जेनेटिक इंजीनियरिंग के माध्यम से मच्छरों की आबादी पर नियंत्रण | 14 Sep 2023

प्रिलिम्स के लिये:

आनुवंशिक रूप से संशोधित मच्छर, जेनेटिक इंजीनियरिंग, मलेरिया, डेंगू, ज़ीका वायरस, पीत ज्वर, वोल्बाचिया, जीनोम अनुक्रमण, डीएनए, OX5034 मच्छर

मेन्स के लिये:

मच्छरों की आबादी पर नियंत्रण में जेनेटिक इंजीनियरिंग के लाभ और जोखिम

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

विश्व भर में तेज़ी से हो रहे शहरीकरण के कारण विशेष रूप से भारत जैसे कई बड़े और आर्थिक रूप से विकासशील देशों में मच्छर जनित बीमारियों में वार्षिक स्तर पर वृद्धि देखी गई है।

  • जेनेटिक इंजीनियरिंग (इसमें मच्छरों के लक्षण अथवा व्यवहार में परिवर्तन करना शामिल है) मच्छरों की आबादी पर नियंत्रण के उभरते नवीन तरीकों में से एक है।

मच्छरों की आबादी को नियंत्रित करने हेतु नवीन विधियों के उपयोग की आवश्यकता:

  • परिचय
    • मच्छर कुलिसिडे (Culicidae) समूह से संबंधित छोटे, उड़ने वाले कीट हैं। विशिष्ट गुंजन (Buzzing) ध्वनि उनकी सबसे विशेष पहचान है, मनुष्यों और पशुओं में बीमारियाँ फैलाने में इनकी प्रमुख भूमिका होती है।
      • ये मलेरिया, डेंगू, ज़ीका और पीत ज्वर जैसी घातक बीमारियाँ फैला सकते हैं, जिससे  प्रत्येक वर्ष लाखों लोग संक्रमित होते हैं।
  • मच्छर जनित बीमारियों की व्यापकता: 
    • शहरीकरण और जलवायु परिवर्तन: वैश्विक आबादी का तेज़ी से शहरीकरण, विशेष रूप से भारत जैसे विकासशील देशों में डेंगू जैसी मच्छर जनित बीमारियों के संक्रमण के विस्तार में वार्षिक स्तर पर काफी वृद्धि हुई है।
      • फ्राँस में स्थानिक डेंगू संक्रमण इस बात का उदाहरण है कि किस प्रकार जलवायु परिवर्तन ने उन भौगोलिक क्षेत्रों का विस्तार किया है जहाँ ये बीमारियाँ व्यापक हैं।
    • वर्तमान नियंत्रण उपाय: मच्छरों की आबादी को नियंत्रित करने के मौजूदा प्रयासों में कई प्रकार के उपकरणों का उपयोग किया जाता है, जिसमें मच्छरदानी, कीटनाशक छिड़काव और वोल्बाचिया जैसे सहजीवियों (Symbionts) का उपयोग शामिल है।
      • पहली पीढ़ी के मलेरिया टीके की उपलब्धता के बावजूद मच्छरों में बढ़ती कीटनाशक प्रतिरोधक क्षमता चिंता का विषय है, ऐसे में उनकी आबादी पर नियंत्रण हेतु नवीन उपायों की खोज करना आवश्यक है।

मच्छर नियंत्रण के लिये जेनेटिक इंजीनियरिंग का उपयोग: 

  • जीनोम अनुक्रमण: अगली पीढ़ी की अनुक्रमण तकनीकों में हालिया प्रगति ने शोधकर्ताओं को विभिन्न मच्छर प्रजातियों के लिये संपूर्ण जीनोम अनुक्रम प्राप्त करने में मदद की है।
    • विशेष रूप से कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय और भारत में बंगलूरू स्थित अनुसंधान संस्थानों ने एक प्रमुख मलेरिया वेक्टर एनोफिलीज़ स्टीफेंसी के लिये उच्च गुणवत्ता वाले संदर्भ जीनोम में योगदान दिया है।
    • मच्छर जीनोम अनुक्रमों की उपलब्धता और आनुवंशिक रूप से उनमें हेर-फेर करने की हमारी क्षमता मच्छरों की आबादी पर नियंत्रण के अभूतपूर्व अवसर प्रदान करती है।
  • जीन ड्राइव तकनीक: वर्ष 2003 में ऑस्टिन बर्ट (इंपीरियल कॉलेज लंदन में प्रोफेसर) द्वारा विकसित जीन-ड्राइव तकनीक का उद्देश्य मेंडल द्वारा प्रतिपादित सामान्य आनुवंशिक नियमों के विपरीत कुछ जीन के तरीके को परिवर्तित कर मच्छरों की आबादी पर नियंत्रण पाना है।
    • यह तकनीक विशिष्ट प्रोटीन का उपयोग करके मच्छरों के DNA में बदलाव करती है, फिर कोशिकाएँ इसमें एक विशेष आनुवंशिक अनुक्रम जोड़कर इन प्रोटीनों के कारण होने वाली DNA क्षति को ठीक करती है।
    • यह परिवर्तन मच्छरों की प्रजनन क्षमता को प्रभावित करता है और मलेरिया परजीवी को बढ़ने से रोकता है, जिससे मच्छर बीमारी फैलाने में असमर्थ हो जाते हैं।
    • इंपीरियल कॉलेज लंदन के शोधकर्ताओं ने आनुवंशिक रूप से रोगाणुरोधी पदार्थों को स्रावित करने के लिये मच्छरों में एक जीन को बढ़ाया, जिससे प्लाज़्मोडियम परजीवी के विकास में बाधा उत्पन्न हुई और मच्छरों का जीवनकाल कम हो गया।
  • OX5034 मच्छर: अमेरिकी पर्यावरण संरक्षण एजेंसी ने वर्ष 2020 में फ्लोरिडा और टेक्सास में आनुवंशिक रूप से संशोधित OX5034 मच्छरों को पर्यावरण में छोड़ने का फैसला किया
    • यह मच्छर एक एंटीबायोटिक, टेट्रासाइक्लिन के प्रति संवेदनशील जीन के साथ विकसित हुआ है। 
    • इसमें एक स्व-सीमित जीन होता है जो मादा संततियों को जीवित रहने से रोकता है, जिससे मच्छरों की संख्या में कमी आती है।

मच्छर नियंत्रण में जेनेटिक इंजीनियरिंग के लाभ और जोखिम:

  • मच्छर नियंत्रण में जेनेटिक इंजीनियरिंग के लाभ:
    • लक्षित मच्छर नियंत्रण: जेनेटिक इंजीनियरिंग रोग फैलाने वाली प्रजातियों पर ध्यान केंद्रित करते हुए मच्छरों की आबादी में सटीक संशोधन में सहायता करेगी।
      • यह लक्षित दृष्टिकोण कीटनाशकों के व्यापक उपयोग की आवश्यकता को कम करता है तथा गैर-लक्षित जीवों को होने वाले नुकसान को रोकता है।
    • पर्यावरणीय प्रभाव में कमी: पारंपरिक कीटनाशकों की तुलना में जेनेटिक इंजीनियरिंग का पर्यावरणीय प्रभाव कम होता है क्योंकि इसमें पारिस्थितिक तंत्र का रासायनिक प्रदूषण नहीं होता है।
      • इससे अन्य लाभकारी कीट और जलीय जीवन की रक्षा करने में मदद मिल सकती है।
    • संधारणीयता: आनुवंशिक रूप से संशोधित मच्छरों को पर्यावरण में छोड़ने के बाद इनमें संशोधित जीन के गुण बने रहते हैं, जो बार-बार पुन: उपयोग की आवश्यकता के बिना मच्छर नियंत्रण की एक सतत् और स्व-स्थायी विधि प्रदान करता है।
    • सार्वजनिक स्वास्थ्य: मच्छर जनित बीमारियों को कम करके जेनेटिक इंजीनियरिंग सार्वजनिक स्वास्थ्य पर महत्त्वपूर्ण सकारात्मक प्रभाव डाल सकती है जो संभावित रूप से कई लोगों की जान बचा सकती है और इन बीमारियों के इलाज से जुड़ी स्वास्थ्य देखभाल लागत को भी कम कर सकती है।
  • मच्छर नियंत्रण में जेनेटिक इंजीनियरिंग के जोखिम और चिंताएँ:
    • अनपेक्षित परिणाम: आनुवंशिक संशोधनों का पारिस्थितिक तंत्र पर अप्रत्याशित परिणाम उत्पन्न हो सकते हैं। 
      • मच्छरों की संख्या में हुए इस परिवर्तन से खाद्य शृंखलाएँ बाधित हो सकती हैं या पारिस्थितिक असंतुलन की स्थिति उत्पन्न हो सकती है, जिसका अनपेक्षित प्रभाव अन्य प्रजातियों पर पड़ सकता है।
    • नैतिक चिंताएँ: आलोचकों ने जीवों के जीन में हेर-फेर करने को लेकर नैतिक आपत्ति जताई है, विशेषकर जब इसमें अनियंत्रित आबादी के आनुवंशिकी में बदलाव शामिल हो। इससे पारिस्थितिक ज़िम्मेदारी पर सवाल उठाए जा सकते हैं।
    • आक्रमण का जोखिम: आनुवंशिक रूप से संशोधित मच्छर अनजाने में ऐसे लक्षण प्राप्त कर सकते हैं जो नए आवासों पर अतिक्रमण करने की उनकी क्षमता को बढ़ा सकते हैं, जिससे संभावित रूप से उनकी प्राकृतिक सीमा के बाहर के क्षेत्रों में अप्रत्याशित पारिस्थितिक व्यवधान उत्पन्न हो सकते हैं।

निष्कर्ष:

जेनेटिक इंजीनियरिंग में बीमारी की रोकथाम के लिये मच्छर नियंत्रण में क्रांति लाने की क्षमता है। हालाँकि इसके लिये ज़रूरी है कि हम दृढ़ता के साथ अनुसंधान और अनुकूलनीय विनियमन के माध्यम से पर्यावरण एवं नैतिकता से जुड़े जोखिमों का समाधान करना जारी रखें।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)

  1. उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में ज़ीका वायरस रोग उसी मच्छर द्वारा फैलता है जो डेंगू का प्रसार करता है।
  2. ज़ीका वायरस रोग यौन संचरण द्वारा संभव है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (c)


प्रश्न. ‘वोलबैचिया पद्धति’ का कभी-कभी निम्नलिखित में से किस एक के संदर्भ में उल्लेख होता है? (2023)

(a) मच्छरों से होने वाले विषाणु रोगों के प्रसार को नियंत्रित करना।
(b) शेष शस्य (क्रॉप रेज़िड्यु) से संवेष्टन सामग्री (पैकिंग मटीरियल) बनाना।
(c) जैव निम्नीकरणीय प्लास्टिकों का उत्पादन करना।
(d) जैव मात्र के ऊष्मरासायनिक रूपांतरण से बायोचार का उत्पादन करना। 

उत्तर: (a)