वायनाड वन्यजीव अभयारण्य के आस-पास इको-सेंसिटिव ज़ोन | 11 Feb 2021

चर्चा में क्यों?

पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) द्वारा जारी वायनाड वन्यजीव अभयारण्य के आस-पास के क्षेत्र को पर्यावरण संवेदी क्षेत्र यानि इको-सेंसिटिव ज़ोन (ESZ) घोषित करने से संबंधित मसौदा अधिसूचना के खिलाफ वायनाड (केरल) में विरोध प्रदर्शन किया जा रहा है।

प्रमुख बिंदु:

    • मसौदा अधिसूचना:
      • मसौदा अधिसूचना के अनुसार, 118.5 वर्ग किमी क्षेत्र को इको-सेंसिटिव ज़ोन (ESZ) के रूप में चिह्नित किया गया है, जिसमें से 99.5 वर्ग किमी. क्षेत्र अभयारण्य के बाहर है और शेष 19 वर्ग किमी. में अभयारण्य के अंतर्गत आने वाले राजस्व गाँव भी शामिल हैं।
      • ESZ के तहत कई मानवीय गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा दिया जाएगा, जिसमें सभी नए और मौजूदा खनन, पत्थर का उत्खनन करने और उन्हें तोड़ने वाली इकाइयों तथा प्रदूषण पैदा करने वाले नए उद्योगों पर प्रतिबंध शामिल है।
        • इसमें बड़ी पनबिजली परियोजनाओं की स्थापना और नए आरा मिलों, ईंट भट्टों की स्थापना तथा ESZ के भीतर काष्ठ ईंधन के व्यावसायिक उपयोग पर प्रतिबंध भी शामिल है।
      • इसके अलावा, संरक्षित क्षेत्र की सीमा या ESZ की सीमा (जो भी पास हो) तक, 1 किमी. के दायरे में कोई भी नया वाणिज्यिक होटल और रिसॉर्ट खोलने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
      • यह अधिसूचना राज्य सरकार के सक्षम प्राधिकारी की पूर्व अनुमति के बिना निजी भूमि में भी वृक्षों की कटाई पर रोक लगाता है।
    • अधिसूचना का उद्देश्य:
      • यह वन्यजीव अभयारण्य के आस-पास निवास करने वाले लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है क्योंकि वन्यजीवों के हमलों की बढ़ती घटनाओं के कारण वनों की सीमाओं पर रह रहे किसानों को सर्वाधिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
        • पिछले 38 वर्षों के दौरान वन्यजीव हमलों के कारण ज़िले में 147 लोगों की मृत्यु हुई है।
    • मुद्दे:
      • वन्यजीव अभयारण्य के भीतर स्थित 57 गाँव इको सेंसिटिव ज़ोन के अंतर्गत आते हैं।
      • आलोचकों द्वारा यह तर्क दिया जा रहा है कि मसौदा अधिसूचना ज़िले में कृषि और व्यवसाय दोनों क्षेत्रों को प्रभावित करेगी, क्योंकि यह अधिसूचना वाहनों के आवागमन पर अंकुश लगाती है।
      • यह अधिसूचना अभयारण्य सीमाओं पर निवास कर रहे हज़ारों किसानों के जीवन को बुरी तरह से प्रभावित करेगी।
        • अभयारण्य के किनारों पर स्थित 29,291 एकड़ निजी भूमि ESZ के अंतर्गत आ जाएगी, परिणामस्वरूप इस क्षेत्र का विकास हमेशा के लिये अवरुद्ध हो जाएगा।

वायनाड वन्यजीव अभयारण्य (Wayanad Wildlife Sanctuary)

