पर्यावरण प्रभाव आकलन | 21 Jul 2022

प्रिलिम्स के लिये:

ईआईए अधिसूचना 2006, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम।

मेन्स के लिये:

पर्यावरण प्रभाव आकलन ।

चर्चा में क्यों?

पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) ने पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA ) नियमों में संशोधन को अधिसूचित किया है, जिसमें पर्यावरण मंज़ूरी प्राप्त करने के लिये कई प्रकार की छूट दी गई है।

  • किसी क्षेत्र की पारिस्थितिकी पर इसके संभावित प्रतिकूल प्रभावों का आकलन (तद्नुसार कम करने) करने हेतु एक परियोजना या गतिविधि के बारे में सभी प्रासंगिक जानकारियों की जाँच करने के लिये वर्ष 2006 में MoEFCC द्वारा एक नई EIA अधिसूचना जारी की गई थी जिसमे वर्ष 2016, 2020 और 2021 में संशोधन किये गए थे।

पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना में वर्ष 2006 में किये गए संशोधन:

  • परियोजना मंज़ूरी प्रकिया का विकेंद्रीकरण: इसके तहत विकासात्मक परियोजनाओं को दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया:
    • श्रेणी ‘A’ (राष्ट्रीय स्तरीय मूल्यांकन): इन विकासात्मक परियोजनाओं का मूल्यांकन ‘प्रभाव आकलन एजेंसी’ और ‘विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति’ द्वारा किया जाता है।
    • श्रेणी ‘B’ (राज्य स्तरीय मूल्यांकन): इस श्रेणी की विकासात्मक परियोजनाओं को ‘राज्य स्तरीय पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण’ (SEIAA) और राज्य ‘स्तरीय विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति’ (SEAC) द्वारा मंज़ूरी प्रदान की जाती है।
  • विभिन्न चरणों की शुरुआत: संशोधन के माध्यम से पर्यावरण प्रभाव आकलन में चार चरणों की शुरुआत की गई; स्क्रीनिंग, स्कोपिंग, जन सुनवाई और मूल्यांकन।
    • श्रेणी ‘A’ परियोजनाओं को अनिवार्य पर्यावरणीय मंज़ूरी की आवश्यकता होती है, अतः इस प्रकार उन्हें स्क्रीनिंग प्रक्रिया से नहीं गुज़रना पड़ता है।
    • श्रेणी ‘B’ परियोजनाएँ एक स्क्रीनिंग प्रक्रिया से गुज़रती हैं और उन्हें ‘B1’ (अनिवार्य रूप से पर्यावरण प्रभाव आकलन की आवश्यकता) तथा ‘B2’ (पर्यावरण प्रभाव आकलन की आवश्यकता नहीं) के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।
  • अनिवार्य मंज़ूरी वाली परियोजनाएँ: खनन, थर्मल पावर प्लांट, नदी घाटी, बुनियादी अवसंरचना (सड़क, राजमार्ग, बंदरगाह और हवाई अड्डे) जैसी परियोजनाओं तथा बहुत छोटे इलेक्ट्रोप्लेटिंग या फाउंड्री इकाइयों सहित विभिन्न छोटे उद्योगों के लिये पर्यावरण मंज़ूरी प्राप्त करना अनिवार्य होता है।

परियोजनाओं को छूट:

  • सामरिक और रक्षा परियोजनाएँ:
    • सामरिक और रक्षा महत्त्व की राजमार्ग परियोजनाएँ, जो नियंत्रण रेखा से 100 किमी. की दूरी पर हैं, को अन्य स्थानों की तुलना में निर्माण से पहले पर्यावरण मंज़ूरी से छूट दी जाती है।
      • सीमावर्ती राज्यों में रक्षा और सामरिक महत्त्व से संबंधित राजमार्ग परियोजनाएंँ प्रकृति में संवेदनशील होती हैं और इन्हें कई मामलों में रणनीतिक, रक्षा और सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए प्राथमिकता पर निष्पादित करने की आवश्यकता होती है।
      • रणनीतिक महत्त्व के राजमार्गों को दी जाने वाली छूट विवादास्पद चार धाम परियोजना के निर्माण के लिये हरित मंज़ूरी की आवश्यकता को समाप्त करती है, जिसमें उत्तराखंड के पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में केदारनाथ, बद्रीनाथ, यमुनोत्री एवं गंगोत्री मंदिरों से कनेक्टिविटी में सुधार के लिये 899 किलोमीटर सड़कों को चौड़ा करना शामिल है। .
        • फिलहाल मामले की सुनवाई सर्वोच्च न्यायलय में चल रही है, जिसने मामले की जांँच के लिये एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति का गठन किया है।
  • बायोमास आधारित विद्युत संयंत्र:
    • कोयला, लिग्नाइट या पेट्रोलियम उत्पादों जैसे सहायक ईंधन का उपयोग करने वाले उन बायोमास या गैर-खतरनाक नगरपालिका ठोस अपशिष्ट पर आधारित 15 मेगावाट तक के ताप विद्युत संयंत्रों को भी छूट दी गई है जब तक कि ईंधन मिश्रण पर्यावरण के अनुकूल है।
  • मत्स्य प्रबंधन वाले बंदरगाह और डॉकयार्ड:
    • अन्य की तुलना में कम प्रदूषण, मत्स्य प्रबंधन तथा छोटे मछुआरों की ज़रूरतों को पूरा करने वाले बंदरगाहों और डॉकयार्डों को पर्यावरण मंज़ूरी से छूट दी गई है।
  • टोल प्लाज़ा:
    • टोल प्लाज़ा जिन्हें बड़ी संख्या में वाहनों की आवाजाही के लिये टोल संग्रह बूथों की स्थापना हेतु अधिक चौड़ाई वाले स्थान की आवश्यकता होती है और मौजूदा हवाई अड्डे, जिन्हें टर्मिनल बिल्डिंग विस्तार से संबंधित गतिविधियों की आवश्यकता होती है, हवाई अड्डों के मौजूदा क्षेत्र में वृद्धि के बिना (रनवे आदि के विस्तार के अतिरिक्त) दो अन्य परियोजनाओं को छूट दी गई है।

पर्यावरणीय प्रभाव आकलन:

  • परिचय:
    • संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) द्वारा पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) को किसी परियोजना से संबंधित निर्णय लेने से पूर्व पर्यावरणीय, सामाजिक और आर्थिक प्रभावों की पहचान करने हेतु उपयोग किये जाने वाले उपकरण के रूप में परिभाषित किया जाता है।
  • लक्ष्य:
    • परियोजना नियोजन और डिज़ाइन के प्रारंभिक चरण में पर्यावरणीय प्रभावों की भविष्यवाणी करना, प्रतिकूल प्रभावों को कम करने के तरीके और साधन खोजना, परियोजनाओं को स्थानीय पर्यावरण के अनुरूप आकार देना तथा निर्णय निर्माताओं के लिये विकल्प प्रस्तुत करना।
  • प्रक्रिया:
    • स्क्रीनिंग: EIA का पहला चरण, जो यह निर्धारित करता है कि प्रस्तावित परियोजना के लिये EIA की आवश्यकता है या नहीं और यदि है तो मूल्यांकन के किस स्तर की आवश्यकता होगी।
    • स्कोपिंग: यह चरण उन प्रमुख मुद्दों एवं प्रभावों का निर्धारण करता है जिनकी आगे जाँच की जानी चाहिये। यह चरण अध्ययन की सीमा तथा समय-सीमा को भी परिभाषित करता है।
    • प्रभाव विश्लेषण: EIA का यह चरण प्रस्तावित परियोजना के संभावित पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभाव का निर्धारण एवं पूर्वानुमान प्रदान करता है तथा महत्त्व का मूल्यांकन करता है।
    • मिटिगेशन: EIA का यह कदम विकास गतिविधियों के संभावित प्रतिकूल पर्यावरणीय प्रभावों को कम करने तथा उनसे बचने के लिये कार्यों की संस्तुति करता है।
    • रिपोर्टिंग: यह चरण निर्णय निर्माण निकाय एवं अन्य इच्छुक पक्षकारों की रिपोर्ट के रूप में EIA के परिणाम प्रस्तुत करता है।
    • जन सुनवाई: EIA रिपोर्ट के पूरा होने पर परियोजना स्थल के करीब रहने वाले सार्वजनिक और पर्यावरण समूहों को सूचित किया जा सकता है तथा उनसे परामर्श किया जा सकता है।
    • EIA की समीक्षा: यह EIA रिपोर्ट की पर्याप्तता एवं प्रभावशीलता की जाँच करती है तथा निर्णय निर्माण के लिये आवश्यक जानकारी प्रदान करती है।
    • निर्णय लेना: यह इस बात को निर्धारित करता है कि परियोजना को अस्वीकार कर दिया गया है, स्वीकृत किया गया है अथवा इसमें और परिवर्तनों की आवश्यकता है।
    • निगरानी के बाद: परियोजना के प्रारंभ होने के पश्चात् यह चरण अस्तित्व में आता है जो यह सुनिश्चित करने के लिये जाँच करता है कि परियोजना के प्रभाव कानूनी मानकों से अधिक नहीं हैं एवं शमन उपायों का कार्यान्वयन EIA रिपोर्ट में वर्णित तरीके से हुआ है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस