GLOFS के खिलाफ भारत की तैयारी | 31 Jul 2025

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA), हिमनद झील विस्फोट बाढ़ (GLOF), भूस्खलन, हिमनद झील, फ्लैश फ्लड, अंतर्राष्ट्रीय एकीकृत पर्वतीय विकास केंद्र (ICIMOD)

मेन्स के लिये:

हिमनद झीलों पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव और उनके परिणाम।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

नेपाल में लगातार हो रही हिमनद झील विस्फोट बाढ़ (Glacial Lake Outburst Flood- GLOF) की घटनाओं ने भारतीय हिमालयी क्षेत्र (IHR) में चिंता बढ़ा दी है, जहाँ हजारों हिमनद झीलें हैं, जो जलवायु-जनित आपदाओं के प्रति संवेदनशील हैं।

हिमनद झील विस्फोट बाढ़ (GLOF) क्या है?

  • परिचय: GLOF एक बाढ़ है जो हिमनद झील से पानी के अचानक और तेज़ी से निकलने के कारण उत्पन्न होती है, जो अक्सर मोरेन (ढीली चट्टान और मलबे) बाँध या बर्फ बाँध की विफलता के कारण होती है।

  • कारण:
    • जलवायु परिवर्तन के कारण हिमनदों का पीछे हटना: भारतीय हिमालयी क्षेत्र (IHR) में तेज़ी से पिघलते हिमनदों के कारण 7,500 से ज़्यादा हिमनद झीलें बन गई हैं, जिनमें से कई 4,500 मीटर से भी ऊँची हैं और अक्सर अस्थिर हिमोढ़ों से अवरुद्ध हो जाती हैं। उदाहरण के लिये वर्ष 2013 में उत्तराखंड में ग्लेशियर पिघलने तथा भारी वर्षा के कारण बाढ़ आई थी।
    • बादल फटना और अत्यधिक वर्षा: अचानक तीव्र वर्षा से झीलों का जल स्तर बढ़ जाता है, जिससे कमज़ोर हिमोढ़ बाँधों पर दबाव पड़ता है। उदाहरण: केदारनाथ GLOF (2013), उत्तरी सिक्किम GLOF (जून 2023)।
    • हिमस्खलन और भूस्खलन: झीलों में बर्फ/चट्टान गिरने से विस्थापन तरंगें उत्पन्न होती हैं, जिससे बाँध टूट जाते हैं। उदाहरण: चमोली (2021), दक्षिण ल्होनक झील (2023)।
    • भूकंपीय गतिविधि: हिमालय भूकंपीय क्षेत्र IV और V में आता है, जिससे यह क्षेत्र भूकंपों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हो जाता है। उदाहरण के लिये वर्ष 2015 के नेपाल भूकंप ने झील की स्थिरता को बदल दिया, जिससे GLOF का खतरा बढ़ गया।
    • आंतरिक रिसाव और कमज़ोर हिमोढ़: पाइपिंग के कटाव से हिमोढ़ बाँध कमज़ोर हो जाते हैं, जिससे अचानक दरारें पड़ जाती हैं। उदाहरण: वर्ष 1985 डिग त्सो GLOF, नेपाल।
    • अनियमित बुनियादी ढाँचे का विकास: हिमनद और नदी क्षेत्रों में जल विद्युत परियोजनाओं, सड़कों और बस्तियों का निर्माण नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र को अस्थिर करता है।
      • उदाहरण: तीस्ता-III बाँध, एक प्रमुख जलविद्युत परियोजना, 2023 सिक्किम GLOF के दौरान नष्ट हो गई थी।

हिमालय में हिमनद झीलों के प्रकार

  • सुप्राग्लेशियल झीलें: पिघले हुए पानी के संचय के कारण हिमनदों की सतह पर बनती हैं, गर्मियों में पिघलने के दौरान अत्यधिक संवेदनशील होती हैं।
  • हिमोढ़-बांधित झीलें: ये झीलें हिमनद के मुहाने के पास स्थित होती हैं और अव्यवस्थित मलबे या बर्फ-कोर हिमोढ़ द्वारा रोकी जाती हैं, इनकी संरचना कमज़ोर होती है और बाहरी दबाव के कारण इनके अचानक टूटने की संभावना रहती है।

हिमनद झील विस्फोट बाढ़ (GLOF) के प्रति भारत की संवेदनशीलता क्या है?

  • भौगोलिक विस्तार और संवेदनशीलता: भारतीय हिमालयी क्षेत्र (IHR) 11 प्रमुख नदी घाटियों में फैला हुआ है और इसमें 28,000 से अधिक हिमनदीय झीलें हैं, जिनमें से लगभग 7,500 भारत में स्थित हैं, जो मुख्यतः 4,500 मीटर से अधिक ऊँचाई पर पाई जाती हैं।
    • ये उच्च हिमालयी झीलें दूरस्थ और दुर्गम क्षेत्रों में स्थित होती हैं, जिससे वर्ष भर निगरानी और भौतिक सर्वेक्षण करना सीमित हो जाता है।
    • ISRO के उपग्रह आँकड़ों (1984–2023) से पता चलता है कि वर्ष 2016–17 में पहचानी गई 10 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्रफल वाली 2,431 हिमनदीय झीलों में से 676 झीलों का आकार काफी बढ़ गया है, जिनमें से 601 झीलों का आकार दोगुने से भी अधिक हो गया है। यह क्षेत्र में हिमनद झील विस्फोट बाढ़ (GLOF) की बढ़ती संवेदनशीलता को दर्शाता है।
  • पूर्ववर्ती GLOF घटनाएँ: वर्ष 2023 में दक्षिण लोनक (सिक्किम) में हुई GLOF घटना ने ₹16,000 करोड़ की चुंगथांग जलविद्युत परियोजना को नष्ट कर दिया, तीस्ता नदी में गाद जमाव (सिल्टिंग) को बढ़ा दिया, और नदी तल की क्षमता को घटा दिया, जिससे नीचे की ओर बाढ़ का खतरा और बढ़ गया।
    • वर्ष 2013 की चोराबाड़ी GLOF (उत्तराखंड) ने केदारनाथ त्रासदी के दौरान बादल फटने, भूस्खलनों और भारी जनहानि जैसी शृंखलाबद्ध आपदाओं को जन्म दिया।
  • जलवायु संबंधी कारण: जलवायु परिवर्तन, नाजुक स्थलाकृति, और मज़बूत पूर्व चेतावनी प्रणाली के अभाव के कारण GLOF का जोखिम बढ़ रहा है। लगभग दो-तिहाई (66%) GLOF हिम या भूस्खलन के कारण होते हैं, जबकि बाकी झड़ते पानी के दबाव से कमजोर मोरेन बाँधों के टूटने या भूकंपीय गतिविधि के कारण होते हैं।
    • वर्ष 2023 और 2024 की अभूतपूर्व गर्मी और स्थानीयकृत अत्यधिक गर्मी के क्षेत्र बनने से हिमनदीयों के पिघलने और GLOF की संवेदनशीलता और भी बढ़ गई है।
  • निगरानी की सीमाएँ: उच्च लागत और चुनौतीपूर्ण भूभाग के कारण भारत में हिमनद क्षेत्रों में स्वचालित मौसम तथा जल निगरानी प्रणालियों का अभाव है।
    • वर्तमान निगरानी मुख्य रूप से रिमोट सेंसिंग पर निर्भर है, जो झील की सतह के विस्तार को ट्रैक करती है लेकिन इसकी पूर्वानुमान क्षमता सीमित होती है और यह ज्यादातर बाद में हुई घटनाओं पर आधारित होती है।
  • डाउनस्ट्रीम परिसंपत्तियों के लिये जोखिम: GLOFs के कारण घरों, महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे और जल विद्युत परियोजनाओं को व्यापक क्षति हो सकती है।
    • इनसे जैव विविधता की हानि होती है तथा नदी प्रणालियों में तलछट का भार बढ़ता है, जिससे नदी तल की क्षमता कम हो जाती है तथा निचले क्षेत्रों में द्वितीयक बाढ़ का खतरा बढ़ जाता है।

GLOF जोखिम को कम करने के लिये भारत द्वारा क्या उपाय किये गए हैं?

  • राष्ट्रीय GLOF शमन कार्यक्रम: राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) ने 195 उच्च-जोखिम वाले हिमनद झीलों (प्रारंभ में 56) को लक्षित करते हुए 20 मिलियन अमेरिकी डॉलर का कार्यक्रम शुरू किया है, जिन्हें 4 जोखिम श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है।
    • यह पहल आपदा के बाद राहत से हटकर आपदा से पूर्व जोखिम में कमी की ओर एक रणनीतिक बदलाव को दर्शाती है। इसका समन्वय आपदा जोखिम न्यूनीकरण समिति (CoDRR) के माध्यम से किया जा रहा है और इसे 16वें वित्त आयोग (2027–31) के तहत आगे बढ़ाने की योजना है।
  • वैज्ञानिक और तकनीकी हस्तक्षेप: वर्ष 2024 से, हिमालयी क्षेत्र के 6 राज्यों में बहु-संस्थागत अभियानों के तहत उन्नत तकनीकों का उपयोग किया गया है, जैसे:
    • बाथीमेट्री (Bathymetry) का उपयोग जल की मात्रा मापने के लिये।
    • इलेक्ट्रिकल रेसिस्टिविटी टोमोग्राफी (ERT) के माध्यम से मोरेन बाँधों के नीचे मौजूद आइस कोर (Ice-cores) की पहचान।
    • UAV और ढलान स्थिरता सर्वेक्षण के माध्यम से स्थलाकृतिक मानचित्रण।
    • स्वदेशी तकनीक जैसे SAR इंटरफेरोमेट्री को सूक्ष्म ढलान बदलावों की पहचान के लिये बढ़ावा दिया जा रहा है, जबकि सिक्किम में स्वचालित मौसम एवं जल स्टेशन (AWWS) हर 10 मिनट में रीयल-टाइम डेटा प्रसारित करते हैं, जिसमें झील की दैनिक छवियाँ भी शामिल होती हैं।
  • सुरक्षा बल और स्थानीय भागीदारी: दूरस्थ ऊँचाई वाले क्षेत्रों में जहाँ स्वचालित प्रणाली उपलब्ध नहीं है, वहाँ ITBP के कर्मियों को मैन्युअल प्रारंभिक चेतावनी के लिये प्रशिक्षित किया गया है।
    • इन अभियानों में स्थानीय समुदायों को भी शामिल किया जाता है, जिससे पवित्र स्थलों पर सांस्कृतिक संवेदनशीलता बनी रहती है और समावेशी योजना एवं जागरूकता प्रयासों के माध्यम से विश्वास स्थापित होता है।