  • अवस्थिति: केरल राज्य के वायनाड ज़िले में अवस्थित वायनाड वन्यजीव अभयारण्य, मुदुमलाई वन्यजीव अभयारण्य, बांदीपुर राष्ट्रीय उद्यान, नागरहोल राष्ट्रीय उद्यान, मुकुर्थी राष्ट्रीय उद्यान और साइलेंट वैली के साथ नीलगिरि बायोस्फीयर रिज़र्व का हिस्सा है।
    • इसका क्षेत्रफल 344.44 वर्ग किमी. है जिसमें चार वन रेंज सुल्तान बथेरी (Sulthan Bathery), मुथांगा (Muthanga), कुरिचिअट (Kurichiat) और थोलपेट्टी (Tholpetty) शामिल हैं।
    • यह कर्नाटक के उत्तर-पूर्वी भाग में बांदीपुर टाइगर रिज़र्व और नागरहोल राष्ट्रीय उद्यान जैसे अन्य संरक्षित क्षेत्रों के साथ दक्षिण-पूर्व में तमिलनाडु के मुदुमलाई टाइगर रिज़र्व को पारिस्थितिक और भौगोलिक निरंतरता (Ecological And Geographic Continuity) प्रदान करता है।
    • कबिनी नदी (कावेरी नदी की एक सहायक नदी) अभयारण्य से होकर बहती है।
  • स्थापना: इसे वर्ष 1973 में वन्यजीव अभयारण्य घोषित किया गया था।

  • जैव-विविधता:
    • यहाँ पाए जाने वाले वन प्रकारों में दक्षिण भारतीय नम पर्णपाती वन, पश्चिमी तटीय अर्द्ध-सदाबहार वन और सागौन, नीलगिरी तथा ग्रेवेलिया आदि शामिल हैं।
    • हाथी, गौर, बाघ, चीता/पैंथर, सांभर, चित्तीदार हिरण, कांकड़ (बार्किंग डियर), जंगली सूअर, सुस्त भालू या स्लॉथ बीयर, नीलगिरि लंगूर, बोनट मकाक, साधारण लंगूर, जंगली कुत्ता, उदबिलाव, मालाबार विशाल गिलहरी आदि यहाँ पाए जाने वाले प्रमुख स्तनधारी हैं।
    • पर्यावरण संवेदी क्षेत्र (Eco-Sensitive Zones)
      • इको-सेंसिटिव ज़ोन या पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा किसी संरक्षित क्षेत्र, राष्ट्रीय उद्यान और वन्यजीव अभयारण्य के आसपास के अधिसूचित क्षेत्र हैं।
      • इको-सेंसिटिव ज़ोन में होने वाली गतिविधियाँ पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत विनियमित होती हैं और ऐसे क्षेत्रों में प्रदूषणकारी उद्योग लगाने या खनन करने की अनुमति नहीं होती है।
      • सामान्य सिद्धांतों के अनुसार, इको-सेंसिटिव ज़ोन का विस्तार किसी संरक्षित क्षेत्र के आसपास 10 किमी. तक के दायरे में हो सकता है। लेकिन संवेदनशील गलियारे, कनेक्टिविटी और पारिस्थितिक रूप से महत्त्वपूर्ण खंडों एवं प्राकृतिक संयोजन के लिये महत्त्वपूर्ण क्षेत्र होने की स्थिति में 10 किमी. से भी अधिक क्षेत्र को इको-सेंसिटिव ज़ोन में शामिल किया जा सकता है।
      • मूल उद्देश्य राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों के आस-पास कुछ गतिविधियों को नियंत्रित करना है, ताकि संरक्षित क्षेत्रों की निकटवर्ती संवेदनशील पारिस्थितिक तंत्र पर ऐसी गतिविधियों के नकारात्मक प्रभाव को कम किया जा सके।

    आगे की राह

    • मौजूद परिदृश्य को देखते हुए पर्यावरण नीतियों के स्थानीय प्रभावों, नीतियों में स्थानीय भागीदारी के प्रकार एवं संभावनाओं तथा संरक्षण हेतु की जा रही पहलों के आलोक में वैकल्पिक आय सृजन के अवसरों की संभावनाओं आदि पर पुनर्विचार किये जाने की आवश्यकता है।

    स्रोत: द हिंदू