भारत-मध्य पूर्व-यूरोप गलियारा | 19 Sep 2023

प्रीलिम्स के लिये:

भारत-मध्य पूर्व-यूरोप गलियारा, G20 शिखर सम्मेलन, ग्रीनहाउस गैस (GHG), बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI), यूरेशियन क्षेत्र, SEZ (विशेष आर्थिक क्षेत्र)।

मेन्स के लिये:

भारत-मध्य पूर्व-यूरोप गलियारा, भारत के लिये इसका महत्त्व और चुनौतियाँ।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, नई दिल्ली में G20 शिखर सम्मेलन में भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (IMEC) परियोजना पर हस्ताक्षर किये गए, जो भारत के लिये महत्त्वपूर्ण भू-राजनीतिक और आर्थिक निहितार्थ रखता है।

  • यह परियोजना वैश्विक अवसंरचना और निवेश साझेदारी (PGII) का हिस्सा है। PGII निम्न और मध्यम आय वाले देशों की विशाल बुनियादी ढाँचे की ज़रूरतों को पूरा करने के लिये एक मूल्य-संचालित, उच्च-प्रभावी तथा पारदर्शी बुनियादी ढाँचा साझेदारी है।

भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (IMEC) परियोजना:

  • परिचय:
    • प्रस्तावित IMEC में रेलमार्ग, शिप-टू-रेल नेटवर्क और सड़क परिवहन मार्ग शामिल होंगे जो दो गलियारों तक फैले होंगे, अर्थात,
      • पूर्वी गलियारा - भारत को अरब की खाड़ी से जोड़ता है,
      • उत्तरी गलियारा - खाड़ी को यूरोप से जोड़ता है।
    • IMEC गलियारे में एक विद्युत केबल, एक हाइड्रोजन पाइपलाइन और एक हाई-स्पीड डेटा केबल भी शामिल होंगे।

  • हस्ताक्षरकर्त्ता देश:
    • भारत, अमेरिका, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, यूरोपीय संघ, इटली, फ्राँस और जर्मनी।
  • जोड़े जाने वाले बंदरगाह:
    • भारत: मुंद्रा (गुजरात), कांडला (गुजरात), और जवाहरलाल नेहरू पोर्ट ट्रस्ट (नवी मुंबई)।
    • मध्य पूर्व: संयुक्त अरब अमीरात में फुज़ैरा, ज़ेबेल अली और अबू धाबी के साथ-साथ सऊदी अरब में दम्मम तथा रास अल खैर बंदरगाह।
      • रेलवे लाइन फुज़ैरा बंदरगाह (UAE) को सऊदी अरब (घुवाईफात और हराद) तथा जॉर्डन के माध्यम से हाइफा बंदरगाह (इज़राइल) से जोड़ेगी।
    • इज़राइल: हाइफा बंदरगाह
    • यूरोप: ग्रीस में पीरियस बंदरगाह, दक्षिण इटली में मेसिना और फ्राँस में मार्सिले।
  • उद्देश्य:
    • इसका उद्देश्य भारत, मध्य पूर्व और यूरोप को जोड़ने वाला एक व्यापक परिवहन नेटवर्क बनाना है, जिसमें रेल, सड़क तथा समुद्री मार्ग शामिल हैं।
    • इसका उद्देश्य परिवहन दक्षता बढ़ाना, लागत कम करना, आर्थिक एकता बढ़ाना, रोज़गार उत्पन्न करना और ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन को कम करना है।
    • इससे व्यापार और कनेक्टिविटी को सुविधाजनक बनाकर एशिया, यूरोप तथा मध्य पूर्व के एकीकरण में बदलाव आने की आशा है।
  • महत्त्व:
    • इसके पूरा होने पर यह मौजूदा समुद्री और सड़क परिवहन के पूरक के रूप में सीमा पार से रेलवे परिवहन नेटवर्क उपलब्ध कराएगा।

IMEC के भूराजनीतिक और आर्थिक निहितार्थ:

  • भू-राजनीतिक:
    • चीन के BRI को विफल करना:
      • IMEC को यूरेशियाई क्षेत्र में चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के संभावित प्रतिकार के रूप में देखा जाता है।
      • यह चीन के बढ़ते आर्थिक और राजनीतिक प्रभाव को संतुलित करने का कार्य कर सकता है, विशेषतः अमेरिका के साथ ऐतिहासिक रूप से मज़बूत संबंधों वाले क्षेत्रों में।
    • सभी सभ्यताओं में एकीकरण:
      • यह परियोजना महाद्वीपों और सभ्यताओं के बीच संबंधों एवं एकीकरण को मज़बूत कर सकती है।
      • यह क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव के बीच अमेरिका का प्रभाव बनाए रखने और पारंपरिक भागीदारों को आश्वस्त करने का एक रणनीतिक अवसर प्रदान करता है।
    • पाकिस्तान के ओवरलैंड कनेक्टिविटी वीटो को तोड़ना:
      • IMEC ने पश्चिम के साथ भारत की ओवरलैंड कनेक्टिविटी पर अपने वीटो को तोड़ते हुए पाकिस्तान को दरकिनार कर दिया, जो अतीत में निरंतर एक बाधा बना हुआ था।
    • अरब प्रायद्वीप के साथ रणनीतिक जुड़ाव:
      • गलियारा स्थायी कनेक्टिविटी स्थापित करके और क्षेत्र के देशों के साथ राजनीतिक तथा रणनीतिक संबंधों को बढ़ाकर अरब प्रायद्वीप के साथ भारत की रणनीतिक भागीदारी को मज़बूत करता है।
    • अंतर-क्षेत्रीय कनेक्टिविटी और शांति को बढ़ावा देना:
      • IMEC में अंतर-क्षेत्रीय कनेक्टिविटी को बढ़ावा देने की क्षमता है और यह अरब प्रायद्वीप में राजनीतिक तनाव को कम करने में सहायता कर सकता है।
      • यह क्षेत्र में "शांति के लिये बुनियादी ढाँचा" बनने की संभावना रखता है।
    • अफ्रीका में भारत की रणनीतिक भूमिका:
      • ट्रांस-अफ्रीकी कॉरिडोर विकसित करने की अमेरिका और यूरोपीय संघ की योजना के अनुरूप, गलियारे के मॉडल को अफ्रीका तक बढ़ाया जा सकता है।
      • यह अफ्रीका के साथ अपने जुड़ाव/अनुबंध को सुदृढ़ करने और इसके अवसंरचना के विकास में योगदान करने के भारत के इरादे को दर्शाता है।
  • आर्थिक:
    • उन्नत व्यापार के अवसर:
      • IMEC प्रमुख क्षेत्रों के साथ अपनी व्यापार कनेक्टिविटी बढ़ाकर आर्थिक विकास को बढ़ावा देने की दिशा में भारत के लिये एक परिवर्तनकारी अवसर प्रस्तुत करता है।
      • यह मार्ग परिवहन में लगने वाले समय को बहुत हद तक कम कर सकता है, जिससे स्वेज़ नहर समुद्री मार्ग की तुलना में यूरोप के साथ व्यापार 40% तेज़ हो जाएगा।
    • उत्प्रेरित औद्योगिक विकास:
      • यह गलियारा वस्तुओं के निर्बाध परिवहन के लिये एक कुशल परिवहन नेटवर्क तैयार करेगा।
      • इससे विशेषकर गलियारे से जुड़े क्षेत्रों में औद्योगिक विकास को बढ़ावा मिलेगा क्योंकि कंपनियों को कच्चे माल और तैयार उत्पादों के परिवहन में आसानी होगी।
    • रोज़गार सृजन:
      • जैसे-जैसे बेहतर कनेक्टिविटी के कारण आर्थिक गतिविधियों का विस्तार होगा, सभी क्षेत्रों में रोज़गार के अवसरों में वृद्धि होगी।
      • व्यापार, बुनियादी ढाँचे और संबद्ध उद्योगों में विस्तार हेतु रोज़गार को बढ़ावा देने के लिये कुशल व अकुशल श्रम की आवश्यकता होगी।
    • ऊर्जा सुरक्षा और संसाधन अभिगम:
      • यह गलियारा विशेष रूप से मध्य पूर्व देशों से सुरक्षित ऊर्जा और संसाधन आपूर्ति की सुविधा प्रदान कर सकता है।
      • इन संसाधनों तक विश्वसनीय अभिगम भारत के ऊर्जा क्षेत्र को स्थिर करेगी और इसकी बढ़ती अर्थव्यवस्था को समर्थन देगी।
    • विशेष आर्थिक क्षेत्रों (SEZs) को सुविधा प्रदान करना:
      • इस गलियारे का इसके मार्ग पर SEZ (विशेष आर्थिक क्षेत्र) विकसित करने के लिये रणनीतिक रूप से लाभ उठाया जा सकता है। SEZ विदेशी निवेश को आकर्षित कर सकते हैं, विनिर्माण को बढ़ावा दे सकते हैं और इन निर्दिष्ट क्षेत्रों में आर्थिक विकास को गति दे सकते हैं।

