लेडीज़-स्लिपर ऑर्किड
स्रोत: इंडिपेंडेंट
लेडीज़ स्लिपर ऑर्किड को एक बार ब्रिटेन में लगभग एक सदी तक विलुप्त माना गया था, क्योंकि अत्यधिक संग्रह के कारण यह विलुप्त हो गया था, लेकिन वर्ष 1930 में एक ही पौधा मिलने पर इसे पुनः खोजा गया। अब इसे इंग्लैंड में फिर से प्राकृतिक रूप से उगते हुए देखा गया है।
लेडीज़ स्लिपर ऑर्किड
- वर्गीकरण (Taxonomy): यह ऑर्किड परिवार (Orchidaceae) की उप-परिवार साइप्रिपेडिओइडी (Cypripedioideae) से संबंधित है और अपने विशिष्ट ‘स्लीपर’ (Slipper) के आकार वाले लैबेलम (labellum) के लिये जाना जाता है, जो कीटों को फँसाकर परागण में सहायता करता है।
- प्रजातियाँ एवं वितरण:
- 5 वैश्विक प्रजातियों (साइप्रिपेडियम, मेक्सीपीडियम, पैफियोपेडिलम, फ्राग्मिपीडियम, सेलेनिपीडियम) में से, साइप्रिपेडियम और पैफियोपेडिलम भारत में मुख्य रूप से हिमालयी राज्यों (जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश) तथा पूर्वोत्तर पहाड़ियों में पाए जाते हैं।
- इनकी प्रजातियाँ यूरोप, एशिया और उत्तरी अमेरिका के बोरियल, समशीतोष्ण और उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में पाई जाती हैं।
- आवास और पारिस्थितिकी: ये वनस्पति यूरोप, एशिया और उत्तरी अमेरिका के नम, छायादार, बोरियल (उत्तरी), शीत समशीतोष्ण वनों तथा अल्पाइन क्षेत्रों में पाई जाती है। इसे जैविक पदार्थ (ह्यूमस) से समृद्ध, अच्छी जल निकासी वाली मृदा की आवश्यकता होती है।
- अलास्का में सी.गुटेटम और सी.पैसेरिनम जैसी कुछ प्रजातियाँ हिम के नीचे अंकुरित होती हैं।
- खतरे और संरक्षण: इनकी संख्या अत्यधिक संग्रह, औषधीय उपयोग, आवास क्षति और असफल प्रतिरोपण के कारण घट गई है। इनकी विशेष मृदा तथा फफूँद संबंधी आवश्यकताओं के कारण इनकी कृषि करना कठिन होता है।
- भारत में संरक्षण का नेतृत्व भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण (BSI) और अन्य संस्थानों द्वारा इन-सीटू तथा एक्स-सीटू संरक्षण, ऊतक संवर्द्धन प्रसार एवं आवास पुनर्स्थापन के माध्यम से किया जाता है।
- संरक्षण की स्थिति
- CITES: परिशिष्ट I और II
- IUCN रेड लिस्ट: गंभीर रूप से संकटग्रस्त/लुप्तप्राय
- वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972: अनुसूची III
और पढ़ें: दुर्लभ आर्किड प्रजातियाँ
भारतजेन: भारत का पहला AI आधारित मल्टीमॉडल लार्ज लैंग्वेज मॉडल
स्रोत: पी.आई.बी
केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) ने "भारतजेन (BharatGen)" – भारतीय भाषाओं के लिये देश का पहला स्वदेशी रूप से विकसित, सरकारी वित्तपोषित, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित मल्टीमॉडल लार्ज लैंग्वेज मॉडल का शुभारंभ किया।
भारतजेन (BharatGen):
- परिचय: यह 22 भारतीय भाषाओं में भारत का पहला स्वदेशी रूप से विकसित , सरकार द्वारा वित्तपोषित मल्टीमॉडल लार्ज लैंग्वेज मॉडल है।
- मल्टीमोडल LLMs (लार्ज लैंग्वेज मॉडल्स) वे बड़े भाषा मॉडल हैं जिन्हें विभिन्न प्रकार के डेटा (जैसे- टेक्स्ट, इमेज, ऑडियो और वीडियो) पर प्रशिक्षित किया जाता है। जो उन्हें जटिल मानव भाषा तथा मल्टीमीडिया को समझने एवं व्याख्या करने में सक्षम बनाता है।
- अनेक डेटा प्रकारों में सुसंगत प्रतिक्रिया प्रदान करने की उनकी क्षमता, उन्हें यूनिमॉडल की कमियों को दूर करने में मदद करती है, जैसे कि ChatGPT के पिछले संस्करण।
- मल्टीमोडल LLMs (लार्ज लैंग्वेज मॉडल्स) वे बड़े भाषा मॉडल हैं जिन्हें विभिन्न प्रकार के डेटा (जैसे- टेक्स्ट, इमेज, ऑडियो और वीडियो) पर प्रशिक्षित किया जाता है। जो उन्हें जटिल मानव भाषा तथा मल्टीमीडिया को समझने एवं व्याख्या करने में सक्षम बनाता है।
- विकास: नेशनल मिशन ऑन इंटरडिसिप्लिनरी साइबर-फिजिकल सिस्टम्स (NM-ICPS), IIT बॉम्बे में IoT और IoE के लिये TIH फाउंडेशन द्वारा कार्यान्वित।
- NM-ICPS को वर्ष 2018 में विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा साइबर-भौतिक प्रणालियों (CPS) तथा नए युग की प्रौद्योगिकियों में नवाचार तथा अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देने के लिये लॉन्च किया गया था।
- उद्देश्य: भारतीय मूल्यों पर आधारित नैतिक, समावेशी, बहुभाषी AI को बढ़ावा देना, स्वास्थ्य सेवा, कृषि, शिक्षा और शासन में क्षेत्र-विशिष्ट समाधान प्रदान करना तथा स्थानीय भाषा बोलने वाले AI संचालित ग्रामीण टेलीमेडिसिन को बढ़ावा देना।
- यह पहल विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST) द्वारा समर्थित है तथा इसमें प्रमुख शैक्षणिक संस्थानों, विशेषज्ञों एवं नवोन्मेषकों का एक मज़बूत गठबंधन शामिल है।
विशेषता/पहलू |
लार्ज लैंग्वेज मॉडल (LLM) |
जनरेटिव एडवर्सरियल नेटवर्क (GANs) |
ऑटोरिग्रैसिव मॉडल (ARMs) |
परिभाषा |
मानव जैसी भाषा उत्पन्न करने के लिये बड़े टेक्स्ट डेटा पर प्रशिक्षित AI मॉडल |
दो नेटवर्क (जेनरेटर और डिस्क्रिमिनेटर) वाले AI मॉडल जो यथार्थवादी सामग्री उत्पन्न करते हैं |
मॉडल जो पिछले अनुक्रम के आधार पर अगले मूल्य/टोकन की पूर्वानुमान करते हैं |
मुख्य उद्देश्य |
टेक्स्ट जनरेशन, ट्रांसलेशन, सारांशीकरण |
इमेज जनरेशन, डीपफेक, डेटा संवर्द्धन |
सीक्वेंस मॉडलिंग (टेक्स्ट, स्पीच, टाइम सीरीज़) |
सामग्री प्रकार |
प्राइमरी टेक्स्ट |
प्राइमरी इमेज, वीडियो या ऑडियो |
कोई भी सीक्वेंसींग डेटा (टेक्स्ट, स्पीच, ऑडियो) |
जनरेटिव AI से संबंध |
टेक्स्ट के लिये जनरेटिव AI का एक उपसमूह |
मीडिया सामग्री के लिये एक प्रकार का जनरेटिव AI |
एलएलएम और टाइम सीरीज़ मॉडल दोनों में उपयोग की जाने वाली तकनीक |
उदाहरण |
GPT-4, PaLM2, LLaMA |
StyleGAN, CycleGAN |
GPT, WaveNet, PixelRNN |
और पढ़ें: लार्ज लैंग्वेज मॉडल, नेशनल मिशन ऑन इंटरडिसिप्लिनरी साइबर-फिजिकल सिस्टम्स
औद्योगिक लौह प्रदूषण: समुद्री पोषक चक्रों के लिये बढ़ता संकट
स्रोत: द हिंदू
एक अध्ययन में पाया गया है कि औद्योगिक लौह से होने वाला प्रदूषण महासागरीय पोषक तत्त्वों की कमी का कारण बनता है और समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को बाधित करता है, जिससे गंभीर पारिस्थितिकीय जोखिम उत्पन्न होते हैं।
- मानव द्वारा उत्सर्जित लौह वसंत ऋतु में फाइटोप्लैंकटन ब्लूम की अत्यधिक वृद्धि को बढ़ावा देता है तथा पोषक तत्त्वों की हानि को तेज़ करता है, जिससे जलवायु परिवर्तन के कारण महासागरों में पोषक तत्त्वों की कमी और भी अधिक गंभीर रूप ले लेती है।
- इससे ज़ूप्लैंकटन से लेकर व्हेल तक संपूर्ण समुद्री खाद्य शृंखला को खतरा होता है तथा विशेष रूप से उन प्रजातियों पर इसका प्रभाव पड़ता है जो प्रवास करने या अनुकूलन करने में असमर्थ होते हैं।
