डिजिटल बैंक | 21 Jul 2022

प्रिलिम्स के लिये:

डिजिटल बैंक एवं डिजिटल बैंकिंग इकाइयों में अंतर, वित्तीय समावेशन, यूपीआई।

मेन्स के लिये:

डिजिटल बैंक और इसकी आवश्यकता, डिजिटल बैंक पर नीति आयोग की रिपोर्ट।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में नीति आयोग ने एक रिपोर्ट जारी की है जिसका शीर्षक 'डिजिटल बैंक: ए प्रपोजल फॉर लाइसेंसिंग एंड रेगुलेटरी रिजीम फॉर इंडिया' (Digital Banks: A Proposal for Licensing & Regulatory Regime for India) है।

  • इसने डिजिटल बैंको के लिये एक लाइसेंसिंग व नियामक ढाँचा स्थापित करने का सुझाव दिया है।

रिपोर्ट के निष्कर्ष:

  • हाल के वर्षों में भारत ने प्रधानमंत्री जन धन योजना (PMJDY) और इंडिया स्टैक द्वारा उत्प्रेरित वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने में तीव्र प्रगति की है।
  • हालाँकि ऋण तक पहुँच एक नीतिगत चुनौती बनी हुई है, विशेष रूप से देश के 63 मिलियन MSME (सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों) के लिये।
  • वित्तीय समावेशन को यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI) द्वारा आगे बढ़ाया गया है, जिसे बड़े पैमाने पर अपनाया गया है।
    • UPI ने अक्तूबर 2021 में 7.7 ट्रिलियन रुपए के 4.2 बिलियन से अधिक लेन-देन दर्ज किये हैं।
  • FI ने पीएम-किसान जैसे एप, प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (DBT) और पीएम-स्वनिधि के माध्यम से स्ट्रीट वेंडर्स के लिये सूक्ष्म ऋण सुविधाओं का विस्तार किया।
  • भारत अपने स्वयं के ‘खुले बैंकिंग ढांँचे’ को संचालित करने के करीब है।
  • डिजिटल बैंकिंग नियामक और नीति के लिये एक ढांँचा का निर्माण भारत को फिनटेक में वैश्विक नेता के रूप में अपनी स्थिति को मज़बूत करने के साथ-साथ कई सार्वजनिक नीतिगत चुनौतियों का सामना करने का अवसर प्रदान करेगा।

सिफारिशें:

  • लाइसेंस प्राप्त ग्राहकों की मात्रा/मूल्य और इसी तरह के अन्य उदाहरणों के संदर्भ में एक प्रतिबंधित डिजिटल बैंक लाइसेंस जारी करने पर रोक लगे।
  • भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा अधिनियमित एक नियामक सैंडबॉक्स फ्रेमवर्क में लाइसेंसधारकों की सूची।
  • प्रमुख, विवेकपूर्ण और तकनीकी जोखिम प्रबंधन सहित नियामक सैंडबॉक्स में लाइसेंसधारी के संतोषजनक प्रदर्शन पर निर्भर 'पूर्ण पैमाने' वाला डिजिटल बैंक लाइसेंस जारी करना।

डिजिटल बैंक और इसकी आवश्यकता:

  • डिजिटल बैंक:
    • इसे बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 में परिभाषित किया जाएगा और अपनी बैलेंस शीट ंके साथ इसका कानूनी अस्तित्व होगा।
    • यह केंद्रीय बजट वर्ष 2022-23 में वित्त मंत्री द्वारा घोषित 75 डिजिटल बैंकिंग इकाइयों (DBU) से अलग होगा, जो कि कम सेवा वाले क्षेत्रों में डिजिटल भुगतान, बैंकिंग और फिनटेक नवाचारों को आगे बढ़ाने के लिये स्थापित किये जा रहे हैं।
      • DBU विशेष निश्चित बिंदु व्यापार इकाई या डिजिटल बैंकिंग उत्पादों और सेवाओं को वितरित करने के साथ-साथ मौजूदा वित्तीय उत्पादों एवं सेवाओं को किसी भी समय स्वयं सेवा मोड में डिजिटल रूप से सुविधा प्रदान करने के लिये कुछ न्यूनतम डिजिटल आधारभूत संरचनाओं का हब है।
    • डिजिटल बैंक मौजूदा वाणिज्यिक बैंकों के समान विवेकपूर्ण और तरलता मानदंडों के अधीन होंगे।

आवश्यकता:

  • क्रेडिट गैप:
    • भुगतान के मोर्चे पर भारत ने जो सफलता देखी है, उसे अपने सूक्ष्म, लघु और मध्यम व्यवसायों की ऋण ज़रूरतों को पूरा करने में दोहराया जाना बाकी है।
    • क्रेडिट गैप से पता चलता है कि इन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये प्रभावी ढंग से प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना साथ ही वंचितों को औपचारिक वित्तीय दायरे में लाने की ज़रूरत है।
  • डिजिटल चैनलों पर रिलायंस:
    • डिजिटल बैंकिंग सेवाओं की पेशकश करने वाले बैंक और फिनटेक व्यवसाय मुख्य रूप से डिजिटल चैनलों पर भरोसा करते हैं, जिनमें मौजूदा वाणिज्यिक बैंकों के सापेक्ष उच्च दक्षता वाले तंत्र होते हैं।
    • यह संरचनात्मक विशेषता उन्हें एक संभावित प्रभावी चैनल बनाती है जिसके माध्यम से नीति निर्माता कम बैंकिंग वाले छोटे व्यवसायों को सशक्त बनाने और खुदरा उपभोक्ताओं के बीच विश्वास बढ़ाने जैसे सामाजिक लक्ष्यों को प्राप्त कर सकते हैं।
  • नियो-बैंक मॉडल चुनौतियों का सामना:
    • मौजूदा साझेदारी-आधारित नियो-बैंक मॉडल राजस्व सृजन और व्यवहार्यता जैसी कई चुनौतियों का सामना करते हैं।
      • नियो-बैंक के पास स्वयं का कोई बैंक लाइसेंस नहीं है, लेकिन बैंक लाइसेंस प्राप्त सेवाएँ प्रदान करने के लिये बैंक भागीदारों पर भरोसा करते हैं।
    • उनके पास सीमित राजस्व क्षमता, पूंजी की उच्च लागत और केवल भागीदार बैंकों के उत्पादों की पेशकश है।

स्रोत: पी.आई.बी.