मैनुअल स्कैवेंजिंग | 08 Apr 2022

प्रिलिम्स के लिये:

मैला ढोने/मैनुअल स्कैवेंजिंग की समस्या से निपटने हेतु पहलें, स्वच्छ भारत मिशन।

मेन्स के लिये:

हाथ से मैला ढोने की समस्या, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति से संबंधित मुद्दे।

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा जानकारी साझा की गई है कि वर्ष 1993 से अब तक कुल 971 लोगों ने सीवर या सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान अपनी जान गंँवाई है।

  • इससे पहले केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग (National Commission for Safai Karamcharis- NCSK) के कार्यकाल को 31 मार्च, 2022 से आगे और तीन साल बढ़ाने हेतु मंजूरी दी गई थी। इसके प्रमुख लाभार्थी देश में सफाई कर्मचारी और पहचान किये गए हाथ से मैला ढोने वाले/मैनुअल स्कैवेंजिंग के कार्य में संलग्न लोग होंगे।

प्रमुख बिंदु

मैनुअल स्कैवेंजिंग:

  • मैनुअल स्कैवेंजिंग (Manual Scavenging) या हाथ से मैला ढोने को "सार्वजनिक सड़कों और सूखे शौचालयों से मानव मल को हटाने, सेप्टिक टैंक, नालियों एवं सीवर की सफाई" के रूप में परिभाषित किया गया है। 

मैनुअल स्कैवेंजिंग की कुप्रथा के प्रसार का कारण:

  • उदासीन रवैया: कई अध्ययनों में राज्य सरकारों द्वारा इस कुप्रथा को समाप्त कर पाने में असफलता को स्वीकार न करना और इसमें सुधार के प्रयासों की कमी को एक बड़ी समस्या बताया गया है।
  • आउटसोर्स की समस्या: कई स्थानीय निकायों द्वारा सीवर सफाई जैसे कार्यों के लिये निजी ठेकेदारों से अनुबंध किया जाता है परंतु इनमें से कई फ्लाई-बाय-नाइट ऑपरेटर" (Fly-By-Night Operator), सफाई कर्मचारियों के लिये उचित दिशा-निर्देश एवं नियमावली का प्रबंधन नहीं करते हैं। 
    • ऐसे में सफाई के दौरान किसी कर्मचारी की मृत्यु होने पर इन कंपनियों या ठेकेदारों द्वारा मृतक से किसी भी प्रकार का संबंध होने से इनकार कर दिया जाता है।
  • सामाजिक मुद्दा: मैनुअल स्कैवेंजिंग की प्रथा जाति, वर्ग और आय के विभाजन से प्रेरित है।
    • यह प्रथा भारत की जाति व्यवस्था से जुड़ी हुई है, जहाँ तथाकथित निचली जातियों से ही इस काम को करने की उम्मीद की जाती है।  
    • “मैनुअल स्कैवेंजर्स का रोज़गार और शुष्क शौचालय का निर्माण (निषेध) अधिनियम, 1993” के तहत देश में हाथ से मैला ढोने की प्रथा को प्रतिबंधित कर दिया गया है, हालाँकि इसके साथ जुड़ा कलंक व भेदभाव अब भी जारी है।  
      • इससे हाथ से मैला ढोने वालों के लिये वैकल्पिक आजीविका सुरक्षित करना मुश्किल हो जाता है।

मैला ढोने की समस्या से निपटने हेतु उठाए गए कदम:

  • हाथ से मैला उठाने वाले कर्मियों के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास (संशोधन) विधेयक, 2020:
    • इसमें सीवर की सफाई को पूरी तरह से मशीनीकृत करने, 'ऑन-साइट' सुरक्षा के उपाय करने और सीवर सफाई के दौरान होने वाली मौतों के मामले में मैनुअल स्कैवेंजर्स को मुआवज़ा प्रदान किये जाने का प्रस्ताव है।
    • यह मैनुअल स्कैवेंजर्स के रूप में नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013 में संशोधन होगा।
    • इसे अभी तक कैबिनेट से मंज़ूरी नहीं मिली है।
  • हाथ से मैला उठाने वाले कर्मियों के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013:
    • वर्ष 1993 के अधिनियम का स्थान लेते हुए वर्ष 2013 का अधिनियम सूखे शौचालयों पर प्रतिबंध से परे है तथा यह अस्वच्छ शौचालयों, खुली नालियों एवं गड्ढों आदि सभी की मैनुअल सफाई को अवैध बनाता है।
  • अस्वच्छ शौचालयों का निर्माण और रखरखाव अधिनियम 2013:
    • यह अस्वच्छ शौचालयों के निर्माण या रखरखाव तथा किसी को भी हाथ से मैला ढोने हेतु काम पर रखने के साथ-साथ सीवर और सेप्टिक टैंकों की खतरनाक सफाई को गैरकानूनी घोषित करता है।
    • यह अन्याय और अपमान की क्षतिपूर्ति के रूप में हाथ से मैला ढोने वाले समुदायों को वैकल्पिक रोज़गार तथा अन्य सहायता प्रदान करने के लिये एक संवैधानिक ज़िम्मेदारी भी प्रदान करता है।
  • अत्याचार निवारण अधिनियम:
    • वर्ष 1989 में अत्याचार निवारण अधिनियम स्वच्छता संबंधी कार्यकर्त्ताओं के लिये एक समन्वित गार्ड बन गया। इस दौरान मैला ढोने वालों के रूप में कार्यरत 90% से अधिक लोग अनुसूचित जाति के थे। यह मैला ढोने वालों को निर्दिष्ट पारंपरिक व्यवसायों से मुक्त करने के लिये यह एक महत्त्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुआ।
  • सफाई मित्र सुरक्षा चुनौती:
    • इसे आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय द्वारा वर्ष 2020 में विश्व शौचालय दिवस (19 नवंबर) पर लॉन्च किया गया था।
    • सरकार द्वारा सभी राज्यों के लिये अप्रैल 2021 तक सीवर-सफाई को मशीनीकृत करने हेतु इसे एक ‘चुनौती’ के रूप में शुरू किया गया, इसके तहत यदि किसी व्यक्ति को अपरिहार्य आपात स्थिति में सीवर लाइन में प्रवेश करने की आवश्यकता होती है, तो उसे उचित गियर और ऑक्सीजन टैंक आदि प्रदान किये जाते हैं।
  • 'स्वच्छता अभियान एप':
    • इसे अस्वच्छ शौचालयों और हाथ से मैला ढोने वालों के डेटा की पहचान एवं जियोटैग करने हेतु विकसित किया गया है, ताकि अस्वच्छ शौचालयों को सैनिटरी शौचालयों में बदला जा सके और सभी हाथ से मैला ढोने वालों को जीवन की गरिमा प्रदान करने हेतु उनका पुनर्वास किया जा सके।
  • सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय: वर्ष 2014 में सर्वोच्च न्यायालय के एक आदेश ने सरकार के लिये उन सभी लोगों की पहचान करना अनिवार्य कर दिया था, जो वर्ष 1993 से सीवेज के काम में मारे गए थे और प्रत्येक व्यक्ति के परिवार को मुआवज़े के रूप में 10 लाख रुपए दिये जाने का भी आदेश दिया गया था।

आगे की राह

  • स्थानीय प्रशासन को सशक्त बनाना: स्वच्छ भारत मिशन को 15वें वित्त आयोग द्वारा सर्वोच्च प्राथमिकता वाले क्षेत्र के रूप में पहचाना गया और स्मार्ट शहरों एवं शहरी विकास के लिये उपलब्ध धन के साथ हाथ से मैला ढोने की समस्या का समाधान करने के लिये एक मज़बूत आधार प्रदान किया गया।
  • सामाजिक सुभेद्यता: हाथ से मैला ढोने के पीछे की सामाजिक स्वीकृति को संबोधित करने के लिये पहले यह स्वीकार करना और समझना आवश्यक है कि कैसे और क्यों जाति व्यवस्था के कारण हाथ से मैला ढोना अभी भी जारी है।
  • राज्य और समाज को रुचि लेने की आवश्यकता: राज्य एवं समाज को इस मुद्दे में सक्रिय रूप से रुचि लेने की ज़रूरत है और इस प्रथा का सही आकलन कर इसके उन्मूलन के लिये सभी संभावित विकल्पों पर गौर करने की ज़रूरत है।

विगत वर्षों के प्रश्न:

प्रश्न: 'राष्ट्रीय गरिमा अभियान' एक राष्ट्रीय अभियान है, जिसका उद्देश्य है: (2016)

(a) बेघर एवं निराश्रित व्यक्तियों का पुनर्वास और उन्हें आजीविका के उपयुक्त स्रोत प्रदान करना।
(b) यौनकर्मियों को उनके अभ्यास से मुक्त करना और उन्हें आजीविका के वैकल्पिक स्रोत प्रदान करना।
(c) हाथ से मैला ढोने की प्रथा को खत्म करना और हाथ से मैला ढोने वालों का पुनर्वास करना।
(d) बंधुआ मज़दूरों को मुक्त करना और उनका पुनर्वास करना।

उत्तर: (c)

  • राष्ट्रीय गरिमा अभियान वर्ष 2001 में शुरू किया गया, मैला ढोने की प्रथा के उन्मूलन और इस कार्य में संलग्न लोगों के लिये गरिमापूर्ण जीवन सुनिश्चित करने हेतु यह एक राष्ट्रीय अभियान है। अतः विकल्प (c) सही है।

स्रोत: द हिंदू