NBFC और डिजिटल ऋण प्रथाओं पर CAFRAL की चिंता | 13 Nov 2023

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय रिज़र्व बैंक, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी, उन्नत वित्तीय अनुसंधान एवं शिक्षण केंद्र, मौद्रिक नीति, कंपनी अधिनियम, 1956, जमा बीमा और ऋण गारंटी निगम

मेन्स के लिये:

बैंकिंग सेक्टर के संबंध में महत्त्वपूर्ण चिंताएँ: NBFC और बैंकों के बीच असमानताएँ

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों? 

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा स्थापित एक शोध निकाय सेंटर फॉर एडवांस्ड फाइनेंशियल रिसर्च एंड लर्निंग (CAFRAL) ने गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFC) के लिये बैंक वित्तपोषण में बढ़ते जोखिम को रेखांकित करते हुए डिजिटल ऋण परिदृश्य में संभावित खतरों की पहचान की है।

  • CAFRAL ने व्यक्तिगत डेटा एकत्र करने वाले नकली/अवैध डिजिटल ऋण प्रदाता एप्स के विषय में भी चेतावनी दी, जो कि इस डेटा के संभावित दुरुपयोग के साथ ही उपयोगकर्त्ताओं के लिये सुरक्षा जोखिम उत्पन्न करते हैं।

CAFRAL द्वारा उठाई गई प्रमुख चिंताएँ:

  • NBFC क्षेत्र में अन्योन्याश्रित जोखिम:
    • CAFRAL के अनुसार बैंक ज़्यादातर बड़े NBFC को ऋण देते हैं, जिससे NBFC क्षेत्र में  क्रॉस-लेंडिंग में वृद्धि हुई है।
      • यह अंतर-निर्भरता और संक्रमण चैनलों का एक नेटवर्क बनाता है जो झटके को बढ़ा सकता है तथा उसे पूरे सिस्टम में प्रसारित कर सकता है। 
    • उदाहरण के लिये वर्ष 2018 में IL&FS के डिफॉल्ट होने और जून 2019 में DHFL के पतन के कारण तरलता संकट की स्थिति उत्पन्न हुई तथा NBFC के प्रति विश्वास में कमी देखी गई, जिससे उन बैंकों की संपत्ति की गुणवत्ता एवं लाभप्रदता प्रभावित हुई, जिन्होंने उन्हें ऋण दिया था।
  • NBFC पर संकुचनकारी मौद्रिक नीति का प्रभाव:
    • CAFRAL ने यह भी पाया कि संकुचनकारी मौद्रिक नीति के कारण NBFC के पोर्टफोलियो में जोखिम बढ़ जाता है।
    • जब RBI नीतिगत दर को सीमित करता है, तो NBFC को उच्च उधार लागत और कम लाभप्रदता का सामना करना पड़ता है।
      • अपने मार्जिन को बनाए रखने के लिये वे अपने ऋण को असुरक्षित ऋण, सबप्राइम उधारकर्त्ताओं आदि जैसे जोखिम वाले क्षेत्रों में स्थानांतरित कर देते हैं। वे इक्विटी और म्यूचुअल फंड में निवेश कर पूंजी बाज़ार में अपना जोखिम भी बढ़ाते हैं।
      • ये रणनीतियाँ उन्हें उच्च क्रेडिट जोखिम, बाज़ार जोखिम और तरलता जोखिम के संपर्क में लाती हैं, जो उनकी सॉल्वेंसी एवं स्थिरता को प्रभावित कर सकती हैं।
  • अवैध ऋण प्रदाता एप्स और फिनटेक प्रभाव के विषय में चेतावनियाँ:
    • ये नकली/अवैध डिजिटल ऋण प्रदाता एप्स, वैध होने का दिखावा करने और संभावित दुरुपयोग के लिये व्यक्तिगत डेटा एकत्र करने के विषय में चेतावनी भी देते हैं।
    • उपयोगकर्त्ता इन एप्स की वैधता को आसानी से सत्यापित नहीं कर सकते हैं। इनके बीच मज़बूत संबंध होते हैं तो पारंपरिक बैंकिंग को प्रभावित करने वाले ऑनलाइन ऋण के संभावित नुकसान के विषय में चिंताएँ उत्पन्न करते हैं।
      • ये एप अक्सर व्यापक व्यक्तिगत जानकारी का अनुरोध करती हैं जिससे उपभोक्ता की सुरक्षा और गोपनीयता को खतरा होता है, हालाँकि कुछ डेटा वास्तव में आवश्यक हो सकते हैं।
      • भारतीय एंड्रॉइड उपयोगकर्त्ताओं के लिये 80 एप स्टोर्स पर लगभग 1100 ऋण प्रदाता एप्स (Lending Apps) की उपलब्धता के साथ फिनटेक (FinTech) ने उत्पाद विविधता में वृद्धि की है।

नोट: डिजिटल ऋण पारंपरिक भौतिक दस्तावेज़ीकरण या व्यक्तिगत बातचीत की आवश्यकता के बिना ऑनलाइन प्लेटफॉर्म या डिजिटल चैनलों के माध्यम से व्यक्तियों या व्यवसायों को ऋण या क्रेडिट प्रदान करने की प्रक्रिया को संदर्भित करता है।

गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ (NBFC): 

