'नया रणनीतिक EU-भारत एजेंडा' | 19 Sep 2025
प्रिलिम्स के लिये: यूरोपीय संघ, मुक्त व्यापार समझौता, होराइज़न यूरोप, भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (आईएमईसी), ग्लोबल गेटवे, G20, विश्व व्यापार संगठन, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, कार्बन सीमा समायोजन तंत्र, MFN क्लॉज़, DTAA।
मेन्स के लिये: नया यूरोपीय संघ-भारत रणनीतिक एजेंडा: द्विपक्षीय संबंधों को मज़बूत करना और उनका पारस्परिक महत्त्व।
चर्चा में क्यों?
यूरोपीय संघ ने भारत के साथ द्विपक्षीय संबंधों को मज़बूत करने के उद्देश्य से एक नया रणनीतिक यूरोपीय संघ-भारत एजेंडा प्रस्तुत किया है, जिसमें साझा हितों और पूरक शक्तियों के पाँच रणनीतिक स्तंभों पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
- यूरोपीय संघ ने वर्ष 2025 के अंत तक भारत के साथ एक मुक्त व्यापार समझौते (FTA) को अंतिम रूप देने की प्रतिबद्धता जताई है, जो विश्व में अपनी तरह का सबसे बड़ा समझौता होगा।
भारत और यूरोपीय संघ के बीच ‘नए रणनीतिक एजेंडे’ के पाँच स्तंभ क्या हैं?
- समृद्धि, स्थिरता, प्रौद्योगिकी और नवाचार: एजेंडा व्यापार और निवेश में अप्रयुक्त क्षमता पर प्रकाश डालता है, जिसमें मुक्त व्यापार समझौते (FTA) को अंतिम रूप देने और व्यापार तथा प्रौद्योगिकी परिषद (TTC) के माध्यम से आपूर्ति शृंखलाओं को मज़बूत करने पर प्राथमिकता दी गई है।
- यह यूरोपीय संघ-भारत स्टार्टअप साझेदारी और होराइजन यूरोप के माध्यम से तकनीकी सहयोग को आगे बढ़ाता है । साथ ही खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य, जलवायु अनुकूलन और आपदा प्रबंधन पर हरित परिवर्तन एवं सहयोग का समर्थन करता है।
- सुरक्षा एवं रक्षा: यह उत्पादन, प्रौद्योगिकी और नवाचार को बढ़ावा देने के लिये समुद्री सुरक्षा, साइबर रक्षा, आतंकवाद-निरोध, संकट प्रबंधन तथा रक्षा औद्योगिक सहयोग पर केंद्रित है।
- कनेक्टिविटी और वैश्विक मुद्दे: यह भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे (IMEC) और ग्लोबल गेटवे का समर्थन करता है तथा तीसरे देशों के साथ त्रिपक्षीय सहयोग को बढ़ावा देता है।
- यह अंतर्राष्ट्रीय कानून, बहुपक्षीय मूल्यों और वैश्विक शासन को मज़बूत करने के लिये बहुपक्षीय मंचों में सक्रिय भागीदारी पर भी ज़ोर देता है।
- लोगों से लोगों का सहयोग: यह यूरोपीय कानूनी गेटवे कार्यालय के माध्यम से कौशल गतिशीलता को बढ़ावा देता है और अध्ययन, कार्य एवं अनुसंधान के लिये एक रूपरेखा तैयार करता है।
- यह नागरिक समाज, युवाओं, थिंक टैंकों और व्यवसायों के साथ गहन सहभागिता को भी प्रोत्साहित करता है, जिसमें यूरोपीय संघ-भारत व्यापार मंच का प्रस्ताव भी शामिल है।
- सभी स्तंभों पर समर्थकारी: इसका उद्देश्य सभी स्तरों पर यूरोपीय संघ-भारत समन्वय को बढ़ाना, साझा प्राथमिकताओं के आधार पर एक व्यापक रणनीतिक योजना बनाना तथा विदेश मामलों की परिषद के माध्यम से यूरोपीय संघ के सदस्य राज्यों के साथ संतुलन स्थापित करना है।
भारत-यूरोपीय संघ संबंधों का क्या महत्त्व है?
पारस्परिक महत्त्व
- कूटनीतिक संबंध: भारत ने वर्ष 1962 में यूरोपीय आर्थिक समुदाय (EEC) के साथ संबंध स्थापित किये, वर्ष 2004 में हेग में आयोजित 5वें भारत-यूरोपीय संघ (EU) शिखर सम्मेलन में इसे रणनीतिक साझेदारी में परिवर्तित किया गया।
- व्यापार साझेदारी: यूरोपीय संघ भारत का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है (€120 अरब, जो भारत के कुल व्यापार का 11.5% है)।
- रणनीतिक सामंजस्य: भारत और यूरोपीय संघ सुरक्षा, नवीकरणीय ऊर्जा, जलवायु कार्रवाई और बहुपक्षवाद में समान रुचि साझा करते हैं। दोनों पक्ष आतंकवाद-रोधी, साइबर सुरक्षा, प्रवासन, समुद्री सुरक्षा, मानवाधिकार, अप्रसार और निरस्त्रीकरण पर द्विपक्षीय वार्तालाप करते हैं।
- बुनियादी ढाँचा संबंधी सहयोग: भारत-यूरोपीय संघ TTC (ट्रेड एंड टेक्नोलॉजी काउंसिल) अर्द्धचालक, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), स्वच्छ ऊर्जा और डिजिटल वित्त सहयोग को प्रोत्साहित करता है। यूरोपीय संघ भारत की बहु-संरेखण नीति के अनुरूप बिना किसी सुरक्षा-निर्भरता के आर्थिक और तकनीकी संबंधों का समर्थन करता है।
- वैश्विक शासन: यूरोपीय संघ चीन पर आर्थिक निर्भरता कम कर रहा है और भारत के व्यापार विविधीकरण का समर्थन करता है। दोनों पक्ष G20, WTO और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद जैसे बहुपक्षीय मंचों पर नियम-आधारित व्यवस्था के पक्षधर हैं।
भारत के लिये महत्त्व:
- आर्थिक संबंध: भारत यूरोपीय संघ (EU) का नौवाँ सबसे बड़ा साझेदार है (EU व्यापार का 2.4%, वर्ष 2024)। अप्रैल 2000 से दिसंबर 2023 तक भारत में यूरोपीय संघ से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) का प्रवाह 107.27 अरब अमेरिकी डॉलर रहा, जिसने भारत में औद्योगिक विकास, रोज़गार सृजन और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को प्रोत्साहित किया।
- यूरोपीय संघ भारत के लिये सूचना प्रौद्योगिकी, औषधि उद्योग, वस्त्र और कृषि निर्यात में अवसर प्रदान करता है; द्विपक्षीय सेवा व्यापार 2019–2022 के बीच 48% की वृद्धि दर्ज की गई।
- सुरक्षा एवं रक्षा: यूरोपीय रक्षा कंपनियाँ "मेक इन इंडिया" के अंतर्गत भारत के रक्षा आधुनिकीकरण का समर्थन कर रही हैं, जैसे एयरबस C-295 विमान का स्थानीय निर्माण।
- प्रौद्योगिकी एवं नवाचार: भारत-यूरोपीय संघ TTC (ट्रेड एंड टेक्नोलॉजी काउंसिल) अर्द्ध-चालक, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और स्वच्छ ऊर्जा पर केंद्रित है, जबकि डिजिटल भुगतान और फिनटेक सहयोग सीमा-पार लेनदेन के माध्यम से विस्तार कर रहा है।
यूरोपीय संघ के लिये महत्त्व
- बाज़ार तक पहुँच: भारत यूरोपीय संघ को एक बड़ा और तेजी से बढ़ता हुआ बाज़ार प्रदान करता है, जिसका उदाहरण 2024 का व्यापार और आर्थिक साझेदारी समझौता (TEPA) है, जो यूरोपीय मुक्त व्यापार संघ (EFTA) देशों (आइसलैंड, लिकटेंस्टीन, नॉर्वे, स्विट्ज़रलैंड) के साथ हुआ।
- सांस्कृतिक एवं शैक्षिक संबंध: भारत का युवा और कुशल कार्यबल यूरोप की प्रतिभा-शक्ति को मजबूत करता है तथा शैक्षणिक सहयोग को प्रोत्साहित करता है।
- भू-राजनीतिक सहयोग: भारत की रणनीतिक इंडो-पैसिफिक स्थिति और उसकी विकास दर यूरोपीय संघ के ग्लोबल साउथ में प्रभाव को बढ़ाती है।
- सुरक्षा एवं स्थिरता: भारत हिंद महासागर की सुरक्षा सुनिश्चित करता है, जिससे यूरोप-एशिया के 35% से अधिक व्यापार की रक्षा होती है।
भारत-यूरोपीय संघ संबंधों में प्रमुख बाधाएँ क्या हैं?
- लंबित FTA वार्ताएँ: FTA वार्ता में देरी हो रही है क्योंकि यूरोपीय संघ (EU) ऑटोमोबाइल, स्पिरिट्स तथा डेयरी उत्पादों पर कम शुल्क चाहता है, जबकि भारत फार्मास्यूटिकल्स और IT सेवाओं के लिये बाज़ार तक पहुँच चाहता है।
- EU का कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (CBAM) भारतीय निर्यातकों के लिये अतिरिक्त चुनौतियाँ उत्पन्न करता है।
- निवेश एवं विनियामक बाधाएँ: EU के प्रतिबंधात्मक व्यापार नियम, जिनमें व्यापार में तकनीकी बाधाएँ (TBT) और सैनिटरी एवं फाइटोसैनिटरी (SPS) उपाय शामिल हैं, भारतीय व्यवसायों को प्रभावित करते हैं।
- जबकि यूरोपीय निवेशक एक पूर्वानुमानित नीतिगत वातावरण और मज़बूत निवेश संरक्षण चाहते हैं, जिसे स्विट्ज़रलैंड द्वारा भारत के साथ दोहरे कराधान से बचाव समझौते (DTAA) में मोस्ट फेवर्ड नेशन (MFN) क्लॉज़ को निलंबित करने से उजागर किया गया है।
- डेटा गोपनीयता चुनौतियाँ: EU के सख्त डेटा कानून डिजिटल निर्यात को महंगा बनाते हैं। भारत में EU की डेटा पर्याप्तता स्थिति का अभाव छोटी IT कंपनियों को उच्च अनुपालन लागत वहन करने के लिये मज़बूर करता है, जिससे प्रतिस्पर्द्धात्मकता सीमित हो जाती है।
- विदेश नीति में भिन्नताएँ: रूसी सैन्य अभ्यासों में भारत की भागीदारी और रूसी तेल की खरीद EU के साथ घनिष्ठ संबंधों में बाधा डालती है, क्योंकि EU रूस पर प्रतिबंधों के संबंध में मज़बूत तालमेल की अपेक्षा करता है, जबकि भारत अपनी तटस्थ कूटनीति जारी रखता है।
- आपूर्ति शृंखला जोखिम: व्यापार में विविधता लाने के प्रयासों के बावजूद, चीन भारत और EU दोनों के लिये एक प्रमुख भागीदार बना हुआ है, जिससे आपूर्ति शृंखलाओं के लिये जोखिम उत्पन्न हो रहा है।
- यह निर्भरता दोनों क्षेत्रों को भू-राजनीतिक तनावों और व्यवधानों के प्रति उजागर करती है, जिससे अधिक अनुकूल तथा विविध व्यापार मार्गों की आवश्यकता रेखांकित होती है।
भारत-यूरोपीय संघ संबंधों को दृढ़ करने के लिये कौन-सी रणनीति अपनाई जा सकती है?
- FTA और व्यापार सुगमता में तेज़ी लाना: आपूर्ति शृंखलाओं को दृढ़ करने और व्यापार अवरोधों को कम करने के लिये शुल्क विवादों का समाधान करना तथा FTA वार्ताओं को शीघ्रता से आगे बढ़ाना।
- उच्च-प्रौद्योगिकी निर्यात को बढ़ावा देना और भारत के विनिर्माण क्षेत्र में यूरोपीय निवेश आकर्षित करना ताकि विकास को गति मिल सके।
- डेटा-साझाकरण ढाँचा स्थापित करना: निर्बाध सीमा-पार डेटा प्रवाह के लिये यूरोपीय संघ-अमेरिका शैली की गोपनीयता शील्ड पर बातचीत करना और भारतीय फर्मों के लिये अनुपालन लागत कम करने हेतु पारस्परिक मान्यता ढाँचे को लागू करना।
- हरित प्रौद्योगिकी साझेदारी: हरित हाइड्रोजन, इलेक्ट्रिक वाहनों और कार्बन-तटस्थ प्रौद्योगिकियों पर सहयोग करते हुए नवीकरणीय ऊर्जा, फिनटेक तथा डेटा गोपनीयता में सहयोग बढ़ाना।
- निवेश नीतियों में सुधार: भारत को यूरोपीय प्रौद्योगिकी कंपनियों को अनुसंधान एवं विकास केंद्र स्थापित करने के लिये प्रोत्साहित करने हेतु बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) सुरक्षा और ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस को मज़बूत करने की आवश्यकता है।
- सुरक्षा सहयोग को बढ़ाना: चीन की क्षेत्रीय आक्रामकता का मुकाबला करने के लिये यूरोपीय रक्षा प्राथमिकताओं के साथ भारत की हिंद-प्रशांत रणनीति को संरेखित करते हुए संयुक्त नौसैनिक अभ्यास, साइबर रक्षा साझेदारी और खुफिया जानकारी साझा करने का विस्तार करना।
निष्कर्ष
नया रणनीतिक यूरोपीय संघ-भारत एजेंडा व्यापार, प्रौद्योगिकी, सुरक्षा और वैश्विक शासन में भारत-यूरोपीय संघ संबंधों के बढ़ते महत्त्व को रेखांकित करता है। मुक्त व्यापार समझौते (FTA), हरित प्रौद्योगिकी, डिजिटल ढाँचों और रक्षा साझेदारियों के माध्यम से सहयोग को मज़बूत करने से आर्थिक विकास, रणनीतिक स्वायत्तता तथा बहुपक्षीय प्रभाव में वृद्धि हो सकती है, साथ ही नियामक बाधाओं, डेटा कानूनों व भू-राजनीतिक मतभेदों जैसी चुनौतियों का समाधान भी संभव है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. भारत के आर्थिक और रणनीतिक हितों के लिये नए रणनीतिक यूरोपीय संघ-भारत एजेंडा के महत्त्व पर चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)
प्रिलिम्स
प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2023)
यूरोपीय संघ का 'स्थिरता एवं संवृद्धि समझौता (स्टेबिलिटी ऐंड ग्रोथ पैक्ट)' ऐसी संधि है, जो
- यूरोपीय संघ के देशों के बजटीय घाटे के स्तर को सीमित करती है
- यूरोपीय संघ के देशों के लिये अपनी आधारिक संरचना सुविधाओं को आपस में बाँटना सुकर बनाती है
- यूरोपीय संघ के देशों के लिये अपनी प्रौद्योगिकियों को आपस में बाँटना सुकर बनाती है
उपर्युक्त में से कितने कथन सही है?
(a) केवल एक
(b) केवल दो
(c) सभी तीन
(d) कोई भी नहीं
व्याख्या: (a)
प्रश्न. समाचारों में देखे जाने वाले शब्द 'डिजिटल सिंगल मार्केट स्ट्रैटेजी' पद किसे निर्दिष्ट करता है? (2017)
(a) आसियान
(b) ब्रिक्स'
(c) यूरोपियन यूनियन
(d) जी-20
उत्तर: (c)
प्रश्न. ‘समाचारों में कभी-कभी देखे जाने वाला 'यूरोपीय स्थिरता तंत्र (European Stability Mechanism)' क्या
है? (2016)
(a) मध्य-पूर्व से लाखों शरणार्थियों के आने के प्रभाव से निपटने के लिये EU द्वारा बनाई गई एक एजेंसी
(b) EU की एक एजेंसी, जो यूरोक्षेत्र (यूरोज़ोन) के देशों को वित्तीय सहायता उपलब्ध कराती है
(c) सभी द्विपक्षीय एवं बहुपक्षीय व्यापार समझौतों को सुलझाने के लिये EU की एक एजेंसी
(d) सदस्य राष्ट्रों के बीच मतभेद सुलझाने के लिये EU की एक एजेंसी
उत्तर: (b)
मेन्स:
प्रश्न. 'नाटो का विस्तार एवं सुदृढीकरण और एक मज़बूत अमेरिका-यूरोप रणनीतिक साझेदारी भारत के लिये अच्छा काम करती है।' इस कथन के बारे मे आपकी क्या राय है? अपने उत्तर के समर्थन में कारण और उदाहरण दीजिये। (2023)