लोकसभा में नैतिकता और पारदर्शिता सुधार | 10 Oct 2023

प्रिलिम्स के लिये:

आचरण संहिता को बढ़ावा देना, सदस्यों के व्यावसायिक हितों की घोषणा, आचार संहिता, नैतिकता पर संसदीय स्थायी समितियाँ, लोकसभा, राज्यसभा, RTI (सूचना का अधिकार) अधिनियम

मेन्स के लिये:

लोकसभा, संसद और राज्य विधानमंडलों में नैतिकता एवं पारदर्शिता बढ़ाने के लिये सुधार, शासन के महत्त्वपूर्ण पहलू, पारदर्शिता और जवाबदेही।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

वर्तमान में लोकसभा में दो महत्त्वपूर्ण सुधार लंबित हैं, जिनका उद्देश्य सदस्यों के बीच आचरण संहिता तथा पारदर्शिता को बढ़ावा देना है। ये दो सुधार लोकसभा सदस्यों के लिये आचार संहिता का निर्माण तथा सदस्यों के व्यावसायिक हितों की घोषणा हैं।

आचार संहिता

    • पृष्ठभूमि:
      • केंद्रीय मंत्रियों के लिये एक संहिता अपनाई गई तथा राज्य सरकारों को भी इसे अपनाने की सलाह दी गई।
        • वर्तमान में आचार संहिता केंद्र और राज्य दोनों के मंत्रियों पर लागू होती है।
      • सांसदों के मामले में पहला कदम दोनों सदनों में नैतिकता पर संसदीय स्थायी समितियों का गठन करना था।
        • राज्यसभा में समिति का उद्घाटन वर्ष 1997 में सदस्यों के आचार और नैतिक आचरण की निगरानी करने तथा सदस्यों के नैतिक तथा अन्य कदाचार के संदर्भ में संदर्भित मामलों की जाँच करने के लिये किया गया था।
        • में पहली आचार समिति का गठन वर्ष 2000 में किया गया था और तब से आचार संहिता के मुद्दे पर समय-समय पर चर्चा तथा सिफारिशें की जाती रही हैं।
    • विलंब एवं वर्तमान स्थिति:
      • लोकसभा की आचार समिति आठ वर्षों से अधिक समय से आचार संहिता पर विचार-विमर्श कर रही है, जो इस महत्त्वपूर्ण मुद्दे को संबोधित करने में लंबे समय से देरी को दर्शाता है।
      • यह मामला पहली बार दिसंबर 2014 में सामने आया था जब लोकसभा की नैतिक/आचार समिति ने लोकसभा में प्रक्रिया और कार्य संचालन के नियमों में प्रस्तावित संशोधनों के साथ एक रिपोर्ट प्रस्तुत की थी।
        • आचार संहिता लंबे समय से राज्यसभा के सदस्यों पर लागू है।
    • आचार संहिता की आवश्यकता:
      • संहिता का उद्देश्य संसदीय कार्यवाही की अखंडता को बढ़ाते हुए लोकसभा सांसदों के बीच उचित व्यवहार और आचरण का मार्गदर्शन करना है।
      • लगभग एक शताब्दी पुराना ऐतिहासिक संदर्भ हितों के टकराव और नियामक ढाँचे की आवश्यकता के बारे में लंबे समय से चली आ रही चिंताओं को रेखांकित करता है।
      • सुशासन को बढ़ावा देने, पारदर्शिता बनाए रखने और सांसदों द्वारा नैतिक मानकों का पालन सुनिश्चित करने में आचार संहिता के महत्त्व पर प्रकाश डाला गया है।

नैतिक संहिता और आचार संहिता में अंतर:

  • नैतिक संहिता एक महत्त्वाकांक्षी दस्तावेज़ है, जिसे निदेशक मंडल द्वारा जारी किया जाता है, जिसमें संगठन के मूल नैतिक मूल्यों, सिद्धांतों और आदर्शों को शामिल किया जाता है।
    • आचार संहिता एक दिशात्मक दस्तावेज़ है जिसमें, विशिष्ट प्रथाओं और व्यवहारों का समावेश होता है जिनका संगठन के तहत पालन किया जाता है या प्रतिबंध लगाया जाता है।
  • आचार संहिता की उत्पत्ति नैतिक संहिता से हुई है और यह नियमों को विशिष्ट दिशानिर्देशों में परिवर्तित करती है जिनका संगठन के सदस्यों द्वारा पालन किया जाना चाहिये।
    • इसलिये बाद वाली अवधारणा पूर्व की तुलना में व्यापक है।
  • नैतिक संहिता संगठन के निर्णय को नियंत्रित करती है जबकि आचार संहिता कार्यों को नियंत्रित करती है।
  • नैतिक संहिता मूल्यों या सिद्धांतों पर केंद्रित है। दूसरी ओर आचार संहिता अनुपालन और नियमों पर केंद्रित है।
  • नैतिक संहिता सार्वजनिक रूप से उपलब्ध है, यानी कोई भी इसका उपयोग कर सकता है। इसके विपरीत, आचार संहिता केवल कर्मचारियों को नियंत्रित करती है।

