एडिटोरियल (09 May, 2025)



भारत की वैश्विक उपस्थिति को आकार देते मुक्त व्यापार समझौते (FTAs)

यह एडिटोरियल 09/05/2025 को हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित लेख India-UK FTA could be a template for other deals पर आधारित है। यह लेख भारत-यूके मुक्त व्यापार समझौते को द्विपक्षीय संबंधों में एक मील के पत्थर के रूप में प्रस्तुत करता है, जो वैश्विक व्यापार चुनौतियों के बीच प्रमुख बाज़ार पहुँच प्रदान करता है। यह श्रम अधिकारों जैसे गैर-व्यापार मुद्दों को समायोजित करके भारत की नीति में बदलाव को उजागर करता है।

प्रिलिम्स के लिये:

भारत-यूके मुक्त व्यापार समझौता, यूरोपीय संघ, व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता, यूरोपीय मुक्त व्यापार संघ, ऑस्ट्रेलिया-भारत आर्थिक सहयोग और व्यापार समझौता, SPS (सैनिटरी एंड फाइटोसैनिटरी), दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार समझौता, यूरोपीय संघ का कार्बन सीमा समायोजन तंत्र, क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी

मुख्य परीक्षा के लिये:

भारत के लिये FTA के आर्थिक और सामरिक लाभ, भारत के मुक्त व्यापार समझौतों से जुड़ी प्रमुख चिंताएँ।

हाल ही में संपन्न हुआ  भारत-यूके मुक्त व्यापार समझौता द्विपक्षीय संबंधों में एक ऐतिहासिक कदम का प्रतिनिधित्व करता है, जो वैश्विक व्यापार अनिश्चितताओं के बीच महत्त्वपूर्ण बाज़ार पहुँच प्रदान करता है। विशेष रूप से, भारत ने श्रम अधिकारों जैसे गैर-व्यापारिक तत्त्वों को शामिल करके अभूतपूर्व लचीलापन दिखाया है, जो नीतिगत विकास की एक महत्त्वपूर्ण दिशा को दर्शाता है। हाल के वर्षों में FTA पर भारत के समग्र रुख में उल्लेखनीय परिवर्तन आया है। कभी व्यापार उदारीकरण को लेकर संशय रखने वाला भारत अब सक्रिय रूप से रणनीतिक व्यापार साझेदारी को आगे बढ़ा रहा है जैसा कि FTA, यूएई और ऑस्ट्रेलिया  के साथ समझौतों से स्पष्ट है।

मुक्त व्यापार समझौते भारत के सामरिक और आर्थिक हितों को कैसे बढ़ाते हैं?

  • भारतीय वस्तुओं के लिये बाज़ार पहुँच में वृद्धि: FTA टैरिफ और गैर-टैरिफ बाधाओं को कम करके विदेशी बाज़ारों तक पहुँच को महत्त्वपूर्ण रूप से बढ़ाते हैं।
    • उदाहरण के लिये, भारत-यूएई CEPA भारत के 90% से अधिक निर्यातों तक शुल्क मुक्त पहुँच सुनिश्चित करता है, जिसमें वस्त्र, रत्न और फार्मास्यूटिकल्स शामिल हैं। 
    • यह महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इससे भारतीय उद्योगों को प्रतिस्पर्द्धात्मकता (विशेष रूप से श्रम-प्रधान क्षेत्रों में) हासिल करने में मदद मिलेगी। 
      • CEPA को अपनाने के बाद पहले वर्ष में, संयुक्त अरब अमीरात को भारत के निर्यात में 12% की वृद्धि हुई।
  • निवेश के बेहतर अवसर: FTA निवेशकों के लिये स्थिर और पूर्वानुमानित वातावरण प्रदान करके प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) को प्रोत्साहित करते हैं।
    • भारत -ऑस्ट्रेलिया आर्थिक सहयोग और व्यापार समझौता (ECTA) प्रमुख क्षेत्रों पर टैरिफ में पर्याप्त छूट प्रदान करता है, जिससे निवेशकों का विश्वास बढ़ता है। 
    • व्यापार बाधाओं को कम करके, भारत अधिक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) आकर्षित कर रहा है, जो प्रौद्योगिकी, विनिर्माण और बुनियादी ढाँचे जैसे क्षेत्रों के लिये महत्त्वपूर्ण है। 
    • वर्ष 2024 तक, ऑस्ट्रेलिया से FDI प्रवाह में 25% की वृद्धि हुई है, जो निवेशकों के विश्वास को बढ़ाने में ECTA के सकारात्मक प्रभाव को दर्शाता है।
  • भारतीय व्यवसायों की बेहतर प्रतिस्पर्द्धात्मकता: FTA के तहत व्यापार उदारीकरण प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देता है, जिससे भारतीय कंपनियों को नवाचार करने और दक्षता में सुधार हेतु मजबूर होना पड़ता है। 
    • वस्त्र जैसे क्षेत्रों में, भारत-आसियान FTA ने परिधान जैसे प्रमुख उत्पादों पर टैरिफ कम करके भारतीय निर्यात को बढ़ावा दिया है। 
    • उदाहरण के लिये, FTA के बाद आसियान देशों को भारत के कपड़ा निर्यात में 15% की वृद्धि हुई, जिससे इस क्षेत्र में भारत की प्रतिस्पर्द्धात्मकता में सुधार हुआ। इससे भारतीय उद्योगों के लिये दीर्घकालिक विकास सुनिश्चित होता है।
  • सेवा क्षेत्र को मज़बूती: FTA, विशेष रूप से विकसित देशों के साथ, सूचना प्रौद्योगिकी और स्वास्थ्य सेवा सहित भारतीय सेवाओं के लिये बेहतर पहुँच प्रदान करते हैं। 
    • उदाहरण के लिये भारत-यूके FTA भारतीय पेशेवरों के लिये विशेष रूप से सूचना प्रौद्योगिकी और स्वास्थ्य सेवा क्षेत्रों में, यूके के श्रम बाज़ार तक आसान पहुँच सुनिश्चित करता है। 
    • ऐसे प्रावधानों से न केवल विदेशों में भारतीय पेशेवरों के लिये रोज़गार उत्पन्न होगा, बल्कि धन प्रेषण में भी वृद्धि होगी।
      • भारत के आईटी निर्यात, जो कुल सेवा निर्यात का लगभग 25% है, में वृद्धि होने की उम्मीद है, जिसमें FTA के बाद ब्रिटेन का हिस्सा 17% होगा।
  • कृषि और ग्रामीण क्षेत्र के लाभ: साझेदार देशों के साथ FTA से भारतीय कृषि निर्यात के लिये नए बाज़ार खुलते हैं, जिससे ग्रामीण आय के स्तर में सुधार होता है। 
    • भारत-मॉरीशस CECPA ने चीनी और चाय जैसे उत्पादों पर शुल्क में कटौती करके भारत के कृषि निर्यात को बढ़ाया है।
    • कृषि-केंद्रित व्यापार को बढ़ावा देकर, FTA किसानों को निर्यात के नए अवसर प्रदान करते हैं। 
  • प्रौद्योगिकी और ज्ञान हस्तांतरण: एफटीए विशेष रूप से विनिर्माण, हरित ऊर्जा और डिजिटल बुनियादी ढांचे जैसे क्षेत्रों में प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की सुविधा प्रदान करते हैं। 
    • भारत-ऑस्ट्रेलिया ECTA भारत को नवीकरणीय ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में उन्नत ऑस्ट्रेलियाई प्रौद्योगिकी तक पहुँच प्रदान करता है, जो भारत के ऊर्जा परिवर्तन के लिये महत्त्वपूर्ण है। 
      • ECTA से भारत में कार्बन उत्सर्जन में कमी आने की भी उम्मीद है, जिससे पर्यावरणीय और आर्थिक स्थिरता को बढ़ावा मिलेगा।
  • लघु एवं मध्यम उद्यमों (SME) के लिये समर्थन: FTA SME के लिये वैश्विक बाज़ार हैं, जिससे उन्हें अपने परिचालन को बढ़ाने का अवसर प्राप्त होता है। 
    • भारत-सिंगापुर CECA ने विशेष रूप से इंजीनियरिंग और सूचना प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में भारतीय SME को सिंगापुर के बाज़ार तक पहुँच प्राप्त करने में मदद की है, जो आसियान के प्रवेश द्वार के रूप में कार्य करता है। 
    • यह पहुँच भारतीय SME को वैश्विक मूल्य शृंखलाओं (GVC) में शामिल होकर आगे बढ़ने में मदद करती है, जो उनके उत्पादों के लिये व्यापक बाज़ार उपलब्ध कराती है।
  • विनियामक सामंजस्य और व्यापार बाधाएँ: FTA विभिन्न देशों के बीच विनियमों को सुसंगत बनाने में मदद करते हैं, जिससे साझेदार बाज़ारों में व्यवसायों के लिये परिचालन आसान हो जाता है। .
    • उदाहरण के लिये वर्ष 2024 में हस्ताक्षरित भारत-EFTA TEPA, भारत और यूरोपीय देशों में उत्पाद मानकों और प्रमाणपत्रों को संरेखित करके वस्तुओं और सेवाओं की आसान आवाजाही की सुविधा प्रदान करता है। 
    • यह नियामक संरेखण अनुपालन और व्यापार व्यवधान की लागत को कम करता है। 

    भारत के मुक्त व्यापार समझौतों से जुड़ी प्रमुख चिंताएँ क्या हैं? 

    • व्यापार घाटा और असंतुलित लाभ: भारत के FTA से संबंधित प्रमुख चिंताओं में से एक है कई साझेदार देशों, विशेष रूप से आसियान और संयुक्त अरब अमीरात के साथ बढ़ता व्यापार घाटा।
      • जबकि भारत को संयुक्त अरब अमीरात जैसे बाजारों तक पहुँच प्राप्त है, वहीं उसे विशेष रूप से आसियान से आयात की बढ़ती तीव्रता का सामना करना पड़ रहा है। 
      • भारत-आसियान FTA के कारण आयात में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जो वित्त वर्ष 2013 के 8 बिलियन डॉलर की तुलना में वित्त वर्ष 2023 में 44 बिलियन डॉलर हो गया है। 
      • जबकि आसियान के निर्यात में भारत की हिस्सेदारी स्थिर बनी रही, जिससे ऐसे समझौतों के असंतुलित लाभ सामने आए।
    • विकसित अर्थव्यवस्थाओं में सीमित बाज़ार पहुँच: टैरिफ में कटौती के बावजूद, भारत को कड़े नियामक मानकों जैसे गैर-टैरिफ बाधाओं के कारण विकसित अर्थव्यवस्थाओं के बाज़ारों तक पहुँचने में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। 
      • उदाहरण के लिये भारत-यूरोपीय संघ FTA को बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) और डेटा स्थानीयकरण जैसे मुद्दों पर देरी का सामना करना पड़ा है, जिससे यूरोपीय बाज़ार तक पूर्ण पहुँच प्रतिबंधित हो गई है। 
      • भारत के समग्र वस्तु निर्यात में यूरोपीय संघ की हिस्सेदारी वर्ष 2001 में 18% से घटकर वर्ष 2020 में 14% हो गई, जो सिर्फ टैरिफ कटौती से परे बाधाओं का संकेत प्रदान करती है।
      • ये गैर-टैरिफ बाधाएँ अक्सर कम टैरिफ के लाभों को नकार देती हैं।
    • छोटे किसानों और असंगठित क्षेत्रों की भेद्यता: FTA भारतीय किसानों और लघु उद्योगों को तीव्र वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा का सामना करने के लिये मज़बूर करते हैं, विशेष रूप से कृषि और श्रम-प्रधान क्षेत्रों में। 
      • उदाहरण के लिये भारत-आसियान FTA ने भारत के घरेलू कृषि क्षेत्र को प्रभावित किया है, विशेष रूप से दक्षिण भारत के रबर किसानों को, जिन्हें आसियान देशों से सस्ते आयात के कारण मूल्य दबाव का सामना करना पड़ता है। 
        • जैसे-जैसे बाज़ार आयात से भरता जा रहा है, असुरक्षित क्षेत्रों में छोटे उत्पादकों की आजीविका खतरे में पड़ती जा रही है।
    • कुछ क्षेत्रों में नौकरियों का नुकसान: हालाँकि FTA कई क्षेत्रों में विकास को बढ़ावा देते हैं, लेकिन इनके परिणामस्वरूप उन उद्योगों में नौकरियों का नुकसान भी होता है जो सस्ते आयातों के साथ पर्तिस्पर्द्धा नहीं कर सकते। 
      • उदाहरण के लिये, भारत-यूएई CEPA, वस्त्र निर्यात के लिये लाभकारी तो है, लेकिन इससे कुछ विनिर्माण क्षेत्रों में रोज़गार भी प्रभावित हुए हैं, जो यूएई और अन्य देशों से सस्ते आयात के साथ प्रतिस्पर्द्धा करने में संघर्ष कर रहे हैं।
      • कपड़ा उद्योग में बढ़ती प्रतिस्पर्द्धा के कारण घरेलू उत्पादन क्षमता में गिरावट देखी गई है (हालाँकि हाल ही में इसमें सुधार हुआ है)। यह विशिष्ट क्षेत्रों में घरेलू रोज़गार खोने के जोखिम को उजागर करता है।
    • पर्यावरण और श्रम मानकों से संबंधित चिंताएँ: भारत के कई मुक्त व्यापार समझौतों (FTA) में, जैसे कि यूरोपीय संघ और ब्रिटेन के साथ, श्रम अधिकारों और पर्यावरण मानकों से संबंधित प्रावधान शामिल किये गए हैं। 
      • हालाँकि, इन मानकों को पूरी तरह अपनाने में भारत की अनिच्छा अक्सर सतत् व्यापार को बढ़ावा देने में ऐसे समझौतों की प्रभावशीलता को सीमित कर देती है। 
      • भारत-ब्रिटेन FTA में श्रम अधिकारों के प्रावधान शामिल हैं, फिर भी भारत ने घरेलू नीति स्वायत्तता पर नकारात्मक प्रभाव के डर से पूरी तरह बाध्यकारी श्रम प्रावधानों का विरोध किया है। 
      • इसके अलावा, कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (CBAM) जैसे पर्यावरणीय प्रावधानों के कारण स्टील और सीमेंट जैसे कार्बन-गहन उत्पादों पर कर लगाने की धमकी दी गई है, जिससे प्रतिस्पर्द्धात्मक नुकसान की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
    • एकाधिकार और बाज़ार शक्ति संबंधी चिंताएँ: भारत के FTA अक्सर एकाधिकार और प्रतिबंधात्मक व्यापार प्रथाओं के मुद्दों को हल करने में विफल रहते हैं, जिससे छोटे व्यवसायों की तुलना में बड़ी कंपनियों को अनुपातहीन रूप से लाभ प्राप्त होता है। 
      • उदाहरण के लिये भारत-यूएई सीईपीए में बड़ी कंपनियों के बाज़ार प्रभुत्व को रोकने के लिये प्रावधानों (विशेष रूप से कपड़ा और फार्मास्यूटिकल्स जैसे क्षेत्रों में) का अभाव है। 
      • भारत के फार्मास्यूटिकल निर्यात में वृद्धि देखी गई है, लेकिन वर्ष 2018 की CCI जाँच में पाया गया कि भारतीय फार्मा कंपनियों को प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी प्रथाओं का सामना करना पड़ रहा है, जो कि उचित रूप से विनियमित नहीं होने पर FTA के तहत और भी बदतर हो सकती हैं। 
      • ये अनियमित प्रथाएँ भारतीय व्यवसायों के लिये प्रतिस्पर्द्धात्मक माहौल को कमज़ोर कर सकती हैं।
    • प्रभावी विवाद समाधान तंत्र का अभाव: FTA में अक्सर विवादों को सुलझाने के लिये मज़बूत तंत्र का अभाव होता है, विशेष रूप से व्यापार बाधाओं के मामले में जो एक पक्ष पर अनुचित प्रभाव डालते हैं। 
      • आसियान मुक्त व्यापार समझौते (FTA) के साथ भारत के अनुभव से यह स्पष्ट हुआ है कि जब व्यापारिक बाधाएँ सामने आती हैं — जैसे कृषि निर्यात पर प्रतिबंध या मशीनरी पर अत्यधिक शुल्क, तो मौजूदा विवाद निवारण तंत्र अक्सर समय पर समाधान देने में असमर्थ रहते हैं।
      • उदाहरण के लिये, पाम ऑयल निर्यात पर भारत-आसियान विवाद। भारत का तर्क है कि FTA रियायतों, गैर-टैरिफ बाधाओं, आयात विनियमों और कोटा में गैर-पारस्परिकता ने आसियान को उसके निर्यात में बाधा उत्पन्न की है।
    • वैश्विक व्यापार एकीकरण के लिये FTA पर रणनीतिक निर्भरता: आलोचकों का तर्क है कि FTA पर हस्ताक्षर करने की भारत की जल्दबाजी वैश्विक बाज़ारों तक पहुँच के लिये इन समझौतों पर रणनीतिक निर्भरता को जन्म दे सकती है, जो WTO जैसे बहुपक्षीय प्रयासों को कमज़ोर कर सकती है। 
      • भारत एक साथ एक दर्जन से अधिक मुक्त व्यापार समझौतों (FTAs) पर बातचीत कर रहा है, जिससे बहुपक्षीय व्यापार वार्ताओं में उसकी सौदेबाजी की क्षमता कमज़ोर होने का जोखिम बढ़ जाता है।

    भारत अपने FTA को और मज़बूत करने के लिये क्या उपाय अपना सकता है? 

    • क्षमता निर्माण के माध्यम से घरेलू प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ाना: भारत को अपने घरेलू उद्योगों की प्रतिस्पर्द्धात्मकता को मज़बूत करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जो FTA के तहत वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा के संपर्क में हैं। 
      • इसे प्रौद्योगिकी, अनुसंधान एवं विकास तथा कौशल विकास कार्यक्रमों में लक्षित निवेश के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है।
      • घरेलू आपूर्ति शृंखला को मज़बूत करना, विशेष रूप से इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मास्यूटिकल्स और वस्त्र जैसे उच्च विकास वाले क्षेत्रों में, यह सुनिश्चित करेगा कि भारतीय व्यवसाय वैश्विक बाज़ारों में प्रभावी रूप से प्रतिस्पर्द्धा कर सकें।
    • विवाद समाधान तंत्र को मज़बूत बनाना: भारत को व्यापार मुद्दों का निष्पक्ष व्यवहार और समय पर समाधान सुनिश्चित करने के लिये अपने FTA के भीतर अधिक मज़बूत, अधिक कुशल विवाद समाधान तंत्र का समर्थन करना चाहिये।
      • व्यापार विवादों को सुलझाने के लिये एक मज़बूत और पारदर्शी ढाँचा स्थापित करने से अनावश्यक देरी को रोकने और व्यापार संबंधों में भारत के हितों की रक्षा करने में मदद मिल सकती है।
      • इसमें स्पष्ट समयसीमा, गैर-अनुपालन के लिये दंड और भारतीय निर्यातकों एवं व्यवसायों के लिये अधिक सुलभ कानूनी उपाय शामिल होंगे।
    • सतत् व्यापार प्रावधानों को शामिल करना: वैश्विक व्यापार स्थिरता की ओर बढ़ रहा है, इसलिये भारत को ऐसे FTA पर ज़ोर देना चाहिये जिसमें पर्यावरण संरक्षण, जलवायु परिवर्तन और सतत् प्रथाओं पर स्पष्ट और बाध्यकारी प्रावधान शामिल हों।
      • व्यापार समझौतों में इन पहलुओं को शामिल करने से न केवल हरित प्रौद्योगिकियों और सतत् उद्योगों को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि यह भी सुनिश्चित होगा कि भारत के उद्योग पर्यावरण के प्रति जागरूक उत्पादों के लिये बढ़ते वैश्विक बाज़ार में प्रतिस्पर्द्धी बने रहेंगे।
    • श्रम और सामाजिक मानकों को सुदृढ़ बनाना: भारत को अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में संलग्न रहते हुए श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा के लिये अपने FTA के भीतर उचित श्रम मानकों और सामाजिक सुरक्षा को एकीकृत करने की दिशा में कार्य करना चाहिये। 
      • ये प्रावधान कपड़ा और कृषि जैसे क्षेत्रों में शोषण से बचने में मदद कर सकते हैं, जो मूल्य में उतार-चढ़ाव के प्रति संवेदनशील हैं। 
      • श्रम कल्याण के साथ आर्थिक हितों को संतुलित करके, भारत कार्य स्थितियों में सुधार कर सकता है तथा अधिक समावेशी व्यापार नीतियों को बढ़ावा दे सकता है।
    • व्यापार साझेदारों और उत्पाद क्षेत्रों का विविधीकरण: भारत को कुछ बाज़ारों या उद्योगों पर अत्यधिक निर्भरता कम करने के लिये FTA के तहत अपने व्यापार साझेदारों और उत्पाद क्षेत्रों में विविधता लाने की आवश्यकता है।