NDMA की पाँच सूत्रीय रणनीति:

  • सभी संवेदनशील हिमनद झीलों का जोखिम आकलन
  • वास्तविक समय निगरानी के लिये स्वचालित मौसम एवं जल केंद्र (AWWS) स्थापित करना।
  • निचले क्षेत्रों में पूर्व चेतावनी प्रणालियाँ (EWS)।
  • नियंत्रित झील जल निकासी और संरचनात्मक उपायों के माध्यम से जोखिम न्यूनीकरण।
  • जागरूकता, तैयारी और विश्वास निर्माण के माध्यम से सामुदायिक सहभागिता।

आगे की राह 

  • उन्नत निगरानी एवं प्रारंभिक चेतावनी: स्वचालित मौसम चेतावनी प्रणाली (AWWS), रिमोट सेंसिंग और सिंथेटिक एपर्चर रडार (SAR) का उपयोग करते हुए हिमनद झीलों की रीयल-टाइम निगरानी सुनिश्चित करना। झीलों के जलस्तर को नियंत्रित रूप से कम करने हेतु स्वचालित अलर्ट, सामुदायिक चेतावनी प्रणाली और स्पिलवे के माध्यम से जल निकासी को लागू करें ताकि GLOF (हिमनद झील विस्फोट बाढ़) की आशंका को समय रहते टाला जा सके।
  • स्थानीय समाधान एवं आपदा-रोधी बुनियादी ढाँचा: स्टार्टअप्स, शैक्षणिक अनुसंधान एवं स्वदेशी क्रायोस्फीयर तकनीकों को बढ़ावा देना; मोरेन बाँधों को सुदृढ़ करना, एक समान निर्माण मानकों को लागू करना, बाढ़ अवरोधकों का निर्माण करना और सुनिश्चित करना कि जलविद्युत परियोजनाएँ GLOF सुरक्षा मानकों के अनुरूप हों।
  • संस्थागत, सीमापार एवं सामुदायिक कार्यवाही: उच्च हिमालयी क्षेत्रों में प्रतिक्रिया हेतु राज्य आपदा प्रतिक्रिया बलों (SDRF) को प्रशिक्षण देना, नेपाल तथा चीन के साथ डेटा साझाकरण और संयुक्त जोखिम न्यूनीकरण की व्यवस्था बनाना, सभी हिमालयी परियोजनाओं के लिये  GLOF प्रभाव मूल्यांकन अनिवार्य करना, पंचायतों को सशक्त करना, मॉक ड्रिल आयोजित करना तथा स्थानीय विकास योजनाओं में आपदा-प्रतिकारक क्षमता को एकीकृत करना।

निष्कर्ष

जलवायु, भूवैज्ञानिक और अवसंरचना संबंधी कमज़ोरियों के कारण भारत को GLOF घटनाओं के उच्च तथा बढ़ते जोखिम का सामना करना पड़ रहा है। दुर्गम भूभाग, पूर्व चेतावनी प्रणालियों का अभाव और बढ़ते हिमनद पिघलने के कारण IHR में तत्काल जोखिम मानचित्रण, निगरानी तथा समुदाय-एकीकृत शमन रणनीतियों की आवश्यकता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. हिमनद झील विस्फोट बाढ़ (GLOF) हिमालय में बढ़ते खतरे हैं। इनके प्रमुख कारणों, प्रभावों और भारत की शमन रणनीतियों पर चर्चा कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. सियाचिन ग्लेशियर स्थित है: (वर्ष 2020)

(a) अक्साई चिन के पूर्व में
(b) लेह के पूर्व में
(c) गिलगित के उत्तर में
(d) नुब्रा घाटी के उत्तर में

उत्तर: (d)


प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2010)

  1. पृथ्वी ग्रह पर, उपयोग के लिये उपलब्ध अलवण जल (मीठा पानी) कुल प्राप्त जल की मात्रा के लगभग 1% से भी कम है।
  2. पृथ्वी ग्रह पर पाये जाने वाले कुल अलवण जल (मीठा पानी) का 95% ध्रुवीय बर्फ छत्रक एवं हिमनदों में आबद्ध है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (a)


मेन्स:

प्रश्न. राष्ट्रीय आपदा प्रबन्धन प्राधिकरण (एन.डी.एम.ए.) के सुझावों के संदर्भ में, उत्तराखण्ड के अनेकों स्थानों पर हाल ही में बादल फटने की घटनाओं के संघात को कम करने के लिये अपनाए जाने वाले उपायों पर चर्चा कीजिये। (2016)