ICFT–यूनेस्को गांधी पदक
56वें भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (इफ्फी), 2025 में ICFT–यूनेस्को गांधी मेडल महात्मा गांधी के शांति, अहिंसा और अंतर-सांस्कृतिक संवाद के मूल्यों को अभिव्यक्त करने वाले सिनेमाई कार्यों को सम्मानित करता रहा है।
ICFT-यूनेस्को गांधी पदक
- परिचय: यह मेडल इफ्फी के 46वें संस्करण (2015) में यूनेस्को के अधीन अंतर्राष्ट्रीय फिल्म, टेलीविज़न एवं ऑडियो-विज़ुअल संचार परिषद (ICFT)-पेरिस के सहयोग से स्थापित किया गया था।
- यह पदक उन फिल्मों को सम्मानित करने के लिये बनाया गया है जो उच्च कलात्मक और सिनेमाई मानकों के साथ-साथ समाज के महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर नैतिक मनन को प्रोत्साहित करती हैं।
- इस पुरस्कार का उद्देश्य सिनेमा की रूपांतरकारी शक्ति के माध्यम से मानवता के साझा मूल्यों की गहरी समझ को बढ़ावा देना है।
- पदक का महत्त्व:
- सांस्कृतिक कूटनीति का साधन: यह भारत की सॉफ्ट पावर रणनीति के अनुरूप है, क्योंकि यह सिनेमा के माध्यम से अहिंसा, सहिष्णुता तथा शांति को प्रोत्साहित करता है।
- वैश्विक मान्यता: यह मेडल उस फिल्म को प्रदान किया जाता है जो गांधीवादी आदर्शों का सर्वोत्तम प्रतिबिंब प्रस्तुत करती है।
- चयन यूनेस्को-संबद्ध संस्थानों के सिनेमा तथा संचार विशेषज्ञों की अंतर्राष्ट्रीय ज्यूरी द्वारा किया जाता है।
- यूनेस्को साझेदारी: यह पुरस्कार भारत की वैश्विक सांस्कृतिक सहभागिता में भूमिका को सुदृढ़ करता है तथा नैतिक कथानक को प्रोत्साहित करने हेतु संयुक्त राष्ट्र निकायों के साथ कार्य करता है।
- ICFT: यह संस्था वर्ष 1956 में नई दिल्ली में आयोजित यूनेस्को महासम्मेलन में स्थापित की गई थी, जिसका उद्देश्य फिल्म, टेलीविज़न तथा डिजिटल मीडिया के माध्यम से अंतर्सांस्कृतिक संवाद तथा शांति को प्रोत्साहित करना है।
- भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (इफ्फी):
- IFFI एशिया का सबसे पुराना तथा महत्त्वपूर्ण फिल्म महोत्सव है, जिसकी स्थापना वर्ष 1952 में हुई थी।
- वर्ष 2004 से यह महोत्सव गोवा में स्थायी रूप से आयोजित किया जा रहा है। इसे संयुक्त रूप से नेशनल फिल्म डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (NFDC), सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, तथा एंटरटेनमेंट सोसाइटी ऑफ गोवा (ESG), गोवा सरकार, द्वारा आयोजित किया जाता है।
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'को-ऑप कुंभ 2025’
केंद्रीय सहकारिता मंत्री ने भारत के शहरी सहकारी बैंकिंग क्षेत्र के भविष्य पर एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन ‘को-ऑप कुंभ 2025’ (Co-Op Kumbh 2025) का उद्घाटन किया साथ ही दिल्ली घोषणा 2025 को अपनाया।
मुख्य परिणाम
- दिल्ली घोषणा 2025: यह शहरी सहकारी बैंकों (UCBs) के विस्तार के लिये एक रोडमैप के रूप में कार्य करेगी।
- डिजिटल पहल: सहकार डिजिटल-पे (Sahkar Digi-Pay) और सहकार डिजिटल-लोन (Sahkar Digi-Loan) ऐप्स की शुरुआत, ताकि सबसे छोटे UCBs भी डिजिटल भुगतान तथा ऋण सेवाएँ प्रदान कर सकें।
- विस्तार लक्ष्य: अगले 5 वर्षों में 2 लाख से अधिक आबादी वाले प्रत्येक शहर में एक UCB स्थापित करने का लक्ष्य।
- भविष्य की पहल: राष्ट्रीय शहरी सहकारी बैंक और क्रेडिट सोसाइटी संघ (NAFCUB) को 2 वर्षों के भीतर 1,500 बैंकों को सहकार डिजिटल-पे से जोड़ने का निर्देश। सफल क्रेडिट सोसाइटियों को UCBs में परिवर्तित करने को प्रोत्साहन।
- NAFCUB शहरी सहकारी बैंकों और ऋण समितियों के लिये एक शीर्ष स्तरीय प्रचार निकाय है, जो फरवरी 1977 में एक बहु-राज्य सहकारी समिति के रूप में पंजीकृत है।
सहकारी क्षेत्र में प्रमुख उपलब्धियाँ
- वित्तीय अनुशासन: शहरी सहकारी बैंकों की गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ (NPA) 2023 से 2.8% से घटकर 0.6% हो गई हैं।
- सहकारिता की वैश्विक मान्यता: अंतर्राष्ट्रीय सहकारी गठबंधन द्वारा अमूल को विश्व स्तर पर प्रथम और इफको को द्वितीय स्थान दिया गया।
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सेबी ने डिजिटल गोल्ड के जोखिमों पर चेतावनी दी
भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने निवेशकों को अनियमित डिजिटल गोल्ड या ई-गोल्ड उत्पादों में निवेश न करने की कड़ी सलाह जारी की है, जिसमें इनके उच्च जोखिम और निवेशक संरक्षण की अनुपस्थिति को रेखांकित किया गया है।
सेबी द्वारा उजागर किये गए प्रमुख जोखिम:
- अविनियमित प्रकृति: डिजिटल गोल्ड को न तो प्रतिभूति के रूप में वर्गीकृत किया गया है और न ही इसे वस्तु डेरिवेटिव के रूप में विनियमित किया गया है। सेबी-स्वीकृत उत्पादों के लिये उपलब्ध निवेशक संरक्षण तंत्र इसमें अनुपस्थित है।
- प्रतिपक्ष जोखिम: निवेशक पूरी तरह से जारीकर्त्ता पर निर्भर होते हैं, जिससे ठोस सोना या नकद वितरण में डिफॉल्ट का गंभीर जोखिम उत्पन्न होता है।
- निवेशक संरक्षण का अभाव: बीमा, शिकायत निवारण और सुनिश्चित निपटान जैसी बाज़ार सुरक्षा व्यवस्थाएँ लागू नहीं होतीं, जिससे निवेशकों के पास कोई औपचारिक समाधान तंत्र उपलब्ध नहीं रहता।
- डिजिटल गोल्ड: इसका तात्पर्य बिना भौतिक स्वामित्व के इलेक्ट्रॉनिक रूप से सोना खरीदने से है, जिसकी कीमत ठोस सोने से जुड़ी होती है। यह ब्लॉकचेन तकनीक के माध्यम से निर्मित होता है, जिससे निवेशक ऑनलाइन सोना खरीद, बेच और सुरक्षित रख सकते हैं।
- यह आसानी से सुलभ है, आपात स्थिति में शीघ्र बेचा जा सकता है और इसमें छोटी राशि से भी निवेश किया जा सकता है।
- यह भंडारण की जटिलताओं को दूर करता है और आवश्यकता पड़ने पर सिक्कों, बार या आभूषण जैसे ठोस सोने में परिवर्तित किया जा सकता है।
- सुरक्षित विकल्प: सेबी ने निवेशकों को विनियमित स्वर्ण निवेश विकल्पों जैसे- सॉवरेन गोल्ड बॉण्ड (SGB), गोल्ड एक्सचेंज-ट्रेडेड फंड (ETF), इलेक्ट्रॉनिक गोल्ड रिसीट्स (EGR) और कमोडिटी डेरिवेटिव्स का उपयोग करने की सलाह दी है।
- ये विकल्प सेबी के नियामक ढाँचे के अंतर्गत आते हैं, गारंटीकृत क्लीयरिंग के माध्यम से प्रतिपक्ष जोखिम को समाप्त करते हैं, पारदर्शी मूल्य खोज सुनिश्चित करते हैं और निवेशकों को सुरक्षा प्रदान करते हैं।
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अल्टरमैग्नेटिज़्म: चुंबकीय क्रम का एक नया वर्ग
शोधकर्त्ताओं ने अल्टरमैग्नेटिज़्म (Altermagnetism) को पारंपरिक फेरोमैग्नेटिज़्म (Ferromagnetism) और एंटीफेरोमैग्नेटिज़्म (Antiferromagnetism) से परे एक नई और विशिष्ट चुंबकीय अवस्था के रूप में पहचाना है, जिसका अगली पीढ़ी की प्रौद्योगिकियों के लिये अत्यंत आशाजनक प्रभाव हो सकता है।
- अल्टरमैग्नेटिक पदार्थों में चुंबकीय आघूर्ण अब भी वैकल्पिक रूप से संरेखित होते हैं, लेकिन उनकी संरचना सरल परिवर्तन के बजाय अधिक जटिल सममितीय क्रियाओं जैसे घूर्णन या परावर्तन का अनुसरण करती है।
- अल्टरमैग्नेटिज़्म: यह एक तीसरी चुंबकीय अवस्था का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो पारंपरिक फेरोमैग्नेटिज़्म (जहाँ चुंबकीय आघूर्ण समानांतर रूप से संरेखित होते हैं) और एंटीफेरोमैग्नेटिज़्म (जहाँ चुंबकीय आघूर्ण वैकल्पिक रूप से संरेखित होकर एक-दूसरे को निरस्त कर देते हैं) से भिन्न है।
- इसका परिणाम यह होता है कि इनमें बाह्य चुंबकीय क्षेत्र शून्य रहता है, जैसा कि एंटीफेरोमैग्नेट्स में होता है, लेकिन आंतरिक इलेक्ट्रॉनिक व्यवहार फेरोमैग्नेट्स जैसा होता है जहाँ स्पिन विभिन्न ऊर्जा बैंड्स में विभाजित हो सकते हैं।
- अल्टरमैग्नेटिज़्म: यह एक तीसरी चुंबकीय अवस्था का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो पारंपरिक फेरोमैग्नेटिज़्म (जहाँ चुंबकीय आघूर्ण समानांतर रूप से संरेखित होते हैं) और एंटीफेरोमैग्नेटिज़्म (जहाँ चुंबकीय आघूर्ण वैकल्पिक रूप से संरेखित होकर एक-दूसरे को निरस्त कर देते हैं) से भिन्न है।
- अल्टरमैग्नेट्स की विशेषताएँ: ये एनॉमलस हॉल प्रभाव (Anomalous Hall Effect) प्रदर्शित कर सकते हैं अर्थात् बिना किसी बाह्य चुंबकीय क्षेत्र के पार्श्व वोल्टेज (Sideways voltage) उत्पन्न कर सकते हैं।
- अल्टरमैग्नेट्स के पास बाह्य रूप से कोई शुद्ध चुंबकीय क्षेत्र नहीं होता, जिससे वे चुंबकीय व्यवधानों के प्रति कम संवेदनशील रहते हैं।
- उनकी यह चुंबकीय निष्पक्षता हस्तक्षेप को कम करती है, जिससे वे सघन, तीव्र और ऊर्जा-कुशल इलेक्ट्रॉनिक तथा स्पिन्ट्रॉनिक उपकरणों के लिये उपयुक्त बनते हैं।
- अनुप्रयोग: अल्टरमैग्नेट्स में स्पिन्ट्रॉनिक्स (Spintronics) के क्षेत्र में बड़ी संभावनाएँ हैं, जहाँ डेटा का प्रसंस्करण इलेक्ट्रॉन के आवेश के बजाय उसके स्पिन का उपयोग करके किया जाता है।
- वे कम ऊर्जा उपयोग के साथ तीव्र मेमोरी और लॉजिक डिवाइस को सक्षम कर सकते हैं।
- चूँकि ये बहुत कम चुंबकीय नाद (Magnetic noise) उत्पन्न करते हैं, इसलिये ये क्वांटम प्रौद्योगिकियों में भी सहायक हो सकते हैं, जिससे भविष्य की कंप्यूटिंग के लिये अधिक स्थिर और विश्वसनीय प्लेटफॉर्म उपलब्ध हो सकते हैं।
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रिसिन विषाक्तता
गुजरात एंटी-टेररिस्ट स्क्वाड (ATS) ने सीमा-पार उग्रवादी नेटवर्क से जुड़े तीन व्यक्तियों की गिरफ्तारी के साथ रिसिन, जो एक अत्यंत घातक जैविक विष है, को निकालने और उपयोग करने के संदिग्ध प्रयास का खुलासा किया है।
- रिसिन: यह एक प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाला कार्बोहाइड्रेट-बाइंडिंग प्रोटीन है, जो एरंडी (Ricinus Communis) के बीजों में पाया जाता है तथा इसी पौधे से कैस्टर ऑयल तैयार किया जाता है।
- साँस लेने, निगलने या इंजेक्शन लगाने पर यह ज़हरीला होता है। राइसिन कोशिकाओं को जीवित रहने के लिये आवश्यक प्रोटीन बनाने से रोकता है। इन प्रोटीनों के बिना, कोशिकाएँ क्षतिग्रस्त हो जाती हैं और अंततः नष्ट हो जाती हैं।
- सुरक्षा के संदर्भ में रिसिन: यह अत्यंत खतरनाक है, क्योंकि इसकी थोड़ी सी मात्रा भी घातक हो सकती है, इसका कोई इलाज नहीं है तथा इसका शीघ्र पता लगाना कठिन है।
- चूँकि इसे बनाने के लिये उपयोग किये जाने वाले अरंडी के बीज व्यापक रूप से उपलब्ध हैं, इसलिये इस विष को सामान्य कृषि सामग्री से भी उत्पादित किया जा सकता है।
- इसकी बहुत अधिक विषाक्तता और दुरुपयोग की उच्च संभावना के कारण, रिसिन को केमिकल वेपन्स कन्वेंशन (CWC) के तहत शेड्यूल-1 एजेंट के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
- रासायनिक हथियार अभिसमय (CWC): यह एक वैश्विक, गैर-भेदभावपूर्ण निरस्त्रीकरण संधि है जो रासायनिक हथियारों के विकास, उत्पादन, भंडारण, अधिग्रहण, हस्तांतरण और उपयोग पर प्रतिबंध लगाती है।
- यह मौजूदा भंडारों के पूर्ण, सत्यापन योग्य विनाश और दोहरे उपयोग वाले रसायनों के उपयोग में पारदर्शिता को भी अनिवार्य बनाता है।
- रासायनिक हथियार निषेध संगठन (CWC) की देख-रेख रासायनिक हथियार निषेध संगठन (OPCW) द्वारा की जाती है।
- भारत ने वर्ष 1996 में CWC का अनुसमर्थन किया और इसके प्रावधानों को लागू करने के लिये रासायनिक हथियार अभिसमय अधिनियम, 2000 को अधिनियमित किया।
- CWC के तहत, भारत को संबंधित रासायनिक सुविधाओं की घोषणा करनी होगी और OPCW निरीक्षण की अनुमति देनी होगी। राष्ट्रीय रासायनिक हथियार अभिसमय प्राधिकरण (NACWC) इसके कार्यान्वयन की देखरेख करता है।
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"विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र (EEZ) में मत्स्य पालन के टिकाऊ उपयोग" हेतु नियम अधिसूचित
भारत ने विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र (EEZ) में मत्स्य पालन के सतत् दोहन के लिये नियम अधिसूचित किये हैं। यह प्रमुख कदम भारत की ब्लू इकोनॉमी का समर्थन करता है और एक सतत् गहरे समुद्र में मत्स्य पालन ढाँचे के निर्माण के लिये केंद्रीय बजट 2025-26 की घोषणा को पूरा करता है।
- EEZ नियमों का उद्देश्य भारत के कम उपयोग वाले गहरे समुद्री संसाधनों, विशेषकर टूना मछली को मुक्त करना है। अब तक, श्रीलंका, मालदीव, इंडोनेशिया और ईरान की नौकाओं ने भारतीय महासागर में टूना मछली का अधिकांश शिकार किया है, जबकि भारतीय नौकाएँ तटवर्ती जल तक ही सीमित हैं।
EEZ में मत्स्य पालन के सतत् उपयोग के नियम क्या हैं?
