चंद्रयान -2 से प्राप्त डेटा: इसरो | 26 Dec 2020

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन या इसरो  (ISRO) ने चंद्रमा के लिये देश के दूसरे मिशन (चंद्रयान -2) से प्राप्त डेटा का पहला सेट आम जनता के लिये जारी किया है।

  • गौरतलब है कि भारत द्वारा चंद्रयान -1 के बाद अपने दूसरे चंद्र अन्वेषण मिशन ‘चंद्रयान-2’  को 22 जुलाई, 2019 को श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से प्रक्षेपित किया गया था।
  • इसरो द्वारा वर्ष 2021 के अंत या वर्ष 2022 की शुरुआत में चंद्रयान-3 मिशन को प्रक्षेपित किये जाने की तैयारी की जा रही है। 

प्रमुख बिंदु: 

सार्वजनिक रूप से डेटा जारी करने हेतु आवश्यक मानक:

  • चंद्रयान -2 डेटा को  PDS अभिलेखागार के रूप में स्वीकृत किये जाने और वैश्विक वैज्ञानिक समुदाय तथा आम जनता के साथ साझा करने हेतु तैयार घोषित किये जाने से पहले इसे ‘प्लैनेटरी डेटा सिस्टम -4’ (PDS-4) मानक के अनुरूप होने के  साथ ही वैज्ञानिक और तकनीकी रूप से इसकी विद्वत समीक्षा की जानी भी आवश्यक है गया है।
  • इस गतिविधि को पूरा कर लिया गया है और इसलिये चंद्रयान -2 मिशन डेटा के पहले सेट को अब ‘भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान डेटा सेंटर’ (ISSDC) द्वारा संचालित प्रधान (PRADAN) पोर्टल के माध्यम से व्यापक सार्वजनिक उपयोग के लिये जारी किया जा रहा है।
    • ISSDC, इसरो के ग्रहीय मिशनों (Planetary Missions) के ग्रहीय डेटा संग्रह का नोडल केंद्र है।

वर्तमान डेटा: 

  • ISSDC के पास वर्तमान में चंद्रयान -2 के पेलोड के 7 उपकरणों द्वारा सितंबर 2019 से फरवरी-2020 के बीच संग्रहित डेटा उपलब्ध है।
    • ISDA, इसरो के ग्रहीय मिशनों के लिये दीर्घकालिक संग्रह है।

डेटा के निहितार्थ: 

  • इन आँकड़ों से पता चलता है कि सभी प्रयोग अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं और प्राप्त आँकड़े  पूर्व प्रक्षेपण वादों को पूरा करने की उत्कृष्ट क्षमता का भी संकेत देते हैं।

चंद्रयान-2: 

  • यह लगभग 3,877 किलोग्राम का एक एकीकृत 3-इन -1 अंतरिक्षयान है, जिसमें चंद्रमा का एक ऑर्बिटर 'विक्रम' (विक्रम साराभाई के नाम से प्रेरित), लैंडर और प्रज्ञान (Wsdon)  नामक रोवर शामिल है, साथ ही इसके तीनों घटकों को चंद्रमा का अध्ययन करने के लिये वैज्ञानिक उपकरणों से सुसज्जित किया गया है।
    • चंद्रयान -2 भारत द्वारा चंद्रमा की सतह पर उतरने का पहला प्रयास था।
    • इसरो द्वारा इस मिशन के माध्यम से चंद्रमा की सतह के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने की योजना बनाई गई थी। हालाँकि लैंडर विक्रम ने सितंबर 2019 में चन्द्रमा की सतह पर ‘हार्ड लैंडिंग’ की। इसका ऑर्बिटर अभी भी चंद्रमा की कक्षा में है और इसके मिशन की अवधि सात वर्ष है।

उद्देश्य: 

  • चंद्रयान -1 द्वारा चंद्रमा की सतह पर पानी के अणुओं की उपस्थिति से जुड़े  प्रमाण पर शोध को आगे बढ़ाना और चंद्रमा पर पानी की सीमा तथा  वितरण का अध्ययन करना 
  • चंद्रमा की स्थलाकृति, भूकंप विज्ञान, सतह और वातावरण की संरचना का अध्ययन।
    • प्राचीन चट्टानों और क्रेटरों के अध्ययन से चंद्रमा की उत्पत्ति और विकास से जुड़ी जानकारी प्राप्त हो सकती है।
    • चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र में प्रारंभिक सौर प्रणालियों के जीवाश्म रिकॉर्ड के संकेत मिलने का अनुमान है, इस प्रकार यह प्रारंभिक सौर प्रणाली के बारे में हमारी समझ में सुधार कर सकता है।
  • चंद्रमा की सतह को मापना और इसका 3-D मानचित्र तैयार करना।

स्रोत: द हिंदू