में जारी आँकड़ों के अनुसार, 766 में से केवल 508 ज़िलों ने स्वयं को मैला ढोने की प्रथा से मुक्त घोषित किया है। 

  • यह विसंगति मैला ढोने की प्रथा की वास्तविक स्थिति और सरकारी प्रयासों की प्रभावशीलता को लेकर चिंता उत्पन्न करती है।

मैनुअल स्कैवेंजिंग/हाथ से मैला उठाने की प्रथा:

  • हाथ से मैला ढोने की प्रथा को ‘‘किसी सुरक्षा साधन के बिना और नग्न हाथों से सार्वजनिक सड़कों एवं सूखे शौचालयों से मानव मल को हटाने, सेप्टिक टैंक, गटर एवं सीवर की सफाई करने’’ के रूप में परिभाषित किया गया है।
    • भारत में हाथ से मैला ढोने की प्रथा एक लंबे समय से चली आ रही समस्या है, हालाँकि इसे वर्ष 1993 से आधिकारिक रूप से प्रतिबंधित कर दिया गया है।

हाथ से मैला उठाने वालों के लिये संवैधानिक सुरक्षा उपाय और कानूनी प्रावधान: 

  • संवैधानिक सुरक्षा उपाय: भारतीय संविधान हाथ से मैला उठाने वालों को विभिन्न अधिकार और सुरक्षा की गारंटी प्रदान करता है, जैसे: 
    • अनुच्छेद 14: कानून के समक्ष समानता 
    • अनुच्छेद 17: अस्पृश्यता उन्मूलन और किसी भी रूप में इसके अभ्यास पर प्रतिबंध।
    • अनुच्छेद 21: जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का संरक्षण।
    • अनुच्छेद 23: मानव के दुर्व्यापार और बलात् श्रम का निषेध। 
  • विधिक प्रावधान: हाथ से मैला उठाने वाले कर्मियों के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013 मुख्य कानून है जिसका उद्देश्य भारत में इस प्रथा को प्रतिबंधित और उन्मूलन करना है। यह किसी को भी हाथ से मैला ढोने वाले के रूप में नियोजित करने अथवा नियुक्त करने पर रोक लगाता है और अस्वच्छ शौचालयों के निर्माण अथवा रखरखाव को भी प्रतिबंधित करता है। 

भारत में हाथ से मैला उठाने की प्रथा के निरंतर प्रसार के कारण: 

  • अकुशल सीवेज प्रबंधन प्रणाली: भारत में अधिकांश नगरपालिकाओं के पास सीवेज सिस्टम की सफाई के लिये नवीनतम मशीनें नहीं हैं, ऐसे में सीवेज कर्मचारियों को मैनहोल के माध्यम से भूमिगत सीवरेज लाइनों में प्रवेश करना पड़ता है।
  • साथ ही अकुशल मज़दूरों को काम पर रखना बहुत सस्ता होता है और ठेकेदार अवैध रूप से इनसे दैनिक मज़दूरी पर काम में लाते हैं।
  • जाति आधारित सामाजिक पदानुक्रम: मैला ढोने की प्रथा ऐतिहासिक रूप से भारत में जाति व्यवस्था से जुड़ी हुई है, जिसमें कुछ जातियों/जनजातियों को "अशुद्ध" अथवा "प्रदूषणकारी" माने जाने वाले व्यवसायों में धकेल दिया गया है।
  • जाति-आधारित भेदभाव और सामाजिक कलंक इन हाशिये के समुदायों के लिये रोज़गार के साधन के रूप में मैला ढोने की निरंतरता में योगदान देता है।
  • आजीविका के वैकल्पिक अवसरों की कमी: प्रभावित समुदायों के लिये सीमित वैकल्पिक रोज़गार के अवसरों के कारण समाज में मैनुअल स्कैवेंजिंग की प्रथा बनी हुई है।
    • अनेक मैनुअल स्कैवेंजर (मैला ढोने वाले) गरीबी और बहिष्करण के दुष्चक्र में फँसे हुए हैं। शिक्षा एवं कौशल विकास कार्यक्रमों तक पहुँच की कमी के कारण उन्हें वैकल्पिक आजीविका के अवसर उपलब्ध नहीं हैं। 
    • आर्थिक विकल्पों की कमी उन्हें जीवित रहने के लिये मैनुअल स्कैवेंजिंग का काम जारी रखने के लिये विवश करती है।

मैनुअल स्कैवेंजिंग के प्रभाव: 

  • स्वास्थ्य संबंधी खतरे: मानव अपशिष्ट और खतरनाक पदार्थों के सीधे संपर्क में आने के कारण मैनुअल स्कैवेंजर को गंभीर स्वास्थ्य जोखिमों का सामना करना पड़ता है।
    • उन्हें हैजा, टाइफाइड, हेपेटाइटिस और विभिन्न श्वसन संक्रमण जैसे रोगों का उच्च जोखिम है।
    • सुरक्षात्मक उपकरणों की कमी और स्वच्छता की खराब स्थिति स्वास्थ्य संबंधी खतरों को और अधिक बढ़ा देती है जिसके कारण हाथ से मैला ढोने वालों में बीमारियों एवं समय से पहले मौत के अधिक मामले देखे जाते हैं।
  • गरिमा और मानवाधिकारों का उल्लंघन: मैनुअल स्कैवेंजिंग के कार्य में शामिल व्यक्तियों की गरिमा और मानवाधिकारों का स्पष्ट उल्लंघन होता है।
    • इसमें शामिल लोग मानव अपशिष्ट को हाथों से उठाने/संभालने के साथ ही बुनियादी स्वच्छता सुविधाओं तक पहुँच की कमी के कारण अमानवीय एवं अत्यंत गंभीर परिस्थितियों के अधीन हैं।
    • यह पेशा सामाजिक कलंक, भेदभाव और प्रभावित समुदायों को हाशिये पर धकेलने तथा जाति आधारित उत्पीड़न को बढ़ावा देता है।
  • मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक आघात: मैनुअल स्कैवेंजिंग के कार्य में शामिल व्यक्तियों पर गंभीर मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
    • लगातार गंदगी के संपर्क में रहना, कार्य संबंधी बदनामी तथा भेदभाव का सामना करना आदि इनके मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव डालता है। मैनुअल स्कैवेंजर प्रायः शर्म, आत्मसम्मान की कमी और अवसाद की भावना का सामना करते हैं, जिसके कारण उन्हें दीर्घकालिक मनोवैज्ञानिक आघात का सामना करना पड़ता है।