- सहकारी समितियों और समुदाय-नेतृत्व वाले मॉडलों को सशक्त बनाना: नियमों में मछुआरा सहकारी समितियों और मछली किसान उत्पादक संगठनों (FFPO) को गहरे समुद्र में मछली पकड़ने तथा आधुनिक नौकाओं का प्रबंधन करने के लिये प्राथमिकता दी गई है।
- वे रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया द्वारा निगरानी किये गए प्रक्रियाओं के तहत समुद्र के बीच में ट्रांस-शिपमेंट को संभव बनाने के लिये मदर-चाइल्ड वेसल मॉडल को भी बढ़ावा देते हैं।
- बजट 2025-26 में भारत को विश्व का दूसरा सबसे बड़ा मछली और जलीय कृषि उत्पादक बताया गया है, जिसका समुद्री खाद्य निर्यात लगभग 60,000 करोड़ रुपये है।
- सहकारी समितियों को प्राथमिकता देने, मूल्य संवर्द्धन तथा मज़बूत ट्रेसेबिलिटी एवं प्रमाणन से उच्च मूल्य वाले निर्यात को और बढ़ावा मिलने की उम्मीद है।
- सतत् मत्स्य पालन और समुद्री कृषि को बढ़ावा देना: ये नियम LED-लाइट फिशिंग, पेयर ट्रॉलिंग और बुल ट्रॉलिंग जैसी हानिकारक प्रथाओं पर प्रतिबंध लगाते हैं।
- उन्होंने मछलियों के लिये न्यूनतम कानूनी आकार सीमा निर्धारित की है तथा जैवविविधता की रक्षा करने तथा घटते स्टॉक के पुनर्निर्माण के लिये राज्यों के साथ मत्स्य प्रबंधन योजनाओं को अनिवार्य बनाया है।
- ये नियम वैकल्पिक आजीविका उपलब्ध कराने और तटवर्ती क्षेत्रों में मछली पकड़ने के दबाव को कम करने के लिये समुद्री पिंजरा पालन तथा समुद्री शैवाल की खेती जैसी समुद्री कृषि गतिविधियों को बढ़ावा देते हैं।
- डिजिटल एक्सेस पास मैकेनिज़्म: EEZ नियमों के तहत, यांत्रिक और बड़े आकार की मोटर चालित नौकाओं के लिये एक्सेस पास (Access Pass) आवश्यक है। इसे ऑनलाइन ReALCRaft पोर्टल के माध्यम से निशुल्क प्राप्त किया जा सकता है।
- मोटर चालित या गैर-मोटर चालित नावों का उपयोग करने वाले पारंपरिक और छोटे पैमाने के मछुआरों को छूट दी गई है। विदेशी जहाज़ों को पास प्राप्त करने से रोक दिया गया है।
- विनियामक सुधार: भारतीय EEZ में सन्निहित क्षेत्र (प्रादेशिक समुद्र से परे आधार रेखा से 24 समुद्री मील तक फैला एक समुद्री क्षेत्र) से परे पकड़ी गई मछली को सीमा शुल्क और राजस्व मानदंडों के तहत भारतीय मूल के रूप में माना जाता है।
- इससे ऐसी पकड़ी गई मछलियों को भारतीय बंदरगाहों पर उतारे जाने पर आयात के रूप में वर्गीकृत होने से रोका जा सकेगा तथा निर्यात लेखांकन को सुगम बनाया जा सकेगा।
- सुरक्षा उपाय: ये नियम अनिवार्य ट्रांसपोंडर और QR कोड वाले आधार कार्ड/फिशर ID कार्ड के माध्यम से सुरक्षा में सुधार करते हैं।
- सुरक्षित नेविगेशन और ट्रांसपोंडर उपयोग के लिये ReALCRaft को नभमित्र एप्लीकेशन के साथ एकीकृत किया गया है, जिससे तटरक्षक बल तथा नौसेना को तटीय सुरक्षा मज़बूत करने में मदद मिलती है।
- छोटे स्तर के मछुआरों की सुरक्षा के लिये इन नियमों में राष्ट्रीय कार्य योजना बनाने का प्रावधान है, जिसका उद्देश्य EEZ क्षेत्र में होने वाली अवैध, अपंजीकृत और अनियमित (IUU) मत्स्य पालन की गतिविधियों पर रोक लगाना है।
ReALCRaft पोर्टल
- यह मत्स्य पालन विभाग का एक राष्ट्रीय ऑनलाइन प्लेटफॉर्म है, जो नौकाओं का पंजीकरण, लाइसेंसिंग, स्वामित्व हस्तांतरण और अन्य संबंधित सेवाएँ प्रदान करता है। यह प्लेटफॉर्म मछुआरों तथा तटीय राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के लिये व्यवसाय करने की सुगमता को बेहतर बनाता है।