सदस्यों के व्यावसायिक हितों की घोषणा:

  • परिचय:
    • राज्यसभा सदस्यों के लिये यह प्रथा पहले से ही लागू है।
    • इसका उद्देश्य किसी भी व्यक्तिगत, आर्थिक या प्रत्यक्ष हितों की पहचान करना और उनका खुलासा करना है जो संभावित रूप से हितों का टकराव उत्पन्न कर सकते हैं, पारदर्शिता एवं जवाबदेही को बढ़ावा दे सकते हैं।
  • लंबे समय से चलने वाली प्रक्रिया:
    • संसद सदस्यों (सांसदों) के हितों के टकराव के बारे में चिंताएँ वर्ष 1925 में ही उठाई गई थीं।
    • वर्ष 2012 में, लोकसभा नैतिक समिति ने 'सदस्यों के हितों का रजिस्टर' बनाए रखने की राज्यसभा की प्रक्रिया को अपनाने का सुझाव दिया।
      • यह रजिस्टर संसद सदस्यों के वित्तीय और व्यक्तिगत हितों के बारे में जानकारी प्रदान करता है।
    • राज्यसभा में नियम 293 इस रजिस्टर की आवश्यकता को रेखांकित करता है, जिसे संसद सदस्य और यहाँ तक कि आम नागरिक भी RTI (सूचना का अधिकार) अधिनियम के माध्यम से प्राप्त कर सकते हैं।
    • लोकसभा सचिवालय ने 'लोकसभा अध्यक्ष द्वारा निर्देश' शीर्षक से संसद के एक प्रकाशन से एक उद्धरण, पैराग्राफ 52A प्रदान किया।
      • यह अनुच्छेद संसदीय समितियों के सदस्यों पर लागू होता है, सभी सांसदों पर नहीं।
      • उद्धरण ("व्यक्तिगत, आर्थिक या सदस्य का प्रत्यक्ष हित") के अनुसार: "
        • (1) जहाँ समिति के किसी सदस्य का समिति द्वारा विचार किये जाने वाले किसी मामले में व्यक्तिगत, आर्थिक या प्रत्यक्ष हित हो, तो ऐसा सदस्य समिति के अध्यक्ष को अपना हित बताएगा।
        • (2) मामले पर विचार करने के बाद अध्यक्ष एक निर्णय देगा जो अंतिम होगा।

द्वितीय ARC की सिफारिशें:

  • मंत्रियों को अपने कर्तव्यों के निर्वहन में संवैधानिक और नैतिक व्यवहार के उच्चतम मानकों का पालन कैसे करना चाहिये, इस पर मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु मंत्रियों के लिये वर्तमान आचार संहिता के अलावा एक अन्य आचार संहिता होनी चाहिये।
  • आचार संहिता और इसके पालन की निगरानी हेतु प्रधानमंत्री एवं मुख्यमंत्रियों के कार्यालयों में समर्पित इकाइयाँ स्थापित की जानी चाहिये। इकाई को आचार संहिता के उल्लंघन के संबंध में सार्वजनिक शिकायतें प्राप्त करने का भी अधिकार दिया जाना चाहिये।
  • प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री को मंत्रियों द्वारा नैतिक संहिता तथा आचार संहिता का पालन सुनिश्चित करने हेतु बाध्य होना चाहिये।
  • इन संहिताओं के पालन के संबंध में एक वार्षिक रिपोर्ट उपयुक्त विधायिका को प्रस्तुत की जानी चाहिये। इस रिपोर्ट में उल्लंघन के विशिष्ट मामले यदि कोई हों और उन पर की गई कार्रवाई शामिल होनी चाहिये।
  • आचार संहिता में अन्य बातों के साथ-साथ मंत्री-सिविल सेवक संबंध और आचार संहिता के व्यापक सिद्धांत शामिल होने चाहिये।
  • नैतिक संहिता, आचार संहिता और वार्षिक रिपोर्ट को सार्वजनिक रूप में होना चाहिये।

निष्कर्ष:

  • लोकसभा के भीतर नैतिक आचरण एवं पारदर्शिता को बढ़ावा देने के लिये इन सुधारों को अपनाना और लागू करना महत्त्वपूर्ण है।
  • ये पहलें अधिक जवाबदेह और ज़िम्मेदार संसदीय प्रणाली में योगदान देंगी, जिससे अंततः लोकतांत्रिक प्रक्रिया तथा पूरे देश को लाभ होगा।