मैनुअल स्कैवेंजिंग पर अंकुश लगाने हेतु सरकार की पहल तथा सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश:

  • सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश:  
  • वर्ष 2014 में सर्वोच्च न्यायालय के एक आदेश ने सरकार को  वर्ष 1993 से सीवेज कार्य में मरने वाले सभी लोगों की पहचान करने तथा प्रत्येक के परिवार को मुआवज़े के रूप में 10 लाख रुपए प्रदान करना अनिवार्य कर दिया।
  • पुनर्वास के प्रयास:  
    • भुगतान और सब्सिडी:  
      • लगभग 58,000 मैनुअल स्कैवेंजर की पहचान की गई है तथा प्रत्येक को 40,000 रुपए का एकमुश्त नकद भुगतान किया गया है।
        • लगभग 22,000 मैनुअल स्कैवेंजर को कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रमों से जोड़ा गया है।  
        • अपना स्वयं का व्यवसाय शुरू करने में रुचि रखने वालों को सहायता प्रदान करने हेतु सब्सिडी और ऋण उपलब्ध कराया जाता है। इसका उद्देश्य मैनुअल स्कैवेंजिंग से होने वाली मौतों को पूरी तरह समाप्त करना है।
    • NAMASTE योजना के साथ विलय: 
      • सीवर कार्य के 100% मशीनीकरण के साथ सभी मैनुअल स्कैवेंजर के पुनर्वास की योजना को नमस्ते योजना (NAMASTE scheme) के साथ मिला दिया गया है।
      • वित्त वर्ष 2023-24 के केंद्रीय बजट में पुनर्वास योजना हेतु विशिष्ट आवंटन का अभाव है, लेकिन नमस्ते योजना के लिये 100 करोड़ रुपए आवंटित किये गए हैं।
      • नमस्ते योजना में सभी सेप्टिक टैंक/सीवर श्रमिकों की पहचान और प्रोफाइलिंग आवश्यक है, आयुष्मान भारत योजना के तहत व्यावसायिक प्रशिक्षण और सुरक्षा उपकरण और स्वास्थ्य बीमा में नामांकन का प्रावधान है।
  • अन्य संबंधित पहलें:

आगे की राह  

  • प्रौद्योगिकी-संचालित समाधान: नवोन्मेषी उपकरण और मशीनरी विकसित करने के लिये प्रौद्योगिकी को अपनाने की आवश्यकता है जो मैला ढोने के कार्यों को प्रतिस्थापित कर सके।
    • उदाहरणतः खतरनाक वातावरण में मानव हस्तक्षेप की आवश्यकता को कम करने, सीवर लाइन और सेप्टिक टैंकों को साफ करने के लिये स्वचालित सीवर सफाई रोबोट तैनात किये जा सकते हैं।
  • उद्यमिता और कौशल विकास को बढ़ावा देना: प्रभावित व्यक्तियों के प्रशिक्षण और कौशल विकास को प्रोत्साहित करने, वैकल्पिक आजीविका के अवसरों का पता लगाने के लिये उन्हें सशक्त बनाने की आवश्यकता है। 
    • सरकारी और गैर-सरकारी संगठन पाइप लाइन, विद्युत कार्य, कंप्यूटर साक्षरता और उद्यमिता जैसे क्षेत्रों में व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रदान करना ताकि मैला ढोने वालों को सुरक्षित तथा अधिक प्रतिष्ठित व्यवसायों में रोज़गार पाने में मदद मिल सके।
  • स्वच्छता अवसंरचना उन्नयन: आधुनिक शौचालयों, सीवेज उपचार संयंत्रों और कुशल अपशिष्ट प्रबंधन प्रणालियों के निर्माण सहित स्वच्छता बुनियादी ढाँचे के विकास तथा सुधार में निवेश करना।
    • ये प्रयास मैला ढोने की प्रथा को रोककर अपशिष्ट निपटान के लिये सुरक्षित विकल्प प्रदान करेंगे।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. एक राष्ट्रीय मुहीम ‘राष्ट्रीय गरिमा अभियान' चलाई गई है: (2016)

(a) आवासहीन और निराश्रित लोगों के पुनर्वासन और उन्हें उपयुक्त जीविकोपार्जन के स्रोत प्रदान करने के लिये।  
(b) यौन-कर्मियों को उनके पेशे से मुक्त कराने और उन्हें जीविकोपार्जन के वैकल्पिक स्रोत प्रदान करने के लिये।
(c) मैला ढोने की प्रथा को समाप्त करने और मैला ढोने वाले कर्मियों के पुनर्वासन के लिये। 
(d) बंधुआ मज़दूरों को बंधन से मुक्त कराने और उनके पुनर्वासन के लिये। 

उत्तर: (c)   

स्रोत: द हिंदू