एडिटोरियल (04 Jan, 2023)



सर्कुलर इकोनॉमी को बढ़ावा देना

यह एडिटोरियल 28/12/2022 को ‘हिंदू बिजनेस लाइन’ में प्रकाशित “Circular Economy – Is India Ready to Come Full Circle in Sustainability?” लेख पर आधारित है। इसमें चक्रीय अर्थव्यवस्था के महत्त्व और इसके प्रसार से संबद्ध प्रमुख चुनौतियों के बारे में चर्चा की गई है।

संदर्भ

हाल के वर्षों में चक्रीय अर्थव्यवस्था (Circular Economy- CE) की अवधारणा ने विभिन्न पर्यावरणीय एवं आर्थिक चुनौतियों को संबोधित कर सकने के एक विकल्प के रूप में व्यापक रूप से ध्यान आकर्षित किया है। विभिन्न संसाधनों की परिमित प्रकृति और अपशिष्ट एवं प्रदूषण के नकारात्मक प्रभावों की बढ़ती मान्यता के साथ, चक्रीय अर्थव्यवस्था आर्थिक विकास के पारंपरिक रैखिक मॉडल के लिये एक अधिक संवहनीय एवं प्रत्यास्थी विकल्प की पेशकश करती है।

  • विश्व भर में सरकारें, कारोबार क्षेत्र और अन्य संगठन चक्रीय अभ्यासों को अपनाने और अधिकाधिक चक्रीय अर्थव्यवस्था की ओर आगे बढ़ने के रास्तों की तलाश कर रहे हैं। COP27 बैठक ने भी उत्तरदायित्वपूर्ण उपभोग एवं सतत् संसाधन प्रबंधन सुनिश्चित करने के माध्यम से भारत के लिये कार्बन उत्सर्जन को कम कर सकने में चक्रीय अर्थव्यवस्था की प्रासंगिकता को प्रमुखता से सामने रखा है।

चक्रीय अर्थव्यवस्था क्या है?

  • परिचय:
    • चक्रीय अर्थव्यवस्था ऐसी अर्थव्यवस्था है जहाँ उत्पादों को स्थायित्व, पुन:उपयोग और पुनर्चक्रण के लिये अभिकल्पित किया जाता है और इस प्रकार लगभग हर चीज़ का पुन:उपयोग, पुनर्निर्माण एवं कच्चे माल के रूप में पुनर्चक्रण किया जाता है अथवा ऊर्जा स्रोत के रूप में इसका उपयोग किया जाता है।
    • इसमें 6 R की अवधारणा शामिल है—Reduce (सामग्री के उपयोग को कम करना), Reuse (पुनःउपयोग), Recycle (पुनर्चक्रण), Refurbishment (पुनर्निर्माण), Recover (पुनरुद्धार) और Repairing (मरम्मत)।
  • चक्रीय अर्थव्यवस्था की आवश्यकता
    • चक्रीय अर्थव्यवस्था अपशिष्ट को न्यूनतम और उपयोगिता को अधिकतम करने पर केंद्रित है तथा एक ऐसे उत्पादन मॉडल का आह्वान करती है जो अधिकतम मूल्य/महत्त्व को बनाए रखने पर लक्षित हो ताकि एक ऐसे तंत्र का निर्माण हो सके जो संवहनीयता, दीर्घ जीवन, पुन:उपयोग और पुनर्चक्रण को बढ़ावा देती हो।
    • यद्यपि भारत में हमेशा से पुनर्चक्रण एवं पुन:उपयोग की संस्कृति रही है, इसकी तीव्र आर्थिक वृद्धि, बढ़ती जनसंख्या, जलवायु परिवर्तन के प्रभाव और बढ़ते पर्यावरण प्रदूषण के परिदृश्य में इसके लिये एक चक्रीय अर्थव्यवस्था को अपनाना अब अधिक अनिवार्य हो गया है।
    • चक्रीय अर्थव्यवस्था अधिक संवहनीय उत्पादन एवं उपभोग पैटर्न के उभार की ओर ले जा सकती है और इस प्रकार विकासशील एवं विकसित देशों को सतत् विकास के एजेंडा 2030 के अनुरूप आर्थिक विकास तथा समावेशी एवं संवहनीय औद्योगिक विकास (Inclusive and Sustainable Industrial Development- ISID) प्राप्त करने के अवसर प्रदान कर सकती है।
  • चक्रीय अर्थव्यवस्था पर वैश्विक रुझान:
    • जर्मनी और जापान ने इसे अपनी अर्थव्यवस्था को पुनर्गठित करने के लिये एक बाध्यकारी सिद्धांत के रूप में इस्तेमाल किया है, जबकि चीन ने इसके लिये एक कानून- ‘सर्कुलर इकोनॉमी प्रमोशन लॉ’- को भी अधिनियम किया है।
  • चक्रीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिये भारत की प्रमुख पहलें:
    • वर्ष 2022-23 के बजट ने सतत् विकास के महत्त्व को चिह्नित किया और सरकार ने चक्रीय अर्थव्यवस्था के अनुरूप निम्नलिखित नियम तैयार किये हैं:
    • लिथियम-आयन बैटरी, एंड-ऑफ-लाइफ व्हीकल्स, स्क्रैप मेटल, म्युनिसिपल सॉलिड वेस्ट आदि सहित 10 क्षेत्रों के लिये कार्ययोजना भी बनाई गई है जहाँ द्वितीयक सामग्रियों के पुन:उपयोग के महत्त्व पर बल दिया गया है।

