भारत में खाद्य मुद्रास्फीति | 13 Oct 2023

प्रिलिम्स के लिये:

मुद्रास्फीति, भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI), मौद्रिक नीति समिति (MPC), उपभोक्ता खाद्य मूल्य मुद्रास्फीति (CFPI), लोकसभा, न्यूनतम समर्थन मूल्य (MPC)

मेन्स के लिये:

किसानों पर बढ़ती खाद्य मुद्रास्फीति का प्रभाव और देश के व्यापक आर्थिक संकेतक।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों?

हाल के दिनों में उपभोक्ता खाद्य कीमतें वार्षिक रूप से 9.9% अधिक थीं, खाद्य मुद्रास्फीति अब काफी हद तक अनाज और दालों तक सीमित है तथा सरकार को उत्पादकों एवं उपभोक्ताओं दोनों की चिंताओं पर समान रूप से ध्यान देना आवश्यक है।

भारत में खाद्य मूल्य मुद्रास्फीति और अवस्फीति का हालिया परिदृश्य:

  • अनाज और दालों में मुद्रास्फीति:
    • अनुमान से पता चलता है कि खाद्य मुद्रास्फीति दो वस्तुओं द्वारा: अनाज (11.9%) और दालें (13%) क्रमशः जुलाई व अगस्त में तेज़ी से बढ़ी है।
      • इस दौरान सब्ज़ियों की वार्षिक खुदरा मूल्य वृद्धि इससे भी अधिक, क्रमशः 37.4% और 26.1%, रही।
        • सबसे अच्छा संकेतक टमाटर रहा, जिसकी खुदरा मुद्रास्फीति इस अवधि के दौरान क्रमशः 202.1% और 180.3% रही।
  • सरकार की रणनीति के कारण आवश्यक वस्तुओं में अवस्फीति:
    • अधिकांश सरकारें स्वाभाविक रूप से राजनीतिक कारणों की वज़ह से उत्पादकों पर उपभोक्ताओं की संख्या अधिक होने से उपभोक्ताओं को विशेषाधिकार देती हैं।वर्तमान परिदृश्य में सरकार को अन्य समस्याओं के अतिरिक्त, विशेष रूप से दो कृषि/खाद्य वस्तुओं के उत्पादकों को प्राथमिकता देनी चाहिये, ये हैं:
      • वनस्पति तेल निर्माता:
        • वर्तमान में (अक्तूबर माह) में सोयाबीन की कटाई और विपणन शुरू हो गया है, लेकिन तिलहन पहले से ही सरकार के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से निचले स्तर पर व्यापार कर रहा है। 
        • वर्तमान में सोयाबीन की मांग में विशेषकर तेल और भोजन के रूप में, (सोयाबीन से निर्मित पशुधन आहार सामग्री के रूप में उपयोग किया जाने वाला अवशिष्ट तेल रहित केक) कमी दर्ज़ की गई है।
        • बाज़ार में मंदी का एक बड़ा कारण खाद्य तेल का आयात है। भारत का वनस्पति तेल आयात वर्ष 2022-23 में 17 मिलियन टन (mt) के उच्च स्तर तक पहुँचने का अनुमान है।
      • दुग्ध उत्पादक:
        • वर्तमान में दूध पाउडर, मक्खन या घी की खरीदारी में कमी दर्ज़ की गई है। त्यौहारों (दशहरा-दिवाली) के बाद, आमतौर पर सर्दियों में जब दुग्ध उत्पादन   चरम पर होता है, दुग्ध उत्पादों की खरीद में कमी आती है।
        • वनस्पति वसा के साथ मिलावटी घी की बिक्री में कथित वृद्धि ने उद्योग की समस्याओं को और बढ़ा दिया है। आयातित तेलों, विशेषकर ताड़ के तेलों की कीमतों में गिरावट ने मक्खन एवं घी में सस्ते वसा के मिश्रण को और अधिक बढ़ा दिया है।
      • आवश्यक वस्तुओं के रूप में गेहूँ और चावल:
        • परिणामस्वरूप प्रभावी वितरण के अभाव में अधिक आपूर्ति के कारण बाज़ार की कीमतों में गिरावट आ सकती है।
        • अधिक उत्पादन: भारत में किसान प्रायः गेहूँ और चावल जैसी MSP-समर्थित फसलों का उत्पादन बढ़ाकर न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) को चुनौती देते हैं। इस अतिउत्पादन से बाज़ार में बहुतायत हो सकती है, जिससे कीमतें MSP से निचले स्तर तक पहुँच सकती हैं।
          • अपर्याप्त खरीद और वितरण: सरकार MSP निर्धारित करती है और किसानों से फसल खरीदती है, हालाँकि खरीद बुनियादी ढाँचा एवं वितरण प्रणाली अक्षम हो सकती है, जिससे खरीद में देरी तथा उपभोक्ताओं को अनाज का अपर्याप्त वितरण होता है।

