INS सतलुज
भारतीय नौसेना का विशेष हाइड्रोग्राफिक सर्वेक्षण पोत INS सतलुज मॉरीशस में 18वॉं संयुक्त हाइड्रोग्राफिक सर्वेक्षण करने के लिये पोर्ट लुईस पहुँचा।
- INS सतलुज भारतीय नौसेना का एक उन्नत हाइड्रोग्राफिक सर्वेक्षण पोत है, जिसे गोवा शिपयार्ड लिमिटेड द्वारा विकसित तथा वर्ष 1993 में कमीशन किया गया था। यह वर्तमान में दक्षिणी नौसेना कमान के अधीन कोच्चि में तैनात है।
- यह पोत चार्टिंग, मानचित्रण तथा समुद्र विज्ञान अनुसंधान के लिये विशेष रूप से डिज़ाइन किया गया है तथा समुद्री मार्गों की सटीक सर्वेक्षण और नौवहन सुरक्षा सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- यह उन्नत प्रणालियों से सुसज्जित है जिनमें शामिल हैं:
- मल्टी-बीम स्वाथ इको साउंडर और साइड-स्कैन सोनार – उच्च-सटीकता से समुद्र तल के मानचित्रण के लिये।
- जीपीएस और मोशन सेंसर – सर्वेक्षण और नेविगेशन में सटीक स्थिति निर्धारण हेतु।
- समुद्री ग्रैविमीटर, मैग्नेटोमीटर और ओसियनोग्राफिक सेंसर – भू-भौतिकीय एवं पर्यावरणीय डेटा एकत्र करने के लिये।
- स्वचालित डेटा लॉगिंग प्रणाली – वास्तविक समय में डिजिटल सर्वेक्षण डेटा के प्रसंस्करण के लिये।
 
- एक चेतक हेलीकॉप्टर और चार सर्वेक्षण मोटरबोट ले जाने में सक्षम, जिससे टोही और डेटा-संग्रह की पहुँच में वृद्धि होती है।
- मानक: ISO 9002 डिजिटल सर्वेक्षण सटीकता मानकों के अनुरूप, इलेक्ट्रॉनिक नेविगेशनल चार्ट (ENC) के उत्पादन को सक्षम बनाता है।
| और पढ़ें: भारत-मॉरीशस संबंध | 
रसायन विज्ञान में नोबेल पुरस्कार 2025
चर्चा में क्यों?
रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेज ने मेटल-ऑर्गेनिक फ्रेमवर्क (MOFs) के क्षेत्र में अभूतपूर्व कार्य के लिये सुसुमु कितागावा (जापान), रिचर्ड रॉबसन (ऑस्ट्रेलिया) और उमर याघी (अमेरिका) को वर्ष 2025 का रसायन विज्ञान का नोबेल पुरस्कार देने का निर्णय लिया है।
रसायन विज्ञान में वर्ष 2025 के नोबेल पुरस्कार की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
मेटल-ऑर्गेनिक फ्रेमवर्क (MOFs) का निर्माण:
- रिचर्ड रॉबसन: ये उन पहले लोगों में से थे जिन्होंने धातु आयनों (जैसे ताँबा) को कार्बनिक अणुओं के साथ संयोजित तथा परस्पर जुड़े ढॉंचे का निर्माण करके 3D संरचनाएँ डिज़ाइन कीं।
- उन्होंने यह साबित किया कि ऐसे पदार्थ बनाए जा सकते हैं जिनमें अंदर बड़े खाली स्थान हों, जो अणुओं को फॅंसा सकें, इसने छिद्रयुक्त (porous) पदार्थों के निर्माण की नींव रखी।
 
- सुसुमु कितागावा: रॉबसन के शोध को आगे बढ़ाते हुए, कितागावा ने यह दिखाया कि छिद्रयुक्त संरचनाएँ न केवल स्थिर रह सकती हैं, बल्कि आसपास की गैसों या रसायनों के आधार पर फैल और सिकुड़ भी सकती हैं।
- इस खोज ने इन्हें गैस कैप्चर (जैसे कार्बन डाइऑक्साइड) और ऊर्जा भंडारण के लिये उपयुक्त बनाया।
 
- उमर याघी: उन्होंने छिद्रयुक्त संरचनाओं के लिये “मेटल-ऑर्गेनिक फ्रेमवर्क (MOFs)’’ शब्द की कल्पना की और रेटीकुलर केमिस्ट्री (जालीदार रसायन विज्ञान) विकसित किया, जिसमें धातु आयनों और कार्बनिक अणुओं को बड़ी, सुव्यवस्थित संरचनाओं में संयोजित करने का व्यवस्थित तरीका शामिल है।
- मेटल-ऑर्गेनिक फ्रेमवर्क (MOFs) क्रिस्टलीय पदार्थों का एक प्रकार हैं, जिनमें धातु आयनों को कार्बनिक अणुओं के साथ जोड़कर बनाया जाता है। ये पदार्थ छोटे, सुव्यवस्थित छिद्रों वाले स्पंज जैसी छिद्रयुक्त संरचनाएँ बनाते हैं, जो गैसों और रसायनों को फँसाने, संग्रहीत करने या फिल्टर करने में सक्षम होती हैं।
 
- उमर याघी ने बताया कि MOFs को नए गुणों के लिये तर्कसंगत रूप से डिज़ाइन किया जा सकता है।
मेटल-ऑर्गेनिक फ्रेमवर्क (MOFs) के महत्त्व:
- जल संचयन: MOFs रेगिस्तान की हवा से पानी निकालने में सक्षम हैं।
- कार्बन शोषण: कुछ MOFs विशेष रूप से कार्बन डाइऑक्साइड को आकर्षित और संग्रहीत कर सकते हैं, जिससे जलवायु परिवर्तन का सामना करने में मदद मिलती है।
- विषैले गैसों का भंडारण: MOFs हानिकारक रसायनों को सुरक्षित रूप से कैप्चर करके भविष्य में उपयोग या निपटान के लिये रख सकते हैं।
- विशिष्ट रासायनिक प्रक्रियाएँ: MOFs की अत्यधिक अनुकूलनीय संरचना उन्हें विशिष्ट रासायनिक अभिक्रियाओं या भंडारण ज़रूरतों के लिये डिज़ाइन करने की अनुमति देती है।
रसायन विज्ञान में भारतीय नोबेल विजेता: वर्ष 2009 में वेंकटरमण रामकृष्णन (भारत) को थॉमस ए. स्टिट्ज़ (अमेरिका) और अडा ई. योनाथ (इज़राइल) के साथ संयुक्त रूप से राइबोसोम की संरचना पर किये गए शोध हेतु रसायन विज्ञान में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
| पढ़ने के लिये यहां क्लिक करें: चिकित्सा में नोबेल पुरस्कार 2025 | 
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
1. मेटल–ऑर्गेनिक फ्रेमवर्क (MOFs) क्या हैं?
 MOFs क्रिस्टलीय पदार्थ हैं, जिन्हें धातु आयनों को कार्बनिक अणुओं से जोड़कर बनाया जाता है। ये छिद्रयुक्त संरचनाएँ गैसों और रसायनों को संग्रहीत, फँसाने या फिल्टर करने में सक्षम होती हैं।
2. रसायन विज्ञान में 2025 का नोबेल पुरस्कार किसे और किस खोज के लिये मिला?
 सुसुमु कितागावा, रिचर्ड रॉबसन और उमर याघी को मेटल–ऑर्गेनिक फ्रेमवर्क (MOFs) के क्षेत्र में कार्य के लिये नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया, जिससे अणु संरचना और सामग्री रसायन विज्ञान में क्रांति आई।
3. रेटीकुलर रसायन विज्ञान (Reticular Chemistry) क्या है?
 रेटीकुलर रसायन विज्ञान एक व्यवस्थित दृष्टिकोण है जिसमें धातु आयनों और कार्बनिक लिंकर्स को क्रमबद्ध 3D संरचनाओं (जैसे MOFs) में जोड़ा जाता है ताकि उन्हें विशिष्ट कार्यों के लिये अनुकूलित किया जा सके।
4. MOFs के मुख्य अनुप्रयोग क्या हैं?
 MOFs का उपयोग कार्बन कैप्चर, जल संग्रहण, विषाक्त गैसों के भंडारण और स्वच्छ ऊर्जा परियोजनाओं में किया जाता है, जो जलवायु परिवर्तन को कम करने और सतत् तकनीकों में योगदान देते हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न
प्रिलिम्स:
प्रश्न. ब्लू कार्बन क्या है? (2021)
(a) महासागरों और तटीय पारिस्थितिकी प्रणालियों द्वारा प्रगृहीत कार्बन
(b) वन जैव मात्रा (बायोमास) और कृषि मृदा में प्रच्छादित कार्बन
(c) पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस में अंतर्विष्ट कार्बन
(d) वायुमंडल में विद्यमान कार्बन
उत्तर:(a)
प्रश्न. निम्नलिखित कृषि पद्धतियों पर विचार कीजिये: (2012)
- कंटूर बंडलिंग
- रिले फसल
- शून्य जुताई
वैश्विक जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में उपर्युक्त में से कौन मिट्टी में कार्बन को अलग करने/भंडारण में मदद करता है?
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3
(c) 1, 2 और 3
(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर: (b)
पासनी पोर्ट
पाकिस्तान ने कथित तौर पर अमेरिका को बलूचिस्तान स्थित ग्वादर के नजदीक पासनी में एक पोर्ट/बंदरगाह विकसित करने की पेशकश की है, जिससे वाशिंगटन को ईरान की सीमा के समीप समुद्री पहुँच हासिल हो सकती है।
- पासनी पोर्ट प्रस्ताव का उद्देश्य चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) पर पाकिस्तान की निर्भरता को कम करना, अमेरिकी निवेश को आकर्षित करना और महत्त्वपूर्ण खनिजों का निर्यात करना है।
- रणनीतिक स्थान: अरब सागर पर स्थित पासनी बंदरगाह, बलूचिस्तान के ग्वादर ज़िले में एक छोटा डीप-वाटर बंदरगाह है, जिसमें एक मछली बंदरगाह और पाकिस्तान समुद्री सुरक्षा एजेंसी (PMSA) का बेस भी है।
- पासनी पोर्ट ईरान-पाकिस्तान सीमा के पास, चीन समर्थित ग्वादर बंदरगाह के पूर्व में और भारत के चाबहार बंदरगाह के करीब स्थित है, जो चाबहार (भारत-ईरान), ग्वादर (चीन-पाकिस्तान) और पासनी (अमेरिका-पाकिस्तान) को जोड़ते हुए एक प्रमुख रणनीतिक समुद्री त्रिकोण बनाता है।
 
- सामरिक महत्त्व: इस क्षेत्र में प्रचुर खनिज भंडार, विशेष रूप से दुर्लभ मृदा खनन अधिकारों से संबंधित खनिज भंडार, पासनी पोर्ट के सामरिक महत्त्व में एक आर्थिक परत जोड़ते हैं।
- इस बीच चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) के तहत ग्वादर बंदरगाह में चीन की भागीदारी, प्रतिद्वंद्वी महाशक्तियों को करीब ला सकती है, जिससे क्षेत्र में रणनीतिक प्रतिद्वंद्विता बढ़ सकती है।
- पासनी-ग्वादर-चाबहार त्रिकोण एक नया भू-राजनीतिक केंद्र बन सकता है, जो समुद्री सुरक्षा, ऊर्जा मार्गों और महाशक्तियों की प्रतिद्वंद्विता को आपस में जोड़ देगा।
- यह कदम भारत की चाबहार बंदरगाह परियोजना को कमज़ोर कर सकता है, जो पाकिस्तान को दरकिनार करते हुए अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक व्यापार मार्ग प्रदान करता है। अमेरिका द्वारा चाबहार प्रतिबंधों से छूट वापस लेने से भारत की भूमिका और जटिल हो जाती है।
 
| और पढ़ें: ईरान, पाकिस्तान और बलूच उग्रवाद | 
फिंगर लेक्स
वैज्ञानिक सिनेका झील (फिंगर लेक्स में से एक) की तलहटी में हाल ही में खोजे गए क्रेटरों की जाँच कर रहे हैं ताकि यह पता लगाया जा सके कि क्या ये मीथेन या अन्य गैसें उत्सर्जित करते हैं, जो रहस्यमय "सिनेका गन्स" ध्वनियों की उत्पत्ति के लिये ज़िम्मेदार हो सकती हैं।
- सेनेका झील, न्यूयॉर्क के फिंगर लेक्स में से एक है, जो रहस्यमय गूँजती ध्वनियों के लिये प्रसिद्ध है, जिन्हें आमतौर पर सेनेका गन्स या सेनेका ड्रम्स कहा जाता है।
फिंगर लेक्स:
- परिचय: फिंगर लेक्स उत्तरी-दक्षिणी दिशा में लंबी, संकीर्ण और समानांतर 11 झीलों का समूह हैं, जिनका नाम मानचित्र पर उनकी उॅंगली जैसी आकृति के कारण रखा गया है।
- सबसे बड़ी दो फिंगर लेक्स, सेनेका और कैयूगा, उत्तरी अमेरिका की सबसे गहरी झीलों में शामिल हैं।
 
- भू-वैज्ञानिक निर्माण: ये झीलें प्लायसिन युग के दौरान आगे बढ़ते हिमनदों द्वारा निर्मित हुईं, जब संकीर्ण, V-आकार की नदी घाटियों को ग्लेशियल स्कॉरिंग (हिमनदी कटाई) की प्रक्रिया के माध्यम से U-आकार की खाई में परिवर्तित किया गया है।
- हिमोढ़ (चट्टान और मलबे के ढेर) झीलों के दक्षिणी किनारे पर ग्लेशियर की अंतिम सीमाओं का संकेत देते हैं, जबकि ड्रमलिन (ऑंसू के आकार की टीलियाँ) गतिशील बर्फ के नीचे बनती हैं और झीलों के उत्तर में लंबी पट्टियों के रूप में दिखाई देती हैं।
 
- मिलांकॉविच चक्रों की भूमिका: इन ग्लेशियरों की वृद्धि और क्षय लंबे समय तक चलने वाले वैश्विक जलवायु के कक्षीय परिवर्तनों, जिन्हें मिलांकॉविच चक्र कहा जाता है, से प्रेरित थे।
- झील बेसिनों का निर्माण: ग्लेशियर के पीछे हटने पर पीछे छोड़े गए मलबे के ढेर, जिन्हें रेसेशनल मोरेन कहा जाता है, प्राकृतिक बाँध का कार्य करते हैं। ये ढेर घाटियों में पानी को रोकते हैं, जिससे आधुनिक झीलों का निर्माण होता है।
| और पढ़ें: पृथ्वी पर भू-आकृति: भाग 2 | 
भारतीय वायुसेना में शामिल होगा पहला तेजस Mk1A लड़ाकू विमान
भारतीय वायु सेना (IAF) को अपना पहला हल्का लड़ाकू विमान (LCA) तेजस Mk1A मिलने वाला है, जो भारत के स्वदेशी लड़ाकू जेट कार्यक्रम में एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि होगी।
तेजस Mk1A
- परिचय: तेजस Mk1A भारत के हल्के लड़ाकू विमान (LCA) तेजस का उन्नत संस्करण है, जिसे हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) द्वारा विकसित किया गया है।
- उद्देश्य: इस संस्करण का उद्देश्य बेसलाइन Mk1 पर परिचालन और लड़ाकू क्षमताओं, उत्तरजीविता और रखरखाव को बढ़ाना है।
- क्षमता:
- एक्टिव इलेक्ट्रॉनिकली स्कैन्ड ऐरे (AESA) रडार एकीकरण।
- इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर सूट (EWS) - रडार-चेतावनी और आत्म-सुरक्षा जैमिंग।
- बेहतर गतिशीलता और स्थिरता के लिये उन्नत उड़ान नियंत्रण कंप्यूटर (DFCC Mk1A)।
- मिसाइल अनुकूलता- दृश्य सीमा से परे (BVR) मिसाइलें, हवा-से-हवा और हवा से सतह पर मार करने वाली मिसाइलें और उन्नत कम दूरी की हवा-से-हवा में मार करने वाली मिसाइलें (ASRAAM)।
- कंबाइंड इन्तैरोगेटर एंड ट्रांसपोंडर (CIT) सॉफ्टवेयर डिफाइन रेडियो (SDR) और ऑपरेटिंग डेटा लिंक (ODL) का मौजूदा ऑनबोर्ड एवियोनिक्स के साथ एकीकरण की योजना बनाई गई है।
 
LCA तेजस
- परिचय: भारत सरकार द्वारा वर्ष 1984 में शुरू किये गए LCA तेजस कार्यक्रम का उद्देश्य पुराने पड़ चुके मिग-21 लड़ाकू विमानों की जगह लेना था। इस कार्यक्रम का प्रबंधन एयरोनॉटिकल डेवलपमेंट एजेंसी (ADA) द्वारा किया जाता है।
- विशेषताएँ:
- अपनी श्रेणी का सबसे हल्का, सबसे छोटा और बिना पूँछ वाला बहु-भूमिका वाला सुपरसोनिक लड़ाकू विमान।
- विभिन्न प्रकार के हवा-से-हवा, हवा से सतह और सटीक निर्देशित हथियार ले जाने में सक्षम।
- अधिकतम पेलोड क्षमता 4000 किलोग्राम।
- अधिकतम गति: मैक 1.8।
- रेंज: 3,000 किमी।
 
- तेजस के विभिन्न प्रकार:
- तेजस ट्रेनर: वायु सेना के पायलटों के प्रशिक्षण के लिये 2-सीटर ऑपरेशनल कन्वर्ज़न ट्रेनर।
- LCA नौसेना: भारतीय नौसेना के लिये दो और एकल सीट वाला वाहक।
- LCA तेजस नेवी MK2: यह LCA नेवी संस्करण का दूसरा चरण है।
- LCA तेजस Mk-1A: यह LCA तेजस Mk1 की तुलना में अधिक उन्नत इंजन है।
 
| और पढ़ें: भारत का 5G लड़ाकू विमान और LCA तेजस | 
 
              