चक्रीय अर्थव्यवस्था प्राप्त करने के मार्ग की बाधाएँ

  • स्पष्ट दृष्टि या विज़न का अभाव: सरकार के नीतिगत प्रयासों के बावजूद अधिक प्रगति नहीं हो सकी है। भारत के चक्रीय अर्थव्यवस्था मिशन के अंतिम लक्ष्य के प्रति स्पष्ट दृष्टि की कमी और नीतियों के वास्तविक कार्यान्वयन में अंतराल प्रमुख चुनौतियों में से एक है।
    • इसके अलावा, चक्रीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के प्रयास मूल्य शृंखलाओं के नितांत अंतिम बिंदु पर किये जाते हैं, जिसके परिणामस्वरूप उप-इष्टतम आर्थिक और पर्यावरणीय परिणाम सामने आते हैं।
  • उद्योगों की अनिच्छा: आपूर्ति शृंखला की सीमाओं, निवेश के लिये प्रोत्साहन की कमी, जटिल पुनर्चक्रण प्रक्रियाओं और पुन:उपयोग/पुनर्चक्रण/पुनर्निर्माण प्रक्रियाओं में भागीदारी के समर्थन हेतु सूचना की कमी के कारण उद्योग क्षेत्र चक्रीय अर्थव्यवस्था मॉडल को अपनाने के प्रति अनिच्छुक बना रहा है।
  • जागरूकता और समझ की कमी: भारत में बहुत से लोग चक्रीय अर्थव्यवस्था की अवधारणा और इसके लाभों से अवगत नहीं हैं, जिससे चक्रीय अर्थव्यवस्था संबंधी पहलों को लागू करने के लिये समर्थन प्राप्त करना कठिन हो जाता है।
  • अवसंरचनागत चुनौतियाँ: भारत की अवसंरचना चक्रीय अर्थव्यवस्था का समर्थन कर सकने के लिये पर्याप्त नहीं है। उदाहरण के लिये, देश में पुनर्चक्रण सुविधाओं की कमी है जिससे सामग्री का पुनर्चक्रण और पुन:उपयोग करना कठिन हो जाता है।
  • सांस्कृतिक चुनौतियाँ: भारत में उत्पादों के पुन:उपयोग और पुनर्चक्रण के विचार के लिये एक सांस्कृतिक प्रतिरोध भी मौजूद है, जिससे उपभोक्ता व्यवहार को बदलना तथा एक चक्रीय अर्थव्यवस्था की ओर आगे बढ़ना कठिन हो जाता है।

चक्रीय व्यवस्था को बढ़ावा देने के लिये क्या कदम उठाये जा सकते हैं?

  • सांविधिक सुधार: उत्पादन चक्र के आरंभिक चरणों में पुनर्चक्रित/द्वितीयक कच्चे माल की खरीद के लिये विधायी अधिदेशों और नियामक दृष्टिकोण से चक्रीय अर्थव्यवस्था को संबोधित करने के लिये एक एकीकृत कानून के विकास के माध्यम से इन चुनौतियों को दूर किया जा सकता है।
    • चक्रीय अर्थव्यवस्था रिपोर्टिंग पर एक सुव्यवस्थित ढाँचे, EPR प्रमाणपत्रों के कारोबार के संबंध में तंत्र को स्पष्टता प्रदान करने और आपूर्ति शृंखला की पूर्णता के लिये व्यवसायों को वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करने से भी इस दिशा में सहायता मिलेगी।
  • कार्यान्वयन रणनीतियों के साथ कानूनों का समन्वय: चक्रीय अर्थव्यवस्था के लाभों को प्राप्त करने के लिये सरकार की विभिन्न पहलों को उद्योग जगत के सहयोग के साथ कार्यान्वयन योग्य कार्रवाई के संयोजन में होना चाहिये।
    • प्रासंगिक कार्यान्वयन रणनीतियों के साथ सरकार के मौजूदा प्रयासों के संयोजन से उत्पादन के चक्रीय मॉडल को अपनाने के लिये व्यवसायों में भरोसे की भावना पैदा होगी।
  • अनुसंधान एवं विकास में निवेश: नवीकरणीय ऊर्जा उद्योग को पुनर्चक्रण प्रौद्योगिकियों के अनुसंधान और विकास में निवेश करना चाहिये। अनुसंधान एवं विकास में निवेश पुनर्चक्रण के नए तरीके खोजने में मदद कर सकता है जिससे उच्च दक्षता और पर्यावरणीय रूप से कम क्षतिकारी फुटप्रिंट जैसे परिणाम प्राप्त होंगे।
    • उद्योगों को घरेलू अपशिष्ट पुनर्चक्रण सुविधाओं की स्थापना के लिये वैश्विक पुनर्चक्रण फर्मों के साथ प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की दिशा में भी अग्रसर होना चाहिये।
  • प्रौद्योगिकी प्रेरित पुनर्चक्रण: सरकार को अपशिष्ट प्रबंधन के क्षेत्र में प्रौद्योगिकी संवर्द्धन में आम लोगों की सक्रिय भागीदारी को बढ़ावा देने के लिये विश्वविद्यालय और स्कूल स्तरों पर अपशिष्ट पुनर्चक्रण के क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास को प्रोत्साहन देना चाहिये।
    • इसके साथ ही, शहरों में जैविक अपशिष्टों के पुन:उपयोग को बढ़ावा देने लिये कंपोस्टिंग केंद्र स्थापित किये जा सकते हैं, जिससे मृदा में कार्बन की मात्रा बढ़ेगी और रासायनिक उर्वरकों की आवश्यकता समाप्त होगी।

अभ्यास प्रश्न: ‘‘विभिन्न संसाधनों की परिमित प्रकृति और अपशिष्ट एवं प्रदूषण के नकारात्मक प्रभावों की बढ़ती मान्यता के साथ, चक्रीय अर्थव्यवस्था आर्थिक विकास के पारंपरिक रैखिक मॉडल के लिये एक अधिक संवहनीय एवं प्रत्यास्थी विकल्प की पेशकश करती है।’’ टिप्पणी कीजिये।