28वाँ विश्व ओज़ोन दिवस | 19 Sep 2022

प्रिलिम्स के लिये:

विश्व ओज़ोन दिवस, मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल, इंडिया कूलिंग एक्शन प्लान (ICAP), किगाली संशोधन, ओज़ोन रिक्तीकरण, पर्यावरण के लिये जीवन-शैली (LiFE), COP26, मेक इन इंडिया, स्किल्स इंडिया मिशन, ऑस्ट्रेलिया फाॅरेस्ट फायर, जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (IPCC), संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP)।

मेन्स के लिये:

ओजोन परत क्षरण के प्रभाव, संबंधित पहल।

चर्चा में क्यों?

 हाल ही में भारत ने 28वाँ विश्व ओज़ोन दिवस मनाया।

  • ओज़ोन परत के संरक्षण के लिये मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर करने के उपलक्ष्य में प्रत्येक वर्ष 16 सितंबर को विश्व ओज़ोन दिवस के रूप में मनाया जाता है।
  • विश्व ओज़ोन दिवस 2022 का विषय "मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल @ 35: पृथ्वी पर जीवन की रक्षा करने के लिये वैश्विक सहयोग" है।

प्रमुख बिंदु

  • इस अवसर पर "द मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल: इंडियाज़ सक्सेस स्टोरी" का 23वाँ संस्करण जारी किया गया।
  • इस अवसर पर जारी किये गए पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MOEFCC) के ओज़ोन सेल के अन्य प्रकाशनों में शामिल हैं:
    • भवनों में थीमेटिक एरिया स्पेस कूलिंग के लिये इंडिया कूलिंग एक्शन प्लान (ICAP) की सिफारिशों को लागू करने हेतु कार्ययोजना।
    • गैर- ओज़ोन क्षयकारी पदार्थ (ODS) आधारित रेफ्रिजरेंट का उपयोग करने वाले रेफ्रिज़रेशन और एयर कंडीशनिंग (RAC) उपकरण के लिये सार्वजनिक खरीद नीतियों की अध्ययन रिपोर्ट
    • गैर- ODS और निम्न- GWP रेफ्रिजरेंट को बढ़ावा देने के लिये भारत में कोल्‍डचेन क्षेत्र पर अध्ययन रिपोर्ट।
    • रूम एयर कंडीशनर के ऊर्जा कुशल संचालन के लिये अच्छी सर्विसिंग प्रथाओं पर पुस्तिका।
  • स्कूली बच्चों के लिये आयोजित 'सेव अवर ओज़ोन लेयर' पर राष्ट्रीय स्तर की पोस्टर मेकिंग और स्लोगन राइटिंग प्रतियोगिता के विजेता प्रविष्टियों की घोषणा की गई।
  • बैठक में पर्यावरण के लिये जीवन-शैली (LiFE) को अपनाने का आह्वान किया गया क्योंकि यह टिकाऊ जीवन-शैली की अवधारणा के अनुरूप है, जो हमें बिना सोचे-समझे नहीं बल्कि सावधानी से संसाधनों के उपभोग और उपयोग के लिये प्रोत्साहित करता है।
  • सम्मिश्रणों सहित कम ग्लोबल वार्मिंग की संभावना वाले रसायनों के अनुसंधान और विकास को बढ़ावा देने के लिये आठ भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (बॉम्बे, रुड़की, हैदराबाद, कानपुर, गुवाहाटी, बनारस, मद्रास और दिल्ली) के साथ सहयोग किया जाएगा। इन्हें मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के तहत नियंत्रित पदार्थों के विकल्प के रूप में उपयोग किया जा सकता है।

इंडिया कूलिंग एक्शन प्लान (ICAP):

  • परिचय:
    • पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा मार्च 2019 में इंडियन कूलिंग एक्शन प्लान (ICAP) लॉन्च किया गया था।
    • अगले 20 वर्षों तक सभी क्षेत्रों में शीतलता से संबंधित आवश्यकताओं से जुड़ी मांग तथा ऊर्जा आवश्यकता का आकलन करना।
    • लक्ष्य:
      • वर्ष 2037-38 तक विभिन्न क्षेत्रों में शीतलक मांग (Cooling Demand ) को 20% से 25% तक कम करना।
      • वर्ष 2037-38 तक रेफ्रीजरेंट डिमांड (Refrigerant Demand) को 25% से 30% तक कम करना।
      • वर्ष 2037-38 तक शीतलन हेतु ऊर्जा की आवश्यकता को 25% से 40% तक कम करना।
      • शीतलता के लिये उपलब्ध तकनीकों की पहचान के साथ ही वैकल्पिक तकनीकों, अप्रत्यक्ष उपायों और अलग प्रकार की तकनीकों की पहचान करना।
      • वर्ष 2022-23 तक कौशल भारत मिशन के तालमेल से सर्विसिंग सेक्टर के 100,000 तकनीशियनों को प्रशिक्षण एवं प्रमाण-पत्र उपलब्ध कराना।
  • महत्त्व:
    • ICAP, कार्यों के कार्यान्वयन से किगाली संशोधन के तहत हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (HFC) की चरणबद्ध तरीके से कमी के दौरान जलवायु के अनुकूल विकल्पों को अपनाने और ऊर्जा दक्षता को बढ़ावा देने के प्रयासों में मदद मिलेगी।
      • यह 2021 में पार्टियों के 26वें जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (CoP26) में भारत के प्रधानमंत्री द्वारा प्रतिबद्ध 'पंचामृत' के माध्यम से वर्ष 2070 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने में भारत की जलवायु कार्रवाई में महत्त्वपूर्ण योगदान देगा।

मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल

  • मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल ओज़ोन-क्षयकारी पदार्थों के उत्पादन को रोकने के लिये एक विश्वव्यापी समझौता है।
  • 16 सितंबर, 1987 को अपनाया गया प्रोटोकॉल अब तक की एकमात्र संयुक्त राष्ट्र संधि है जिसे पृथ्वी पर प्रत्येक देश एवं सभी संयुक्त राष्ट्र सदस्य राज्यों द्वारा अनुमोदित किया गया है।
  • इसने रेफ्रिजरेटर, एयर-कंडीशनर और कई अन्य उत्पादों में 99% ओज़ोन-क्षयकारी रसायनों को चरणबद्ध तरीके से समाप्त कर दिया है।
  • भारत जून 1992 से मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल का पक्षकार है।

मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के कार्यान्वयन में भारत की उपलब्धियाँ:

  • भारत ने मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल अनुसूची के अनुरूप 1 जनवरी, 2010 को नियंत्रित उपयोग के लिये क्लोरोफ्लोरोकार्बन (CFC), कार्बन टेट्राक्लोराइड, हैलोन, मिथाइल ब्रोमाइड और मिथाइल क्लोरोफॉर्म को चरणबद्ध तरीके से समाप्त कर दिया।
  • वर्तमान में मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के त्वरित कार्यक्रम के अनुसार हाइड्रो क्लोरो फ्लोरो कार्बन (HCFC) को चरणबद्ध तरीके से समाप्त किया जा रहा है।
    • हाइड्रोक्लोरोफ्लोरोकार्बन चरणबद्ध प्रतिबंध (फेज़ आउट) प्रबंधन योजना (HPMP) चरण- I को वर्ष 2012 से 2016 तक सफलतापूर्वक लागू किया गया है।
    • HPMP चरण - II वर्ष 2017 से लागू है और वर्ष 2023 तक पूरा हो जाएगा।
    • HPMP चरण-III, शेष HCFCs को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने के लिये HPMPs का अंतिम चरण- 2023-2030 से कार्यान्वित किया जाएगा।
      • रेफ्रिजरेशन और एयर-कंडीशनिंग मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर सहित सभी मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में HCFC का फेज़ आउट 1 जनवरी, 2025 तक पूरा कर लिया जाएगा और सर्विसिंग सेक्टर से संबंधित गतिविधियाँ वर्ष 2030 तक जारी रहेंगी।

ओज़ोन परत

  • रासायनिक सूत्र O3 के साथ ओज़ोन ऑक्सीजन का एक विशेष रूप है। हम जिस ऑक्सीजन में साँस लेते हैं और जो पृथ्वी पर जीवन के लिये बहुत महत्त्वपूर्ण है, वह O2 है।
  • ओज़ोन का लगभग 90% प्राकृतिक रूप से पृथ्वी के ऊपरी वायुमंडल (समताप मंडल) में पृथ्वी की सतह से 10 से 40 किमी के बीच होता है, जहाँ यह एक सुरक्षात्मक परत बनाता है जो हमें सूर्य की हानिकारक पराबैंगनी किरणों से बचाती है।
  • यह "अच्छा" ओज़ोन धीरे-धीरे मानव निर्मित रसायनों द्वारा नष्ट किया जा रहा है, जिन्हें ओज़ोन-घटाने वाला पदार्थ (ODS-Ozone Depleting Substance) कहा जाता है, जिसमें सीएफ़सी, एचसीएफसी, हैलोन, मिथाइल ब्रोमाइड, कार्बन टेट्राक्लोराइड और मिथाइल क्लोरोफॉर्म शामिल हैं।
    • जब समताप मंडल में क्लोरीन और ब्रोमीन परमाणु ओज़ोन के संपर्क में आते हैं, तो वे ओज़ोन अणुओं को नष्ट कर देते हैं।
    • समताप मंडल से हटाए जाने से पहले एक क्लोरीन परमाणु 100,000 से अधिक ओज़ोन अणुओं को नष्ट कर सकता है।
    • प्राकृतिक रूप से बनने की तुलना में ओज़ोन अधिक तेज़ी से नष्ट हो सकता है।
  • ओज़ोन परत के क्षरण से मनुष्यों में त्वचा कैंसर और मोतियाबिंद की घटनाओं में वृद्धि होती है।

Ozone

वनाग्नि ओज़ोन परत को कैसे प्रभावित कर रही है?

  • जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (IPCC) के अनुसार, बढ़ते वैश्विक तापमान और शुष्क परिस्थितियों के कारण दुनिया भर में लगातार, बड़े पैमाने पर जंगल में आग लग रही है।
  • संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) के अनुसार, 2050 तक भीषण वनाग्नि की तीव्रता में 30% की वृद्धि होने की संभावना है।
    • इस तरह की घटनाएँ मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के तहत 35 वर्षों के प्रयासों को पूर्ववत स्थिति में ला सकती हैं।
  • वनाग्नि भी इस दुष्चक्र को बढ़ा सकती है। ओज़ोन परत में कमी/क्षरण दक्षिणी ध्रुवीय भंँवर (Poller Vortex), दक्षिणी ध्रुव पर निम्न वायुदाब और शीतल वायु के प्रभाव को मज़बूत करती है।
    • यह एक फीडबैक लूप बनाता है: ध्रुवीय भँवर जितना मज़बूत होता है, उतना ही यह आसपास के ओज़ोन को कम करता है और उतने ही अधिक समय तक यह ओज़ोन छिद्र को खुला रखता है।
  • ऑस्ट्रेलिया में जंगल की आग जून 2019 से मार्च 2020 तक जारी रही और इससे 1 मिलियन टन से अधिक धुआँ निकला जो समताप मंडल तक पहुँच गया जिसने ओन परत के छिद्रों के आकर में वृद्धि में मदद की।
    • इस वनाग्नि के कारण 33 मिलियन हेक्टेयर से अधिक भूमि जल गई, 3 अरब जानवर मर गए या विस्थापित हो गए और जितनी संपत्ति का नुकसान हुआ,  उसकी वजह से यह देश की सबसे खराब प्राकृतिक आपदा बन गई।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs):  

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा एक, ओज़ोन का अवक्षय करने वाले पदार्थों के प्रयोग पर नियंत्रण और उन्हें चरणबद्ध रूप से प्रयोग से बाहर करने (फेजिंग आउट) के मुद्दे से संबंद्ध है? (2015)

(a) ब्रेटन वुड्स सम्मेलन
(b) मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल
(c) क्योटो प्रोटोकॉल
(d) नागोया प्रोटोकॉल

उत्तर: (b)

  • ब्रेटन वुड्स सम्मेलन को आधिकारिक तौर पर संयुक्त राष्ट्र मौद्रिक और वित्तीय सम्मेलन (United Nations Monetary and Financial Conference) के रूप में जाना जाता है। वर्ष 1944 तक 44 देशों के प्रतिनिधि इस सम्मलेन में शामिल हुए थे। इसका तात्कालिक उद्देश्य द्वितीय विश्वयुद्ध एवं विश्वव्यापी संकट से जूझ रहे देशों की मदद करना था।
  • सम्मेलन की दो प्रमुख उपलब्धियाँ अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और अंतर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण एवं विकास बैंक (IBRD) की स्थापना थीं।
  • मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल ओज़ोन को कम करने वाले पदार्थों के उपयोग को समाप्त करके पृथ्वी की ओज़ोन परत की रक्षा के लिये एक अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण समझौता है। 15 सितंबर, 1987 को अपनाया गया यह प्रोटोकॉल आज तक की एकमात्र संयुक्त राष्ट्र संधि है जिसे पृथ्वी पर हर देश द्वारा संयुक्त राष्ट्र के सभी 197 सदस्य देशों द्वारा अनुमोदित किया गया है।
  • क्योटो प्रोटोकॉल UNFCCC से जुड़ा एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है, जो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बाध्यकारी GHG (ग्रीनहाउस गैस) उत्सर्जन में कमी के लक्ष्य निर्धारित करके पार्टियों के लिये प्रतिबद्धता सुनिश्चित करता है।
    • क्योटो प्रोटोकॉल 11 दिसंबर, 1997 को क्योटो, जापान में अपनाया गया और 16 फरवरी, 2005 से प्रभाव में आया।
    • प्रोटोकॉल के कार्यान्वयन के लिये विस्तृत नियमों को 2001 में मराकेश (Marrakesh), मोरक्को में CoP7 के रूप में अपनाया गया था और इसे मराकेश समझौते के रूप में संदर्भित किया गया था।
    • भारत ने क्योटो प्रोटोकॉल की दूसरी प्रतिबद्धता अवधि (2008-2012) की पुष्टि की है, जो देशों के लिये ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को रोकने हेतु प्रतिबद्धता तय करता है और जलवायु कार्रवाई पर अपने रुख की पुष्टि करता है।
  • आनुवंशिक संसाधनों तक पहुँच पर नागोया प्रोटोकॉल और उनके उपयोग से उत्पन्न होने वाले लाभों का उचित एवं न्यायसंगत साझाकरण जैविक विविधता पर कन्वेंशन के तीन उद्देश्यों में से एक के प्रभावी कार्यान्वयन हेतु एक पारदर्शी कानूनी ढाँचा प्रदान करता है। साथ ही जैवविविधता के सतत् उपयोग को बढ़ावा देने के लिये आनुवंशिक संसाधनों के उपयोग से होने वाले लाभों के उचित तथा न्यायसंगत बँटवारे का प्रावधान करता है। भारत ने 2011 में इस प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किये।
  • अतः विकल्प (b) सही उत्तर है।

स्रोत: पी.आई.बी.