भारत में एक सुदृढ़ शिक्षा प्रणाली का निर्माण
यह एडिटोरियल 27/08/2025 को द हिंदू में प्रकाशित “Play-based Learning for India’s Future,” पर आधारित है। यह भारत की विकसित होती शिक्षा प्रणाली के व्यापक कार्यढाँचे में खेल-आधारित शिक्षा के महत्त्व पर प्रकाश डालता है। हालाँकि, विभिन्न सुधारों के बावजूद, चुनौतियाँ बनी हुई हैं, जिनमें बुनियादी अवसंरचना संबंधित खामियाँ, अपर्याप्त शिक्षक प्रशिक्षण और अभिगम्यता में असमानताएँ शामिल हैं, जिनका अभी भी समाधान किया जाना शेष है।
प्रिलिम्स के लिये: PM eVidya, राष्ट्रीय शिक्षा नीति- 2020, NISHTHA, NIPUN भारत मिशन, PM SHRI स्कूल, भारतीय उच्च शिक्षा आयोग (HECI), बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ
मेन्स के लिये: भारत का शिक्षा क्षेत्र: संबंधित चुनौतियाँ और आगे की राह
भारत की लगभग 26% आबादी 0-14 वर्ष की आयु वर्ग की है, इसलिये भारत का शिक्षा क्षेत्र विकास के महत्त्वपूर्ण अवसर प्रस्तुत करता है। पिछले कुछ वर्षों में, देश ने शैक्षिक सुधारों में उल्लेखनीय प्रगति की है, विशेष रूप से राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 जैसी पहलों के माध्यम से। हालाँकि, उच्च ड्रॉपआउट दर, कौशल असंतुलन, शिक्षा तक असमान पहुँच और बुनियादी अवसंरचना की कमी जैसी चुनौतियाँ अभी भी बनी हुई हैं। भारत की शिक्षा प्रणाली की क्षमता का पूर्ण दोहन करने के लिये, शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार, रोज़गार क्षमता में वृद्धि और समावेशी विकास को बढ़ावा देने तथा भावी पीढ़ियों को सशक्त बनाने के लिये प्रमुख सुधार आवश्यक हैं।
भारत में शिक्षा प्रणाली के विकास हेतु क्या कदम उठाए गए हैं?
- डिजिटल और ऑनलाइन शिक्षा का विकास: भारत की शिक्षा प्रणाली ने, विशेष रूप से महामारी के बाद, डिजिटल शिक्षा को तेज़ी से अपनाया है।
- ऑनलाइन प्लेटफॉर्म और मिश्रित शिक्षण मॉडल की ओर बदलाव ने शिक्षा को और अधिक सुलभ बना दिया है, विशेषकर दूरदराज़ के क्षेत्रों के छात्रों के लिये।
- एडटेक कंपनियों के विकास और PM eVidya जैसी सरकारी पहलों ने शिक्षा तक पहुँच में वृद्धि की है।
- वर्ष 2021 में, अमेज़न ने भारत में अपनी वैश्विक कंप्यूटर विज्ञान शिक्षा पहल (कक्षा 6-12 के लिये) शुरू की।
- इसके अलावा, सरकार का लक्ष्य 500 करोड़ रुपये (केंद्रीय बजट 2025-26) के परिव्यय से शिक्षा के लिये AI का एक नया उत्कृष्टता केंद्र स्थापित करना है।
- इन विकासों के माध्यम से, भारत में ऑनलाइन शिक्षा क्षेत्र तेज़ी से विस्तार कर रहा है, वर्ष 2021-25 के बीच 2.28 बिलियन अमेरिकी डॉलर की अनुमानित वृद्धि के साथ, जो लगभग 20% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) को दर्शाता है।
- व्यावसायिक शिक्षा और कौशल विकास का एकीकरण: राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) - 2020 भारत की रोज़गार चुनौतियों के प्रमुख समाधान के रूप में कौशल विकास और व्यावसायिक शिक्षा पर ज़ोर देती है।
- कौशल-आधारित शिक्षा को मुख्यधारा की शिक्षा में शामिल करके, भारत अपने युवाओं को उद्योग जगत की उभरती माँगों को पूरा करने के लिये आवश्यक व्यावहारिक कौशल से बेहतर ढंग से प्रशिक्षित करना चाहता है।
- कौशल भारत मिशन का उद्देश्य देश भर में रोज़गार क्षमता बढ़ाना और कौशल विकास को बढ़ावा देना है।
- इसके साथ ही, वर्ष 2024 तक कौशल शिक्षा में छात्रों का नामांकन बढ़कर 30 लाख से अधिक हो गया है।
- कौशल-आधारित शिक्षा को मुख्यधारा की शिक्षा में शामिल करके, भारत अपने युवाओं को उद्योग जगत की उभरती माँगों को पूरा करने के लिये आवश्यक व्यावहारिक कौशल से बेहतर ढंग से प्रशिक्षित करना चाहता है।
- प्रारंभिक शिक्षा में परिवर्तन: मूलभूत साक्षरता और संख्यात्मकता (FLN) मिशन एक परिवर्तनकारी पहल है, जो कक्षा 3 तक के बच्चों के लिये साक्षरता और संख्यात्मकता सुनिश्चित करने पर केंद्रित है।
- यह आधारभूत शिक्षा को भविष्य की समस्त शिक्षा की आधारशिला के रूप में महत्त्व देता है और प्रारंभिक अवस्था में ही अधिगम से संबंधित कमियों को दूर करता है। शिक्षा के क्षेत्र में इन बुनियादी कमियों को दूर करके, इस मिशन का उद्देश्य युवा शिक्षार्थियों में संज्ञानात्मक और सामाजिक विकास को बढ़ावा देना है।
- वर्ष 2025 भारत में एफएलएन के लिये महत्त्वपूर्ण होगा, क्योंकि NIPUN भारत मिशन 2026-27 तक प्राथमिक विद्यालयों में सार्वभौमिक आधारभूत साक्षरता और संख्यात्मकता की संपूर्ण कवरेज हेतु प्रयासरत है।
- नवचेतना जैसी पहल छोटे बच्चों के विकास में सहायता के लिये आयु-उपयुक्त, खेल-आधारित शिक्षण गतिविधियाँ प्रदान करके प्रारंभिक शिक्षा को और बेहतर बनाती हैं।
- इसके अलावा, पोषण भी पढाई भी (PBPB) पहल का उद्देश्य आँगनवाड़ी केंद्रों को जीवंत प्रारंभिक शिक्षा केंद्रों में बदलना है, जो पोषण और शिक्षा दोनों पर केंद्रित हैं।
- यह आधारभूत शिक्षा को भविष्य की समस्त शिक्षा की आधारशिला के रूप में महत्त्व देता है और प्रारंभिक अवस्था में ही अधिगम से संबंधित कमियों को दूर करता है। शिक्षा के क्षेत्र में इन बुनियादी कमियों को दूर करके, इस मिशन का उद्देश्य युवा शिक्षार्थियों में संज्ञानात्मक और सामाजिक विकास को बढ़ावा देना है।
- अनुसंधान और नवाचार पर अधिक फोकस: भारत धीरे-धीरे नवाचार और उद्योग सहयोग पर ज़ोर देते हुए एक शोध-संचालित शिक्षा मॉडल की ओर बढ़ रहा है।
- उच्च शिक्षा संस्थानों में अनुसंधान के लिये सरकार के प्रयासों को अटल इनोवेशन मिशन (AIM) जैसी पहलों और उच्च शिक्षा में अनुसंधान एवं नवाचार (RISE) कार्यक्रम के माध्यम से वित्त पोषण द्वारा समर्थित किया गया है।
- स्कूलों में 10,000 से अधिक अटल टिंकरिंग लैब स्थापित की गई हैं, जिनमें 1.1 करोड़ से अधिक छात्र व्यावहारिक शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं।
- इसके अलावा, ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स में भारत की रैंकिंग वर्ष 2014 के 76वें स्थान से बढ़कर 2024 में 39वें स्थान पर पहुँच गई है।
- अनुसंधान नेशनल रिसर्च फाउंडेशन (ANRF) की स्थापना अनुसंधान एवं विकास को प्रोत्साहित करते हुए अनुसंधान एवं नवाचार की संस्कृति को बढ़ावा देने के लिये की गई है।
- उच्च शिक्षा संस्थानों में अनुसंधान के लिये सरकार के प्रयासों को अटल इनोवेशन मिशन (AIM) जैसी पहलों और उच्च शिक्षा में अनुसंधान एवं नवाचार (RISE) कार्यक्रम के माध्यम से वित्त पोषण द्वारा समर्थित किया गया है।
- निजी निवेश और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) के लिये नीतिगत समर्थन: भारत सरकार ने शिक्षा में निजी निवेश को सक्रिय रूप से बढ़ावा दिया है, जिससे इस क्षेत्र के बुनियादी अवसंरचना और नवाचार में उल्लेखनीय सुधार हुआ है।
- शिक्षा में 100% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की अनुमति ने वैश्विक कंपनियों को आकर्षित किया है, जिससे एक अधिक प्रतिस्पर्धी वातावरण का सृजन हुआ है।
- भारत में शिक्षा बाज़ार के वित्त वर्ष 2025 तक 225 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है और अप्रैल 2000 से दिसंबर 2024 के बीच शिक्षा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) 9.90 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा।
- शिक्षा में 100% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की अनुमति ने वैश्विक कंपनियों को आकर्षित किया है, जिससे एक अधिक प्रतिस्पर्धी वातावरण का सृजन हुआ है।
- बहुभाषावाद और क्षेत्रीय भाषा में शिक्षा प्रदायगी: NEP 2020 में बहुभाषावाद और क्षेत्रीय भाषा शिक्षा पर ज़ोर देने से भारत की शिक्षा प्रणाली में एक परिवर्तनकारी बदलाव आया है।
- शिक्षा के माध्यम के रूप में क्षेत्रीय भाषाओं के उपयोग को बढ़ावा देकर, इस नीति का उद्देश्य क्षेत्रीय असमानताओं को पाटना और सांस्कृतिक पहचान को सुदृढ़ करना है।
- .AICTE का e-KUMBH (कई भारतीय भाषाओं में ज्ञान का प्रसार) भाषाई विभाजन को पाटने और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक समान पहुँच को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
- शिक्षा के माध्यम के रूप में क्षेत्रीय भाषाओं के उपयोग को बढ़ावा देकर, इस नीति का उद्देश्य क्षेत्रीय असमानताओं को पाटना और सांस्कृतिक पहचान को सुदृढ़ करना है।
- शिक्षक प्रशिक्षण और शैक्षणिक सुधारों में प्रगति: NEP 2020 और NISHTHA कार्यक्रमों में शिक्षक प्रशिक्षण पर ज़ोर एक महत्त्वपूर्ण प्रगति है। NEP 2020 के लिये 4 वर्षीय एकीकृत बैचलर ऑफ एजुकेशन (बी.एड.) डिग्री की आवश्यकता है, जिसमें विषय विशेषज्ञता को शैक्षणिक प्रशिक्षण के साथ मिश्रित किया गया हो।
- ये सुधार देश भर में शिक्षण गुणवत्ता को मानकीकृत और बेहतर बनाने के लिये डिज़ाइन किये गए हैं। आधुनिक शैक्षणिक विधियों को शामिल करके, प्रशिक्षण बेहतर परिणामों को बढ़ावा देता है, रटने की बजाय समालोचनात्मक चिंतन पर ध्यान केंद्रित करता है।
- निष्ठा ने 2024 तक 42 लाख से अधिक शिक्षकों को प्रशिक्षित किया है, जिससे छात्र-केंद्रित शिक्षण में उनके कौशल में वृद्धि हुई है।
- इसके अलावा, 36 राज्यों के 1.5 करोड़ शिक्षकों सहित 27.5 करोड़ के उपयोगकर्त्ता आधार के साथ, DIKSHA प्लेटफॉर्म ने 70% ग्रामीण पहुँच हासिल कर ली है (शिक्षा मंत्रालय, 2023)।
- उच्च शिक्षा प्रशासन और स्वायत्तता को नया रूप देना: भारतीय उच्च शिक्षा आयोग (HECI) की स्थापना के साथ उच्च शिक्षा प्रशासन का प्रस्तावित पुनर्गठन एक सकारात्मक सुधार है।
- कॉलेजों और विश्वविद्यालयों को अधिक स्वायत्तता प्रदान करके, यह पहल नवाचार और शैक्षणिक उत्कृष्टता को बढ़ावा देती है।
- इसका उद्देश्य केंद्रीकृत नियंत्रण को कम करना और संस्थानों को उनके संचालन और पाठ्यक्रम विकास में अधिक स्वतंत्रता प्रदान करना है।
- इसके अतिरिक्त, नए मान्यता सुधारों ने विश्वविद्यालयों की रैंकिंग में सुधार लाने में योगदान दिया है, जिसके तहत टाइम्स हायर एजुकेशन यूनिवर्सिटी रैंकिंग 2024 में विश्वविद्यालयों के मामले में भारत, चीन को पीछे छोड़कर चौथा सबसे बड़ा देश बन गया है।
- भारत अपना वैश्विक विस्तार भी कर रहा है, आईआईटी मद्रास ज़ांज़ीबार में परिसर खोल रहा है तथा आईआईटी दिल्ली अबू धाबी में एक परिसर स्थापित कर रहा है।
- कॉलेजों और विश्वविद्यालयों को अधिक स्वायत्तता प्रदान करके, यह पहल नवाचार और शैक्षणिक उत्कृष्टता को बढ़ावा देती है।
भारत की शिक्षा प्रणाली को प्रभावित करने वाले प्रमुख मुद्दे क्या हैं?
- माध्यमिक और उच्च शिक्षा में स्कूल छोड़ने की उच्च दर: यद्यपि प्राथमिक विद्यालयों में नामांकन लगभग सार्वभौमिक है, फिर भी माध्यमिक और उच्च शिक्षा में, विशेषरूप से लड़कियों एवं सामाजिक-आर्थिक रूप से वंचित समूहों में, स्कूल छोड़ने की दर में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
- इसके कारणों में वित्तीय चुनौतियाँ, अपर्याप्त बुनियादी अवसंरचना, कम उम्र में विवाह और सांस्कृतिक पूर्वाग्रह शामिल हैं।
- ASER 2024 के अनुसार, 15-16 वर्ष के बच्चों में स्कूल छोड़ने की दर 2024 में 7.9% थी, जबकि लड़कियों में यह दर 8.1% अधिक थी।
- इसके कारणों में वित्तीय चुनौतियाँ, अपर्याप्त बुनियादी अवसंरचना, कम उम्र में विवाह और सांस्कृतिक पूर्वाग्रह शामिल हैं।
- शिक्षा तक असमान पहुँच: देश की तीव्र आर्थिक वृद्धि और बढ़ती समृद्धि के बावजूद, अनेक ग्रामीण क्षेत्र, विशेषकर राजस्थान और बिहार जैसे राज्यों में, तथा वंचित समुदाय अब भी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुँच से दूर हैं।
- यह असमानता इन क्षेत्रों के छात्रों में कम साक्षरता दर और उच्च स्कूल छोड़ने की दर में स्पष्ट है।
- PLFS 2023-24 के अनुसार, शहरी भारत की साक्षरता दर 88.9% है, लेकिन ग्रामीण भारत 77.5% के साथ बहुत पीछे है।
- यह असमानता इन क्षेत्रों के छात्रों में कम साक्षरता दर और उच्च स्कूल छोड़ने की दर में स्पष्ट है।
- अपर्याप्त वित्त पोषण और संसाधन आवंटन: हालाँकि भारत के शिक्षा क्षेत्र ने बढ़ते निवेश को आकर्षित किया है, फिर भी NEP 2020 द्वारा परिकल्पित व्यापक सुधारों को लागू करने के लिये वित्त पोषण का स्तर अभी भी अपर्याप्त है।
- एनईपी 2020 ने शिक्षा पर सार्वजनिक व्यय को जीडीपी के 6% तक बढ़ाने के दीर्घकालिक लक्ष्य को दोहराया। हालाँकि, वास्तविक व्यय वर्षों से लगातार जीडीपी के 3-4% के आसपास ही रहा है।
- वित्त पोषण की यह कमी शिक्षा के विभिन्न पहलुओं को प्रभावित करती है, जिसमें शिक्षकों का वेतन, बुनियादी अवसंरचना विकास और डिजिटल शिक्षण उपकरणों का एकीकरण शामिल हैं।
- UDISE+ के अनुसार, भारत के 14.71 लाख से अधिक स्कूलों में से लगभग 1.52 लाख स्कूलों में निरंतर विद्युत् आपूर्ति नहीं है, और कई स्कूलों में पेयजल एवं शौचालय जैसी बुनियादी सुविधाओं की भी कमी है।
- रटने पर आधारित पद्धति और पाठ्यक्रम में धीमा बदलाव: भारत की शिक्षा प्रणाली रटकर याद करने पर अत्यधिक निर्भर है, जिससे समालोचनात्मक चिंतन और समस्या-समाधान कौशल का विकास बाधित होता है।
- NEP 2020 में योग्यता-आधारित शिक्षा पर ज़ोर दिये जाने के बावजूद, स्कूल और विश्वविद्यालय पारंपरिक परीक्षा पद्धतियों से दूर जाने में धीमे रहे हैं।
- ASER 2024 के अनुसार, कक्षा 3 के 76% विद्यार्थी और कक्षा 5 के 55.2% विद्यार्थी कक्षा 2 स्तर की पढ़ाई नहीं कर पा रहे हैं। साथ ही, कक्षा 3 और कक्षा 5 के 66% से अधिक विद्यार्थी बुनियादी गणितीय क्रियाओं में कठिनाई महसूस करते हैं।
- NEP 2020 में योग्यता-आधारित शिक्षा पर ज़ोर दिये जाने के बावजूद, स्कूल और विश्वविद्यालय पारंपरिक परीक्षा पद्धतियों से दूर जाने में धीमे रहे हैं।
- डिजिटल विभाजन और तकनीकी बाधाएँ: हालाँकि महामारी ने डिजिटल शिक्षा की ओर बदलाव को तेज़ कर दिया है, फिर भी एक बड़ा डिजिटल विभाजन प्रभावी शैक्षिक सुधार में बाधा बन रहा है।
- ग्रामीण क्षेत्रों में, विशेषरूप से, अस्थिर इंटरनेट कनेक्टिविटी का सामना करना पड़ता है, जिससे ऑनलाइन शिक्षा तक पहुँच मुश्किल हो जाती है।
- हालाँकि पीएम ई-विद्या और स्किल इंडिया डिजिटल प्लेटफॉर्म जैसी पहलों ने डिजिटल विभाजन को पाटने का लक्ष्य रखा है, फिर भी ग्रामीण क्षेत्रों में बड़ी संख्या में छात्रों के पास अभी भी हाई-स्पीड इंटरनेट तक पहुँच नहीं है।
- भारत के शिक्षा मंत्रालय ने 2024 में बताया कि केवल 18.47% ग्रामीण स्कूलों में इंटरनेट की सुविधा थी, जबकि शहरी क्षेत्रों में यह 47.29% थी।
- ग्रामीण क्षेत्रों में, विशेषरूप से, अस्थिर इंटरनेट कनेक्टिविटी का सामना करना पड़ता है, जिससे ऑनलाइन शिक्षा तक पहुँच मुश्किल हो जाती है।
- निजी बनाम सरकारी स्कूलों का विभाजन: भारत में निजी और सरकारी स्कूलों के बीच बढ़ता अंतर एक बड़ी चुनौती बना हुआ है।
- उच्च शिक्षा में, 1,385 विश्वविद्यालयों में से 67.51% और 60,127 कॉलेजों में से 37.81% निजी हैं, जिनकी फीस प्रायः बहुत ज़्यादा होती है।
- शिक्षा के निजीकरण ने एक ऐसा परिदृश्य उत्पन्न कर दिया है जहाँ गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुँच छात्र की सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि से प्रभावित होती जा रही है, जिससे शैक्षिक असमानताएँ और गहरी होती जा रही हैं।
- शिक्षकों की कमी और गुणवत्ता संबंधी समस्याएँ: भारत में वर्तमान वैश्विक मानको के अनुरूप योग्य शिक्षकों की कमी है और कई स्कूल अप्रशिक्षित या कम योग्यता वाले कर्मचारियों पर निर्भर हैं।
- इसके अतिरिक्त, शिक्षकों की अनुपस्थिति, पुरानी शिक्षण पद्धतियाँ और अत्यधिक गैर-शिक्षण ज़िम्मेदारियों (जैसे चुनाव और जनगणना संबंधी कार्य) का बोझ शिक्षा प्रणाली की प्रभावशीलता को और कमज़ोर कर देता है।
- UNESCO की रिपोर्ट (2021) के अनुसार, कार्यबल में 10 लाख से ज़्यादा शिक्षकों की कमी है।
- शिक्षा मंत्रालय के आँकड़ों के अनुसार, आरंभिक, प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च माध्यमिक स्तरों पर सरकारी स्कूलों में लगभग 10 लाख शिक्षण पद रिक्त हैं।
- इसके अतिरिक्त, शिक्षकों की अनुपस्थिति, पुरानी शिक्षण पद्धतियाँ और अत्यधिक गैर-शिक्षण ज़िम्मेदारियों (जैसे चुनाव और जनगणना संबंधी कार्य) का बोझ शिक्षा प्रणाली की प्रभावशीलता को और कमज़ोर कर देता है।
- शिक्षा और रोज़गार हेतु आवश्यक योग्यता के मध्य कौशल अंतराल: उच्च शिक्षा में नामांकन में वृद्धि के बावजूद, कई स्नातक व्यावहारिक कौशल की कमी के कारण रोज़गार योग्यता के साथ संघर्ष करते हैं।
- पाठ्यक्रम प्रायः उद्योग की आवश्यकताओं के अनुरूप नहीं हो पाता, जिससे कार्यबल की उत्पादकता कम होती है।
- अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) (2024) के अनुसार, भारत के युवा बेरोज़गार कार्यबल का लगभग 83% हिस्सा हैं और कुल बेरोज़गारों में माध्यमिक या उच्च शिक्षा प्राप्त युवाओं की हिस्सेदारी 2000 में 35.2% से लगभग दोगुनी होकर 2022 में 65.7% हो गई है।
- दिव्यांगों के लिये गुणवत्तापूर्ण शिक्षा में बाधाएँ: संवैधानिक गारंटियों और सर्व शिक्षा अभियान एवं समग्र शिक्षा जैसी योजनाओं के बावजूद, दिव्यांग बच्चों (दिव्यांगों) को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त करने में महत्त्वपूर्ण बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है।
- इन चुनौतियों में सुलभ बुनियादी अवसंरचना की कमी, शिक्षकों के लिये अपर्याप्त प्रशिक्षण और विशेष शिक्षकों की सीमित उपलब्धता शामिल है।
- 76वें राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण (NSS) के अनुसार, 7 वर्ष और उससे अधिक आयु के दिव्यांगजनों में साक्षरता दर केवल 52.2% है।
- समावेशिता को बढ़ावा देने के प्रयासों के बावजूद, कई स्कूलों में अभी भी आवश्यक सुविधाओं का अभाव है और दिव्यांग छात्रों की विशिष्ट आवश्यकताओं के बारे में जागरूकता और समझ अभी भी अपर्याप्त है।
- इन चुनौतियों में सुलभ बुनियादी अवसंरचना की कमी, शिक्षकों के लिये अपर्याप्त प्रशिक्षण और विशेष शिक्षकों की सीमित उपलब्धता शामिल है।
- शिक्षा के क्षेत्र में भ्रष्टाचार संबंधी बाधाएँ: भारत की शिक्षा प्रणाली में भ्रष्टाचार और अक्षमताएँ गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के मार्ग में महत्त्वपूर्ण बाधाएँ हैं।
- केवल कागज़ों पर मौजूद फर्जी स्कूल और विश्वविद्यालय और विशेष रूप से उच्च शिक्षा में फर्जी डिग्रियों का प्रचलन, इस प्रणाली की विश्वसनीयता को कमज़ोर करते हैं।
- विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) ने वर्ष 2023 में देश भर में संचालित 20 से अधिक फर्जी विश्वविद्यालयों की पहचान की, जिससे उच्च शिक्षा में धोखाधड़ी की व्यापकता उजागर हुई।
- इन समस्याओं के परिणामस्वरूप सार्वजनिक संसाधनों की बर्बादी होती है, शैक्षिक परिणामों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और प्रणाली में विश्वास की कमी होती है, जिसका प्रभाव छात्रों एवं शिक्षकों दोनों पर पड़ता है।
- केवल कागज़ों पर मौजूद फर्जी स्कूल और विश्वविद्यालय और विशेष रूप से उच्च शिक्षा में फर्जी डिग्रियों का प्रचलन, इस प्रणाली की विश्वसनीयता को कमज़ोर करते हैं।
भारत की शिक्षा प्रणाली में बदलाव और सुधार के लिये क्या उपाय किये जा सकते हैं?
- ग्रामीण और दूरस्थ क्षेत्रों में बुनियादी अवसंरचना का विकास: शैक्षिक परिदृश्य को बदलने में एक महत्त्वपूर्ण कदम ग्रामीण और अविकसित क्षेत्रों में बुनियादी अवसंरचना के उन्नयन में महत्त्वपूर्ण निवेश है।
- इसमें स्कूलों में स्वच्छ पानी, बिजली, शौचालय और डिजिटल शिक्षण संसाधनों जैसी आवश्यक सुविधाओं तक पहुँच सुनिश्चित करना शामिल है।
- इसके अलावा, सुरक्षित खेल के मैदान और सुसज्जित कक्षाओं जैसे छात्र-अनुकूल वातावरण बनाने से सीखने का अनुभव बेहतर होगा और स्कूल छोड़ने की दर कम करने में सहायता मिलेगी।
- ये सुधार अधिगम हेतु अनुकूल माहौल को बढ़ावा देंगे और बेहतर शैक्षिक परिणामों में योगदान देंगे।
- शिक्षा में प्रौद्योगिकी तक पहुँच बढ़ाना: भारत को ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी में सुधार और छात्रों एवं शिक्षकों के लिये डिजिटल उपकरणों और संसाधनों तक वहनीय पहुँच सुनिश्चित करने में निवेश करना चाहिये।
- सार्वजनिक-निजी भागीदारी कम लागत वाले उपकरणों और ई-लर्निंग प्लेटफॉर्म जैसे प्रौद्योगिकी-सक्षम शिक्षा समाधान प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
- इसके अतिरिक्त, प्रारंभिक अवस्था से ही डिजिटल शिक्षा को मुख्यधारा के पाठ्यक्रम में शामिल करने से असमानताओं को कम करने और सभी के लिये गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक समान पहुँच सुनिश्चित करने में सहायता मिलेगी।
- ग्रामीण स्कूलों में हाई-स्पीड इंटरनेट उपलब्ध कराने के लिये BharatNet और पीएम ई-विद्या पहलों का विस्तार डिजिटल खाई को पाटने में सहायक हो सकता है।
- सार्वजनिक-निजी भागीदारी कम लागत वाले उपकरणों और ई-लर्निंग प्लेटफॉर्म जैसे प्रौद्योगिकी-सक्षम शिक्षा समाधान प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
- व्यावसायिक और कौशल-आधारित शिक्षा का विस्तार: भारत को छात्रों को उद्योग की माँगों के अनुरूप व्यावहारिक कौशल से लैस करने के लिये व्यावसायिक और कौशल-आधारित शिक्षा के विस्तार को प्राथमिकता देनी चाहिये।
- स्कूल स्तर से ही व्यावसायिक प्रशिक्षण को मुख्यधारा की शिक्षा में शामिल करके, देश एक अधिक विविध और रोज़गारपरक कार्यबल तैयार कर सकता है।
- इसके अतिरिक्त, यह सुनिश्चित करने के लिये कि पाठ्यक्रम वर्तमान रोज़गार बाज़ार की आवश्यकताओं के अनुरूप हों, शैक्षणिक संस्थानों, उद्योग हितधारकों और सरकारी एजेंसियों के बीच सहयोग अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
- बुनियादी अवसंरचना, प्रशिक्षण कार्यक्रमों और प्रमाणन प्रणालियों में निवेश में वृद्धि, विशेष रूप से ग्रामीण और वंचित क्षेत्रों में, व्यावसायिक शिक्षा की पहुँच और प्रभाव को और बढ़ा सकती है।
- शिक्षक प्रशिक्षण और व्यावसायिक विकास को बढ़ावा देना: शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रमों में योग्यता-आधारित शिक्षा सहित आधुनिक शिक्षण पद्धतियों को एकीकृत किया जाना चाहिये।
- यह सुनिश्चित करने के लिये कि शिक्षक विकसित होते शैक्षिक मानकों के अनुकूल होने के लिये आवश्यक कौशल से लैस हों, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, निरंतर व्यावसायिक विकास के अवसर प्रदान किये जाने चाहिये।
- शैक्षणिक संस्थानों, सरकार और निजी संगठनों के बीच सहयोग उच्च-गुणवत्तापूर्ण प्रशिक्षण और संसाधन प्रदान करने में सहायक हो सकता है।
- इसके अलावा, शिक्षण प्रभावशीलता और छात्रों की प्रतिक्रिया के नियमित मूल्यांकन के लिये एक स्पष्ट ढाँचा प्रस्तुत करने से शिक्षण की गुणवत्ता में और सुधार हो सकता है।
- DIKSHA प्लेटफॉर्म का विस्तार AI-संचालित व्यक्तिगत प्रशिक्षण मॉड्यूल के साथ किया जाना चाहिये।
- योग्यता-आधारित शिक्षा की ओर झुकाव: शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिये, भारत को रटंत विद्या पर निर्भरता कम करने और योग्यता-आधारित शिक्षा की ओर रुख करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये, जिसमें PARAKH जैसी पद्धतियों को शामिल किया जाना चाहिये।
- यह पाठ्यक्रम में संशोधन करके, समालोचनात्मक चिंतन, समस्या-समाधान और ज्ञान के व्यावहारिक अनुप्रयोग पर ज़ोर देकर प्राप्त किया जा सकता है।
- स्कूलों और विश्वविद्यालयों को मूल्यांकन में परियोजना-आधारित शिक्षण, सहकर्मी मूल्यांकन और वैश्विक रूप से प्रचलित अनुप्रयोगों को एकीकृत करना चाहिये।
- राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा (NCF) 2023 को प्रभावी ढंग से लागू किया जाना चाहिये, जिसमें अनुभवात्मक शिक्षण और बहु-विषयक अध्ययन पर ज़ोर दिया जाना चाहिये।
- महिला शिक्षा को मज़बूत करना और लैंगिक समानता को बढ़ावा देना: भारत को सभी स्तरों पर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक समान पहुँच सुनिश्चित करके महिला शिक्षा को मज़बूत करने को प्राथमिकता देनी चाहिये।
- यह विशेष रूप से ग्रामीण और हाशिये के समुदायों में, महिलाओं के नामांकन को प्रोत्साहित करने के लिये छात्रवृत्ति, वित्तीय सहायता और सुरक्षा उपाय प्रदान करके प्राप्त किया जा सकता है।
- इसके अतिरिक्त, लिंग-संवेदनशील पाठ्यक्रम और शिक्षण विधियों को बढ़ावा देने से रूढ़िवादिता को चुनौती देने और एक समावेशी वातावरण को बढ़ावा देने में सहायता मिल सकती है।
- विशेष रूप से STEM क्षेत्रों में छात्राओं के लिये छात्रवृत्ति और वित्तीय प्रोत्साहन का विस्तार किया जाना चाहिये।
- शिक्षा में लैंगिक असमानताओं को कम करने के लिये कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालयों और बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ जैसी सरकारी पहलों का और विस्तार किया जाना चाहिये।
- महिला शिक्षा को मज़बूत करने से न केवल महिलाएँ सशक्त होंगी, बल्कि लैंगिक समानता की दिशा में व्यापक सामाजिक परिवर्तन भी आएगा।
- सार्वजनिक-निजी भागीदारी को मज़बूत करना: मज़बूत सार्वजनिक-निजी भागीदारी का निर्माण शिक्षा प्रणाली के भीतर संसाधनों और बुनियादी अवसंरचना की कमी को पाटने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
- प्रौद्योगिकी, पाठ्यक्रम निर्माण और शिक्षक प्रशिक्षण जैसे क्षेत्रों में निजी संगठनों की विशेषज्ञता का लाभ उठाकर, सरकारी स्कूल आवश्यक संसाधनों तक पहुँच प्राप्त कर सकते हैं।
- ये सहयोग उन्नत उपकरणों और नवीन शिक्षण विधियों की शुरूआत में भी सहायक हो सकते हैं, जिससे यह सुनिश्चित होगा कि शिक्षा प्रासंगिक बनी रहे और तेज़ी से विकसित हो रहे वैश्विक परिदृश्य के अनुकूल हो।
- शिक्षा में सार्वजनिक निवेश बढ़ाना: गुणवत्ता में उल्लेखनीय सुधार लाने के लिये, सरकार को शिक्षा पर खर्च को सकल घरेलू उत्पाद के कम से कम 6% तक बढ़ाना चाहिये, जैसा कि NEP 2020 में उल्लिखित है।
- वित्त पोषण, प्रदर्शन-आधारित होना चाहिये और बेहतर शिक्षण परिणाम प्रदर्शित करने वाले राज्यों को अतिरिक्त संसाधनों के साथ पुरस्कृत किया जाना चाहिये।
- इसके अतिरिक्त, कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) निधियों को शिक्षा, विशेष रूप से वंचित छात्रों के लिये, पर अधिक केंद्रित किया जाना चाहिये।
- कुशल और प्रभावी व्यय सुनिश्चित करने के लिये निधि के उपयोग पर नज़र रखने हेतु एक पारदर्शी प्रणाली भी स्थापित की जानी चाहिये।
- दिव्यांग बच्चों के लिये समावेशी शिक्षा: भारत को मुख्यधारा के स्कूलों में पहुँच और सहायता में सुधार पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
- इसमें दिव्यांगजनों के लिये बुनियादी अवसंरचना को निर्मित करना शामिल है, जैसे कि रैंप, सुलभ शौचालय और वैकल्पिक स्वरूपों में शिक्षण सामग्री आदि। समावेशी शिक्षण पद्धतियों में विशेष प्रशिक्षण को शामिल करने के लिये शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रमों का विस्तार किया जाना चाहिये।
- इसके अतिरिक्त, दिव्यांग बच्चों के अधिकारों और आवश्यकताओं के बारे में माता-पिता, शिक्षकों और समुदाय के बीच जागरूकता बढ़ाने से एक अधिक सहायक वातावरण का निर्माण हो सकता है।
- सरकार को नीतियों का बेहतर कार्यान्वयन सुनिश्चित करना चाहिये और आवश्यक संसाधन एवं सहायता प्रदान करने के लिये गैर-सरकारी संगठनों के साथ सहयोग को प्रोत्साहित करना चाहिये।
- इसमें दिव्यांगजनों के लिये बुनियादी अवसंरचना को निर्मित करना शामिल है, जैसे कि रैंप, सुलभ शौचालय और वैकल्पिक स्वरूपों में शिक्षण सामग्री आदि। समावेशी शिक्षण पद्धतियों में विशेष प्रशिक्षण को शामिल करने के लिये शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रमों का विस्तार किया जाना चाहिये।
निष्कर्ष
शिक्षा प्रणाली में दीर्घकालिक सफलता प्राप्त करने के लिये, नवाचार को बढ़ावा देने और शैक्षिक परिणामों को बाज़ार की ज़रूरतों के अनुरूप बनाने पर ध्यान केंद्रित करना होगा। ये प्रयास सतत् विकास लक्ष्य 4 को प्राप्त करने में प्रत्यक्ष योगदान देते हैं - समावेशी और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करना और सभी के लिये अधिगम के अवसरों को बढ़ावा देना। जैसे-जैसे भारत शिक्षा के क्षेत्र में वैश्विक अग्रणी बनने की दिशा में आगे बढ़ रहा है, उसे यह सुनिश्चित करना होगा कि हर बच्चे को, चाहे उसकी पृष्ठभूमि कुछ भी हो, इस निरंतर बदलते विश्व में फलने-फूलने के लिये आवश्यक संसाधनों और अवसरों तक पहुँच प्राप्त हो।
दृष्टि मेन्स प्रश्न प्रश्न. भारत के शिक्षा सुधारों में प्रमुख विकासों पर चर्चा कीजिये तथा सतत् विकास लक्ष्य (SDG4) के अनुरूप सभी के लिये समावेशी और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करने हेतु इन चुनौतियों का समाधान करने के उपाय प्रस्तावित कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)
प्रिलिम्स
प्रश्न 1. भारतीय संविधान के निम्नलिखित में से कौन-से प्रावधान शिक्षा पर प्रभाव डालते हैं? (2012)
- राज्य की नीति के निदेशक तत्त्व
- ग्रामीण और शहरी स्थानीय निकाय
- पंचम अनुसूची
- षष्ठ अनुसूची
- सप्तम अनुसूची
निम्नलिखित कूटों के आधार पर सही उत्तर चुनिये:
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3, 4 और 5
(c) केवल 1, 2 और 5
(d) 1, 2, 3, 4 और 5
उत्तर: (d)
मेन्स
प्रश्न 1. भारत में डिजिटल पहल ने किस प्रकार से देश की शिक्षा व्यवस्था के संचालन में योगदान किया है? विस्तृत उत्तर दीजिये। (2020)
प्रश्न 2. जनसंख्या शिक्षा के प्रमुख उद्देश्यों की विवेचना करते हुए भारत में इन्हें प्राप्त करने के उपायों पर विस्तृत प्रकाश डालिये। (2021)