- नवंबर, 2025 तक इस पोर्टल पर लगभग 2.38 लाख नौकाएँ पंजीकृत की गई हैं।
- ReALCRaft को अब समुद्री उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (MPEDA) और निर्यात संवर्द्धन परिषद के साथ एकीकृत किया जा रहा है, ताकि कैच तथा हेल्थ सर्टिफिकेट जारी किये जा सकें। इससे ट्रेसबिलिटी, स्वच्छता अनुपालन और उच्च-मूल्य वाले समुद्री उत्पादों के निर्यात के लिये ईको-लेबलिंग सुनिश्चित हो सकेगी।
विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र (EEZ) क्या है?
- परिचय: “EEZ” (विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र) समुद्र का वह क्षेत्र होता है जो आमतौर पर किसी देश के प्रादेशिक समुद्री क्षेत्र (Territorial Sea) से आगे 200 नॉटिकल मील (लगभग 230 मील) तक फैला होता है। इस क्षेत्र के भीतर तटीय राष्ट्र को जीवित (जैसे मछलियाँ) और अजीवित (जैसे- तेल, गैस, खनिज) दोनों प्रकार के समुद्री संसाधनों पर अधिकार तथा न्यायिक अधिकार प्राप्त होते है।
- 1982 के संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून सम्मेलन (UNCLOS) के तहत अपनाया गया EEZ, किसी तटीय राज्य को अपने तट से 200 समुद्री मील तक प्राकृतिक संसाधनों की खोज, दोहन, संरक्षण और प्रबंधन के लिये संप्रभु अधिकार प्रदान करता है।
- यह कृत्रिम संरचनाओं, समुद्री अनुसंधान और पर्यावरण संरक्षण पर भी अधिकार क्षेत्र प्रदान करता है।
- 1982 के संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून सम्मेलन (UNCLOS) के तहत अपनाया गया EEZ, किसी तटीय राज्य को अपने तट से 200 समुद्री मील तक प्राकृतिक संसाधनों की खोज, दोहन, संरक्षण और प्रबंधन के लिये संप्रभु अधिकार प्रदान करता है।
- भारत और EEZ: भारत का विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र (EEZ) लगभग 23 लाख वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है, जो विश्व के सबसे बड़े EEZ क्षेत्रों में से एक है। यह क्षेत्र भारत की लगभग 11,099 किलोमीटर लंबी तटरेखा से 200 समुद्री मील तक विस्तृत है।
- यह विशाल समुद्री क्षेत्र 13 तटीय राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के 50 लाख से अधिक मछुआरों की आजीविका का समर्थन करता है, समुद्री खाद्य निर्यात में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है तथा देश की ब्लू इकोनॉमी को मज़बूत करता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न
प्रश्न. समुद्री कानून पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2022)
- किसी तटीय राज्य को अपने प्रादेशिक समुद्र की चौड़ाई को आधार-रेखा से मापित, 12 समुद्री मील से अनाधिक सीमा तक अभिसमय के अनुरूप सुस्थापित करने का अधिकार है।
- सभी राज्यों, चाहे वे तटीय हों अथवा भूमि-बद्ध भाग हों, के जहाज़ों को प्रादेशिक समुद्र से होकर बिना किसी रोकटोक यात्रा का अधिकार होता है।
- अनन्य आर्थिक क्षेत्र का विस्तार उस आधार रेखा से से 200 समुद्री मील से अधिक नहीं होगा, जहाँ से प्रादेशिक समुद्र की चौड़ाई मापी जाती है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (d)
