विधेयकों पर निर्णय लेने का राज्यपाल का अधिकार: वीटो पावर | 20 Nov 2021

प्रिलिम्स के लिये:

वीटो पावर , लोकसभा अध्यक्ष, सर्वोच्च न्यायालय, धन विधेयक

मेन्स के लिये:

राष्ट्रपति और राज्यपाल की वीटो शक्ति एवं संबंधित विवाद

चर्चा में क्यों?

हाल ही में तमिलनाडु विधानसभा के अध्यक्ष ने विधेयकों पर निर्णय लेने के लिये एक बाध्यकारी समयसीमा निर्धारित करने का आह्वान किया, जिसके भीतर विधेयकों को राज्यपाल द्वारा भारत के राष्ट्रपति के विचार के लिये सहमति या वापस या आरक्षित किया जाना चाहिये।

प्रमुख बिंदु

  • अध्यक्ष द्वारा उठाए गए मुद्दे:
    • राज्यपाल से संबंधित:
      • राज्यपाल कभी-कभी बिना अनुमति दिये या अनिश्चित काल के लिये विधेयक को पुनर्विचार के लिये वापस किये बिना सुरक्षित रख लेता है, जबकि संविधान में इस प्रक्रिया को जल्द-से-जल्द करने की आवश्यकता है।
      • राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति की सहमति के लिये विधेयकों को आरक्षित रखा जाता है जिसमें कई महीने लग जाते थे, जबकि इसे तुरंत किया जाना था।
      • इससे विधायिकाओं और राज्यपालों के अधिकार समाप्त हो जाते हैं, हालाँकि राज्य कार्यकारिणी के प्रमुखों की नियुक्ति केंद्र सरकार द्वारा की जाती है। 
    • राष्ट्रपति से संबंधित:
      • भारत के राष्ट्रपति को भी स्वीकृति रोकने और विधेयक को वापस करने का कारण बताना चाहिये।
      • इससे सदन को उन कमियों को दूर करके एक अन्य विधेयक बनाने में मदद मिलेगी जिसके कारण विधेयक को खारिज कर दिया गया था।
  • संबंधित उदाहरण:
    • सितंबर 2021 में तमिलनाडु विधानसभा द्वारा पारित एक विधेयक के आलोक में अध्यक्ष का वक्तव्य महत्त्वपूर्ण हो जाता है, जिसमें राज्य के छात्रों को स्नातक मेडिकल कॉलेज में प्रवेश के लिये आवश्यक राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (NEET) में छूट देने की मांग की गई है।
    • राजीव गांधी हत्याकांड में दोषी ठहराए गए सात कैदियों की रिहाई के संबंध में तमिलनाडु विधानसभा ने वर्ष 2018 में एक प्रस्ताव पारित किया था।
      • प्रस्ताव तत्कालीन राज्यपाल को भेजा गया था लेकिन उन्होंने दो साल से अधिक समय तक कोई कार्रवाई नहीं की।
      • जनवरी 2021 में सर्वोच्च न्यायालय ने एक याचिका पर सुनवाई के दौरान हुई देरी के लिये नाराज़गी व्यक्त की।
      • फरवरी में राज्यपाल ने इस पर बिना कोई विचार किये निर्णय लेने का उत्तरदायित्व राष्ट्रपति पर छोड़ दिया और कहा कि राष्ट्रपति विधेयक पर निर्णय लेने के लिये सक्षम प्राधिकारी है।

राष्ट्रपति और राज्यपाल की वीटो शक्ति

  • परिचय:
    • भारत के राष्ट्रपति की वीटो पावर भारतीय संविधान के अनुच्छेद 111 द्वारा निर्देशित है।  
    • भारतीय संविधान का अनुच्छेद 200 राज्य विधायिका द्वारा पारित विधेयकों को दी गई सहमति के संबंध में राज्यपाल की शक्तियों और राज्यपाल की अन्य शक्तियों जैसे राष्ट्रपति के विचार के लिये विधेयक को आरक्षित करने से संबंधित है।
    • अनुच्छेद 201 'विचार के लिये आरक्षित विधेयक' (Bills Reserved for Consideration) से संबंधित है।
    • भारत के राज्यपाल को पूर्ण वीटो, निलंबन वीटो (धन विधेयकों को छोड़कर) का अधिकार प्राप्त है, लेकिन पॉकेट वीटो का नहीं।
  • वीटो पावर के तीन प्रकार: पूर्ण वीटो, निरोधात्मक वीटो और पॉकेट वीटो।
    • अपवाद: जब संवैधानिक संशोधन विधेयकों की बात आती है तो राष्ट्रपति के पास कोई वीटो शक्ति नहीं होती है।
      • संविधान संशोधन विधेयक को राज्य विधानमंडल में पेश नहीं किया जा सकता है।
  • पूर्ण वीटो: यह संसद द्वारा पारित किसी विधेयक पर राष्ट्रपति को अपनी सहमति को रोकने की शक्ति को संदर्भित करता है। इसके बाद बिल समाप्त हो जाता है और अधिनियम नहीं बनता है।
  • निलंबित वीटो: जब राष्ट्रपति भारतीय संसद में पुनर्विचार के लिये विधेयक को लौटाता है तो वह इसके लिये निलंबन वीटो का उपयोग करता है।
    • यदि संसद राष्ट्रपति को संशोधन के साथ या बिना संशोधन के विधेयक को फिर से भेजती है, तो उसे अपनी किसी भी वीटो शक्ति का उपयोग किये बिना विधेयक को मंज़ूरी देनी होगी।
    • अपवाद: राष्ट्रपति धन विधेयक के संबंध में अपने निलंबन वीटो का प्रयोग नहीं कर सकता।
  • पॉकेट वीटो: राष्ट्रपति द्वारा पॉकेट वीटो का प्रयोग कर विधेयक को अनिश्चित काल के लिये लंबित रखा जाता है।
    • वह न तो विधेयक को अस्वीकार करता है और न ही विधेयक को पुनर्विचार के लिये लौटाता है।
    • अमेरिकी राष्ट्रपति के विपरीत, जिसे 10 दिनों के भीतर बिल को फिर से भेजना होता है, भारतीय राष्ट्रपति के पास ऐसा कोई समय की बाध्यता नहीं है।
  • राज्य के विधेयकों पर वीटो:
    • राज्यपाल को राष्ट्रपति के विचार के लिये राज्य विधायिका द्वारा पारित कुछ प्रकार के विधेयकों को आरक्षित करने का अधिकार है।
      • फिर विधेयक के अधिनियमन में राज्यपाल की कोई और भूमिका नहीं होगी।
    • राष्ट्रपति ऐसे विधेयकों पर न केवल पहली बार बल्कि दूसरी बार आने पर भी अपनी सहमति को स्थगित कर सकता है। 
      • इस प्रकार राष्ट्रपति को राज्य के बिलों पर पूर्ण वीटो (और निलंबन वीटो नहीं) प्राप्त है।
    • इसके अलावा राष्ट्रपति राज्य विधान के संबंध में भी पॉकेट वीटो का प्रयोग कर सकता है।

स्रोत: द हिंदू