  • परिचय: 
    • गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी (NBFC) ‘कंपनी अधिनियम, 1956’ के तहत पंजीकृत एक कंपनी है जो ऋण, प्रतिभूतियों में निवेश, पट्टे, बीमा जैसी विभिन्न वित्तीय गतिविधियों में संलग्न होती है।
    • इसमें वे संस्थान शामिल नहीं हैं जिनका प्राथमिक व्यवसाय कृषि, उद्योग, वस्तु व्यापार, सेवाएँ या अचल संपत्ति व्यापार के अंतर्गत आता है।
  • मानदंड: 
    • वित्तीय गतिविधि ‘प्रमुख व्यवसाय’ तब कहलाएगी, जब कंपनी की वित्तीय आस्तियाँ कुल आस्तियों की 50 प्रतिशत से अधिक हो और वित्तीय आस्तियों से होने वाली आय कुल आय के 50 प्रतिशत से अधिक हो। 
      • दोनों मानदंडों को पूरा करने वाली कंपनियों को RBI द्वारा NBFC के रूप में पंजीकृत किया जाता है।
      • RBI अधिनियम 1934 के तहत रिज़र्व बैंक को इन NBFC को पंजीकृत करने, नीति निर्धारित करने, निर्देश जारी करने, निरीक्षण, विनियमन, पर्यवेक्षण और निगरानी करने की शक्तियाँ प्राप्त हैं।

नोट: मुख्य रूप से कृषि, उद्योग, वस्तु व्यापार, सेवाओं या रियल एस्टेट जैसे क्षेत्रों में लगी कंपनियों को RBI द्वारा विनियमित नहीं किया जाएगा, भले ही वे कुछ वित्तीय गतिविधियाँ संचालित करते हों। यह बहिष्करण '50-50 परीक्षण' का उपयोग करके निर्धारित किया जाता है।

  • RBI के साथ पंजीकरण से छूट:
    • भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 45-IA के अनुसार कोई भी गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी 25 लाख रुपए निवल स्वाधिकृत निधि के बिना (अप्रैल 1999 से 2 करोड़ रुपए) तथा रिज़र्व बैंक से पंजीकरण प्रमाणपत्र प्राप्त किये बगैर गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थान का कारोबार नहीं कर सकती अथवा जारी नहीं रख सकती है। 
    • हालाँकि अन्य प्राधिकरणों द्वारा विनियमित गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के कुछ वर्गों जैसे- सेबी से पंजीकृत वेंचर कैपिटल फंड/मर्चेंट बैंकिंग कंपनियों/ स्टॉक ब्रोकिंग कंपनियों को भारतीय रिज़र्व बैंक से पंजीकरण कराने से छूट दी गई है।
  • NBFC और बैंकों में अंतर: 
    • बैंकों के विपरीत NBFC को जनता से मांग जमा स्वीकार करने से प्रतिबंधित किया जाता है, जो आमतौर पर इस प्रकार की जमा स्वीकार करते हैं जिन्हें बिना किसी पूर्व सूचना के मांग पर निकाला जा सकता है।
    • बैंकों के विपरीत NBFC भुगतान और निपटान प्रणाली का हिस्सा नहीं बनते हैं। वे स्वयं आहरित चेक जारी करने में असमर्थ हैं, जो बैंकों द्वारा प्रस्तावित एक मानक प्रथा है।
    • बैंकों के विपरीत निक्षेप बीमा और प्रत्यय गारंटी निगम जैसी संस्थाओं द्वारा प्रदान की जाने वाली जमा बीमा सुविधा NBFC के जमाकर्त्ताओं के लिये उपलब्ध नहीं है।
      • बैंक विफलताओं के मामले में यह बीमा जमाकर्त्ताओं को सुरक्षा प्रदान करता है, किंतु यह सुरक्षा NBFC जमाकर्त्ताओं को नहीं दी जाती है।
  • अनुदान: 
    • NBFC मुख्य रूप से बाज़ार ऋण-ग्रहण एवं बैंक ऋण के माध्यम से अपने परिचालन को वित्तपोषित करते हैं।

आगे की राह 

  • अंतर्संबंध तथा स्पिलओवर की निगरानी: RBI तथा अन्य नियामकों को नेटवर्क विश्लेषण, तनाव परीक्षण, प्रारंभिक चेतावनी संकेतक आदि जैसे विभिन्न उपकरणों का उपयोग करके NBFC एवं बैंकों समेत NBFC क्षेत्र के बीच अंतर्संबंध व स्पिलओवर की निगरानी को सुदृढ़ करने की आवश्यकता है।
    • प्रभावी सूचना साझाकरण तथा संकट प्रबंधन सुनिश्चित करने के लिये उन्हें परस्पर समन्वय एवं  सहयोग करने की भी आवश्यकता है।
  • जोखिम प्रबंधन तथा प्रशासन: NBFC में संभावित जोखिमों को प्रभावी ढंग से पहचानने, उनका आकलन एवं कम करने के लिये जोखिम प्रबंधन प्रथाओं को सशक्त करना चाहिये।
    • ठोस निर्णय लेने एवं पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिये कॉर्पोरेट प्रशासन तथा नियामक निरीक्षण को बढ़ाने की आवश्यकता है।
  • डिजिटल ऋण की नियामक निगरानी: उपभोक्ता संरक्षण कानूनों एवं डेटा गोपनीयता नियमों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिये डिजिटल ऋण अनुप्रयोगों पर नियामक निगरानी को सुदृढ़ करना।
    • ऋण प्रदाता एप्स की वैधता तथा प्रामाणिकता को सत्यापित करने के लिये स्पष्ट दिशा-निर्देश लागू करना।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स: 

प्रश्न. भारत में गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFC) के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2010)

  1. वे सरकार द्वारा जारी प्रतिभूतियों के अधिग्रहण में शामिल नहीं हो सकतीं।
  2. वे बचत खाते की तरह मांग जमा स्वीकार नहीं कर सकतीं।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और ना ही 2

उत्तर: (b)