- फाइटोप्लैंकटन क्लोरोफिल युक्त सूक्ष्म शैवाल होते हैं और जो वृद्धि के लिये सूर्य प्रकाश पर निर्भर करते हैं। ये समुद्री खाद्य शृंखला का आधार बनाते हैं, लेकिन पोषक तत्त्वों की अधिकता विषैले हानिकारक शैवाल प्रस्फुटन (HAB) को उत्पन्न कर सकते हैं, जिससे समुद्री जीवन और मानव स्वास्थ्य प्रभावित होते हैं।
- भारत का लौह और इस्पात क्षेत्र उत्सर्जन: भारत का लौह और इस्पात उद्योग राष्ट्रीय ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन में 5% योगदान करता है।
- लौह और इस्पात उद्योग कोयला तथा लौह अयस्क के उपयोग के कारण गंभीर प्रदूषण उत्पन्न करता है। भट्ठी संचालन के दौरान सल्फर ऑक्साइड (SOx), नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx), कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂), कार्बन मोनोऑक्साइड (CO), पार्टिकुलेट मैटर (PM2.5 और PM10) और पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन (PAH) उत्सर्जित होते हैं।
- इसके अतिरिक्त, इससे अपशिष्ट जल, खतरनाक अपशिष्ट और ठोस अपशिष्ट उत्पन्न होते हैं, जिससे वायु, जल तथा मृदा प्रदूषण होता है।
और पढ़ें: भारत का इस्पात क्षेत्र
खीचन और मेनार नए रामसर स्थल के रूप में
स्रोत: पी.आई.बी
राजस्थान में खीचन (फलोदी) और मेनार (उदयपुर) आर्द्रभूमियों को रामसर स्थल घोषित किया गया है, जिससे भारत में रामसर स्टालोंस्थलों की कुल संख्या 91 हो गई है, जो एशिया में सर्वाधिक है।
- खीचन हज़ारों प्रवासी डेमोइसेल क्रेन के लिये प्रसिद्ध है, जबकि मेनार (पक्षी गाँव), अपने समुदाय के नेतृत्व वाले पक्षी संरक्षण प्रयासों के लिये जाना जाता है।
- राजस्थान में अब 4 रामसर स्थल हैं, जिनमें सांभर झील (नागौर और जयपुर) तथा केवलादेव घाना राष्ट्रीय उद्यान (भरतपुर) शामिल हैं।
- आर्द्रभूमि: ये दलदल, दलदली भूमि, पीटलैंड या जल (प्राकृतिक या कृत्रिम) के वे क्षेत्र हैं, जिनमें पानी स्थिर या प्रवाहित होता है, इनमें छह मीटर से अधिक गहराई वाले समुद्री क्षेत्र शामिल हैं।
- आर्द्रभूमियाँ एक इकोटोन हैं, जिनमें स्थलीय और जलीय पारिस्थितिकी प्रणालियों के बीच संक्रमणकालीन भूमि होती है।
- रामसर कन्वेंशन: इसे वर्ष 1971 में ईरान के रामसर में अपनाया गया था और यह आर्द्रभूमि संरक्षण तथा विवेकपूर्ण उपयोग के लिये एक वैश्विक रूपरेखा प्रदान करता है। भारत वर्ष 1982 में इसमें शामिल हुआ।
- मोंट्रेक्स रिकॉर्ड (संकटग्रस्त सूची) में मानवीय गतिविधियों या प्रदूषण के कारण बिगड़ती पारिस्थितिक स्थिति वाली आर्द्रभूमियों की सूची दी गई है। मोंट्रेक्स रिकॉर्ड में भारत की दो आर्द्रभूमियाँ हैं:
- केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान, राजस्थान (1990): UNESCO विश्व धरोहर स्थल।
- लोकटक झील, मणिपुर (1993): पूर्वोत्तर भारत की सबसे बड़ी स्वच्छ जल की झील जो अपनी फुमदियों (वनस्पति, मृदा और कार्बनिक पदार्थों के तैरते हुए समूह) के लिये जानी जाती है।
- मोंट्रेक्स रिकॉर्ड (संकटग्रस्त सूची) में मानवीय गतिविधियों या प्रदूषण के कारण बिगड़ती पारिस्थितिक स्थिति वाली आर्द्रभूमियों की सूची दी गई है। मोंट्रेक्स रिकॉर्ड में भारत की दो आर्द्रभूमियाँ हैं:
- चिल्का झील को वर्ष 1993 में मॉन्ट्रो रिकॉर्ड में शामिल किया गया था लेकिन वर्ष 2002 में इसे हटा दिया गया (एशिया से पहली साइट)।
और पढ़ें: आर्द्रभूमि संरक्षण को सुदृढ़ बनाना