उपभोक्ता खाद्य मूल्य मुद्रास्फीति (CFPI):

  • उपभोक्ता खाद्य मूल्य मुद्रास्फीति (Consumer Food Price Inflation- CFPI), मुद्रास्फीति की एक विशिष्ट माप है जो विशेष रूप से उपभोक्ता की वस्तुओं और सेवाओं में खाद्य पदार्थों के मूल्य परिवर्तन पर केंद्रित है।
    • यह उस दर की गणना करता है जिस दर से किसी सामान्य परिवार द्वारा उपभोग किये जाने वाले खाद्य उत्पादों की कीमतें समय के साथ बढ़ रही हैं।
    • CFPI व्यापक उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (Consumer Price Index- CPI) का एक उप-घटक है, जहाँ भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) दर की गणना करने के लिये CPI-संयुक्त (CPI-C) का उपयोग करता है।  
    • CFPI विशिष्ट खाद्य पदार्थों के मूल्य परिवर्तन को ट्रैक करता है जो सामान्यतः घरों में उपभोग किया जाता है, जैसे अनाज, सब्जियाँ, फल, डेयरी उत्पाद, मांस और अन्य खाद्य पदार्थ।

उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI):

  • CPI मुद्रास्फीति, जिसे खुदरा मुद्रास्फीति के रूप में भी जाना जाता है, वह दर है जिस पर उपभोक्ताओं द्वारा व्यक्तिगत उपयोग के लिये खरीदी जाने वाली वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें समय के साथ बढ़ती हैं।
  • यह भोजन, कपड़े, आवास, परिवहन और चिकित्सा देखभाल सहित सामान्यतः घरेलू वस्तुओं की खरीद एवं सेवाओं की लागत में बदलाव का आकलन करता है।
  • CPI के निम्नलिखित चार प्रकार हैं:
    • औद्योगिक श्रमिकों (Industrial Workers- IW) के लिये CPI 
    • कृषि मज़दूरों (Agricultural Labourers- AL) के लिये CPI
    • ग्रामीण मज़दूरों (Rural Labourers- RL) के लिये CPI
    • शहरी गैर-मैनुअल कर्मचारियों (Urban Non-Manual Employees- UNME) के लिये CPI।
      • इनमें से प्रथम तीन के आँकड़े श्रम और रोज़गार मंत्रालय में श्रम ब्यूरो (Labor Bureau) द्वारा संकलित किये जाते हैं, जबकि चौथे प्रकार की CPI को सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (Ministry of Statistics and Programme Implementation) के अंतर्गत राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (National Statistical Office- NSO) द्वारा संकलित किया जाता है।

खाद्य मूल्य मुद्रास्फीति के कारण:

  • आपूर्ति और मांग में असंतुलन: जब खाद्य आपूर्ति और उसकी मांग के बीच असंतुलन होता है, तो कीमतें बढ़ने लगती हैं। 
    • विषम मौसम की घटनाएँ, फसल की विफलता या कीट संक्रमण जैसे कारक कृषि उत्पादों की आपूर्ति को कम कर सकते हैं, जिससे कीमतें बढ़ सकती हैं।
    • इसके विपरीत मांग में वृद्धि, शायद जनसंख्या वृद्धि या उपभोक्ता प्राथमिकताओं में परिवर्तन के कारण यदि आपूर्ति बरकरार नहीं रह पाती है तो कीमतें भी बढ़ सकती हैं।  
  • उत्पादन लागत: किसानों के लिये बढ़ती उत्पादन लागत से खाद्य पदार्थों की कीमतें बढ़ सकती हैं। इसमें ईंधन, उर्वरक और श्रम लागत जैसे व्यय शामिल हैं।
  • ऊर्जा की कीमतें: ऊर्जा की लागत, विशेष रूप से ईंधन, खाद्य आपूर्ति शृंखला में एक महत्त्वपूर्ण कारक है। तेल की कीमतों में बढ़ोतरी से खेतों से दुकानों तक खाद्य उत्पादों को लाने के लिये परिवहन लागत में वृद्धि हो सकती है, जिसके परिणामस्वरूप उपभोक्ताओं के लिये कीमतें बढ़ सकती हैं।
  • मुद्रा विनिमय दरें: विनिमय दरों में उतार-चढ़ाव खाद्य कीमतों को प्रभावित कर सकता है, खासकर उन देशों के लिये जो आयातित खाद्य पदार्थों पर बहुत अधिक निर्भर हैं। कमज़ोर घरेलू मुद्रा आयातित भोजन को और अधिक महंगा बना सकती है, जिससे मुद्रास्फीति में योगदान हो सकता है।
  • व्यापार नीतियाँ: व्यापार नीतियाँ और टैरिफ, आयातित एवं घरेलू स्तर पर उत्पादित खाद्य की कीमतों को प्रभावित कर सकते हैं। आयात पर प्रतिबंध से उपलब्ध खाद्य उत्पादों की विविधता सीमित हो सकती है और संभावित रूप से कीमतें बढ़ सकती हैं। 
  • सरकारी नीतियाँ: सब्सिडी, मूल्य नियंत्रण या विनियमों के रूप में सरकारी हस्तक्षेप खाद्य कीमतों को प्रभावित कर सकते हैं। सब्सिडी उत्पादन की लागत को कम कर सकती है, जबकि मूल्य नियंत्रण मूल्य वृद्धि को सीमित कर सकता है।
  •  वैश्विक घटनाएँ: भू-राजनीतिक संघर्ष, महामारी एवं व्यापार व्यवधान जैसी वैश्विक घटनाएँ खाद्य आपूर्ति शृंखलाओं को बाधित कर सकती हैं और खाद्य कीमतों में बढ़ोतरी का कारण बन सकती हैं। उदाहरण के लिये, कोविड-19 महामारी ने विश्व के कई हिस्सों में खाद्य उत्पादन और वितरण को बाधित कर दिया।
  • जलवायु परिवर्तन: जलवायु पैटर्न में दीर्घकालिक परिवर्तन खाद्य उत्पादन पर प्रभाव डाल सकते हैं। अधिक और गंभीर मौसम की घटनाएँ, जैसे सूखा या बाढ़, फसलों को नुकसान पहुँचा सकती हैं तथा पैदावार कम कर सकती हैं, जिससे कीमतें बढ़ सकती हैं।
  • कृषि उत्पादकता को बढ़ावा:
    • फसलों की पैदावार और पशुधन की उत्पादकता में सुधार के लिये कृषि अनुसंधान और प्रौद्योगिकी में निवेश करने की आवश्यकता है।
    • क्षमता बढ़ाने और उत्पादन लागत कमआगे की राह करने के लिये संधारणीय कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देना चाहिये।
  • खाद्य आपूर्ति शृंखलाओं का सुदृढ़ीकरण:
    • भोजन  के खराब होने और बर्बादी को कम करने के लिये परिवहन एवं भंडारण के बुनियादी ढाँचे में निवेश करना चाहिये।
    • यह सुनिश्चित करने के लिये वितरण नेटवर्क में सुधार करना चाहिये ताकि भोजन उपभोक्ताओं तक कुशलतापूर्वक पहुँच सके।
  • व्यापार और बाज़ार एकीकरण को बढ़ावा:
    • आवश्यक खाद्य पदार्थों पर व्यापार बाधाओं और शुल्कों को हटाने की आवश्यकता है।
    • खाद्य उत्पादों की स्थिर आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को सुविधाजनक बनाने की आवश्यकता है।
  • प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देना और एकाधिकार शक्ति को कम करना:
    • बड़े कृषि व्यवसायों द्वारा बाज़ार की एकाग्रता और मूल्य हेरफेर को रोकने के लिये एकाधिकारी व्यापार विरोधी कानून लागू किया जाना चाहिये।
    • कीमतों को प्रतिस्पर्द्धी बनाए रखने के लिये खाद्य क्षेत्र में प्रतिस्पर्द्धा को प्रोत्साहित करना चाहिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न:  

प्रिलिम्स:

प्रश्न: निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)

  1. खाद्य वस्तुओं का ‘उपभोक्ता मूल्य सूचकांक’ (CPI) भार (Wegitage) उनके ‘थोक मूल्य सूचकांक’ (WPI) में दिये गए भार से अधिक है।
  2.  WPI, सेवाओं के मूल्यों में होने वाले परिवर्तनों को शामिल नहीं करता है, जैसा कि CPI करता है।
  3.  भारतीय रिज़र्व बैंक ने अब मुद्रास्फीति के मुख्य मान तथा प्रमुख नीतिगत दरों के निर्धारण हेतु WPI को अपना लिया है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (a)


मेन्स:

प्रश्न. एक मत यह भी है कि राज्य अधिनियमों के तहत गठित कृषि उत्पाद बाज़ार समितियों (APMCs) ने न केवल कृषि के विकास में बाधा डाली है, बल्कि यह भारत में खाद्य मुद्रस्फीति का कारण भी रही है। समालोचनात्मक परीक्षण कीजिये। (2014)