हीट वेव | 20 Apr 2023

प्रिलिम्स के लिये:

हीट वेव, भारतीय मौसम विभाग (IMD), ग्लोबल वार्मिंग, नगरीय ऊष्मा द्वीप प्रभाव, अल नीनो, आपदा जोखिम न्यूनीकरण हेतु सेंदाई फ्रेमवर्क 2015-30, प्रकृति-आधारित समाधान, जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (IPCC), पैसिव कूलिंग तकनीक

मेन्स के लिये:

भारत में हीट वेव घोषित करने हेतु मानदंड, हीट वेव के प्रभाव।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में नवी मुंबई में एक सरकारी पुरस्कार समारोह में भाग लेने के दौरान लू से प्रत्यक्ष रूप से पीड़ित लोगों को देखा गया। यह घटना हीट वेव के संभावित खतरों को रेखांकित करती है, जो कि जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप अधिक तीव्र एवं लगातार होने का अनुमान है।

  • लंबी दूरी की यात्रा, अंतर्निहित चिकित्सा मुद्दे, और बड़ी सभाओं में पीने के जल और चिकित्सा देखभाल तक पहुँच की कमी कुछ ऐसे कारक हैं जो लोगों को हीट स्ट्रोक के प्रति अधिक संवेदनशील बना सकते हैं।

हीट वेव:

  • परिचय:  
    • हीट वेव, चरम गर्म मौसम की लंबी अवधि होती है जो मानव स्वास्थ्य, पर्यावरण और अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है।
      • भारत एक उष्णकटिबंधीय देश होने के कारण विशेष रूप से हीट वेव के प्रति अधिक संवेदनशील है, जो हाल के वर्षों में लगातार और अधिक तीव्र हो गई है।
  • भारत में हीट वेव घोषित करने हेतु मानदंड:
    • मैदानी और पहाड़ी क्षेत्र:  
      • यदि किसी स्थान का अधिकतम तापमान मैदानी इलाकों में कम-से-कम 40 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक एवं पहाड़ी क्षेत्रों में कम-से-कम 30 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक तक पहुँच जाता है तो इसे हीट वेव की स्थिति माना जाता है।
      • हीट वेव के मानक से विचलन का आधार: विचलन 4.50 डिग्री सेल्सियस से 6.40 डिग्री सेल्सियस तक होता है।
        • चरम हीट वेव: सामान्य से विचलन>6.40°C है।
      • वास्तविक अधिकतम तापमान हीट वेव पर आधारित: जब वास्तविक अधिकतम तापमान ≥45°C हो।
        • चरम हीट वेव: जब वास्तविक अधिकतम तापमान ≥47 डिग्री सेल्सियस हो।
      • यदि एक मौसम विज्ञान उपखंड के भीतर कम-से-कम दो स्थान न्यूनतम दो दिनों के लिये उपरोक्त आवश्यकताओं को पूरा करते हैं, तो इसकी घोषणा दूसरे दिन की जाती है।
    • तटीय क्षेत्र:  
      • जब अधिकतम तापमान विचलन सामान्य से 4.50 डिग्री सेल्सियस अथवा अधिक होता है, तो इसे हीट वेव कहा जा सकता है, बशर्ते वास्तविक अधिकतम तापमान 37 डिग्री सेल्सियस या अधिक हो।
  • मृत्यु:  
    • उच्च तापमान अपने आप में उतना घातक नहीं होता है जितना कि उच्च तापमान और उच्च आर्द्रता का संयोजन, जिसे वेट बल्ब तापमान कहा जाता है। यह हीट वेव को और घातक बनाता है।
    • वातावरण में उच्च नमी के कारण पसीने को वाष्पित होने और शरीर को ठंडा रखने में कठिनाई होती है जिसके परिणामस्वरूप शरीर का आंतरिक तापमान तेज़ी से बढ़ता है और अक्सर घातक होता है। 
  • कारण:  
    • ग्लोबल वार्मिंग: यह भारत में हीट वेव के प्राथमिक कारणों में से एक है जो मानव गतिविधियों जैसे कि जीवाश्म ईंधन जलाने, वनों की कटाई और औद्योगिक गतिविधियों के कारण पृथ्वी के औसत तापमान में दीर्घकालिक वृद्धि को संदर्भित करता है।
      • ग्लोबल वार्मिंग के परिणामस्वरूप उच्च तापमान और मौसम के पैटर्न में बदलाव हो सकता है, जिससे हीट वेव की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
    • शहरीकरण: तेज़ी से शहरीकरण और शहरों में कंक्रीटों संरचनाओं की वृद्धि "नगरीय ऊष्मा द्वीप प्रभाव (urban heat island effect)" के रूप में जानी जाने वाली घटनाओं को जन्म दे सकता है।
      • उच्च जनसंख्या घनत्त्व वाले शहरी क्षेत्र, इमारतें और कंक्रीट की सतह अधिक गर्मी को अवशोषित करती हैं तथा ऊष्मा को बनाए रखती हैं जिस कारण हीट वेव के दौरान तापमान उच्च होता है।
    • अल नीनो प्रभाव: अल नीनो घटना के दौरान प्रशांत महासागर का गर्म होना वैश्विक मौसम पैटर्न को प्रभावित कर सकता है जिससे विश्व भर में तापमान, वर्षा और वायु के पैटर्न में बदलाव हो सकता है।
      • भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर में प्रभावी ला नीना अवधि के समाप्त होने और अल नीनो घटना के अनुमान से पहले होने के कारण वर्ष 2023 की गर्मियों के मौसम के असामान्य रूप से गर्म होने की आशंका है।
  • प्रभाव:  
    • स्वास्थ्य पर प्रभाव:  
      • गर्मी में तेज़ी से वृद्धि तापमान को नियंत्रित करने की शरीर की क्षमता से समझौता कर सकती है और इसके परिणामस्वरूप गर्मी में ऐंठन, थकावट, हीटस्ट्रोक और हाइपरथर्मिया सहित कई बीमारियाँ हो सकती हैं।  
        • गर्मी से होने वाली मौतें और अस्पताल में भर्ती होने की घटनाएँ बहुत तेज़ी से बढ़ सकती हैं या इनका प्रभाव पड़ सकता है।
    • जल संसाधनों पर प्रभाव: गर्म हवाएँ भारत में जल की कमी के मुद्दों को बढ़ा सकती हैं; जल निकायों का सूखना, कृषि और घरेलू उपयोग के लिये जल की उपलब्धता में कमी एवं जल संसाधनों के लिये बढ़ती प्रतिस्पर्द्धा।
      • इससे जल को लेकर  संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो सकती है, सिंचाई के तरीके प्रभावित हो सकते हैं तथा जल पर निर्भर उद्योगों पर प्रभाव पड़ सकता है।
    • ऊर्जा पर प्रभाव: गर्म हवाएँ शीतलन उद्देश्यों के लिये बिजली की मांग को बढ़ा सकती हैं, जिससे पावर ग्रिड पर दबाव और संभावित ब्लैकआउट की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
      • यह आर्थिक गतिविधियों, उत्पादकता और कमज़ोर आबादी को प्रभावित कर सकता है, जिनकी गर्म हवाओं के दौरान शीतलता प्रदान करने के लिये विश्वसनीय बिजली तक पहुँच नहीं है

आगे की राह 

  • हीट वेव्स एक्शन प्लान: गर्म हवाओं के प्रतिकूल प्रभावों से संकेत मिलता है कि हीट वेव क्षेत्रों में गर्म हवा के प्रभाव को कम करने के लिये प्रभावी आपदा अनुकूलन रणनीतियों और अधिक मज़बूत आपदा प्रबंधन नीतियों की आवश्यकता है।
    • चूँकि गर्म हवाओं के कारण होने वाली मौतों को रोका जा सकता है, इसलिये सरकार को मानव जीवन, पशुधन और वन्य जीवन की सुरक्षा के लिये दीर्घकालिक कार्ययोजना तैयार करने को प्राथमिकता देनी चाहिये।
    • आपदा जोखिम न्यूनीकरण 2015-30 के लिये सेंदाई फ्रेमवर्क का प्रभावी कार्यान्वयन, जिसमें राज्य अग्रणी भूमिका निभा रहे है और अन्य हितधारकों के साथ ज़िम्मेदारी साझा करना, अब समय की मांग है।
  • जलवायु कार्ययोजनाओं को लागू करना: समावेशी विकास और पारिस्थितिक स्थिरता के लिये जलवायु परिवर्तन हेतु राष्ट्रीय कार्ययोजना (NAPCC) को उचित रूप से लागू किया जाना चाहिये।
    • प्रकृति-आधारित समाधानों को ध्यान में रखा जाना चाहिये, यह कार्य न केवल जलवायु परिवर्तन से प्रेरित गर्म हवाओं से निपटने के लिये बल्कि एक ऐसे तरीके से करना चाहिये जो नैतिक हो और अंतर-पीढ़ीगत न्याय को बढ़ावा दे।
  • सस्टेनेबल कूलिंग: पैसिव कूलिंग टेक्नोलॉजी, जो प्राकृतिक रूप से हवादार इमारतों के निर्माण में व्यापक रूप से इस्तेमाल की जाने वाली रणनीति है, आवासीय और वाणिज्यिक भवनों के लिये अर्बन हीट आइलैंड को संबोधित करने हेतु एक महत्त्वपूर्ण विकल्प हो सकती है।
  • हीट वेव न्यूनीकरण योजनाएँ: गर्मी से होने वाली मौतों को प्रभावी उपायों जैसे कि पानी तक पहुँच, ओरल पुनर्जलीकरण समाधान (ORS) और छाया, विशेष रूप से सार्वजनिक स्थानों व कार्यस्थलों पर लचीले काम के घंटे तथा बाहरी श्रमिकों के लिये विशेष व्यवस्था के माध्यम से कम किया जा सकता है।
    • सतर्कता के साथ स्थानीय प्रशासन द्वारा सक्रिय कार्यान्वयन, उच्च अधिकारियों द्वारा निगरानी भी महत्त्वपूर्ण है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. वर्तमान में और निकट भविष्य में ग्लोबल वार्मिंग को कम करने में भारत की संभावित सीमाएँ क्या हैं? (2010)

  1. उपयुक्त वैकल्पिक प्रौद्योगिकियाँ पर्याप्त रूप से उपलब्ध नहीं हैं।
  2. भारत अनुसंधान और विकास में भारी धन का निवेश नहीं कर सकता है।
  3. कई विकसित देशों ने पहले ही भारत में अपने प्रदूषण फैलाने वाले उद्योग स्थापित कर लिये हैं

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 2 
(b) केवल 2 
(c) केवल 1 और 3 
(d) 1, 2 और 3 

उत्तर: (a) 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस