उर्वरक क्षेत्र में ‘आत्मनिर्भरता’ | 14 Jul 2021

प्रिलिम्स के लिये

नीम कोटेड यूरिया, नई यूरिया नीति 2015, पोषक तत्त्व आधारित सब्सिडी योजना, नई निवेश नीति 2012

मेन्स के लिये

उर्वरक क्षेत्र में ‘आत्मनिर्भरता’ हासिल करने के लिये सरकार द्वारा की गई विभिन्न पहलें

चर्चा में क्यों?

हाल ही में रसायन एवं उर्वरक मंत्री ने भारत को उर्वरक क्षेत्र में ‘आत्मनिर्भर’ बनाने हेतु उर्वरक विभाग द्वारा शुरू की गई पहलों की समीक्षा की।

  • ज्ञात हो कि सरकार वैकल्पिक उर्वरकों के उपयोग को बढ़ावा देने के लिये ‘बाज़ार विकास सहायता’ (MDA) नीति को उदार बनाने की योजना बना रही है।

प्रमुख बिंदु

  • ‘बाज़ार विकास सहायता’ (MDA) नीति

    • ‘बाज़ार विकास सहायता’ (MDA) नीति प्रारंभ में केवल शहरी खाद तक ही सीमित थी।
    • लंबे समय से इस नीति के विस्तार और इसमें जैविक कचरे जैसे- बायोगैस, हरी खाद, ग्रामीण क्षेत्रों की जैविक खाद, ठोस/तरल घोल आदि को शामिल करने की मांग की जा रही थी।
    • यह विस्तार पूर्णतः ‘स्वच्छ भारत अभियान’ का पूरक होगा।
  • सरकारी पहल और योजनाएँ:

    • नीम कोटेड यूरिया (Neem Coated Urea- NCU)
      • उर्वरक विभाग (DoF) ने सभी घरेलू उत्पादकों के लिये शत-प्रतिशत यूरिया का उत्पादन ‘नीम कोटेड यूरिया’ (NCU) के रूप में करने को अनिवार्य कर दिया है।
      • ‘नीम कोटेड यूरिया’ के उपयोग के लाभ
        • मृदा स्वास्थ्य में सुधार।
        • पौध संरक्षण रसायनों के उपयोग में कमी।
        • कीट और रोग के हमले में कमी।
        • धान, गन्ना, मक्का, सोयाबीन, अरहर/लाल चने आदि की उपज में वृद्धि।
        • गैर-कृषि उद्देश्यों के लिये उपयोग में कमी।
        • नाइट्रोजन के धीमे रिसाव के कारण ‘नीम कोटेड यूरिया’ की नाइट्रोजन उपयोग दक्षता (NUE) बढ़ जाती है, जिसके परिणामस्वरूप सामान्य यूरिया की तुलना में ‘नीम कोटेड यूरिया’ में नाइट्रोजन की खपत कम होती है।
    • नई यूरिया नीति (NUP) 2015
      • नीति के उद्देश्य-
        • स्वदेशी यूरिया उत्पादन को अधिकतम करना।
        • यूरिया इकाइयों में ऊर्जा दक्षता को बढ़ावा देना।
        • भारत सरकार पर सब्सिडी के बोझ को युक्तिसंगत बनाना।
    • नई निवेश नीति, 2012:
      • सरकार ने जनवरी 2013 में नई निवेश नीति (New Investment Policy- NIP), 2012 की घोषणा की जिसे वर्ष 2014 में यूरिया क्षेत्र में नए निवेश की सुविधा तथा भारत को यूरिया क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिये संशोधित किया गया।
    • शहरी खाद के संवर्द्धन पर नीति:
      • भारत सरकार ने शहरी खाद के उत्पादन और खपत को बढ़ाने के लिये 1500 रुपए की बाज़ार विकास सहायता (Market Development Assistance) प्रदान करने के लिये वर्ष 2016 में डीओएफ द्वारा अधिसूचित सिटी कम्पोस्ट को बढ़ावा देने की नीति को मंज़ूरी दी।
      • बिक्री की मात्रा बढ़ाने के लिये शहरी खाद का विपणन करने के इच्छुक खाद निर्माताओं को सीधे किसानों को थोक में शहरी खाद बेचने की अनुमति दी गई थी।
      • शहरी खाद का विपणन करने वाली उर्वरक कंपनियाँ उर्वरकों के लिये प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (Direct Benefit Transfer- DBT) के अंतर्गत आती हैं।
    • उर्वरक क्षेत्र में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का उपयोग:
      • डीओएफ ने भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (Geological Survey of India) और परमाणु खनिज निदेशालय (Atomic Mineral Directorate) के सहयोग से इसरो के राष्ट्रीय रिमोट सेंसिंग सेंटर (National Remote Sensing Centre) द्वारा “परावर्तन स्पेक्ट्रोस्कोपी एवं पृथ्वी अवलोकन डेटा का उपयोग करके चट्टानी फॉस्फेट के संसाधन का मानचित्रण” (Resource Mapping of Rock Phosphate using Reflectance
      • Spectroscopy and Earth Observations Data) पर तीन वर्ष का प्रारंभिक अध्ययन शुरू किया।
    • पोषक तत्त्व आधारित सब्सिडी योजना:
      • इसे डीओएफ द्वारा अप्रैल 2010 से लागू किया गया है।
      • इस योजना के अंतर्गत वार्षिक आधार पर तय की गई सब्सिडी की एक निश्चित राशि सब्सिडी वाले फॉस्फेटिक और पोटासिक ( Phosphatic & Potassic) उर्वरकों के प्रत्येक ग्रेड पर इसकी पोषक सामग्री के आधार पर प्रदान की जाती है।
      • इसका उद्देश्य उर्वरकों का संतुलित उपयोग सुनिश्चित करना, कृषि उत्पादकता में सुधार, स्वदेशी उर्वरक उद्योग के विकास को बढ़ावा देना और सब्सिडी के बोझ को कम करना है।

भारत में उर्वरक की खपत:

  • वित्तीय वर्ष 20 में भारत की उर्वरक खपत लगभग 61 मिलियन टन थी, जिसमें से 55% यूरिया था और अनुमान है कि वित्त वर्ष 2015 में इसमें 5 मिलियन टन की वृद्धि हुई थी।
  • चूँकि गैर-यूरिया (MoP, DAP, जटिल) किस्मों की लागत अधिक होती है, कई किसान वास्तव में ज़रूरत से ज़्यादा यूरिया का उपयोग करना पसंद करते हैं।
  • सरकार ने यूरिया की खपत को कम करने के लिये कई उपाय किये हैं। इसने गैर-कृषि उपयोग हेतु यूरिया के अवैध प्रयोग को कम करने के लिये नीम कोटेड यूरिया की शुरुआत की। इसने जैविक और शून्य-बजट खेती को बढ़ावा दिया।
  • वर्तमान में देश का उर्वरक उत्पादन 42-45 मिलियन टन है और आयात लगभग 18 मिलियन टन है।
  • यूरिया पर सब्सिडी:

    • केंद्र प्रत्येक संयंत्र में उत्पादन लागत के आधार पर उर्वरक निर्माताओं को यूरिया पर सब्सिडी का भुगतान करता है और इकाइयों को सरकार द्वारा निर्धारित अधिकतम खुदरा मूल्य (MRP) पर उर्वरक बेचना आवश्यक है।
  • गैर-यूरिया उर्वरकों पर सब्सिडी:

    • गैर-यूरिया उर्वरकों की MRP कंपनियों द्वारा नियंत्रित या तय की जाती है। हालाँकि केंद्र इन पोषक तत्त्वों पर एक फ्लैट प्रति टन सब्सिडी का भुगतान करता है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि उनकी कीमत "उचित स्तर" पर है।
      • गैर-यूरिया उर्वरकों के उदाहरण: डाई अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी), म्यूरेट ऑफ पोटाश (एमओपी)।
      • सभी गैर-यूरिया आधारित उर्वरकों को पोषक तत्त्व आधारित सब्सिडी योजना के तहत विनियमित किया जाता है।

स्रोत-पीआईबी