भारत का परमाणु ऊर्जा उत्पादन | 24 Jul 2025
प्रिलिम्स के लिये:केंद्रीय बजट 2025-26, परमाणु ऊर्जा, COP 28, स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर (SMR), प्रोटोटाइप फास्ट ब्रीडर रिएक्टर (PFBR), न्यूक्लियर पावर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (NPCIL), परमाणु क्षति अधिनियम, 2010 के लिये नागरिक दायित्व, द दबावयुक्त भारी जल रिएक्टर (PHWR), यूरेनियम, परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह, पूरक मुआवजे पर कन्वेंशन (CSC, 1997) मेन्स के लिये:भारत के विकास के लिये परमाणु ऊर्जा का महत्त्व और इसकी परमाणु रणनीति में प्रमुख चुनौतियाँ। एक स्थायी भविष्य के लिए आवश्यक सुधार। |
स्रोत: TH
चर्चा में क्यों?
केंद्रीय बजट 2025-26 में वर्ष 2047 तक 100 गीगावाट परमाणु ऊर्जा क्षमता का महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया गया है, जिसमें परमाणु ऊर्जा को विकसित भारत (2047) और 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने में एक प्रमुख स्तंभ के रूप में स्थान दिया गया है।
- इस बदलाव के लिये मौजूदा चुनौतियों से निपटने हेतु विधायी, वित्तीय और नियामक ढाँचे में व्यापक सुधार की आवश्यकता है।
भारत अपने परमाणु ऊर्जा विकास में किस प्रकार आगे बढ़ रहा है?
- ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य: भारत ने अपना परमाणु सफर बहुत पहले शुरू कर दिया था, जब एशिया का पहला अनुसंधान रिएक्टर ‘अप्सरा’ वर्ष 1956 में और तारापुर में विद्युत रिएक्टर 1963 में स्थापित किया गया।
- वर्ष 1954 में भारत के परमाणु कार्यक्रम के शिल्पकार डॉ. होमी भाभा ने वर्ष 1980 तक 8 गीगावाट परमाणु ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य प्रस्तुत किया था।
- अंतर्राष्ट्रीय चुनौतियों के बावजूद भारत ने 220 मेगावाट के दबावयुक्त भारी जल रिएक्टर (PHWR) का स्वदेशीकरण सफलतापूर्वक किया, जिसे सबसे पहले राजस्थान में उपयोग किया गया और बाद में नरौरा, कैगा और काकरापार में दोहराया गया।
- वर्तमान क्षमता और भविष्य की संभावनाएँ: वर्तमान में भारत की परमाणु ऊर्जा उत्पादन क्षमता 8.18 गीगावाट है तथा वर्ष 2047 तक इसे 100 गीगावाट तक पहुँचाने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा गया है। यह लक्ष्य भारत को विकसित राष्ट्र बनाने और वर्ष 2070 तक नेट ज़ीरो उत्सर्जन प्राप्त करने की रणनीति में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
- वैश्विक साझेदारियाँ और विकास: भारत ने COP28 घोषणा का समर्थन किया है, जिसका उद्देश्य वैश्विक परमाणु ऊर्जा क्षमता को तीन गुना बढ़ाना है। भारत फ्राँस और अमेरिका जैसे अंतरराष्ट्रीय साझेदारों के साथ सहयोग कर परमाणु ऊर्जा परियोजनाओं में तेज़ी लाने का प्रयास कर रहा है।
भारत के विकास के लिये परमाणु ऊर्जा का क्या महत्त्व है?
- ऊर्जा सुरक्षा: भारत की परमाणु ऊर्जा उसकी ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है, जो वर्ष 2047 तक चार गुना बढ़ने का अनुमान है। यह एक विश्वसनीय 24x7 विद्युत आपूर्ति प्रदान करके इस लक्ष्य को साकार करने में सहायक हो सकती है।
- स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर (SMR) और माइक्रो रिएक्टर ग्रिड निर्भरता के बिना दूरदराज के क्षेत्रों को स्वच्छ ऊर्जा प्रदान करते हैं, जबकि परमाणु विलवणीकरण तटीय क्षेत्रों में पानी की कमी से निपटने में मदद करता है।
- औद्योगिक वृद्धि का समर्थन: परमाणु रिएक्टर उन ऊर्जा-गहन उद्योगों (जैसे इस्पात, सीमेंट, डेटा सेंटर) को समर्थन दे सकते हैं जिन्हें विश्वसनीय और उच्च क्षमता वाली ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
- SMR दूरदराज के उद्योगों, हाइड्रोजन उत्पादन और जल-शोधन (विलवणीकरण) जैसी आवश्यकताओं को भी पूरा कर सकते हैं।
- भू-राजनीतिक लाभ: कलपक्कम में प्रोटोटाइप फास्ट ब्रीडर रिएक्टर जैसी स्वदेशी प्रौद्योगिकीय प्रगति भारत की तकनीकी क्षमता को दर्शाती है, जो रणनीतिक कमज़ोरियों को कम करती है तथा वैश्विक ऊर्जा समझौतों में भारत की सौदेबाज़ी शक्ति को बढ़ाती है।
- आपदा प्रतिरोधकता: प्राकृतिक आपदाओं या भू-राजनीतिक व्यवधानों के समय परमाणु ऊर्जा एक अनुकूल आपूर्ति स्रोत प्रदान करती है। हालिया ग्रिड व्यवधानों के दौरान भी यह ऊर्जा स्रोत विश्वसनीय बना रहा है।
स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर (SMRs)
- स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर (SMRs) उन्नत परमाणु रिएक्टर होते हैं जिनकी प्रति यूनिट विद्युत उत्पादन क्षमता 300 मेगावाट (MW) तक होती है, जो पारंपरिक परमाणु रिएक्टरों की क्षमता का लगभग एक-तिहाई होती है।
- SMR की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
- स्मॉल (Small): पारंपरिक परमाणु रिएक्टरों की तुलना में इनका आकार काफी छोटा होता है।
- मॉड्यूलर (Modular): इन्हें फैक्टरी में तैयार कर ट्रांसपोर्ट किया जा सकता है, जिससे इन्हें किसी भी स्थान पर पूर्वनिर्मित इकाइयों के रूप में स्थापित किया जा सकता है।
- रिएक्टर (Reactors): ये नाभिकीय विखंडन (Nuclear Fission) की प्रक्रिया के माध्यम से ऊष्मा उत्पन्न करते हैं, जिसे बाद में विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है।
- माइक्रो रिएक्टर: 1 मेगावाट से 20 मेगावाट, फ्लैटबेड ट्रक पर फिट किये जा सकते हैं, मोबाइल और तैनात करने योग्य।
- स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर (SMRs): 20 मेगावाट से 300 मेगावाट, अधिक इकाइयाँ जोड़कर बढ़ाया या घटाया जा सकता है।
- पूर्ण आकार के रिएक्टर: 300 मेगावाट से 1,000+ मेगावाट, विश्वसनीय, उत्सर्जन-मुक्त बेसलोड विद्युत् प्रदान करते हैं।
भारत में परमाणु ऊर्जा उत्पादन के समक्ष क्या चुनौतियाँ हैं?
- विधायी और विनियामक बाधाएँ: परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1962 परमाणु ऊर्जा उत्पादन को पूरी तरह से सरकार के लिये आरक्षित करता है तथा भारतीय परमाणु ऊर्जा निगम लिमिटेड (NPCIL) एकमात्र संचालक है, जिससे निजी क्षेत्र की भागीदारी सीमित हो जाती है।
- परमाणु क्षति के लिये नागरिक दायित्व अधिनियम, 2010 (CLNDA) ऑपरेटरों (संचालकों) के साथ-साथ आपूर्तिकर्त्ताओं पर भी दायित्व प्रदान करता है, जिससे अमेरिका और फ्राँस जैसे विदेशी देश भारत में निवेश करने से हिचकते हैं।
- परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड (AERB), जो परमाणु ऊर्जा विभाग के अधीनस्थ है, को पूर्ण स्वायत्तता प्राप्त नहीं है।
- वित्तीय और लागत संबंधी चुनौतियाँ: स्वदेशी दबावयुक्त भारी जल रिएक्टर (PHWR) की लागत लगभग 2 मिलियन अमेरिकी डॉलर प्रति मेगावाट है, जो कि कोयला आधारित संयंत्रों की तुलना में लगभग दोगुनी है; विदेशी रिएक्टरों की लागत इससे भी अधिक है।
- निम्न कार्बन उत्सर्जन होने के बावजूद, परमाणु ऊर्जा को "नवीकरणीय" के रूप में वर्गीकृत नहीं किया गया है, जिससे यह कर लाभ और हरित वित्तपोषण साधनों के लिये अयोग्य हो जाती है।
- ईंधन आपूर्ति की बाधाएँ: भारत में यूरेनियम भंडार सीमित हैं और परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह (NSG) की सदस्यता न होने के कारण ईंधन आपूर्ति में कठिनाइयाँ आती हैं। वर्ष 2008 में NSG छूट मिलने के बावजूद, फ्राँस और अमेरिका के साथ ईंधन आपूर्ति समझौतों में प्रगति धीमी रही है।
- अपशिष्ट प्रबंधन संबंधी समस्याएँ: भारत में परमाणु अपशिष्ट प्रबंधन के लिये कुछ व्यवस्थाएँ मौजूद हैं, लेकिन उच्च-स्तरीय परमाणु अपशिष्ट के लिये अब तक कोई स्थायी गहराई वाला भू-वैज्ञानिक भंडारण स्थल विकसित नहीं किया गया है।
पढ़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: परमाणु क्षति के लिये नागरिक दायित्व अधिनियम, 2010
पढ़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: परमाणु क्षति के लिये पूरक क्षतिपूर्ति पर कन्वेंशन (CSC), 1997
भारत में परमाणु ऊर्जा उत्पादन को बढ़ावा देने के लिये क्या कदम उठाए जा सकते हैं?
- विधायी एवं विनियामक सुधार: परमाणु ऊर्जा उत्पादन में निजी भागीदारी की अनुमति देने के लिये परमाणु ऊर्जा अधिनियम (1962) में संशोधन तथा स्पष्ट स्वामित्व मॉडल स्थापित करना।
- आपूर्तिकर्त्ता दायित्व को सीमित करने के लिये CLNDA (2010) को संशोधित करना और निवेशक विश्वास को बढ़ाने के लिये पूरक मुआवजे पर कन्वेंशन (CSC, 1997) के साथ संरेखित करना।
- पारदर्शी सुरक्षा निगरानी के लिये AERB को एक वैधानिक प्राधिकरण के रूप में स्थापित करना।
- वित्तपोषण और निवेश प्रोत्साहन: ग्रीन बॉण्ड, कर प्रोत्साहन और कम लागत वाले जलवायु वित्तपोषण तक पहुँच को सक्षम करने के लिये परमाणु ऊर्जा को "नवीकरणीय ऊर्जा" के रूप में वर्गीकृत करना।
- भारतीय नियंत्रण बनाए रखने तथा संयुक्त उद्यमों को बढ़ावा देने के लिये परमाणु परियोजनाओं में 49% तक FDI की अनुमति दी जाए।
- रिएक्टरों की तैनाती में तेज़ी लाना: 220 मेगावाट PHWR डिज़ाइन का मानकीकरण करें ताकि इसे ‘भारत SMR’ के रूप में उपयोग में लाया जा सके, जिससे संयंत्र निर्माण का समय कम हो और वर्ष 2033 तक 5 SMR परिचालन में लाए जा सकें। साथ ही, NPCIL की 700 मेगावाट PHWR योजनाओं को तेज़ी से आगे बढ़ाया जाए ताकि बड़े पैमाने पर परमाणु ऊर्जा उत्पादन सुनिश्चित किया जा सके।
- फ्राँस के साथ जैतापुर परमाणु ऊर्जा संयंत्र (JNPP) सौदे को तेज़ी से आगे बढ़ाना तथा आंध्र प्रदेश के कोव्वाडा में AP1000 रिएक्टरों के लिये अमेरिकी वार्ता को पुनर्जीवित करना।
- ईंधन सुरक्षा और आपूर्ति शृंखला: कनाडा, कज़ाखस्तान और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के साथ दीर्घकालिक समझौतों के माध्यम से यूरेनियम और थोरियम की आपूर्ति सुनिश्चित की जाए। साथ ही, थोरियम रिएक्टरों पर अनुसंधान एवं विकास (R&D) को तेज़ किया जाए, विशेष रूप से BHAVINI के प्रोटोटाइप फास्ट ब्रीडर रिएक्टर (PFBR) जैसे परियोजनाओं को प्राथमिकता दी जाए।
- प्रमुख तकनीकों के स्वदेशीकरण के लिये परमाणु औद्योगिक पार्कों की स्थापना की जाए तथा स्थानीय आपूर्ति शृंखला को विकसित किया जाए, जिससे भारत में परमाणु ऊर्जा क्षेत्र की आत्मनिर्भरता को बढ़ावा मिल सके।
निष्कर्ष:
भारत की ऊर्जा सुरक्षा, औद्योगिक विकास और जलवायु लक्ष्यों के लिये परमाणु ऊर्जा अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। वर्ष 2047 तक 100 गीगावाट परमाणु ऊर्जा क्षमता हासिल करने के लिये निजी क्षेत्र की भागीदारी, विधायी सुधार और वैश्विक सहयोग आवश्यक होंगे। दायित्व कानूनों, वित्तीय बाधाओं और ईंधन आपूर्ति की चुनौतियों का समाधान करना इस दिशा में निर्णायक सिद्ध होगा। नीतिगत स्तर पर रणनीतिक परिवर्तन के माध्यम से परमाणु ऊर्जा को "विकसित भारत" (Viksit Bharat) और नेट-ज़ीरो उत्सर्जन प्रतिबद्धताओं का एक मज़बूत आधार बनाया जा सकता है।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: भारत में परमाणु ऊर्जा उत्पादन के विस्तार में प्रमुख चुनौतियों का उल्लेख कीजिये तथा संभावित समाधान सुझाइए। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. भारत में, क्यों कुछ परमाणु रिएक्टर "आई. ए. ई. ए. सुरक्षा उपायों" के अधीन रखे जाते हैं जबकि अन्य इस सुरक्षा के अधीन नहीं रखे जाते? (2020) (a) कुछ यूरेनियम का प्रयोग करते हैं और अन्य थोरियम का उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न. ऊर्जा की बढ़ती हुई जरूरतों के परिप्रेक्ष्य में क्या भारत को अपने नाभिकीय ऊर्जा कार्यक्रम का विस्तार करना जारी रखना चाहिये? नाभिकीय ऊर्जा से संबंधित तथ्यों एवं भयों की विवेचना कीजिये। (2018) प्रश्न. भारत में नाभिकीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी की संवृद्धि और विकास का विवरण प्रस्तुत कीजिए । भारत में तीव्र प्रजनक रियेक्टर कार्यक्रम का क्या लाभ है ? (2017) |