प्रिलिम्स फैक्ट्स (09 Aug, 2022)



मृदा मानचित्रण

हाल ही में खाद्य और कृषि संगठन (FAO) ने उर्वरकों के दक्षतापूर्ण उपयोग को बढ़ावा देने के लिये उप-सहारा अफ्रीका (SSA) एवं मध्य अमेरिका में मृदा के पोषक तत्त्वों का डिजिटल रूप से मानचित्रण करने हेतु एक परियोजना शुरू की है।

  • साथ ही यह पूर्व के मृदा मानचित्रण को व्यवस्थित और बेहतर बनाएगा।

मृदा मानचित्रण:

  • परिचय:
    • मृदा मानचित्रण मृदा के प्राकृतिक निकायों को चित्रित करने, चित्रित निकायों को मानचित्र इकाइयों में वर्गीकृत और समूहीकृत करने तथा मानचित्र पर मृदा के स्थानिक वितरण की व्याख्या एवं चित्रण के लिये मृदा से संबंधित तथ्यों को प्रदर्शित करने की एक प्रक्रिया है।
  • संभावित लाभ:
    • यह हमारी मृदा और फसलों के अनुसार वांछित पोषक तत्त्वों की सूचना प्रदान करेगा।
    • इसके अलावा यह उर्वरकों का उपयोग करते समय होने वाली बर्बादी को कम कर उनकी प्रभावशीलता को बढ़ाएगा।

परियोजना के निहितार्थ:

  • परिचय:
    • संयुक्त राष्ट्र की इस परियोजना के तहत उर्वरकों के दक्षतापूर्ण उपयोग को बढ़ाने के लिये उप-सहारा अफ्रीका (SSA) और मध्य अमेरिका में मिट्टी के पोषक तत्त्वों का डिजिटल रूप से मानचित्रण किया जा रहा है। यह परियोजना खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) द्वारा संचालित की जा रही है।
    • यह नीति निर्माताओं द्वारा उपयोग की जाने वाली सार्वजनिक वस्तुओं के रूप में राष्ट्रीय मृदा डेटाबेस और मृदा सूचना प्रणाली के निर्माण को बढ़ावा देगा।
    • इसके अलावा निजी क्षेत्र और विशेष रूप से किसान इससे दीर्घकालिक लाभ उत्पन्न कर सकते हैं।
    • यह उत्पादन से समझौता किये बिना उर्वरक बाज़ारों और जलवायु गतिशीलता में रुझानों के अनुकूलित होने के लिये अल्पकालिक लचीलेपन में भी सुधार करेगा।
  • ज़रूरत:
    • उप-सहारा अफ्रीका में स्थायी कृषि पद्धतियाँ, संसाधनों और क्षमता विकास की कमी तथा पोषक तत्त्वों के कम उपयोग के परिणामस्वरूप मृदा में महत्त्वपूर्ण पोषक तत्त्वों की कमी के चलते कम फसल पैदावार के साथ ही गरीबी बढ़ी है, जिसने कई किसान परिवारों के समक्ष खाद्य असुरक्षा की स्थिति पैदा कर दी है।
    • कई अफ्रीकी देशों में मृदा को नियंत्रित करने वाली नीतियों के साथ-साथ स्थायी मृदा प्रबंधन कार्यक्रमों की योजना बनाने और उन्हें लागू करने की क्षमता, ज्ञान एवं अनुभव का अभाव है।
    • अफ्रीका की कुल कारक उत्पादकता (Total Factor Productivity) वृद्धि, विशेष रूप से उप-सहारा क्षेत्र में अन्य विकासशील क्षेत्रों की वृद्धि से मेल नहीं खाती है।
      • कुल कारक उत्पादकता वृद्धि उत्पादन में वृद्धि और सभी कारक इनपुट आमतौर पर श्रम पूंजी के संयोजन से वृद्धि के बीच का अंतर है।

खाद्य और कृषि संगठन (FAO):

  • खाद्य और कृषि संगठन (FAO) संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष एजेंसी है जो भुखमरी को समाप्त करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों का नेतृत्व करती है।
  • इसका लक्ष्य सभी के लिये खाद्य सुरक्षा प्राप्त करना है और यह सुनिश्चित करना है कि सक्रिय स्वस्थ जीवन जीने हेतु लोगों की पर्याप्त उच्च गुणवत्ता वाले भोजन तक नियमित पहुँच सुनिश्चित हो।
    • 195 सदस्यों,194 देशों और यूरोपीय संघ के साथ FAO दुनिया भर में 130 से अधिक देशों में काम करता है।

UPSC  सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न:

प्रश्न.  निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)

राष्ट्रव्यापी ‘मृदा स्वास्थ्य कार्ड स्कीम (सॉइल हेल्थ कार्ड स्कीम)’ का उद्देश्य है:

  1. सिंचित कृषि योग्य क्षेत्र का विस्तार करना।
  2. मृदा गुणवत्ता के आधार पर किसानों को दिये जाने वाले ऋण की मात्रा के आकलन में बैंकों को समर्थ बनाना।
  3. कृषि भूमि में उर्वरकों के अति-उपयोग को रोकना।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)

व्याख्या:

  • मृदा स्वास्थ्य कार्ड (SHC) कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत कृषि और सहकारिता विभाग द्वारा प्रवर्तित भारत सरकार की एक योजना है। इसे सभी राज्य और केंद्रशासित प्रदेशों की सरकारों के कृषि विभाग के माध्यम से लागू किया जा रहा है।
  • SHC योजना का उद्देश्य प्रत्येक किसान को जोत की मिट्टी के पोषक तत्त्व की स्थिति और उर्वरकों की मात्रा तथा मृदा में आवश्यक संशोधनों हेतु सलाह देना है ताकि लंबे समय तक मिट्टी के स्वास्थ्य को बनाए रखा जा सके।
  • SHC मुद्रित रिपोर्ट है जो किसान को उसकी प्रत्येक जोत के लिये प्रदान किया जाता है, में 12 मापदंडों के संबंध में मृदा की स्थिति शामिल होती है, अर्थात् नाइट्रोजन (N), फास्फोरस (P), पोटेशियम (K) (मैक्रो-पोषक तत्त्व); सल्फर (S) (माध्यमिक-पोषक तत्त्व); जिंक (Zn), आयरन (Fe), कॉपर (Cu), मैंगनीज़ (Mn), बोरॉन (B) (सूक्ष्म पोषक तत्त्व) और PH, विद्युत चालकता (EC), कार्बनिक कार्बन (OC) (भौतिक पैरामीटर)। इसके आधार पर SHC खेत के लिये आवश्यक उर्वरक और मृदा संशोधन को भी इंगित करता है। अत: कथन 3 सही है और कथन 1 एवं 2 सही नहीं हैं।
  • इस योजना का मुख्य उद्देश्य किसी विशेष मृदा के प्रकार का पता लगाना और फिर ऐसे तरीके प्रदान करना है जिससे किसान इसमें सुधार सकें। अतः विकल्प (b) सही है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


रेत कणों का आकार और इसकी द्रवीकरण क्षमता

हाल ही में वैज्ञानिकों ने पाया है कि रेत के कणों की आकृति रेत के द्रवीकरण को प्रभावित करती है

  • रेत का द्रवीकरण एक ऐसी घटना है जिसमें भूकंप के झटकों के समय भारी पदार्थों के तेज़ी से किसी स्थान पर एकत्र होने के कारण वहाँ की मिट्टी की ताकत और कठोरता में कमी आ जाती है तथा ऐसी स्थिति में द्रवीभूत हो चुकी ज़मीन पर खड़ी संरचनाएँ ध्वस्त होकर ढहने लगती हैं।

प्रमुख बिंदु

  • रेत के कण के आकार और इसकी द्रवीकरण क्षमता के बीच मज़बूत संबंध है;
    • भूकंप के दौरान संरचनाओं के ढहने के पीछे रेत की द्रवीकरण क्षमता प्रमुख कारकों में से एक है
  • किये गए अध्ययन में शोधकर्त्ताओं ने पाया कि उच्च गोलाई और वृत्ताकार के साथ नियमित आकार वाले काँच के मनके पहले चक्रीय अपरूपण परीक्षणों में द्रवीभूत होते हैं, जबकि नदी की रेत, जिसके कण गोलाई और वृत्ताकारिता (जो कितने एक समान वृत्त आकार में होते है) में काँच के मनकों एवं कृत्रिम रूप से निर्मित रेत के बीच के होते हैं, इसके बाद द्रवीभूत होती है तथा उसके बाद वह निर्मित रेत आती है जिसका आकार अपेक्षाकृत अनियमित होता है।
  • चूँकि नियमित आकार वाली प्राकृतिक रेत आसानी से द्रवीभूत हो जाती है, संरचनाओं के स्थायित्व और स्थिरता के लिये ढलानों एवं दीवारों के निर्माण में प्राकृतिक रेत के स्थान पर अनियमित आकार वाली रेत का उपयोग किया जा सकता है।

स्थायित्व और स्थिरता के लिये अनियमित आकार वाली रेत कणों का प्रयोग क्यों?

  • अधिक अपरूपण बल आवश्यक:
    • ऐसा इसलिये है क्योंकि अंतर-कण आबंधन को तोड़ने के लिये आवश्यक अपरूपण बल (संरचना के एक हिस्से को किसी एक विशिष्ट दिशा में और उसी संरचना के दूसरे हिस्से को विपरीत दिशा में धकेलने वाला बल) अपेक्षाकृत अनियमित आकार वाले कणों के लिये अधिक होता है।
  • अंतर-कण लॉकिंग:
    • जैसे-जैसे कणों का आकार अनियमित होने लगता है, उनका समग्र रूप एक गोले के बजाय तीखे कोने वाला होने लगता है और वे अपरूपण के दौरान एक-दूसरे के साथ संलग्न होकर जुड़ने लगते हैं।
    • ऐसे में इंटरलॉकिंग अपरूपण के लिये अतिरिक्त प्रतिरोध प्रदान करती है, इसीलिये अनियमित आकार वाले कणों के द्रव में तैरने के दौरान एक-दूसरे से अलग होने की प्रवृत्ति घट जाती है।
  • द्रव प्रवाह में विचलन:
    • इसके अलावा प्रवाह की धीमी गति या द्रव प्रवाह में विचलन भी कणों के अनियमित आकार के साथ बढ़ता जाता है।
    • ग्रेटर टॉर्ट्यूसिटी निकासी नेटवर्क के माध्यम से जल प्रवाह को कम कर देता है और जल के माध्यम से रेत के कणों को अलग करने की आशंका को कम कर देता है, इस प्रकार यह भवनों एवं अन्य संरचनाओं को ढहने/ गिरने से रोकता है।

भूकंप:

  • साधारण शब्दों में भूकंप का अर्थ पृथ्वी की कंपन से है। यह एक प्राकृतिक घटना है, जिसमें पृथ्वी के अंदर से ऊर्जा के निकलने के कारण तरंगें उत्पन्न होती हैं जो सभी दिशाओं में फैलकर पृथ्वी को कंपित करती हैं।
  • भूकंप से उत्पन्न तरगों को भूकंपीय तरगें कहा जाता है, जो पृथ्वी की सतह पर गति करती हैं तथा इन्हें ‘सिस्मोग्राफ’ (Seismographs) द्वारा मापा जाता है।
  • पृथ्वी की सतह के नीचे का स्थान जहाँ भूकंप का केंद्र स्थित होता है, हाइपोसेंटर  (Hypocenter) कहलाता है और पृथ्वी की सतह के ऊपर स्थित वह स्थान जहाँ भूकंपीय तरगें सबसे पहले पहुँचती है अधिकेंद्र (Epicenter) कहलाता है।
  • भूकंप के प्रकार: फाल्ट ज़ोन, विवर्तनिक भूकंप, ज्वालामुखी भूकंप, मानव प्रेरित भूकंप।

यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs):

प्रारंभिक  परीक्षा:

्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा/से नदी तल में बहुत अधिक बालू खनन का/के संभावित परिणाम हो सकता है/सकते हैं? (2018)

  1. नदी की लवणता में कमी
  2. भौमजल का प्रदूषण
  3. भौम जलस्तर का नीचे चले जाना

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1  
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3  
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)

  • रेत खनन नदी तल से या तटीय क्षेत्र से रेत निकालने की प्रक्रिया है।
  • अत्यधिक रेत खनन से जल का पीएच (pH) मान कम होता है, इसमें विभिन्न धातु के ऑक्साइडों का मिश्रण होता है तथा नदी जल में ऑक्सीजन की कमी और वस्तुतः जैविक ऑक्सीजन मांग (BOD) में वृद्धि होती जिसके चलते नदी का जल प्रदूषित होता है। प्रदूषित नदी का जल भूजल के दूषित होने का कारण बनता है। अत: कथन 2 सही है।
  • धातु के ऑक्साइडों में वृद्धि तथा नदी जल में उनके मिलने से जल की लवणता बढ़ जाती है। अतः 1 सही नहीं है।
  • नदी में जल प्रवाह का आयतन कम हो जाता है, जिसके परिणामस्वरूप जल स्तर कम हो जाता है। अत: कथन 3 सही है।

अतः विकल्प (b) सही है।

स्रोत: पी.आई.बी.


जाली नोटों में गिरावट

हाल ही में वित्त मंत्रालय ने लोकसभा को सूचित किया कि बैंकिंग प्रणाली में जाली मुद्रा का मूल्य वर्ष 2016-17 के 43.47 करोड़ रुपए से घटकर वर्ष 2021-22 में लगभग 8.26 करोड़ रुपए हो गया।

जाली मुद्रा:

  • जालसाज़ द्वारा अपने लाभ के लिये अवैध रूप से जाली मुद्रा का निर्माण करना एक प्रकार की जालसाज़ी है, जालसाज़ी के तहत किसी वस्तु की प्रतिकृति तैयार की जाती है ताकि जालसाज़ी की घटना को अंजाम दिया जा सके।
  • मुद्रा की नकल करने के लिये आवश्यक उच्च स्तर के तकनीकी कौशल के कारण, जालसाज़ी कोे अन्य कृत्यों से अलग किया जाता है और इसे भारतीय दंड संहिता की धारा 489 ए के तहत अलग अपराध के रूप में माना जाता है।
  • जालसाज़ी सबसे पुराने तरीकों में से एक है जिसका उपयोग जालसाज़ों द्वारा लंबे समय से लोंगों को धोखा देने के लिये किया जाता रहा हैं।

जालसाज़ी से खतरा:

  • आर्थिक आतंकवाद:
    • FICN (नकली भारतीय करेंसी नोट) भारत की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुँचाने के लिये बाहरी स्रोतों द्वारा प्रचालित "आर्थिक आतंकवाद" के रूप में देखा जा सकता है।
    • आर्थिक आतंकवाद राज्य या गैर-राज्य अभिकर्त्ताओं द्वारा किसी देश की अर्थव्यवस्था में पर्दे के पीछे होने वाले हेरफेर को संदर्भित करता है।
    • FICN का प्रचलन भारत की अर्थव्यवस्था के लिये खतरा उत्पन्न करता है, जबकि इससे होने वाले लाभ का उपयोग भारत को लक्षित गुप्त आपराधिक गतिविधियों को निधि देने के लिये किया जाता है।
  • मुद्रास्फीति:
    • बड़ी मात्रा में जाली मुद्रा के प्रचलन से बाज़ार में मुद्रा की मात्रा बढ़ जाती है, जिससे वस्तुओं और सेवाओं की मांग भी बढ़ती है।
    • मांग में वृद्धि होने से वस्तुओं एवं सेवाओं की कमी हो जाती है, फलस्वरूप मुद्रास्फीति बढ़ जाती है।
    • इससे मुद्रा का अवमूल्यन/मूल्यह्रास होता है।
  • क्षति की गैर-प्रतिपूर्ति:
    • बैंकों की गैर-प्रतिपूर्ति नीति समस्या तब उत्पन्न करती है, जब बैंक जाली नोटों को अस्वीकार कर देते हैं और नुकसान की प्रतिपूर्ति नहीं करते हैं।
    • दैनिक नकद लेन-देन में शामिल फर्मों को अर्थव्यवस्था में FICN की घुसपैठ के कारण लंबे समय में भारी नुकसान का सामना करना पड़ता है।
  • जन विश्वास में कमी:
    • जाली मुद्रा के अन्य प्रभावों में जनता के विश्वास में कमी, उत्पादों की कालाबाज़ारी, उत्पादों का अवैध स्टॉकिंग आदि शामिल हैं।

जाली मुद्रा को नियंत्रित करने के उपाय:

  • विमुद्रीकरण:
    • 8 नवंबर, 2016 को अवैध लेन-देन के लिये उच्च मूल्य के नोटों के उपयोग को हतोत्साहित करने और जालसाज़ी पर अंकुश लगाने हेतु मुद्रा प्रणाली से 500 एवं 1,000 रुपए के नोट परिचालन से वापस ले लिये गए थे।
    • विमुद्रीकरण से तात्पर्य लीगल टेंडर के रूप में जारी मुद्रा इकाई को वापस लेने की प्रक्रिया है।
  • द्वि-लुमिनसेंट सुरक्षा स्याही:
    • वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR)-राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला ने एक द्वि-लुमिनसेंट सुरक्षा स्याही विकसित की है जो नोटों में दो अलग-अलग स्रोतों द्वारा प्रकाशित होने पर लाल एवं हरे रंगों को प्रदर्शित करती है।
  • टेरर फंडिंग एंड फेक करेंसी (TFFC) सेल:
    • आतंकी वित्तपोषण और जाली मुद्रा के मामलों की जाँच के लिये राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA) के तहत एक टेरर फंडिंग एंड फेक करेंसी (TFFC) सेल का गठन किया गया है।
  • FICN समन्वय समूह:
    • जाली नोटों के प्रचलन की समस्या का मुकाबला करने के लिये केंद्र /राज्यों की सुरक्षा एजेंसियों के बीच खुफिया/सूचना साझा करने हेतु गृह मंत्रालय द्वारा FICN समन्वय समूह (FCORD) का गठन किया गया है।
  • जाली नोटों की समस्या से निपटने को भारत-बांग्लादेश के बीच समझौता ज्ञापन:
    • नकली नोटों की तस्करी और प्रचलन को रोकने तथा उनका मुकाबला करने के लिये भारत तथा बांग्लादेश के बीच समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किये गए हैं।
    • साथ ही नई निगरानी तकनीक का उपयोग करके अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं पर सुरक्षा को मज़बूत किया गया है।

स्रोत: द हिंदू


Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 09 अगस्त, 2022

हिम ड्रोन-ए-थॉन कार्यक्रम

भारतीय सेना ने 8 अगस्त, 2022 को ड्रोन फेडरेशन ऑफ इंडिया के सहयोग से हिम ड्रोन-ए-थॉन कार्यक्रम का शुभारंभ किया। यह पहल रक्षा निर्माण क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के अनुरूप है तथा इसका उद्देश्य सीमा पर सैनिकों की आवश्यकताओं को देखते हुए पथ-प्रदर्शक ड्रोन क्षमता विकसित करने के लिये भारतीय ड्रोन पारिस्थितिकी तंत्र को प्रोत्साहित करना है। रक्षा मंत्रालय ने कहा है कि यह कार्यक्रम उद्योग, शिक्षा, सॉफ्टवेयर डेवलपर्स और ड्रोन उत्पाद निर्माताओं सहित सभी हितधारकों के बीच पारस्परिक सहयोग से संचालित किया जाएगा। ड्रोन मानव रहित विमान (Unmanned Aircraft) के लिये प्रयुक्त एक आम शब्द है। मानव रहित विमान के तीन उप-सेट हैं- रिमोटली पायलटेड एयरक्राफ्ट (Remotely Piloted Aircraft), ऑटोनॉमस एयरक्राफ्ट (Autonomous Aircraft) और मॉडल एयरक्राफ्ट (Model Aircraft)। रिमोटली पायलटेड एयरक्राफ्ट में रिमोट पायलट स्टेशन, आवश्यक कमांड और कंट्रोल लिंक तथा अन्य घटक होते हैं। रिमोटली पायलटेड एयरक्राफ्ट में रिमोट पायलट स्टेशन, आवश्यक कमांड एवं कंट्रोल लिंक तथा अन्य घटक होते हैं। ड्रोन को उनके वज़न के आधार पर पाँच श्रेणियों में बाँटा गया है-: नैनो- 250 ग्राम से कम, माइक्रो- 250 ग्राम से 2 किग्रा. तक,  स्माल- 2 किग्रा. से 25 किग्रा. तक, मीडियम- 25 किग्रा. से 150 किग्रा. तक, लार्ज- 150 किग्रा. से अधिक।