भारत-मध्य पूर्व-यूरोप कॉरिडोर (IMEC) की चुनौतियाँ:

  • रसद और कनेक्टिविटी मुद्दे:
    • कई देशों तक विस्तृत रेल, सड़क और समुद्री मार्गों को शामिल करते हुए एक मल्टीमॉडल ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर विकसित करने के लिये हितधारकों के बीच जटिल/मिश्रित लॉजिस्टिक योजना एवं समन्वय की आवश्यकता होती है।
    • सबसे व्यवहार्य और लागत प्रभावी मार्गों का चयन करना, रेल व सड़क कनेक्टिविटी की व्यवहार्यता का आकलन करना तथा इष्टतम कनेक्टिविटी सुनिश्चित करना प्रमुख चुनौतियाँ हैं।
  • रेल मार्ग की अनुपलब्धता:
    • विशेषकर मध्य पूर्वी देशों में रेल मार्गों की अनुपलब्धता एक बड़ी समस्या है, रेल नेटवर्क का विस्तार करने के लिये पर्याप्त अवसंरचना निर्माण प्रयासों और निवेश की आवश्यकता है।
  • विभिन्न देशों के बीच समन्वय:
    • इस अंतर-महाद्वीपीय गलियारे के निर्माण को साकार करने में विविध हितों, कानूनी प्रणालियों और प्रशासनिक प्रक्रियाओं वाले कई देशों के बीच प्रयासों, नीतियों तथा विनियमों का समन्वय एक बड़ी चुनौती है।
  • संभावित विरोध और प्रतिस्पर्द्धा:
    • कॉरिडोर के निर्माण से मौजूदा परिवहन मार्गों, विशेष रूप से मिस्र की स्वेज़ नहर के माध्यम से होने वाले यातायात में कमी और राजस्व में गिरावट देखी जा सकती है, इससे कई चुनौतियाँ एवं राजनयिक बाधाएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
  • लागत और वित्तपोषण:
    • गलियारे के निर्माण, संचालन एवं रखरखाव के लिये पर्याप्त वित्त का अनुमान लगाना और सुरक्षित करना एक महत्त्वपूर्ण चुनौती है।
    • ऐसा अनुमान है कि इस कॉरिडोर के निर्माण की लागत बड़ी होगी, ऐसे में धन के स्रोतों की पहचान करना आवश्यक है।
      • प्रारंभिक अनुमानों से पता चलता है कि इनमें से प्रत्येक IMEC मार्ग के निर्माण में 3 बिलियन अमरीकी डॉलर से 8 बिलियन अमरीकी डॉलर के बीच लागत आ सकती है।

आगे की राह

  • विभिन्न देशों में गेज(Gauges), ट्रेन प्रौद्योगिकियों, कंटेनर के आकर और अन्य महत्त्वपूर्ण पहलुओं के संदर्भ में तकनीकी अनुकूलता एवं मानकीकरण प्राप्त करना इस कॉरिडोर के निर्बाध संचालन के लिये अहम है।
  • सुचारू कार्यान्वयन के लिये भागीदार देशों के भू-राजनीतिक हितों के बीच समन्वय स्थापित करना और संभावित राजनीतिक संवेदनशीलताओं को ध्यान में रखना, विशेष रूप से इज़रायल के संदर्भ में, आवश्यक है।
  • पर्यावरणीय प्रभाव संबंधी चिंताओं का समाधान करना, धारणीयता सुनिश्चित करना और निर्माण व संचालन में हरित तथा पर्यावरण-अनुकूल प्रथाओं का पालन करना इस परियोजना के प्रमुख पहलू हैं।
  • कार्गो और बुनियादी ढाँचे को संभावित खतरों, चोरी व अन्य सुरक्षा जोखिमों से सुरक्षित करने के लिये ठोस सुरक्षा उपायों को लागू करना आवश्यक है।