अंतर्राष्ट्रीय सहकारिता दिवस | 05 Jul 2022

प्रिलिम्स के लिये:

अंतर्राष्ट्रीय सहकारिता दिवस, प्राथमिक कृषि ऋण समितियाँ (PACS)।

मेन्स के लिये:

सहकारी समितियों के कार्य एवं आत्मानिर्भर भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु आर्थिक दक्षता, समानता और नवाचार में वे कैसे मदद कर सकती हैं।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में 100वांँ अंतर्राष्ट्रीय सहकारिता दिवस मनाया गया।

  • भारत ने "सहकारिता के माध्यम से आत्मनिर्भर भारत और बेहतर विश्व का निर्माण" विषय के तहत यह सहकारिता दिवस मनाया।

अंतर्राष्ट्रीय सहकारिता दिवस:

  • ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य:
    • 16 दिसंबर, 1992 को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा जुलाई के पहले शनिवार को अंतर्राष्ट्रीय सहकारिता दिवस के रूप में घोषित किया गया था।
    • इस दिवस का उद्देश्य वैश्विक स्तर पर सहकारी समितियों को बढ़ावा देना और एक ऐसा वातावरण तैयार करना है जो उनके विस्तार और लाभप्रदता को बढ़ावा दे।
    • यह अवसर संयुक्त राष्ट्र द्वारा संबोधित प्रमुख मुद्दों से निपटने के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सहकारी आंदोलन और अन्य कारकों के बीच गठबंधन को बढ़ाने एवं विस्तारित करने के लिये सहकारी आंदोलन के योगदान पर प्रकाश डालता है।
  • महत्त्व:
    • इसका उद्देश्य सहकारी समितियों के बारे में जागरूकता बढ़ाना और आंदोलन के मूल्यों को आगे बढ़ाना है:
      • अंतर्राष्ट्रीय एकता
      • आर्थिक दक्षता
      • समानता
      • वैश्विक शांति
  • 2022 की थीम:
    • “सहकारिता एक बेहतर विश्व का निर्माण करती है” (Cooperatives Build a Better World)।

सहकारी समितियांँ:

  • परिचय:
    • सहकारिताएंँ जन-केंद्रित उद्यम हैं जिनका स्वामित्व, नियंत्रण और संचालन उनके सदस्यों द्वारा उनकी सामान्य आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक आवश्यकताओं तथा आकांक्षाओं को पूरा करने के लिये किया जाता है।
    • सहकारिता लोगों को लोकतांत्रिक और समान तरीके से एक साथ लाती है। सदस्य चाहे ग्राहक हों, कर्मचारी हों, उपयोगकर्त्ता हों या निवासी हों, सहकारी समितियों का प्रबंधन लोकतांत्रिक तरीके से 'एक सदस्य, एक वोट' नियम द्वारा किया जाता है।
      • उद्यम में किये गए पूंजी निवेश की परवाह किये बिना सदस्यों को समान मतदान अधिकार प्राप्त है।
  • भारतीय परिप्रेक्ष्य:
    • वर्तमान में भारत में 90 प्रतिशत गांँवों को कवर करने वाली 8.5 लाख से ज़्यादा सहकारी समितियों के नेटवर्क के साथ ये ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में समावेशी विकास के उद्देश्य से सामाजिक-आर्थिक क्षेत्र के विकास के लिये महत्त्वपूर्ण संस्थान हैं।
    • भारत में सहकारिता आंदोलन की सफलता की कुछ जानी मानी कहानियों में शामिल हैं:

संबंधित सरकारी पहल:

  • सहकारिता क्षेत्र को प्रोत्साहन देने के क्रम में केंद्र सरकार ने जुलाई 2021 में सहकारिता मंत्रालय की स्थापना की थी। इसके गठन के बाद से मंत्रालय नई सहकारिता नीति और योजनाओं के मसौदे पर काम कर रहा है।
  • सहकारिता क्षेत्र में देश के किसान, कृषि और ग्रामीण क्षेत्रों के विकास एवं सशक्तीकरण के लिये पर्याप्त संभावनाएंँ हैं।
  • हाल में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (PACS) के डिजिटलीकरण को स्वीकृति देकर सहकारिता क्षेत्र को मज़बूत बनाने का अहम निर्णय लिया है। इसका उद्देश्य PACS की दक्षता बढ़ाना, पारदर्शिता के साथ संचालन कर उनकी विश्वसनीयता को बढ़ान, PACS के कामकाज में विविधता लाना और कई गतिविधियों/सेवाओं के संचालन में सहायता देना है।

सहकारिता के समक्ष चुनौतियाँ:

  • नीति निर्माताओं द्वारा उपेक्षा: सहकारिता की भूमिका को नीति निर्माताओं द्वारा उनकी अदूरदर्शिता के कारण विभिन्न स्तरों पर अनदेखा किया गया है।
  • जागरूकता का अभाव: व्यावसायिक रणनीतियों और बाज़ार गतिविधियों के बारे में जागरूकता एवं जानकारी की कमी।
  • वित्तपोषण और क्षमताओं की कमी: सार्वजनिक हो या निजी क्षेत्र दोनों में ही इस क्षेत्र के प्रति विश्वास की कमी देखी गई है, क्योंकि सहकारी समितियों के लिये बहुत कम या कोई वित्तीय सहायता उपलब्ध नहीं है, जो  उनकी क्षमता को नुकसान पहुँचाता है।
  • खराब प्रबंधन: बाज़ार के बारे में समझ की कमी और श्रमिकों में कौशल की कमी के कारण कई सहकारी समितियाँ खराब प्रदर्शन करती रही हैं और वांछित परिणाम देने में असफल रही हैं।

आगे की राह

  • सहकारी समितियों की द्वैध भूमिका: सरकार और कॉर्पोरेट्स सहित विभिन्न हितधारकों को सहकारी समितियों के सबसे उल्लेखनीय प्रतिस्पर्द्धात्मक लाभ (यानी एक संगठन और एक उद्यम के रूप में उनकी दोहरी स्थिति) को सामने लाकर उनकी भूमिका को पूर्णता प्रदान करनी चाहिये तथा उन्हें आगे और समर्थन देना चाहिये।
  • सरकार की भूमिका: सरकार को उनकी क्षमताओं के संवर्द्धन हेतु कार्य करना होगा, उन्हें बाज़ार और व्यापारिक समुदायों की ओर से उचित मार्गदर्शन एवं समर्थन मिलना सुनिश्चित हो, ताकि वे उद्यम के संचालन हेतु आवश्यक कौशल एवं ज्ञान का वांछित स्तर प्राप्त कर सकें और पर्यावरणीय समस्याओं के समाधान में इन क्षमताओं का उपयोग कर सकें।

स्रोत: पी.आई.बी.