‘परवाज़’ मार्केट लिंकेज योजना 

अभिनव मार्केट लिंकेज योजना परवाज़ में केंद्रशासित प्रदेश जम्‍मू-कश्‍मीर के किसानों की आर्थिक स्थिति को मज़बूत करने की बेहतर क्षमता है। सरकार ने यह योजना जम्‍मू-कश्‍मीर के कृषि और बागवानी क्षेत्र की बाज़ार तक  पहुँच आसान बनाने के उद्देश्‍य से शुरू की है। इसके अंतर्गत जम्‍मू-कश्‍मीर के फलों को हवाई मार्ग से भेजने पर 25 प्रतिशत की सब्सिडी दी जाती है। यह सब्सिडी किसानों को प्रत्‍यक्ष अंतरण लाभ के माध्यम से दी जाती है। कार्यान्वयन एजेंसी ‘जम्मू-कश्मीर बागवानी उत्पादन विपणन एवं प्रसंस्करण निगम’  नियमित रूप से इस योजना के बारे में किसानों को जागरूक कर रही है, ताकि बड़ी संख्‍या में किसान इसका लाभ उठा सकें। योजना से संबंधित कार्यों को आसान बनाया गया है और सब्सिडी का भुगतान समय पर किया जा रहा है। इस योजना से किसानों की आय दोगुनी करके उनका आर्थिक और सामाजिक कल्याण सुनिश्चित किया गया है। इस योजना के तहत किसानों की उपज का मूल्य सीधे उनके बैंक खाते में हस्तांतरित किया जाएगा।

‘डिफेंस एक्सपो-2022’ 

भू-आधारित नौसेनिक और होमलैंड सुरक्षा प्रणालियों पर भारत की प्रमुख प्रदर्शनी ‘डिफेंस एक्सपो’ (डेफएक्सपो-2022) का 12वाँ संस्करण 18-22 अक्तूबर, 2022 के बीच गुजरात के गांधीनगर में आयोजित किया जाएगा। इस पाँच दिवसीय कार्यक्रम में तीन व्यावसायिक दिनों के बाद शेष दो दिन आम जनता के लिये समर्पित होंगे। इस दौरान साबरमती रिवर फ्रंट में सशस्त्र बलों और उद्योग जगत के उपकरणों एवं कौशल का प्रदर्शन सभी स्तरों पर सक्रिय भागीदारी तथा समेकित प्रयासों के माध्यम से किया जाएगा। डेफएक्सपो-2022 रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता और वर्ष 2025 तक 5 अरब डॉलर का निर्यात हासिल करने के दृष्टिकोण के अनुरूप है। रक्षा क्षेत्र में यह एशिया का सबसे बड़ा आयोजन है। प्रतिभागियों के समक्ष आ रही लाॅजिस्टिक  संबंधी समस्याओं के कारण इसे मार्च 2022 में स्थगित कर दिया गया था। डेफएक्सपो-2022 में प्रतिभागियों को अपने उपकरणों और प्लेटफाॅर्मों को प्रदर्शित करने का अवसर प्राप्त होगा, साथ ही यह व्यावसायिक साझेदारी बनाने के लिये भारतीय रक्षा उद्योग के विस्तार और क्षमताओं का पता लगाने में भी सक्षम होगा। यह आयोजन निवेश को बढ़ावा देने, विनिर्माण क्षमताओं का विस्तार करने एवं प्रौद्योगिकी का उपयोग करने में सहायता करेगा।