      • विभिन्न देशों के साथ समझौते करके तथा डिजिटल सेवाओं, हरित ऊर्जा और उन्नत विनिर्माण जैसे गैर-परंपरागत क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करके भारत नए अवसर उत्पन्न कर सकता है तथा यह सुनिश्चित कर सकता है कि वह वैश्विक व्यापार गतिशीलता में बदलावों के प्रति लचीला बना रहे।
    • डिजिटल व्यापार और ई-कॉमर्स एकीकरण को बढ़ावा देना: FTA के भीतर डिजिटल व्यापार ढाँचे को शामिल करना तेज़ी से बढ़ते वैश्विक ई-कॉमर्स पारिस्थितिकी तंत्र में भारत की भागीदारी के लिये महत्त्वपूर्ण है। 
      • भारत को ऐसे प्रावधानों पर बातचीत करनी चाहिये जो डेटा प्रवाह, डिजिटल व्यापार और सीमा पार ई-कॉमर्स को सुविधाजनक बनाएँ, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि भारतीय व्यवसाय, विशेष रूप से SME, आसानी से वैश्विक डिजिटल बाज़ारों तक पहुँच सुनिश्चित कर सकें। 
      • इसमें डेटा स्थानीयकरण, बौद्धिक संपदा संरक्षण और डिजिटल वस्तुओं एवं सेवाओं हेतु विनियामक सामंजस्य के प्रावधान शामिल होंगे।
    • निवेश संरक्षण और सुविधा को बढ़ावा देना: भारत को विदेशी निवेशकों को अधिक सुरक्षा प्रदान करने और द्विपक्षीय निवेश प्रवाह को बढ़ाने के लिये अपने FTA के साथ-साथ द्विपक्षीय निवेश संधियों (BIT) पर भी बातचीत करनी चाहिये।
      • इसमें निवेशकों के प्रति निष्पक्ष एवं पारदर्शी व्यवहार सुनिश्चित करना, विवाद समाधान तंत्र तथा अधिग्रहण के विरुद्ध सुरक्षा शामिल है। 
      • एक मज़बूत निवेश संरक्षण ढाँचा रणनीतिक क्षेत्रों में विदेशी पूंजी, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और रोज़गार सृजन को प्रोत्साहित करेगा।
    • बदलती वैश्विक गतिशीलता के आधार पर व्यापार समझौतों की निगरानी और अनुकूलन:  भारत को FTA के परिणामों की निरंतर निगरानी करने और उभरते वैश्विक रुझानों एवं घरेलू आवश्यकताओं के आधार पर नीतियों को समायोजित करने के लिये एक समर्पित तंत्र स्थापित करना चाहिये।
      • इसमें समय-समय पर समीक्षा, सार्वजनिक परामर्श और उद्योग हितधारकों के साथ सहयोग शामिल हो सकता है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि FTA प्रासंगिक और उभरते आर्थिक परिदृश्य के अनुकूल बने रहें। 
      • अनुकूल और उत्तरदायी बने रहकर भारत अपने व्यापार समझौतों के दीर्घकालिक लाभ को अधिकतम कर सकता है।

    निष्कर्ष: 

    भारत के FTA बाज़ार पहुँच को बढ़ाते हैं, निर्यात को बढ़ावा देते हैं, FDI को आकर्षित करते हैं तथा वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा में सुधार करते हैं। वे प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को सक्षम करते हुए सेवाओं, कृषि और MSE जैसे प्रमुख क्षेत्रों का समर्थन करते हैं। FTA को मज़बूत करने के लिये, भारत को घरेलू क्षमता का निर्माण, निष्पक्ष विवाद समाधान सुनिश्चित तथा सतत्, समावेशी व्यापार को बढ़ावा देना चाहिये।